अपने ही तोड़ते हैं रिश्ते – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

प्रिया शादी करके जब ससुराल आई तो पीछे मायके में चार छोटे भाई बहन और मां छूट गईं।बचपन से अपने भाई -बहनों को बच्चों की तरह पाला था प्रिया ने। शुरू शुरू में तो उनकी बहुत याद आती थी,सास समझती थी प्रिया की तकलीफ़।महीने दो महीने में भेज देती थीं।जाकर मिल आती थी तो तसल्ली हो जाती थी प्रिया को।

छोटी बेटी के जन्म के बाद अक्सर मायके से मां या मंझली बहन आतीं ,बच्ची की देखभाल के लिए।सास की उम्र हो रही थी।बच्ची के लिए बहन का प्यार मां से ज्यादा नहीं तो कम भी न था।प्रिया ,पति और सास तीनों इस अहसान को मानते भी थे।

प्रिया की मां की तबीयत खराब हुई एक बार तो फोन किया उन्होंने “प्रिया तू कुछ दिनों के लिए आ जाएगी तो अच्छा होगा।इन बच्चों का स्कूल कॉलेज छूट रहा है।”प्रिया के बेटे को तब पॉक्स हुआ था,जाना मुमकिन न था,सो पति (रवींद्र)ने हंसकर यह जिम्मेदारी लें ली।ससुराल‌ जाकर तीन -चार दिन रुक कर वहां‌ सबको संभाला।सास की दवाई , डॉक्टर,फल सब रवीन्द्र ने अपने जिम्मे ले लिया।

अच्छी होने पर मां ने प्रिया को सुनाया”तू  सगी बेटी होकर भी इतना नहीं करती,जितना दामाद ने किया है।इतना अच्छा लड़का है,और तू मौका मिलते ही झगड़ने लगती है उससे।”

प्रिया सोच में पड़ गई कि मां के सामने तो कभी जोर से बात भी नहीं करी कभी,तो उन्हें कैसे पता चला?बाद में बहन ने बताया कि जीजाजी ही कह रहे थे मां से।

प्रिया को बहुत गुस्सा आया ,उसने रवीन्द्र से कहा”हमारा जो भी झगड़ा कभी कभार होता है,वह अपने घर के अंदर होता है।और हर घर में होता है।मां को बताने की क्या जरूरत थी?मेरे बारे में क्या सोचेंगी वो?”रवीन्द्र बात घुमा देते अक्सर।

इस बार मंझली बहन पूरे छह महीने रही।प्रिया के क्लास थे ट्यूशन के।उसने अपनी ममता से बेटी को पाला उन दिनों।अब जब भी वह वापस जाती,बेटी उसे ढूंढ़कर रोती।उसे फिर बुला लिया जाता।एक दिन सास ही बोलीं

“प्रिया,कितनी सेवा करती है तुम्हारी मंझली बहन।इसे अच्छी सी गिफ्ट देना बेटा।कुछ ऐसा जो इसे बहुत पसंद हो।”प्रिया के कुछ कहने के पहले ही रवीन्द्र कह उठे”वाह!मां कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने।तुम्हारी बहू के चक्कर में रहोगी तो कुछ न होगा।

मैं कल साथ में ले जाकर दिलवा दूंगा।”प्रिया को बात-बात पर आजकल छोटा करने लगे थे रवीन्द्र।प्रिया का मन बहुत भोला था,रोज़ की बात है कहकर हंसकर टाल‌देती।आज सास को बहुत बुरा लगा।बोलीं”तुम्हें भी तो जाना चाहिए था साथ में।

बहन तुम्हारी है ना।क्यों रवींद्र अकेला गया?बहू मुझे रवीन्द्र के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे।संभालो अपने आप को। निश्चिंत होकर मत रहा करो।”सास की बातें सुनकर बहुत छुब्ध हुई प्रिया।सामने तो सबकी इतनी तारीफ करती हैं,

पर पीठ पीछे अपने ही बेटे पर शक कर रहीं हैं।छि,दोनों की उम्र में कितना फर्क है,साली तो बहन जैसी ही हुई ना।मां के मन से ये फितूर निकालना पड़ेगा।बात आई -गई हो गई।क्या खरीदा पूछने पर बहन ने सूट और सैंडिल दिखा दिए।

कुछ दिनों के बाद ही बहन के लिए एक रिश्ता आया,जब वह प्रिया के घर पर थी।प्रिया के व्यवहार को देखकर ही वे दंपति अपने बेटे के लिए प्रिया की बहन का हांथ मांगने आए थे।प्रिया ने तो सोचा भी नहीं था कि घर बैठे -बैठे इतना अच्छा रिश्ता आएगा।मायके में मां को लड़के का सारा डिटेल बताया तो उन्होंने साधिकार कहा”तुम और रवींद्र देखो, तुम्हारी सास को भी अच्छा लगा तो बात पक्की करेंगे बाद में।अभी तो मैं आ नहीं पाऊंगी।”

