अपनापन का ढोंग क्यों ..? – अर्चना सिंह   : Moral Stories in Hindi

दो दिन से छाया बाजार करने में व्यस्त थी । काफी महीनों से घर में पूजा कराने को सोच रही थी । पर योजना बनाये गए कार्य अक्सर सफल नहीं ही होते हैं । कभी किसी रिश्तेदार की मौत, कभी उसके बच्चों की छुट्टी नहीं कभी कार्यक्षेत्र में कार्यभार ज्यादा आदि । हद तो तब हो गयी जब अगले दिन पूजा होना था

और उसके पति अनिल जी दुर्घटना से घायल हो गए एक दिन पहले । यही सब समस्याओं से जूझती हुई आखिरकार पूजा का ये दिन और मुहूर्त आया जब घर के सभी सदस्य पूजा के लिए मन से तैयार थे  । 

पूजा से दो दिन पहले छाया जब बाजार से अपने घर लौट रही थी उसकी पड़ोसन अंकिता ने उसे देखते ही टोका…”अरे ! छाया तुम ..? क्या बात है, आजकल पूरा समय तुम्हारा बाजार में गुज़र रहा है । छाया ने मुस्कुराते हुए बोला.. “नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है । दरअसल बहुत दिनों से कोई पूजा- हवन नहीं हुआ तो इच्छा हुई पूजा करूँ ।

कब से माहौल अस्त – ब्यस्त था न । अब जाकर फुर्सत मिली है तो सोचती हूँ धीरे,- धीरे घर के बचे काम निपटा लूँ । सब तो अपने कामों में ही व्यस्त हैं तो मैं ही दौड़ भाग कर लेती हूँ  । कभी मेरी बेटी पिंकी को समय होता है तो वो साथ चल लेती है ।

आधे से ज्यादा खरीदारी तो हो गयी, छिटपुट चीजें और पूजन सामग्री बच गए हैं बस । एक स्वर में छाया बोलते जा रही थी । छाया को बीच मे टोकते ही अंकिता बोलने लगी …”ठीक है, ठीक है ।अब दिखाओगी भी या सिर्फ सुनाती ही रहोगी । 

अंकिता छाया के पीछे – पीछे उसके घर में आकर बैठ गयी ।छाया ने बोला…”मैं तो बातों – बातों में भूल ही गयी अभी दिखाती हूँ । इतना बोलकर पैकेट से छाया सोफ़ा कवर निकालकर अंकिता के सामने रख दी ।

अंकिता ने हाथों में कवर लेते हुए कहा..”वाह ! क्या सुंदर पसन्द है तुम्हारी । और क्या लिया है ? फिर छाया ने पैकेट से चादर, पर्दे और साड़ियाँ निकाली । अंकिता ने जल्दी से दूसरी सहेली सुगंधा को फोन किया । सुगंधा भी छाया के घर आ गयी ।जैसे ही उसने इतनी सारी शॉपिंग देखी तुरन्त मुँह टेढ़ा करते हुए बोली..भई !

लॉटरी लग गयी छाया की तो। छाया  गैस पर चाय चढ़ा रही थी तभी अंकिता ने रसोई के स्लैब के पास आते हुए कहा…”क्या छाया ! जब से बेटी की नौकरी लगी है तुम्हारे तो भाग्य ही खुल गए । पहले हम सब एक साथ सोच – समझ के खरीदारी करते थे । अब तो तुम्हारी खरीदारी का कोई ठिकाना ही नहीं है । 

सुगंधा ने शोकेस पर हाथ फेरते हुए कहा…”देख लो ! ये भी पिंकी के पैसे से ही बनवाया होगा । पहले तो ये नहीं होता था ।

“नहीं सुगंधा भाभी ! ऐसा नहीं है हर एक चीज को पिंकी से क्यों जोड़ रही हो । काफी दिनों से घर का माहौल ठीक न होने के कारण अब जाकर चीजें सही हुईं । एक साल से घर में अच्छा नहीं था माहौल । इसलिए इतना कर रही और फिर पूजा भी है तो उसके लिए भी सारी तैयारी कर रही । 

बेटी के पैसों को तो जमा करके उसकी शादी के लिए कोई आभूषण बनवा दूँगी । क्यों ये सब फिजूल खर्चे में लगाऊं ? 

सुगंधा और अंकिता छाया की बातों में हाँ में हाँ मिलाने लगीं । छाया ने टेबल पर चाय और नमकीन रखे फिर राम दरबार की चांदी की मूर्ति लायी और दिखाते हुए बोलने लगी …”जॉब लगने की खुशी में हम दोनों पति – पत्नी को पिंकी ने ये उपहार दिया है और अपने भाई शिवम को ये स्मार्ट वॉच । 

आहें भरते हुए, कभी मुँह टेढ़ा करते हुए सुगंधा और अंकिता छाया के घर से चली गईं ।

दोनो के अंदाज़ को देखकर छाया समझ रही थी कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है इन दोनों के बीच जो मेरी ही थाली में परोसी जाने वाली है । शाम में छाया और  अनिल जी जाकर अगले दिन की पूजा और साथ – साथ खाने का निमंत्रण दे दिए । खाना का नाम सुनते ही सुगंधा और अंकिता के साथ बाकी पड़ोस की जो सात – आठ सहेलियाँ थीं सब के सबका चेहरे का भाव देखते बन रहा था ।

समझ नहीं पा रही थी छाया ,और ज्यादा दिमाग लगाने की बजाय उसने दिमागी घोड़े को लगाम दिया । किसी काम से छाया रात में बाहर निकली तो देखा सब पड़ोसन आपस मे एक दूसरे से कानाफूसी कर रही थीं  । झटके से छाया ने अपने ऊपर वाली स्मिता को कहते हुए सुन लिया था कि..इस कॉलोनी में तो यहाँ अभी तक किसी को पूजा में खाना खिलाते नहीं देखा बस प्रसाद और खीर ही देते हैं सब। खूब तरक्की हुई है तभी इतना वृहद पैमाने पर लगी हुई है छाया ।

खैर..पूजा का दिन भी आ गया । सुबह से नहा – धोकर पिंकी, शिवम, अनिल जी सब छत पर लगे हुए थे । कोई मेवा काटने में, कोई फल धोने में तो कोई छत को सजाने में ।

चकित थे सब शामियाना लगता हुआ देखकर की खाना  की व्यवस्था छोटे पैमाने पर घर मे नहीं बल्कि भव्य पार्टी की तरह किया जा रहा है   ।

पूजा शुरू हो चुकी थी लगभग सभी लोग आ चुके थे । पूजा के दौरान कानाफूसी तो चल ही रही थी । सबका ध्यान भजन – कीर्तन में कम और अन्य बातों में ज्यादा दिलचस्पी  लेने में थी । 

छाया सबके लक्षणों को देखकर भी अनदेखा करने में लगी थी लेकिन नहीं चाहते हुए भी उसके कानों तक बात आ ही गयी ।

प्रियंका और सुगंधा बातें कर रही थीं और बाकी सब हामी भरने में लगी थीं । प्रियंका ने कहा…” पता नहीं कुछ अजीब लोग भी होते हैं जो बेटी की कमाई खाना पसंद करते हैं मैं तो कभी नहीं ऐसा कर सकती । बेटी की कमाई से ही कितना कुछ कर लिया  । मुझे तो लगता है बेटी के पैसों से ही पूजा करवा रही होगी । किसी ने कहा..”मैं तो अपनी बेटी को इतने सस्ते जॉब करने ही न दूँ । 

मन मसोस कर छाया ने सबको प्रसाद बांटा और खाने के लिए नीचे ले गयी । सब मज़े में खा रहे थे पर छाया को देखकर अभी भी कानाफूसी जारी थी ।

देखो ! कितनी जल्दी आगे बढ़ गयी छाया । अभी कुछ समय पहले ही तो भाई साहब का पैर फ्रैक्चर हुआ था , शिवम को टाइफाइड भी हुआ था और अचानक सब कुछ लग रहा है जैसे जादू सा हो गया । 

एक अन्य सहेली प्रियंका ने कहा..पता नहीं कैसे ये बीस हजार का जॉब करवा रही है, मेरी बेटी तो इसी के साथ है लेकिन इतने कम बजट का जॉब मेरी बेटी नहीं करने वाली ।पास बैठी सहेलियों ने भी हाँ में हाँ मिलाया ।

कुल मिलाकर यही समझ आ रहा था कि जब तक छाया तकलीफ में थी सब सहानुभूति उसे देकर अच्छा महसूस कर रहे थे और जैसे ही ज़िन्दगी पटरी पर आई सब कमियाँ निकालते हुए खिलाफ होने लगे  ।

निकलते वक्त जैसे ही अंकिता और स्मिता, सुगंधा, प्रियंका ने छाया से गले मिलते हुए कहा…बहुत अच्छी पार्टी रही, मज़ा आ गया । ये दोहरे भाव की बातों को देखकर छाया बर्दाश्त नहीं कर सकी और उसने खुलकर कहा..”पार्टी अच्छी थी या नहीं ये तो आपको ही पता होगा भाभी । मुझे इस अवसर पर इतना ही समझ आया कि आपलोग बहुत महान हो बेटी की कमाई नहीं खाते, आपकी बेटी सस्ते वाले जॉब नहीं करती । पर अभी तक बहुत बर्दास्त करके सुन रही थी लेकिन अब इतना ही कहूँगी कि मैंने बेटी को इस लायक बनाया है कि वो मुझे कमाकर खिला सके इसमें कोई बुराई नहीं । आपकी बेटी को चालीस हजार का जॉब मिलेगा नहीं और बीस हजार का करेगी नहीं  । 

 हाथ जोड़ते हुए छाया ने कहा..”क्षमा चाहूंगी मुझे किसी की बेटी के बारे में उंगली उठाना अच्छा नहीं लगता पर आपलोगों ने तीन दिनों से मुँह खोलने पर मजबूर कर दिया । मेरे घर में बैठकर आपलोग मेरे ही परिवार वालों की बुराई कर रहे हो । मसोस करके सुन रही थी सब तब तक ठीक था लेकिन आपलोगों ने तो हद कर दी आज । आपको बर्दाश्त नहीं हुआ तो बात को किसी हद पर ले गए और अब अपनापन का ढोंग क्यों ? सीढ़ी पर ऊपर खड़ी हूं ये आपलोगों ने देखा लेकिन उस सीढ़ी तक आने में मैंने कितने संघर्ष किये ये  किसी ने नहीं  सोचा और देखा  । 

 आप जैसे लोगों की तरह दोस्त और शुभचिंतक हों तो दुश्मनो की क्या जरूरत  ?सबके सब सुनकर अवाक थे हाथ जोड़ कर छाया खड़ी रही और सब महफ़िल छोड़कर निकलते रहे ।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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