आज आसपड़ोस का हमारे जीवन पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है, हम अनायास ही किसी की तरफ खिंचे चले जाते है। ऐसी ही मेरी सहेली शिवानी थी।
शिवानी को लगता था कि उसके अंकल आंटी बहुत अच्छे हैं। उनके व्यवहार से लगता ही नहीं था, कोई वे गैर है या अपने नहीं है, धीरे- धीरे उनके साथ उसका अपनत्व तो बढ़ता ही जा रहा था।
अंकल आंटी कोई और नहीं उनके एरिया में हुऐ तबादला के बाद आए हुए नये पुलिस इंस्पेक्टर थे। उनकी पत्नी शिवानी की आंटीजी थी।
एक बार की बात है। आंटी जी ने शिवानी को मंदिर में भजन गाते हुए देखा तो उन्हें लगा कि कितनी होशियार लड़की है। वही आंटी जी ने उससे नाम और पता पूछा। और पहचान बनाई। जब भी उसे देखती तो घर आने का आग्रह करती तब एक दिन शिवानी ने कहा मैं ऐसे कैसे आपके घर आ जाऊं पहले आप हमारे यहां आइए।तब मम्मी मेरी आपके यहां आने देगी। फिर उन्होंने शिवानी से कहा तुम ही अपने घर का पता बता दो । मैं तुम्हारे अंकल जी के साथ आ जाऊंगी।
और तुम्हारी मम्मी से हमारी पहचान भी हो जाएगी।इस तरह पता पूछकर उन्होंने शिवानी के घर आ पहुंची।तब आजू बाजू वाले देखने लगे कि साहिब की बीबी क्यों आईं है।तब बाहर पुलिस की गाड़ी रुकते हुए शिवानी ने देखी तो वह खुश होकर चहकते हुए अपने मम्मी को बताने लगी मम्मी अपने यहां सेंगर आंटी जी आई है उन्होंने मुझसे पता मांगा आज तो वह सही में अपने यहां आ गई।तब शिवानी की मम्मी बोली अरे इतने बड़े साहब की पत्नी अपने यहां क्यों आएगी।तब शिवानी ने कहा मम्मी मैंने बालकनी से गाड़ी रुकते हुए देखी उसमें आंटी जी बैठी हुई थी।तब विद्या जी कहीं चलो बाहर देखते हैं।तब दोनों बाहर पहुंची।तो आंटी जी घर का पता ही पूछ रही थी।तब शिवानी को देखते ही बोली – देखो शिवानी हम पहले तुम्हारे यहां आ ही गए।तब वो चहकते हुए बोली आंटी आइए ना….
इस तरह वह खुश होकर अंदर बैठाती हुई बोली आंटी मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि आप आ भी गई।तब सेंगर आंटी बोली – शिवानी मुझे आना ही था तो आ गई। नहीं तो तुम मेरे पास आने की शुरूआत ही करती तुम्हारे मम्मी पापा से भी मिलना था तो आ गई।तभी विद्या जी पानी लाती है। और कहती हैं बहुत बहुत स्वागत है हमारी छोटी सी कुटिया में….अरे अरे आप भाभी जी कैसी बात कर रही है। हमें भी आप जैसे अच्छे लोग की जरूरत है, आपकी बेटी की आवाज ने मुझे अपना बना लिया और मैं आज खिंची चली आई ….तब दोनों की दोनों की बहुत सारी बातें होती हैं। विद्या जी उनके पोहा बनाती है चिप्स भी सेंक लाती है।इस तरह सेंगर आंटी जी शिवानी आंटी के यहां उसके और उसके परिवार का होने लगता है।
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इस तरह अपने नौकर के द्वारा जब भी उन्हें शिवानी की जरूरत बुलाती और कभी कोई घर के काम करा लेती।कभी उसके साथ जाना होता वहां घूम आती। जैसे कभी पिक्चर, कभी प्रदर्शनी…..कभी मार्केट….और जब भी बाजार जाती तो शिवानी को बुलाती। इस तरह से उनका मतलब पूरा होता था उन्हें इस शहर के मार्केट की जानकारी नहीं थी,इसलिए हमेशा वे शिवानी का साथ ही लेती।
इस तरह समय निकल रहा था ,उनका मतलब पूरा होता हुआ लगा। अब उनका ट्रांसफर होने वाला था,तो धीरे-धीरे दूरियां बनाना शुरू कर दी, शिवानी और उसका परिवार हर सप्ताह उनके यहां टीवी की मूवी देखने जाते तोवह सिर दर्द का बहाना बनाती या कोई काम एक्स्ट्रा निकाल लेती कि शिवाजी आएगी तो ये क्या लूंगी।
अब शिवानी को समझ आने लगा था। पहले इतना प्यार दिया और अब बदला हुआ रवैया आंटी का क्यों हो रहा है।वह समझ नहीं पा रही थी।इसलिए कहा जाता है कि न तो पुलिस वालों की दोस्ती अच्छी ,न ही दुश्मनी!
अब क्या था एक बार शिवानी के पापा का पड़ोसी से झगड़ा हुआ। अब शिवानी को लगा कि अंकल जी सब संभाल लेंगे। वह सुबह-सुबह थाने शिवानी पहुंच गई। उसने पूरी बात अंकल जी को बताई। पर वो पहले ही रिश्वत ले चुके थे। और तो और कानूनी ज्ञान दे डाला ।
उसके पापा कोज्ञकानूनी कागज बनवाने में दो दिन लग गए ,तब वो रिहा हो पाए।असल हुआ यूं था ।मगनजी और उसके पड़ोसी के बीच झगड़ा हुआ था।
मगन जी शिवानी के पापा है। आज उन्हें समझ आ गया कि मीठे-मीठे बोल से कोई अपना नहीं होता। अब आपसी व्यवहार में तनाव आ चुका था। भले ही शिवानी के पापा बहुत पैसे वाले नहीं थे फिर भी वे थानेदार साहब का सम्मान करते थे। आज उनकी असलियत तो सामने आ चुकी थी। कोई किसी का सगा नहीं होता!
पहले जब भी थानेदार साहब यानी कि अंकल आंटीजी को टाइम मिलता तो सपरिवार खाना खाकर जाते थे। और वो भी खाने खिलाए बिना अपने घर से आने न देते थे।खैर….
लेकिन पुलिस वाले भी कहीं की खुन्नस कहीं निकलते। असल में आंटी ने हम लोगों से उन्हें १०दिन टिफिन देने के लिए कहा, पर शिवानी के पापा एक स्कूल में सरकारी टीचर थे।और उनका बड़ा परिवार था।
उसकी चार बहनें और और दो भाई थे। ऊपर दादा-दादी भी थे। इस तरह काम भी मुश्किल से हो पाता था। उस समय काम वाली बाई नहीं होती थी।तो खाना समय पर नहीं पहुंचा पाए।तब से अंकल जी होटल में दोनों टाइम खाना खाने लगे।उनके लिए दो प्रकार की सब्जी सलाद चटनी पापड़ सब रखना पड़ता। इस कारण से देर होने पर मना कर दिया और कहा परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इस तरह अब कड़वाहट इतनी आ गई कि वह उन्हें नमस्ते न करती! शिवानी सामने से मुंह फेर कर निकल जाती। उसे लगता कि उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ हुआ,जिसे मां-बाप से बढ़कर मान कर चल रही थी वो उसके काबिल ही न थे।
कुछ समय उनका तबादला हो गया ।अब वो अंकल आंटी केवल स्वार्थी के रूप में ही याद आते।
इस तरह समय बीतता गया और वे केवल धुंधली यादों में ही रह गये। इस तरह आज भी शिवानी को एहसास होता है कि लोग कैसे रंग बदलते हैं।
दोस्तों- हम अपने आसपास से ही बहुत कुछ सीख जाते हैं। सीख भी जीवन भर के लिए कड़वी याद बन जाती है। विश्वास जीतने वाले कब अविश्वासी हो जाएं पता नहीं चलता है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया