शैलजा कार के हार्न की आवाज़ को सुनते ही रसोई में चाय बनाने चली गई थी । यह रोज का ही सिलसिला था कि शाम होते ही बेटा बहू के ऑफिस से आने से पहले ही वह चाय के लिए पानी चढ़ा देती थी और उनके फ्रेश हो कर आते ही चाय बना देती थी । तीनों बैठकर बातें करते हुए चाय पी लेते थे । आज भी वह चाय बनाकर लाई और देखती है कि बेटा बहू अभी तक फ्रेश होकर नहीं आए थे । उसने सोचा बुला लाती हूँ क्योंकि चाय ठंडी हो जाएगी । उन्हें बुलाने के लिए उनके कमरे के पास पहुँचकर दस्तक देने की सोचती ही है कि अंदर से बहू के ज़ोर से बोलने की आवाज़ सुनाई देती है कि देखो रवि हमारे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।इस बार की छुट्टियों में वे हरिद्वार या मथुरा जैसे तीर्थ स्थल नहीं जाना चाहते हैं ।उनको कुलू मनाली जैसे पहाड़ी प्रदेश में जाना है ।
मैं जानता हूँ शिप्रा पर माँ को कैसे ले जा सकते हैं उनसे तो ठंड बर्दाश्त ही नहीं होती है ।
वही तो मैं आपको बताना चाहती हूँ कि अब तक हम माँ को खुश रखना चाहते थे क्योंकि वे हमारे बच्चों का ख़याल रखती थी । जब से आपके पिताजी की मृत्यु हो गई थी तब से हमने उन्हें अपने साथ ही रख लिया था क्योंकि मैं भी नौकरी पर चली जाती थी और हमारे छोटे से बच्चों की देखभाल कौन करेगा इसलिए हम दोनों ने माँ को अपने पास रखा और उन्हें यह न लगे कि उन्हें हम काम कराने के लिए अपने घर में रखे हैं हर दस दिन में घुमाने ले जाना मूवी दिखाने ले जाना तथा साल में एक बार बाहर तीर्थ स्थल पर ले जाते थे । उन्हें खुश रखने की पूरी कोशिश हम करते थे ।
परंतु रवि हमारे बच्चे अभी बड़े हो गए हैं हमें माँ के मदद की ज़रूरत नहीं है । हाँ मेरे ऑफिस जाने से पहले आज भी वे हम दोनों के लिए टिफ़िन बाँध कर दे देती हैं। जिससे मेरी मदद हो जाती है पर उस छोटी सी मदद के लिए हम अपनी छुट्टियों को तीर्थ में बर्बाद नहीं कर सकते हैं । वैसे भी बच्चे अब अपना काम खुद कर लेते हैं । माँ को खुश रखने का नाटक करने की ज़रूरत नहीं है ।
शिप्रा जो कुछ तुमने कहा वह सब ठीक है परंतु अब माँ से क्या कहेंगे उन्हें अपने साथ न ले जाने का कौनसा बहाना बनाएँगे । तुम ही कुछ रास्ता निकालो भाई मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है । रवि तो ठीक है मैं उनसे कह देती हूँ कि हम बच्चों को लेकर इस बार टूर पर जा रहे हैं ।वे अपने भाई या किसी रिश्तेदार के यहाँ रहने के लिए जाना चाहती हैं तो ठीक है वरना अकेले ही घर में रह सकती हैं । वैसे भी आजकल वे सुबह से घर में अकेली ही रहती आ रही हैं आदत तो हो ही गई होंगी ।
शैलजा बाहर उनकी बातें सुनकर सोचती है कि कितने स्वार्थी हैं ये लोग जब तक उन्हें मुझसे काम था मेरे आगे पीछे घूमते थे मेरा बहुत ख़याल रखते थे । आज जब उनके बच्चे बड़े हो गए हैं और उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं है तो चाय में से मक्खी को निकाल फेंकने जैसे फेंकने चले हैं । उन्हें बहुत बुरा लगा एकदम से वे वहाँ से बैठक में आकर ऐसे बैठ गई जैसे उन्होंने कुछ सुना ही नहीं था और अपनी चाय पीने लगती हैं । इसी बीच रवि शिप्रा तैयार होकर आ जाते हैं । उन्हें देख कर भी शैलजा अनदेखा कर देती है जैसे उसने उन्हें देखा ही नहीं हो ।
शिप्रा ने कहा कि— अरे रवि चाय ठंडी हो गई है रुको मैं ही गरम करके ला देती हूँ । पहली बार शैलजा ने नहीं कहा कि मैं कर देती हूँ । इस बात को शिप्रा और रवि ने भी नोटिस किया था । एक बार उन्हें लगा कि माँ ने उनकी बातें सुन तो नहीं ली फिर सोचा वे तो यहाँ बैठकर चाय पी रही हैं तो नहीं सुनी होंगी ।
रात का खाना बनाने जा रही शैलजा से रवि ने कहा माँ हमारे लिए खाना नहीं बनाना क्योंकि बच्चे बाहर जाकर खाना चाहते हैं । आप अपने लिए बना लीजिए । पहले भी सब बाहर खाना खाने जाते थे परंतु उस समय शैलजा भी उनके साथ जाती थी । आज ये लोग उसे घर पर ही खाना बना कर खाने के लिए कह रहे थे ।
दूसरे दिन रविवार था दोपहर के खाने के बाद जब पूरा परिवार साथ बैठे थे तो बच्चों ने ही बात शुरू की थी कि माँ पापा इस बार छुट्टियों में हम तीर्थ यात्रा पर नहीं जाएँगे ।हमारे दोस्त हमें चिढ़ाते हैं ।
रवि ने कहा — फ़िक्र मत करो हम लोग इस बार कुली मनाली जा रहे हैं । बच्चे ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजाते हुए अपनी ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे थे ।
उसी समय बेटी ने कहा — परंतु पापा फिर दादी कहाँ रहेंगी । उनसे तो हिल स्टेशन की ठंड बर्दाश्त नहीं होती है । शिप्रा ने कहा — इसकी फ़िक्र मत करो तुम लोग इस बार दादी घर में ही रह लेंगी क्यों माँजी ठीक कहा न मैंने रवि ने कहा — माँ मैंने और शिप्रा ने सोचा कि इन सालों में आपको कहीं जाने का मौक़ा ही नहीं मिला है आप चाहें तो आपके लिए भी टिकट ले लेता हूँ जहाँ आप जाना चाहते हो बोलो ।
शैलजा सोचने लगी कि बहू तो बाहर के घर से आई है पर बेटा वह तो मेरा खून है मेरी कोख से जन्म लिया था पर वह भी इतना स्वार्थी होगा मैंने सोचा ही नहीं था ।
उन्होंने कहा कि— मैं यहीं रह लूँगी मुझे कहीं नहीं जाना है । तुम लोग अपनी फ़िक्र करो ।मेरे लिए मैं सोच लूँगी । मेरे इतना कहते ही वे सब खुश हो गए और अपने ट्रिप के लिए प्लान बनाने लगे थे । वह दिन भी आ गया जब चारों को मनाली निकलना था । बहुत सारी हिदायतें देकर पूरा परिवार अपने मनोरंजन के लिए निकल गया था । शैलजा के लिए घर काटने को दौड़ रहा था । दो दिनों में उसने बहुत कुछ सोचा था कि आगे उसे क्या करना है ।
क्योंकि उसे मालूम चल गया था कि बेटे के घर में अब उसकी ज़रूरत नहीं है वह सोच रही थी कि मैं अभी भी सारे काम कर सकती हूँ किसी ज़रूरतमंद के लिए कुछ करूँ तो शायद अच्छा होगा । पर क्या करूँ यह सोच रही थी कि पड़ोस में रहने वाली रज्जो आ गई थी । बातों बातों में उसने बताया था कि उनके एक रिश्तेदार हैं उनकी माँ अब बिस्तर पर हैं उनकी देखभाल के लिए वे लोग किसी एक ऐसे व्यक्ति के लिए ढूँढ रहे हैं जो उन्हें अपना समझ कर उनकी मदद कर सकें।
हम उम्र होंगी तो और अच्छा होगा क्योंकि उनकी सोच और विचारों में मिलन होगा और दोनों की अच्छी जमेगी । रज्जो से उनका पता और फ़ोन नंबर ले लिया यह कहकर कि किसी को ज़रूरत होगी तो दे दूँगी ।
शैलजा ने बहुत सोच विचार किया और उस फोन नंबर पर फ़ोन किया था । वहाँ से विजय कुमार ने बताया था कि सुनंदा उनकी माँ हैं बाथरूम में गिर जाने की वजह से वे बिस्तर पर ही पड़ गई थी । बहुत सारे डॉक्टरों को दिखाया पैसे खर्च किए पर माँ की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ है ।इसलिए हम उनकी हम उम्र की महिला के लिए देख रहे हैं ताकि माँ को उनके साथ बातचीत करने में आनंद आए और वे अपने आपको अकेला ना समझे ।
शैलजा ने अपने बारे में बताया और कहा कि अगर उन्हें कोई एतराज़ नहीं है तो मैं आ सकती हूँ । विजय कुमार को शैलजा से बात करके अच्छा लगा और उन्होंने शैलजा को अपने घर बुला लिया ।
शैलजा ने निर्णय ले लिया था कि अब उसे रवि के परिवार से निकलना होगा। इसलिए उनके आने से पहले ही उन्होंने अपना सामान पैक किया और रवि के नाम एक पत्र लिखकर रख दिया । रवि अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताकर वापस आ गया था । वे सब बहुत खुश थे ।वहाँ पर बिताए पलों को याद करते हुए हँसते हुए दिन बिता रहे थे । किसी ने भी यह नहीं पूछा कि आपने यहाँ अकेले अपने दिन कैसे गुजारे हैं ।
बच्चे जो कभी दादी की रट लगाए रहते थे उन्हें भी दादी की फ़िक्र नहीं थी । वैसे शैलजा को किसी से कोई शिकायत भी नहीं थी ।उसने दुनिया देखी है ।हाँ अपने बच्चे से उन्हें यह उम्मीद नहीं थी पर उन्हें रवि पर भी ग़ुस्सा नहीं आया था । इसीलिए उन्होंने पत्र में भी इसका ज़िक्र नहीं किया था कि उन्होंने पति पत्नी की बातें सुन ली थी ।वे किसी का दिल नहीं दुखाना चाहती थी ।
छुट्टियों के ख़त्म होते ही सब लोग अपने अपने काम पर चले गए थे । शैलजा ने पत्र रवि के रूम इस तरह रखा था कि उसे दिख जाए और पूरे घर का काम खतम करके अपना सामान लेकर अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ गई थी ।
उन्होंने पत्र में लिखा था कि—
रवि
तुम्हारे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।मेरी सहायता की उनको ज़रूरत नहीं है । मेरे शरीर में अभी भी इतनी ताक़त है कि मैं दूसरों की मदद कर सकूँ। इसलिए मैंने सोचा कि मैं उस ज़रूरत मंद की सेवा करूँ जिसके लिए कोई भी नहीं है । मुझे मेरी मंज़िल मिल गई है रवि और मैं उस की सेवा करने के लिए जा रही हूँ । मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है बेटा । मैंने अपनी ज़िंदगी जी ली है ।अब मैं दूसरों के लिए जीना चाहती हूँ । तुम्हें पत्र लिखकर जा रही हूँ ।उसके लिए मुझे माफ़ करना । तुम जानते हो कि तुम मेरी कमज़ोरी हो इसलिए तुम्हारे सामने तुम्हें छोड़कर मैं नहीं जा सकती हूँ ।इसलिए तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद पत्र लिखकर जा रही हूँ । हो सके तो मुझे माफ़ कर देना । तुम्हें बहू और बच्चों को मेरा आशीर्वाद । मेरी दुआओं में तुम सब भी रहोगे बेटा । ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि तुम्हारा परिवार को हर वह खुशी मिले जिसके तुम सब हक़दार हो ।
तुम्हारी माँ
दोस्तों आजकल दुनिया में लेन देन का रिश्ता ही बन गया है । मेरी सोच में हम अपनों की ज़रूरत में उनके काम आए तो बस है । अपेक्षा नहीं करेंगे तो उपेक्षा सहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । अगर आप में ताकत है तो ज़रूरत मंद के लिए कुछ करें । हम जानते हैं कि दुनिया स्वार्थी लोगों से भरी पड़ी है आज शैलजा अपने बच्चों के स्वार्थ से दुखी हैं पर वह भी जानती है कि आगे भी उसे ऐसे लोगों से सामाना करना ही पड़ेगा । जीवन चलने का नाम है।
#स्वार्थ
के कामेश्वरी
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