“अपनापन” – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

कालिंदी काकी की टोकरी लाल, नीली, पीली, आसमानी और हरी चूड़ियों से भारी पड़ी थी और  जल्दी-जल्दी  सर पर टोकरी रख वह कहीं जा रही थीं कि–

 तभी एक आवाज आई– 

अरे काकी—-कहां भागी जा रही हो—? हमें नहीं पहनाओगी चूड़ियां–!

  देखी तो वैजयंती उनके पीछे-पीछे भागे आ रही थी ।

 अरे बिटिया– अभी मैं थोड़ी जल्दी में हूं हवेली से बुलावा आया है परसों जमींदार के बेटे  की शादी थी ना–! आज उन्होंने बहू भोज रखी है– सो  नई बहुरिया के  लिए उसकी साड़ी से मिलती-जुलती चूड़ी देनी है– जो वह शाम के वक्त  पहनेगी–! काकी एक सांस में सारी बातें कह गई  ।

अच्छा काकी फिर तुम लौटते वक्त हमें दे जाना–वैसे–चूड़ियां तो हम  बाजार में जाकर भी पहन सकते हैं पर तुम्हारी हाथ से चूड़ी पहनने में एक अलग  सुकून मिलता है—-! वैजयंती काकी के हाथ को चुमते हुए बोली  ।

” चल पगली” लौटते  पहना जाऊंगी–!

 कालिंदी भावुक हो गई ।

 अच्छा अब जाओ–तुम्हें लेट हो जाएगी । 

बड़ी लंबी उम्र होगी तुम्हारी–। अभी-अभी अम्मा जी (ठकुराइन की सास) से तुम्हारे बारे में ही बात कर रही थी कि तु अभी तक आई नहीं– । “

बहुत लेट कर दी– ।

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“बहुरिया तो कब से नहा- धुआ कर तुम्हारे इंतजार में बैठी है ।  वैसे तो वह अपने मायके से लाई मैचिंन (मैचिंग) चूड़ी डाल रही थी पर मैंने रोका— । ठकुराइन कमर में चाबी लटकाते हुए बोली ।

” कोई नहीं मालकिन पहनने देती बहुरिया को अपनी मर्जी की” बेचारी की मां ने साड़ी की मैचिंन (मैचिंग) लगा कर दी होगी । काकी बड़े दया भाव से बोली ।

अरे ऐसे कैसे पहने देती–उसे–? तुम्हारे हाथों से डाला गया चूड़ियां उसके लिए “अखंड सौभाग्यवती” का आशीर्वाद बन जाएगा–! एक ही बेटा है और तु कहती हो कि खुद डालने  देती ।

 

 अरी कलांदिया–‘ ऐसी बात तेरे  मुंह से निकली कैसे—? अम्मा हुक्के का कस भरते हुए बोलीं । हमार पोतवा– इस हवेली का इकलौता चिराग है और तू है कि भाव खा रही है—-!

” अरे नहीं बड़ी मालकिन मैं तो यूं ही बोल दी—!

 ओ सुहागिया— जा,जाकर नईकी  बहुरिया को लेते आ—!  (सुहागिया हवेली की नौकरानी)

” बहुत सुंदर—!’ बिल्कुल फिल्म की हीरोइन है तुम्हारी बहुरिया–! ‘इसकी सुंदरता से तो मानो पूरी हवेली जगमगा उठी हो–हाथ तो रुई है—! लाल और हरी चूड़ियां बीच-बीच में चमकीली वाली चूड़ियां डालते हुए कालिंदी काकी उसकी हाथ निहारते हुए  बोलीं  ।

” बहुरिया सोच समझकर ही लानी थीं न !  तु अपनी आशीर्वाद दे ताकि वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहे–!

  खूब सारा आशीर्वाद , अखंड सौभाग्यवती , दूधों नाहाओ पुतो फलो!

 बहुत स्नेह से सर पर हाथ रख कर बोलीं 

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 ठकुराइन कालिंदी की आंचल में साड़ी,पैसे तथा मिठाइयां रखते हुए बोलीं जा— ये साड़ी किसी को ना देना बड़े शौक से खासकर तेरे लिए ही मंगवाया है–!  मालकिन मैं इसे जरूर पहनूंगी काकी खुशी से बोलीं  ।

“अपनी दुकान समेटते हुए जाने के लिए तैयार हुई ‌ही थी कि–” अरे तनिक बैठ जाओ—! अम्मा जोर से चिल्लाई  ।

ना बड़ी मालकिन और भी ग्राहक इंतजार कर रहे होंगे

‘ पर यहां से बिना खाए हुए तो मैं जाने नहीं दूंगी—!

 खा लेती बड़ी मालकिन पर जाने क्यों सभी को आज जाकर चूड़ियां पहनाने का मन कर रहा हैं  सभी मेरे ही इंतजार में बैठे होंगे ।  “तू क्या करेगी इतने पैसों का—? एक ही तो पेट है ज्यादा हाय- हाय मत कर बस– आराम से काम कर और हम सब है ना तेरे लिए—-  ।

जी बड़ी मालकिन—आप सब की दया है—!

  आज शाम 7:00 बजे बहू भोज है तू अभी खाना तो नहीं खा रही– पर खास तौर पर तुझे  निमंत्रण दे रही हूं शाम में आकर खाना खा लेना–!

ठकुराइन पल्लू को खींचते हुए बोली–। 

 जी मालकिन– मैं बेटे और बहुरिया दोनों को इकट्ठे आशीर्वाद देने जरूर आऊंगी—! 

कहते हुए चली गई— ।

कालिंद की उम्र कोई 60 के आसपास की होगी उनका अपना कोई नहीं था गांव के सभी लोगों को वह अपना परिवार मानती और उनसे बहुत प्यार करती ।

  एक बार बाढ़ आया उसके बाद कॉलरा जैसी बीमारी फैली—। काकी का पति और बच्चा दोनों उस बीमारी की चपेट में आ गए और उनकी मौत हो गई। तब से कालिंदी बिल्कुल अकेली हो गई‌ । “चूड़ियां बेचने का धंधा शुरू किया तो लोगों ने भी कहना शुरू किया कि—“अरे वह तो विधवा होकर सुहागन वाली चीज बेचने लगी  ।

“लेकिन एक घटना से लोगों का दिल और दिमाग दोनों बदल गया।

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 हुआ यूं कि— गांव में साहूकार के बेटे की नई-नई शादी हुई ।किसको पता था की लड़की को मिर्गी की बीमारी है जब शादी की  पहली रात लड़की बेहोश होकर गिर गई—  तब घबराकर वैद्य को बुलाया गया तो पता चला कि, लड़की को बचपन से ही मिर्गी आती थी— ।

” अब पश्चाताप करने से कोई फायदा नहीं था–जैसा था उसी को अपना लिया गया ।

“चौठारी के दिन नई पीली चूड़ियां डाली जाती है तो उसे डालने के लिए कालिंदी काकी को ही बुलाया गया चूड़ियां बदलते हुए काकी ने खूब “अखंड सौभाग्यवती” का आशीर्वाद दिया और भगवान की कृपा देखो तब से साहूकार की बहुरिया को मिर्गी आना भी बंद हो गया और दो पोते भी हुए ।

 उसकी तो जिंदगी बदल गई।

 तभी से लोगों की धारणा बन गई कि काकी का आशीर्वाद अगर नए दंपति या सुहागिनों को मिल जाए तो वह “सौभाग्यवती ही नहीं अखंड सौभाग्यवती” हो जाती है ।

 “आज काकी को सभी से मिलने और चूड़ियां पहनाने का मन कर रहा था । इन गांव वालों ने मुझे बहुत इज्जत दी सभी कितना मुझसे प्यार करते हैं मुझे कभी भी अकेलापन का एहसास नहीं हुआ जब-जब मैं अपने पति और बच्चे को याद करती तब कोई ना कोई मुझे इन यादों से उबार लेता चूड़ियां बेचना तो एक बहाना था असल में मुझे तो बस इन सब के करीब आना था ।ताकि मेरी बची जिंदगी उनके प्यार- दुलार और सम्मान से गुजर जाए ।

काकी सोचती हुई चली जा रही थी कि वैजयंती ने फिर  ध्यान भंग करते हुए कहा— बहुत देर लगा दी— ? कब से हम तुम्हारे इंतजार में द्वारी पर ही बैठी रहें—।

हां बिटिया थोड़ी लेट हो गई ला पहना दूं—-! चूड़ियां पहनने के बाद वैजयंती ने काकी के पैर छुए तो काकी ने उसके सर पर हाथ रख दिया—!

” बैठो ना— चाय पी के जाना  !

 नहीं नहीं— अभी और भी कई जगह चूड़ियां पहनानी हैं ।

“पर आज ही क्यों–?

 कल दे देना—! 

अभी सुबह से तो तुम हवेली में ही थी— जाकर घर आराम कर लो—।

ना बेटी आज ही पहना आती हूं— और ये पुरानी चूड़ियां खत्म होगी तभी तो और भी अच्छी-अच्छी चूड़ियां लेके लाऊंगी ना—!

 हां—  पर इस बार मेरे लिए— ‘आसमानी और सफेद ‘ रंग वाली लाना पैसे पकराती हुए वैजयंती बोली— ।

 देख बेटा आज पैसे रहने दे फिर मैं कभी ले लूंगी—-!

 और निकल पड़ी ।

 वैजयंती, काकी को तब तक देखती रही जब तक वह उनकी आंखों से ओझल ना हो गई— । शाम के 6:00 बज रहे थे 

 ‘लो कर आई सारा काम—काकी के चेहरे पर एक संतोष की लकीर थी

   घर पहुंच कर नहा- धोकर सुबह की बनाई चावल सब्जी  खाई ।

 अरे— 7:00  बज  भी गए 

 बहू भोज में भी जाना होगा— 

 कोई नहीं, आधा घंटा आराम करके ही जाऊंगी– पर जाऊंगी जरूर–! बच्चों को आशीर्वाद जो देनी है–!

 ” सुबह-सुबह सुहागिया ने ठकुराइन को बताया कि मालकिन कालिंदी काकी अब इस दुनिया में नहीं रही “

पर कल ही तो— कहते हुए ठकुराइन धराम से जमीन पर बैठ गई । सुहागिया संभालते हुए बताई कि गांव की सभी औरतों को कल वह चूड़ि पहनाई और  हमेशा के लिए सो गई जैसे उनका काम अब खत्म हो चुका हो । 

अम्मा की आंखें भी भर आई बोलीं शायद— इसलिए कल शाम में—- ।

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#सौभाग्यवती 

धन्यवाद।

मनीषा सिंह

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