अपना मिलन होने को है…! – मीनू झा 

सुनो ना निकल चुकी हूं..ट्रेन टाईम पर ही है..

मैं आ जाऊंगा तुम टेंशन मत लो,और तुम्हारी ट्रेन की टाइमिंग मैं भी देख रहा हूं..तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार है,जल्दी आ जाओ..अब इंतजार नहीं होता।

चौबीस साल पहले जैसा नए नए प्रेम की फुहारों सा प्रभात का स्वर नमिता को अंदर तक भीगो गया और खुशी सिहरन सी दौड़ गई उसके पूरे तन मन में।

शाम के छह बजे थे कल सुबह छह बजे वो प्रभात के साथ होगी हमेशा हमेशा के लिए..अब लाख उलझन आए कुछ भी हो जाए पर वो कभी उससे अलग ना रहेगी ना कहीं जाएगी..चौदह साल साथ रहने के बाद,वनवास के ये दस साल दस युगों की तरह कटे..।

नीचे की बर्थ थी, सहेलियों ने इतना खाना दे दिया था कि दस आदमी खा सकते थे,उसकी पड़ोसने कम सहेलियों ने इन दस सालों में परिवार की तरह उसका साथ निभाया हर सुख दुख में साथ खड़े रहे,कभी नहीं भूल पाएगी उन्हें ।सबने वादा किया है कि बेटे की शादी में जरूर आएंगी।खाना खाकर लेटने के बाद दिन भर की थकी होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी, उसकी ये हालत और बेताबी तो उस समय भी नहीं थी जब वो दुल्हन बनने वाली थी।

दुल्हन बनकर आई तो प्रभात के एकनिष्ठ प्यार और समर्पण ने कभी मायके की कमी नहीं महसूस होने दी, ससुराल और वहां होने वाले छोटे बड़े कष्ट कभी उसपर हावी नहीं हो पाए क्योंकि उन सब पर प्रभात का प्रेम भारी था। दोनों बच्चे शान्वी और शौर्य ने बारी बारी से उसकी गोद हरी की..कहते हैं मातृत्व से पूर्णता मिलती है..पर उसे तो प्रभात के प्यार ने पहले सर से पांव तक पूरा कर दिया था.. सबकुछ था उनके अंदर पिता सा स्नेह,भाई सी सुरक्षा,दोस्त सी चिंता,प्रेमी सा दीवानापन और पति तो वो‌ अल्टीमेट लेवल के थे ही..।

जीवन चाहे जैसा चल रहा हो..पर प्रभात के प्रेम की छत्रछाया में सबकुछ बढ़िया था.. बहुत बढ़िया।प्रभात की नौकरी ट्रांसफरेबल थी..हर तीन तीन साल पर शहर‌ बदल जाता…।




जबतक बच्चे छोटे थे तो ठीक था..पर जिस साल शान्वी नाइंथ में आई और शौर्य सेवेंथ में..उस साल आए ट्रांसफर ने सब ऊपर नीचे कर दिया..। दोनों बच्चे बहुत अच्छे थे पढ़ाई में, स्कूल भी बहुत अच्छा मिला था और दोनों बहुत अच्छा कर भी रहे थे इसी कारण उन्होंने अपना फ्लैट भी खरीद लिया था उसी शहर में पर..अब सबसे बड़ा प्रश्न था क्या बच्चों को अभी इस समय में स्कूल छुड़वाकर नए जगह ले जाकर व्यवस्थित करना कहीं से तर्कसंगत और व्यवहारिक था?..तो उपाय क्या हो?

नमिता ने तो हाथ खड़े कर दिए..कि चाहे जो हो जाए वो प्रभात के बिना अकेली रहकर बच्चों को नहीं पढ़ाएगी।फ्लैट ले लिया तो क्या किराये पर लगा देंगे पर वो साथ ही चलेगी प्रभात के,अकेले रहना यूं तो प्रभात के लिए भी बहुत मुश्किल था पर वो जानते थे,वो कमजोर पड़े तो चाहे जो हो जाए नमिता कभी मजबूत नहीं बना पाएगी खुद को।पहले प्यार से समझाया बुझाया पर नमिता तो टस से मस नहीं हुई..कहती रही 

मैं आपके बिना कुछ भी नहीं.. मुझे आप पर निर्भर होकर रहना पसंद है इसलिए तो पढ़ी लिखी होकर भी ना मैं बैंक के काम करती हूं ना बिल पे करती हूं और ना ही आपके बगैर मार्केट तक जाती हूं फिर अकेली कैसे रहूं प्रभात… मैं आपके बिना खुद को तो संभाल ही नहीं सकती तो घर और बच्चों को संभालकर कैसे चलूंगी। बच्चों की किस्मत में पढ़ना और बनना लिखा होगा तो कभी भी पढ़ लेंगे पर‌ मैं अकेले नहीं रह सकती। मैं अकेली कभी रही ही नहीं हूं रह भी नहीं सकती।

एक दिन इसी प्रकरण में दोनों बाहर बालकनी में बैठकर चाय पी रहे थे..नमिता कबूतरों को दाना डाला करती थी जिसे चुगने कबूतर आते रहते।

नमिता…वो देखो..एक कबूतर के एक ही पांव है..और वो शायद जन्मजात ही है बिल्कुल शरीर के बीच में।

हां सच में.. बेचारे को कितनी दिक्कत होती होगी ना..और देखो कितना मोटा तगड़ा है,पता नहीं एक पैर पर इतना वजन कैसे उठाता है?

