डोर बेल ने रीमा का चेहरा खिला दिया। मोबाइल छोड़कर दरवाजे की तरफ लपकी,हो न हो पापा या भाई होंगे।
हो भी क्यों न रईस घर की इकलौती बेटी जो ठहरी मुंह से निकला नहीं कि डिमांड पूरी अब वो चाहे जैसा हो तभी तो यहां उसकी शादी हो गई।
कोई तो नहीं चाहता था कि मध्यम वर्गीय परिवार में पले बड़े लड़के से शादी हो।
पर कहते हैं ना कि दिल की आग बुरी होती है इसके आगे अच्छा बुरा कुछ नहीं सूझता।
वो बात अलग है कि जब जिम्मेदारियां बढ़ती है तो एक एक चीज की कीमत पता चलती है।
और जो तकरार रिश्तों में आती है वो अलग।
तभी तो ब्याह के बाद इसे यहां सामंजस्य स्थापित करने में बहुत दिक्कत आई।
और अंततः दो महीने भी नहीं निभा पाई।निभाती भी कैसे जहां वहां हर काम के लिए नौकरों पर निर्भर थी वहीं यहां सारे काम खुद करने होते ।जो इससे ना होता। इसलिए कुछ ही महीनों में अलग थलग हो लगी।
वहीं रेखा सामान्य परिवार की सुलझी हुई लड़की थी।
इसलिए उसे कोई खास दिक्कत न हुई यहां के माहौल में ढलने में।
फिर बिना मां की भी तो थी।
पिता जी अक्सर बीमार ही रहते।तो शादी भाई भाभी ने ही किया।
पर साल भर की कुछ खास रस्में को छोड़कर बाकी सभी को नज़र अंदाज़ किया। करते भी क्यों न आर्थिक तंगी जो थी।।
पर उसे अखरता ना।सास ससुर के चेहरे की खुशी देखकर वो चैन की सांस लेती कि कुछ हो ना हो पर घर में खुशहाली रहती है।
बस यही वजह है कि जिस त्योहार पर उसके घर से कुछ ना आता।तो……..।
वहीं आज भी हुआ।
दरवाजा खोला तो रीमा ने सामने खड़ा भाई को पाया।
वो अंदर बुलाती कि उसके पहले वो भारी भरकम पैकेट पकड़ा कर चला गया।
और वो चंदा सूरज दोनों भैया हमारे लागे सैंया रे हरी……गुनगुनाते हुए अपने कमरे में चली गई।
जिसे रेखा ने देखा तो उदास हो गई।और सामने बैठी सुरेखा ने पढ़ लिया।
फिर क्या था।राकेश के साथ मार्केट गई और तीज का सारा सामान लाकर बहू को पकड़ा दिया वो भी एक को नहीं दोनों को क्योंकि उनके लिए तो दोनों बराबर है।पर रीमा ने ये कहकर लेने से मना कर दिया कि मां ने भेजा है ।जिसे सुन उन्हें बहुत दुख हुआ।
पर दूसरे ही पल चेहरे की रौनक लौट आई।
क्यों रेखा ने आंचल में समेटते हुए गले से लग गई।और भीगी आंखों से बोली।
कौन कहता है सांस मां नहीं बन सकती।
आपने तो आज मां की कमी पूरी कर दी।कहते हुए हरी हरी चूड़ियां कलाई में डाल हरी चुन्नी सर से ओढ़ ली और मेहंदी लगाने के लिए छोटी ननद को आवाज लगाई।
ऐसा लगा जैसे रेखा ही नहीं बल्कि पूरा घर चहक उठा हो। एक अजीब सी अपनेपन की खुशबू सारी फिज़ा में फ़ैल गई।और सब खिलखिला पड़े।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव