देखो प्राची, अब सूरज ने तुमसे विवाह कर ही लिया है,और तुम इस घर मे आ ही गयी हो तो एक बात समझ लो मैं तुम्हे बहू मानने वाली नही।
पहले ही दिन अपनी सास शकुंतला जी के मुँह से ये वाक्य सुन प्राची तो अवाक रह गयी,क्या उत्तर दे वह समझ ही नही पा रही थी।बस इतना ही कह पायी, माँ जी आप ऐसा क्यूँ बोलती हैं?
ये सास बहू में क्या बातें हो रही हैं, गोपनीय तो नही है?हँसते हुए सूरज ने कमरे में आते आते कहा।
अरे बेटा सूरज, नयी नयी बहू आयी है ना,उसे घर की परम्परायें, रीति रिवाज तो समझाने पड़ेंगे ही ना।प्राची समझदार है,बेटा, तेरी चॉइस बहुत अच्छी है।
प्राची एक दम चौंक गयी, ये सासु माँ का कौनसा रूप है?अभी अभी सूरज के आने से पहले किस प्रकार चेतावनी भरी बातें कर रही थी और सूरज के आने पर बहू सूरज की अच्छी चॉइस हो गयी।
सूरज के पिता राम दयाल जी कई वर्ष पूर्व ही स्वर्ग सिधार गये थे।वे अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपनी बड़ी बेटी रमा की शादी धूमधाम से कर चुके थे। बेटा सूरज छोटा था,वह तब पढ़ रहा था।राम दयाल जी का बिज़नेस अच्छे स्तर का था,सो परिवार में उनके जाने के बाद भी कोई आर्थिक दिक्कत नही आयी।
रामदयाल जी के स्वर्ग सिधारने पर उनके व्यापार को उनकी पत्नी शकुंतला जी ने संभाल लिया। राम दयाल जी जितनी निपुणता तो उनमे नही हो सकती थी,पर इतना हुआ कि व्यापार कम तो हुआ,पर बंद नही हुआ।इससे उनकी जमा पूंजी तो बची रह गयी,और खर्च लायक आमदनी व्यापार से होने लगी।
सूरज ने पढ़ाई पूरी होते ही पिता का व्यापार खुद संभाल लिया।।सूरज ने व्यापार को जल्द ही पुरानी स्थिति में ला दिया।अपने विद्यार्थी जीवन मे ही सूरज का प्रेम प्राची से हो गया था।दोनो ने शादी करने का निर्णय बहुत पहले ही कर लिया था।सूरज ने आत्मनिर्भर होने पर अपनी माँ से प्राची से शादी करने की बात की।
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प्राची एक सामान्य परिवार से सम्बंधित थी।माँ को यह प्रस्ताव गले नही उतर रहा था,उसके दो कारण थे,एक तो यह प्राची का परिवार सामान्य था,इस कारण वे इस विवाह को अपनी प्रतिष्ठा अनुरूप नही मान रही थी,दूसरे उनका अहम आड़े आ रहा था कि सूरज ने लड़की भी खुद पसंद कर ली।
शकुंतला जी ने दबे स्वर में सूरज को मना भी किया,पर सूरज के अडिग निर्णय के कारण वे चुप हो गयी।आखिर सूरज और प्राची की शादी हो ही गयी।प्राची के गृह प्रवेश के बाद पहले दिन ही शकुंतला जी ने प्राची को स्पष्ट कर दिया कि वे उसे बहू नही मानेगी।पर बेटे के सामने उन्होंने अपना दूसरा रूप दर्शाया।
सूरज प्रातः 9 बजे अपने व्यापारिक ऑफिस पर चला जाता था,वहां से उसका आना सामान्य रात्रि में ही होता।इस बीच प्राची और शकुंतला जी ही घर पर अकेली रहती।पहले दिन वार्ता के कारण प्राची शकुंतला जी से डरी डरी रहती,प्राची की कोशिश होती कि वह अपनी सासू माँ के सामने कम ही पड़े।पर ये इतना आसान नही था।
सूरज के जाते ही सासू माँ के किसी ना किसी बहाने व्यंग्य बाण शुरू हो जाते।सूरज के सामने उनकी जबान से शहद टपकता था।ऐसे में प्राची समझ ही नही पा रही थी,कि वह क्या करे।सूरज से यदि कहे भी तो वह क्योंकर यकीन करेगा।
इसी ओहपोह में समय व्यतीत हो रहा था।सासू माँ के व्यवहार में कोई परिवर्तन नही था,वह सब अकेली प्राची ही झेल रही थी।तभी समाचार आया कि सूरज की बड़ी बहन रमा के पति का एक दुर्घटना में निधन हो गया।पता लगते ही सूरज,प्राची और शकुंतला जी रमा की ससुराल तुरंत पहुंच गये।रमा के पति महेश का अंतिम संस्कार उसके छोटे भाई सुरेश ने किया।तीन दिन वही रहकर सूरज परिवार सहित वापस आ गया।
रमा के विधवा हो जाने पर सासू माँ उदास रहने लगी थी,पर अपने दुःख को कभी भी प्राची से शेयर नही करती।एक दिन अचानक ही रमा बदहवास हालात में घर आयी,उसको देख शकुंतला जी धक से रह गयी।प्राची भी रमा को देख चिंतित हो उठी।रमा अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नही थी।प्राची रमा को अपने साथ अपने कमरे में ले आयी।
प्राची यूँ तो उम्र में रमा से छोटी थी,पर उसका अपनापन और स्नेह देख रमा प्राची से चिपट कर हुमच कर रोने लगी।जरूर कोई बड़ा दुःख मन मे लिये थी रमा,पर यदि बतायेगी नही तो समाधान कैसे निकलेगा?प्राची ने रमा को रोने दिया,फिर सांत्वना दे,कहा दीदी कह दो सब बात,हम सब है ना,
तुम्हारे साथ।अपनेपन के अहसास ने रमा को फिर रुला दिया,फिर प्राची से चिपट बोली रमा,भाभी मुझे बचा लो,भाभी मुझे बचा लो।महेश के बाद सुरेश हैवान हो गया है, रखैल बनाना चाहता है मुझे,छी. भाभी आत्महत्या कर लूंगी, पर वहाँ नही जाऊँगी।दीदी, ये भी तो तुम्हारा ही घर है,आप यही रहेंगी, आपको अब कही कुछ कहने बताने की जरूरत नही है।पूरे सम्मान के साथ आप हमारे साथ बड़ी बहन के रूप में रहेंगी।
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कमरे के बाहर खड़ी शकुंतला की आँखों मे आंसू भरे थे।आज ये आंसू अपनी बेटी के लिये नही थे,उसके दुख तो प्राची ने हर लिये थे,आज उनकी आँखों मे आँसू इसलिये थे कि उन्होंने प्राची जैसे हीरे जैसी बहू का तिरस्कार किया था।आज उनकी आंखों में प्रायश्चित्त के आंसू थे।
अपने आँचल से आंखों के आंसू पौछते शकुंतला जी कमरे के पास से हट गयी।अपने कमरे में पहुंच कर उन्होंने आवाज लगायी, बहू, मेरी चाय में बेटी अदरक भी डाल देना।आज पहली बार प्राची ने अपनी सासू माँ में अपनत्व भरा अधिकार भाव देखा था,आंखे तो प्राची की भी भर आयी थी,आखिर विजय उसकी हुई थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
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