इस घटना के दो चार दिन बाद ही उन्होंने देखा उसी कबूतरी ने उनके बालकनी में रखे एक छोटे से कार्टन में तीन अंडे दे दिए हैं, शायद तभी वो इतनी मोटी तगड़ी थी।




देखो नमिता..उस एक टांग वाली कबूतरी के जरिए प्रकृति का संदेश..इतनी बड़ी कमी के बावजूद उसका जीवन नहीं रूका,वो सबकुछ कर‌ रही है जो दो टांग वाले कबूतर।इसका यही अर्थ है कि ना कभी खुद को कमतर मानना चाहिए और ना ही समय पर कभी अविश्वास नहीं करना चाहिए वो जब जो दिशा दिखाएं उसके अनुसार चलना चाहिए..जीवन में घटने वाले हर प्रसंग का कुछ ना कुछ उद्देश्य होता ही है।सबकी भलाई तुम्हारे अकेले रहने में ही है नमिता।

आप कुछ भी कह लें मैं नहीं मानने वाली

ठीक है.. मैं तुमसबको ले चलता हूं..पर ऐसा ना हो कि इस बदलाव का असर बच्चों की पढ़ाई और कैरियर पर पड़े और कल को तुम्हें इसी प्यार को कोसना पड़े..प्यार गर्व होना चाहिए नमिता अफसोस नहीं।

पर प्रभात आप मेरे बगैर यह लेंगे आपके सहारे के बिना कैसे रहूंगी मैं कभी सोचा है आपने?

“हम एक दूसरे का सहारा है और जिंदगी भर रहेंगे पास रहकर भी रहेंगे दूर रहकर भी रहेंगे पर अपने सहारे को हमें अपनी  मजबूती बनानी है कमजोरी नहीं नमिता..”

एक इस बात ने नमिता के सोचने की दिशा बदल दी।प्रभात जब इतना बड़ा निर्णय लेने के लिए तैयार है तो बजाय उनके साथ खड़ी होने के वो उनका विरोध कर कैसा प्यार लौटा रही है उन्हें।

फिर तो पहले शान्वी फिर शौर्य दोनों की पढ़ाई,शान्वी की नौकरी,फिर शादी और अब शौर्य की भी पढ़ाई का अंतिम साल…इन दस सालों की उपलब्धियां रही, परिवार से पड़ोसी और सहेलियां और बीच बीच में हफ्ते दस दिन के लिए ही सही पर मिलते रहने वाला प्रभात का साथ उसकी ऊर्जा बनते रहे।




एक महीने पहले शान्वी की शादी के बाद ही आठ दिन में जाने का प्लान था..पर ना हो पाया तो अब जाकर वो प्रभात के पास जा पा रही है…मन में सुकून और संतोष है कि अपने कर्तव्यों को निभाने में अपने प्यार को कहीं आड़े नहीं आने दिया..अकेलेपन का कष्ट तकलीफें परेशानियां झेलकर उन दोनों का प्यार और भी परिपक्व होकर सिल्वर जुबली की ओर अग्रसर था और अब उन दोनों को लगने लग गया था..ये प्यार सिर्फ प्यार है.. जिसमें जिम्मेदारियां नहीं,उलझने नहीं भविष्य की चिंता नहीं.. सिर्फ प्यार है…।

तभी फोन बजा 

छह बजने वाले हैं क्या??

नहीं नम्मो..मुझे नींद नहीं आ रही थी तो लगा शायद तुम भी जगी होगी इसलिए.. तीन बजने को है सो जाओ..सुबह तो हम मिल ही रहे हैं ना

प्रभात..कैसे काटे मैंने ये दस साल आपको अंदाजा है..आपके इसी प्यार ने मुझे ना जीने दिया ना मरने

चुप…बारात में मय्यत के गीत नहीं गाते..जीवन की अगली पारी के लिए कुछ सपने भी तो देखने दो‌ आज की रात मेरी प्यारी नम्मो..चलो सो जाओ और मुझे सपनों में मिलो.. ठीक है।

अब नींद तो मुझे आपको देखने के बाद ही आएगी..सुकून की वो नींद जो दस साल पहले आती थी आपकी बांहों पर सिर रखकर,आपको महसूस करके –फोन रखकर आंख बंद कर नमिता ने खुद से कहा और मंद-मंद मुस्कुरा पड़ी।

सुबह प्रभात खड़े थे स्टेशन पर, सामान उतारकर गाड़ी में रखकर बोले–प्यार की इस नई पारी में स्वागत है, हम-दोनों का वनवास खत्म हुआ मेरी बहादुर पत्नी जी।

छियालीस की नमिता और अड़तालिस के प्रभात की प्रेम कहानी एक बार फिर शुरू हो रही थी…।

#सहारा 

मीनू झा

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