सुनो ,एक बात कहना है तुमसे।बहुत दिनों से सोच रहा हूँ ,तुम्हें बताऊँ। नौकरी का कोई भरोसा नहीं है। मंदी को देखते हुए छंटनी हो सकती है।
राम ने पत्नी से कहा।
तो फिर क्या सोचा आपने ? पत्नी ने चिंतित स्वरों में पूछा।
मैं सोच रहा हूँ कि एक छोटा सा बिज़नेस शुरू करूँ पर उसके लिए कम से कम दस लाख रुपये तो लगेंगे ही।राम ने कहा।
पत्नी ने कहा , मेरे गहने हैं फिर बिज़नेस लोन भी तो मिलता है ।आप उस के लिए कोशिश कर लीजिये।
मैं सोचता हूँ ,एक बार अपने भाई -बहनों से बात करूं ।वे जरूर मदद करेंगे।
शंका के बादल उभरे फिर भी पत्नी मुस्कुराई ,बोली ,ठीक है ,कर लीजिए।
दीवाली आ ही रही है।एक दिन गेट टूगेदर कर लेते हैं।
जल्द ही सभी भाई बहन मिले।भोजन पानी के बाद राम ने अपना प्रस्ताव रखा।
उसने कहा, मेरी नौकरी कभी भी जा सकती है।सोचता हूँ एक बिज़नेस शुरू करूँ।आप चारों केवल थोड़ी थोड़ी मदद कर दें तो मुझे लोन नहीं लेना पड़ेगा और ब्याज का पैसा भी बचेगा।
बड़े भाईसाहब ने कहा ,बेटे का एजुकेशन लोन चल रहा है ।मैं तो मजबूर हूँ।कुछ मदद नहीं कर पाऊँगा।बहन कुर्सी से उठते हुए बोली ,”बिट्टू के स्कूल से आने का समय हो गया है ।अभी तो जा रही हूँ ।बाद में बात करती हूँ।छोटी भी दूसरा बहाना बनाकर साथ में ही उठ कर चली गईं ।मुद्दे की बात से तो उन्हें कोई सरोकार ही नहीं रखा।
पत्नी के चेहरे पर स्मित मुस्कान थी और राम के चेहरे पर विस्मित !
सब कुछ अनपेक्षित हो गया ।पत्नी के सामने राम शर्मिंदा महसूस कर रहा था
उसने कहीं पढ़ा था ,”जिंदगी की मुश्किलों को “अपनों “के बीच रख दो।या तो “अपने” रहेंगे या मुश्किलें ।”
“अपने “चले गए ।”मुश्किलें ” रह गईं
अपनों पर भरोसा था।आज टूट गया।
#भरोसा
समाप्त
जिसमें गाँठ न हो
सीमा के पिता का श्राध्द था । वह एक दिन पहले ही अपने पति के साथ माँ के पास पहुँच गई।शाम को दोनों माँ से आवश्यक सामान की लिस्ट लेकर बाज़ार से आवश्यक सामान ले कर आ गए।
सीमा की माँ ने अपने सहकर्मी शर्मा जी को ही श्राध्द में भोजन के लिए निमंत्रण दिया था।
शर्माजी आते ही बोले ,मैडम ,सबसे पहले आपको अपने दामाद को भोजन परोसना चाहिए। दामाद सौ ब्राम्हण के बराबर होता है।
सीमा की माँ बोली ,अब वे दामाद कहाँ रह गए हैं।
वे तो बेटे से भी बड़ कर अपना फ़र्ज निभा रहे हैं।
शर्मा जी बोले ,बात तो आपकी सही है।
सब काम निपटने के बाद सीमा की माँ ने कहा ,बेटा ,आप लोग कल बहुत सारा सामान लाए थे ।कितना पैसा खर्च हुआ ?मुझे बताओ और पैसे ले लो।
दामाद ने कहा ,सुबह तो आप शर्माजी से कह रहीं थीं ,अब वे दामाद कहाँ रह गए हैं !फिर खर्च और पैसे की बात क्यों ??
माँ निरुत्तर थीं ,नतमस्तक थीं।
सोच रही थी, दिलों में वही बसते हैं जिनके मन साफ़ हो। सुई में वही धागा प्रवेश करता है जिसमें कोई गाँठ न हो।
समाप्त
कर्मों का लेख
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आज बहुत दिनों बाद दो दिन की छुट्टी मिली और सीधे बहू बेटे के पास पहुँच गईं सुधा जी।
शाम के खाने में बहू ने उनकी पसंद का ध्यान रखते हुए गरम गरम हलुआ और ड्राई फ्रूट्स वाला नमकीन परोसा और सुधा जी के चेहरे पर बहू के लिए “थैंक यू ” वाली मुस्कान आ गई साथ ही उनकी पैंतीस साल पुरानी यादें ताजा हो गई।
उस वर्ष नई शादी हुई थी उनकी।घर में जेठ -जेठानी और उनके बच्चे आए हुए थे।
छोटा सा घर था और माली हालत कमजोर ही थी।
भोजन के समय जेठानी जी किचन और भोजन वाले कमरे के बीच का पूरा पर्दा लगा देतीं ।
सुधा जी रोटी बनातीं और जेठ जेठानी और उनके बच्चे खाने बैठ जाते।जेठानी जी पर्दे के पीछे से रोटी लेकर सबको परोसती जातीं
सबके खाने के बाद बाजार से लाए गए मीठे की चिकनाई और नमकीन के बचे हुए अवशेष थाली में रह जाते जो कि और पर्दा खोल दिया जाता ।
सुधा जी के लिए घर में बची खुची सब्जी और रोटी रह जाती।कभी कभी वे सोचतीं
“बात मिठाई और नमकीन की नहीं भावना की है। कितना अजीब सा व्यवहार है इन लोगों का!”ऐसा बर्ताव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
बुरा तो बहुत लगता लेकिन इतनी छोटी बात पति को बताना भी तो अच्छा नहीं लगता!
वर्ष बीतते रहे ,आना जाना चलता रहा लेकिन व्यवहार में परिवर्तन सिफर ही रहा।
थोड़े दिन बाद ही खबर मिली ,जेठजी और जेठानी जी डायबिटीज के गम्भीर मरीज हो गए हैं।सारे मिठाई नमकीन बन्द! केवल साठ ग्राम आटे की रोटी और हरी सब्जी !हाँ यही खाना रह गया है अब।
“कर्मो का लिखा हर हाल में भुगतना पड़ता है।दुःख बेचे नहीं जा सकते और सुख खरीदे नहीं जा सकते”
सोच रहीं थीं सुधा जी।
ज्योति अप्रतिम