अपने आत्म- सम्मान को अब चोट पहुँचने नही दूँगी – किरन विश्वकर्मा

सविता को आज बेटी रूही को दिखाने डॉक्टर के पास जाना था। उसे दो- तीन दिनों से बुखार आ रहा था।वह सास कमला जी के पास गयी और पैसे मांगे। कमला जी ने मुँह बनाते हुए उसे पैसे पकड़ा दिये। उसे यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। पति अभय कभी नौकरी करते कभी नौकरी छोड़कर घर में बैठ जाते।

इसकी वजह से उसे बहुत परेशानी होती। वह अभय को बहुत समझाती तो कहते कि पिता जी तो घर चला ही रहे हैं और तुम्हे रोटी, कपड़ा तो मिल ही रहा है पर पति के रहते हुए सविता को अपने सास- ससुर के हर बार हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता। छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उसे कहने में भी संकोच होता।

जब सविता मांगती भी तो सास का यूँ मुह बनाकर पैसे देना ऐसा लगता कि उसके आत्म सम्मान को चोट पहुँच रही है।वह धीरे-धीरे अपना आत्म विश्वास खोती जा रही थी। उसको ससुर राम प्रकाश जी कुछ कार्य करने की आज्ञा भी नहीं दे रहे थे।  उन्हें घर की बहू और बेटियों का घर से बाहर निकलना पसंद नहीं था। डॉक्टर के यहां जाने की केवल आज्ञा थी या फिर बेटी के स्कूल क्योंकि उसके पति से यह भी जिम्मेदारियाँ नहीं संभाली जा रही थी। जो भी पैसे थे वो डॉक्टर की फीस में और दवा में खर्च हो गये थे।  फल लेने के लिए पैसे ही नहीं बचे, वह मन मसोस कर रह गई। किंतु आज उसनें सोच लिया कि इस तरह से तो काम नही चलेगा।

घर आकर सविता ने सिलाई मशीन को साफ कर बरामदे में रख दी। कुछ कपड़े खुद के सिले हुए हैंगर में टांग दिए। ससुर राम प्रकाश जी ने जब यह सब देखा तो आग-बबूला होने लगे। कमला जी दौड़ी-दौड़ी आयी और बोली जब तुम्हें पता है कि तुम्हारे ससुर जी को पसंद नहीं है तो क्यों यह सब कर रही हो।

नहीं माँ जी बस अब और नहीं, आपका बेटा तो ढंग से कमाता नहीं है अब मैं अपनी और बेटी की आवश्यकता के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहती। मैं अपनी जरूरतों को खुद पूरा करूंगी। कविता ने कहा और क्या-क्या सामान लाना है लिस्ट बनाने लगी।

पर मैं तो देती हूं…..फिर यह सब करने की क्या जरूरत है निर्मला जी ने पूछा। 

हाँ आप देती हैं…..लेकिन उससे सभी जरूरतें नहीं पूरी होती। फिर जब तक पापा जी हैं तब तक उसके बाद क्या।  मेरे अन्दर जो गुण हैं काम करने की शुरुआत मैंने उसी के आधार पर कर दी है। कल को मेरी बेटी बड़ी होगी उसकी भी आवश्यकताओं की भी वृद्धि होगी। इनसे तो उम्मीद करना बेकार है। जो कार्य इनको करना चाहिए वह अब मैंने करने की ठान ली है। मैं हर बार हाथ फैलाना उचित नहीं समझती।



ससुर जी को गुस्से में अपनी ओर देखता हुआ पाकर वह बोली…. 

पापा जी अब समय बदल गया है। अब बहू-बेटियाँ भी बाहर निकलकर देश-विदेश में अपना नाम कमा रही हैं।

ज़मी से लेकर आसमाँ तक और चांद तक बेटियाँ पहुंच गई हैं। पापा जी अब समय बदल चुका है फिर मैं तो अपने कार्य की शुरुआत घर से ही कर रही हूँ। मैं कब तक आप लोगों के सामने हाथ फैलाती रहूंगी।

यह सुनकर सविता के ससुर जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह अपनी गलती को मानते हुए बोले कि माफ़ करना मैं ही गलत था….मैं अपनी गलत सोच के कारण तुम पर पाबंदियां लगा रहा था। मैं भूल गया था कि जमाना बदल गया है…. फिर अपने बेटे से कहा….अब भी समय है सुधर जा नालायक …जो काम तुझे करना चाहिए वो बहू कर रही है। पर अभय को कोई फर्क नही पड़ा। 

सविता सिलाई के कार्य में निपुण तो थी ही….जो भी उससे कपड़े सिलवाता वह बहुत ही तारीफ करता। अब वह मोबाइल पर अपने सिले हुए कपड़ों के फोटो और वीडियो डालती तो जो लोग उससे जुड़े हुए थे वह भी सविता से कपड़े सिलवाने लगे। जब उन्हे सविता के सिले हुए कपड़े पसंद आने लगे तो वह अपने आस-पास के लोगों को बताते इस तरह उसके पास सिलाई का काम खूब आने लगा। धीरे-धीरे बहुत दूर- दूर से लोग कपड़े सिलवाने के लिए आने लगे। अब उसका काम बहुत बढ़ गया था तो उसनें एक टेलर को भी सहायता के लिए रख लिया। एक दिन एक स्कूल टीचर सविता से कपड़े सिलवाने आयी तो बातों-बातों में स्कूल में होने वाले प्रोग्राम में बच्चों के पहनने वाले कपड़ों का आर्डर दे दिया। पहले तो सविता सकुचायी तो उसके पति ने कहा….. मैं भी कपड़े सिलने में तुम्हारी मदद करूँगा और आर्डर लाना और ले जाने का काम करूंगा तो सविता यह सुनकर मान गई। 

अब सविता के पति ने और स्कूल से संपर्क कर काम को और बढ़ा लिया था और खुद भी सविता की सहायता करने लगा। उसे और स्कूलों से भी प्रोग्राम में पहनने वाले कपड़ों के आर्डर मिलने लगे तो उसे और लोगों को शामिल करने की आवश्यकता हुई तो उसने आस-पास की कुछ जरूरत मंद महिलाओं को भी काम दे दिया अब उसके साथ और महिलाएँ आत्म निर्भर बन अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी। सविता ने अपने आत्म सम्मान के लिए यह कार्य शुरू किया था जो कि अब सविता के साथ- साथ और महिलाओं को भी आर्थिक सहायता दे रहा था। अब सविता के साथ- साथ उन्हे भी पैसों के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती।  सविता ने आत्म- निर्भर बन कर अपना आत्म-सम्मान पा लिया था।

कैसी लगी मेरी कहानी आप अपने विचारों से मुझे अवगत जरूर कराईयेगा

#आत्मसम्मान

धन्यवाद 

किरन विश्वकर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!