अपने तो अपने होते ही हैं पराए भी अपने बन जाते हैं। – श्रद्धा खरे

आज जब मेरे  छोटे बेटे ने मुझे जन्मदिन पर उपहार स्वरूप  इनोवा गाड़ी की गिफ्ट की, तो मेरा मन कई साल पहले अतीत में चला गया। अतीत अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ बात उन दिनों की है जब मेरे पतिदेव हॉस्पिटल में लीवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारी के कारण एडमिट थे। उन्हें AB+positive  ब्लड की सख्त जरूरत थी। घरवा जान पहचान के किसी भी सदस्य से उनका ब्लड मैच नहीं कर रहा था मैं निराश हो  हॉस्पिटल में बनी मंदिर में भगवान के सामने हाथ जोड़कर बैठी  भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि कैसे भी समय रहते ब्लड की व्यवस्था हो जाए। तभी एक नवयुवक ने आकर मुझसे कहा मां जी आप चाहे तो मेरी मां का ब्लड ले सकती हैं और ऐसा कह कर उसने मुझे दो पैकेट एबी पॉजिटिव ब्लड के पकड़ा दिए। मैंने उससे कहा तुम्हें कैसे पता कि मुझे यह भी पॉजिटिव ब्लड की जरूरत है तब उसने बताया आपके पति के बगल में ही मेरी मां एडमिट थी उनका ब्लड AB+ था ।परंतु होनी को कुछ और मंजूर था अब मेरी मां इस दुनिया में नहीं है ।    अब यह ब्लड आपके काम आ सकता है । मैंने उसे तुरंत ब्लड लेकर हॉस्पिटल में जमा किया। ईश्वर की कृपा से मेरे पति है पूर्णतया स्वस्थ है  जब तक मेरे पति हॉस्पिटल में रहे वह रोज उन्हें देखने आता था। मैंने उसे अपना छोटा बेटा और उसने मुझे अपनी मां मान लिया है ।  और  हम मां बेटे हर सुख दुख में एक दूसरे के साथ है।                                        श्रद्धा खरे (ललितपुर) उत्तर प्रदेश

 

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