अपने ही अपने हों…जरूरी है क्या? – मीनू झा

घर आ रहा हूं चाचीजी…पिछले तीन चार सालों से सबकुछ बंद पड़ा है तो थोड़ा बहुत अगर आप साफ सुथरा करवा देती तो।

अच्छा आ रहे हो,बड़ी अच्छी बात है,आओ तुम्हारा स्वागत है..पर विनय तुम्हें तो पता है ना तुम्हारे चाचा जी अब खुद से चल फिर भी नहीं सकते..और मैं उनका और घर का काम करने में ही इतनी परेशान रहती हूं कि ना समय बचता है ना ताकत और तुम्हारे दोनों भाई अपने अपने कामों में व्यस्त रहते हैं,उनके पास भी फुर्सत नहीं…अब तुम आ ही रहे हो तो खुद करवा लेना।

देखा.. मैं ना कहता था मैं बात नहीं करूंगा चाचीजी से। शुरू से ही ऐसी ही हैं ये..हमारे परिवार की कोई भी अच्छाई या तरक्की इनसे बर्दाश्त तो होती नहीं तो क्या हमारी मदद ये खाक करेंगी..पर तुमने तो दुनिया देखी नहीं तुम क्या समझोगी।

विनय बोलना हमारा फर्ज था..ना करें वो कुछ..हम दो दिन होटल में रहकर सब कर लेंगे,तुम परेशान मत हो सब हो जाएगा, लेकिन उनसे लड़कर रहना भी तो ठीक नहीं..कल को अगर मम्मी पापा आठ दिन के लिए भी गांव गए तो कहने को अपने तो वहीं होंगे ना और वक्त पड़ने पर वही काम आएंगे–नीता ने समझाया

तुम ठीक कह रही हो…हम कोशिश करेंगे कि गिले शिकवे मिट जाएं और हमारे बिछड़े संबंधों का पुनर्मिलन हो जाए..लड़कर मिलने भी वाला क्या है?

विनय के माता पिता बुजुर्ग हो चले थे। उनकी बड़ी इच्छा होती थी कि गांव के घर में आठ दस जाकर रहें और वहां बीते दिनों की यादें ताजा करें..पर बीमार रहने की वजह से पिछले तीन चार सालों से वो गांव नहीं जा पाए थे तो उनके हिस्से का घर बंद पड़ा था। हालांकि उनके छोटे भाई और भावज उस घर के दूसरे हिस्से में रहते थे,पर भावज एक तो शुरू से ही थोड़े तीखे और गर्म स्वभाव की थी। दूसरा उनके दो बेटों में से कोई भी कुछ खास नहीं कर पाया,जबकि विनय और उसकी बहन दोनों नौकरीपेशा थे तो जलन लाजमी थी..तो उन्हें क्या पड़ी थी कि वो उनके हिस्से की साफ सफाई करवाते..विनय और नीता ने निश्चय किया कि वो घर जाएंगे और सबकुछ ठीक ठाक कराकर माता पिता को वहां ले जाएंगे..उसी संदर्भ में नीता ने कहा था एक बार चाची से बात कर लो..शायद उम्र के साथ विचारों में भी प्रगति आई हो..।



खैर विनय और नीता अपनी ही गाड़ी से गांव की ओर निकले..शहर में होटल में एक कमरा बुक किया,खाना खा लिया और निकल लिए गांव की तरफ…

गांव में पहले से बहुत कुछ बदल गया था, फिर भी लोग अनजानी गाड़ी को घूर घूर कर देख रहे थे। अपने घर के सामने कार रोक विनय और नीता उतरे तो घर की हालत देख विनय के आंसू निकल आए…पूरा घर पेड़ पौधों से भर गया था..मिट्टी के घर के खपड़ैलों से फुनगियां बाहर निकल आई थी, चहारदीवारी ढहने लगी थी…विनय को देख कई लोग आ खड़े हुए थे..कोई चाचा,कोई ताऊ,कोई भाई, कोई दोस्त….

अरे विनय भैया..आप..आना था तो फोन कर देते..घर साफ करवा कर रखता–बगल में रहने वाला एक लड़का बोला।

तुम..शिवा के भाई

हां भैया..आपके दोस्त शिवा का भाई सोम..भैया भी शहर में रहते हैं ना।

जबतक विनय ने ताला खोला..बगल के लोग कुछ मजदूरों को पकड़ लाए..जो आते ही साफ सफाई में जुट गए।



गांव की ही बगल की चाची नीता को अपने घर ले गई।जाने कितने लोग जमा हो गए..कितने लोगों ने चाय नाश्ता पूछ लिया..कुछ तो अपने घर से चाय बनवाकर ले भी आए,कोई कुर्सी ले आया तो कोई चारपाई..घर पर काम भी शुरू हो गया..पर दीवार से सटे चाचा चाची या उनके बच्चों में से ना कोई बाहर आया ना कोई दिखा।

दो तीन घंटों में ही पूरी साफ सफाई हो गई..और मिट्टी और पक्के के घर धुलने के बाद चमन की तरह दिखने लगे..एक दिन का और काम होना था फिर घर रहने लायक हो जाता।

विनय बेटा.. मैंने तो कई दफा बोला तुम्हारी चाची और भाईयों को थोड़ा घर साफ सुथरा करवा दो..उनकी तरफ कुड़ा मत डालो..उल्टे मुझपर ही बिगड़ने लगते कहते–हमारा मामला है आप टांग मत अड़ाओ?

एक बेटे ने किराने की दुकान खोली है,दूसरा दिन भर नदी तो कभी चौक चौराहों पर बैठा मटरगश्ती करता रहता है.. दोनों बेटे एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते..तुम्हारे चाचा की तो कुछ चलती ही नहीं घर में..सिर्फ पेंशन के लिए सबने उन्हें जिंदा रखा है–एक वृद्धा ने सारा वृतांत कह सुनाया।

जाने दीजिए दादी जी…वो साथ नहीं देते तो क्या..इतने ताऊ,चाचा,चाची,भाई जो मेरे सहयोग के लिए आ खड़े हुए हैं यही तो सबसे बड़ी बात है..हम तो सोचकर आए थे कि हम सबकुछ भूलकर आगे बढ़ जाएंगे..पर पुनर्मिलन.. अपनों से हो ये ज़रूरी तो नहीं… मैं डर रहा था कि यहां अपने माता पिता को कैसे छोड़ूंगा..पर यहां सबका सहयोग और प्यार देखकर लग रहा है कि क्यों अपने देश को गांवों का देश कहते हैं.. यहां लोगों के दिल में अपनों ही नहीं  दूसरों के लिए भी जगह है,कद्र है,मदद करने का जज़्बा है उल्लास है..निश्छलता और निस्वार्थता है..इंसान को खुशी खुशी जीने के लिए और क्या चाहिए..।

आया तो अपनों से पुनर्मिलन के लिए था..पर इंसानियत से पुनर्मिलन हो गया जहां आसपास सच मायनों में इंसान बसते हो वहां किस बात का भय ..भला और चाहिए भी क्या ??

मीनू झा 

 

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