शाम को ही डिनर में वेज-नॉनवेज सब बनाकर रख दिया था प्रिया ने।उसकी शादी के बाद पहली शादी होने वाली थी।मां की चिंता दूर हो जाएगी,यही सोचती हुई बहन के कमरे में देखने गई तो चौंक गई।बहन अभी तक साड़ी नहीं पहनी थी।

प्रिया चिल्लाने लगी”कब से साड़ी देकर रखी हूं।अगर ये पसंद नहीं तो कोई और पहन ले।वो लोग आते ही होंगे।क्यों तमाशा कर रही है?”जो बहन कभी पलटकर जवाब नहीं देती थी कभी,मुंह पर बोली”मुझसे पूछा था आपने उन लोगों को बुलाने से पहले।

?नहीं‌ ना।तो मैं नहीं जाना चाहती उनके सामने।”प्रिया उसे पुचकारते हुए पूछी”बच्चा शादी तो करनी है ना।इतना अच्छा परिवार, मां-पापा दोनों स्कूल में टीचर हैं।बहुत सभ्य लोग हैं,तू मिल‌ तो ले एक बार”

बहन टस से मस जब नहीं हुई ,तो फिर पूछा प्रिया ने”शादी नहीं करने का दिमाग कब आया?पहले तो हां की थी तूने।”झट से वह बोली”आप तो अपनी जिद के आगे किसी की सुनती नहीं।कम से कम जीजाजी ने मेरा साथ दिया। उन्होंने मेरी हिम्मत बंधाई,ना करने के लिए।”

प्रिया वाकई में निरा बुद्धू ही थी।पति से कहने लगी कि अच्छा है लड़का,सुखी रहेगा आपकी लाड़ली साली को।इस तरह घर बुलाकर लड़की से ना मिलवाना शिष्टाचार के विरुद्ध है।पति निर्विकार ही रहे।

इस घटना का यदि किसी ने सही विश्लेषण किया तो वह सास ने।अपने कमरे में ले जाकर बोली प्रिया से”तू कब तक ऐसी ही बुद्धू बनी रहेगी।तुझे दिख नहीं रहा कि यहां क्या चल रहा है।तू कल के कल बहन को मां के पास भेज।मैं अपने बेटे से बात करती हूं।इस बार मेरी बुद्धि से काम करना।”

प्रिया अगले दिन‌ ही बहन को छोड़ने जाने वाली थी ,कि पति ने आग्रह किया कि वो चले जातें हैं।बच्चों को लेकर भरी गर्मी में दिक्कत होगी।प्रिया फिर मान गई।सास ने सर पर हांथ रखकर इतना ही कहा”तेरा कुछ नहीं हो सकता।आंख बंद कर ये जो सब पर भरोसा करती है ना,देखना ऐसा विश्वासघात मिलेगा तुझे,कि सहन नहीं कर पाएगी।”

आज सास की बातें प्रिया की  मूढ़ बुद्धि में प्रवेश कर रहीं थीं।पति का बहन के प्रति इतना लगाव,तादाद से ज्यादा अधिकार,उसके लिए सारे निर्णय लेने का हक साधारण नहीं लग रहा था।आज पहली बार उसे रिश्तों के बीच दरारें दिखने लगी थीं।पति बहन को पहुंचाकर वापस आ चुके थे।प्रिया अब मायके जाकर बहन से बात करना चाह रही थी।

अगले दिन बच्चों को छोड़कर पहुंची मायके तो सब सकते में आ गए।प्रिया ने भी अपने आप को संयत कर रखा।यह आरोप किसी गुनाह से कम नहीं।पहले साक्ष्य जुटाने पड़ेंगे।शाम को ही एक सहेली की सगाई पार्टी में जाने के लिए दोनों(मंझली,छोटी)बहनें तैयार होकर निकल रही थीं,

तभी प्रिया की नजर मंझली बहन(लिया)की कलाई पर पहने टाइटन घड़ी पर पड़ी। आश्चर्यजनक खुशी हुई उसे और पूछा”अरे अपने इस कस्बे में टाइटन का शोरूम कब खुल‌गया रे?”उसने त्वरित जवाब दिया”अभी कुछ महीने ही हुए हैं।

“उनके जाते ही लाइट चली गई।प्रिया मोमबत्ती ढूंढ़ने लगी,तभी ऊपर के शैल्फ से घड़ी का बॉक्स नीचे गिरा।उसमें बिल और दुकान का नाम था।यह दुकान उसके ससुराल में थी।ऐसी ही घड़ी पति ने उसे भी दी थी।प्रिया को बुरा इस बात का नहीं लग रहा था

कि घड़ी दी पति ने,पर उससे छिपाकर देने की क्या जरूरत थी?अपनी बहन की दुश्मन थोड़ी है वह।बाद में आलमारी से ऐसी बहुत सारी गिफ्ट्स मिली प्रिया को हूबहू उसके पास जैसी थी।अब प्रिया को कुछ और समझने की जरूरत नहीं थी।

मां ,भाई और बहन के सामने ही ये सारी बातें प्रिया ने बताई,और पूछा भी कि उसे क्या करना चाहिए?”वो भी सकते में थे।यह कोई छोटी बात नहीं थी।सब मिलकर मंझली बहन को सुनाने लगे,चिल्लाने लगे।बड़े भाई ने तो कह दिया मैं इसे काटकर जेल चला जाऊंगा।

हमारी मां जैसी दीदी का रिश्ता तोड़ने की हिम्मत कैसे हुई तेरी?”वह बहन अब निःसंकोच खुलकर सामने आ गई”मैंने किसी से कुछ मांगा नहीं।महीनों पड़ी रहती थी जब,बच्ची की मां बनी तो बहुत अच्छा लगा होगा ना तुम्हें।

अगर तुम्हारे पति ने मेरी मेहनत से खुश होकर कुछ गिफ्ट दें भी दिया तो , तुम्हें क्यों दिक्कत हो रही।अगर मुझ पर जबरदस्ती के लांछन लगाए गए,तो मैं चुप नहीं बैठूंगी।बुलवा लूंगी जीजाजी को।फ़िर अंतिम फैसला वही लेंगे,जिसमें तुम्हारा ही नुकसान है।”सभी दंग रह गए थे,उसकी निर्लज्जता और हिम्मत देखकर।

प्रिया ने अपने पति के द्वारा रिया को लिखे कुछ खत उठाए और ससुराल वापस आ गई। सास-ससुर और पति के सामने जब उन खतों को पढ़ा तो ससुर जी ने बेटे से इतना ही कहा कि हम प्रिया के साथ हैं,उसे जो भी करना है कर सकती है।

सास ने भी बेटे को कोसते हुए कहा”किस बात पर तू अपनी साली पर मंडराने लगा रे?ना तो वह प्रिया की तरह सुंदर है ना शालीन।ऐसी लड़की जो अपनी ही बहन का रिश्ता तोड़ने की कोशिश में है, धिक्कार है।”

प्रिया जानती थी बच्चे अपने पापा के बगैर नहीं रह पाएंगे।तलाक लेकर उसी घर में जाकर उसी बहन की नजरों के सामने रहना पड़ेगा। आसपास वाले इज्जत की धज्जियां उड़ाते रहेंगे सुना सुनाकर।सास -ससुर के सामने कहा प्रिया ने”मैं यह घर छोड़कर कहीं‌नहीं जाऊंगी।

विश्वासघात मैंने नहीं किया।अब रवीन्द्र बताएं कि वह यह घर छोड़कर, बच्चों को ,आप दोनों को और मुझे छोड़कर जहां कहीं जाकर रहना चाहतें हैं रहें।इनके पैसे भी नहीं चाहिए मुझे।पर यह घर मेरा है।मैं कहीं नहीं जाऊंगी।कसम खाती हूं कि बच्चों का चेहरा तक देखने नहीं दूंगी मैं।”

प्रिया की हिम्मत और शराफत देखकर रवींद्र भी पिघल गया।अपने सिर पर हांथ रखकर जोर-जोर से रोने लगा यह कहकर कि “मुझे मेरे बच्चों की कसम,अब मैं कभी अपने पथ से नहीं भटकूंगा।मैं जी नहीं पाऊंगा बच्चों के बिना।

मुझे कुछ भी और सजा दो,पर बच्चों से दूर मत करो।”बोलते-बोलते सच में बेहोश ही हो गए थे वे।शुगर लो हो गया था।एडमिट करवाना पड़ा उन्हें।बाद में रिया की शादी भी हो गई।पति आखिरी तक तसल्ली देते रहे कि हम दोनों के बीच कोई संबंध नहीं हुआ था।

माफ़ कर दो।पर प्रिया दोनों को कभी माफ नहीं कर पाई।रिश्ते तोड़ने की कोशिश भी किसने की, नजदीक के रिश्ते वालों ने।शायद बच्चों की वजह से एक खूबसूरत रिश्ता टूटने से बच गया था पर फरेब का ग्लू ऐसा लगा उस रिश्ते में कि फिर वह मजबूत जोड़ कभी मिला ही नहीं।

प्रिया अब भूल जाना चाहती है उस बात को।बच्चे बड़े हो गए हैं।अपने पिता के बारे में कोई भी नकारात्मक टिप्पणी बिल्कुल पसंद नहीं करते।मौसी को भी बहुत प्यार करते हैं,क्योंकि उस की खुद की औलाद हुई ही नहीं।रिश्ते टूटने की कगार पर भी हो तो भी एक कोशिश जोड़ने की कर लेना चाहिए बच्चों की खातिर।यह शोषण नहीं अपने अधिकारों के प्रति जागरण है।

शुभ्रा बैनर्जी 

#टूटते रिश्ते

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