अपना किया खुद ही भुगतना पड़ता है… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“उसका शरीर बुख़ार से तप रहा था …फिर भी तुमसे नहीं हुआ कि उसे दवा दे दो…. देखना सुचि कहीं ऐसा ना हो तुम उससे दूरियाँ बढ़ाती जाओ और तुम्हारे बच्चे तुमसे…।” जीवन जी की ये बात याद कर आज सुचि के बहते आँसू रूक ही नहीं रहे थे 

सुचि अपने कमरे में बुख़ार से तप रही थी … कोई एक गिलास पानी देने वाला उसके पास नहीं था…. अपने हर दिन की दवा का बक्सा तो पास रखा था पर पानी के बिना दवा कैसे ले सकती थी…. किसी तरह टूटते बदन उठ कर कमरे से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी की धड़ाम से गिर पड़ी 

हाथ में पकड़ा काँच का गिलास टूट कर बिखर चुका था…. छनाक की आवाज़ सुन बेटा बहू और पोते पोती अपने कमरे से बाहर निकल आए….

“ क्या हुआ माँ तुम गिर कैसे गई….!” कहते हुए मयंक ने जैसे ही माँ को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया तपते बदन की गरमी से आवाज़ भी गरम हो गई 

“ रूहीऽऽऽऽ माँ का शरीर बुख़ार से तप रहा है…. जब मैंने ऑफिस से आकर तुमसे पूछा माँ कहाँ है तुमने कहा वो सो रही है…. मैं फिर कमरे में नहीं गया ये सोचकर कही वो उठ ना जाए…. मतलब तुम्हें पता था कि माँ को बुख़ार है फिर भी मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा…आख़िर क्यों?”ग़ुस्से में तमतमाते हुए मयंक ने कहा 

“ अरे इसमें ग़ुस्सा करने की क्या बात है…. बुख़ार ही तो है उतर जाएगा…. वैसे भी वो सुबह एक दवा खा चुकी थी उसके बाद बुख़ार भी उतर गया था… अब मुझे इतने काम होते हैं मैं बार बार जाकर चेक तो नहीं करती रहूँगी ना।” रूही कह कर वहाँ से जाने लगी 

मनन और रूहानी भी दादी की मदद करने में लग गए…। जल्दी से उन्हें दवाई दिया और सिर पर पट्टी रखने लगे।

थोड़ी देर तक सुचि के पास सब बैठ कर चले गये ।

उनके जाते ही सुचि अपने बीते दिनों को याद करने लगी शादी के बाद वो भी तो बिलकुल रूही की तरह ही करती थी अपनी सास के साथ बैठना उसे कभी गवारा नहीं था … जीवन जी अपनी माँ से बहुत स्नेह करते थे….. अभावों में भी उनकी माँ ने हमेशा आगे बढ़ना सीखाया और जीवन जी इस काबिल  बन गए

कि अब अपनी माँ को हर सुविधा दे सकें …. पर ब्याह कर जब सुचि घर आई जीवन जी की माँ बेटे बहू की ख़ुशियों की ख़ातिर कभी भी बहू की कोई बात बेटे से ना करती। 

सुचि सासु माँ के साथ क्या रहती वो तो चाहती थी कैसे उनके साथ रहना ना पड़े पर पति से कहने की कभी हिम्मत नहीं हुई और पति के घर में  नहीं रहने पर वो सासु माँ से बात तक नहीं करती थी… वो कितनी भी बीमार हो सुचि कभी सेवा नहीं करती थी… जीवन जी पत्नी के इस व्यवहार से दुखी हो जाते और ज़्यादा कहने पर तकरार करने से बेहतर खुद ही माँ की सेवा किया करते थे…..

वो सुचि से कहा करते थे देखना कही ऐसी स्थिति तुम्हारी ना आ जाए और आज सच में वही स्थिति दिखाई दे रही थी ।

सुचि रोते रोते कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।

दूसरे दिन जब मयंक माँ को देखने आया तो सुचि उसका हाथ पकड़ कर बोली,“ बेटा मुझे माफ कर देना…. बहू को डाँटने से कुछ नहीं होगा …. वो तो वही कर रही जो उसने मुझे अपनी सास के साथ करते हुए देखा…. पर अब नहीं…. मैं समझ रही हूँ सबको बुढ़ापा आता है…. सबका शरीर वक़्त आने पर क्षीण हो जाता…

हारी बीमारी भी कभी ना कभी आ ही जाती हैं…. पर मैं नहीं चाहती कि मेरी बहु का हाल कभी मेरे जैसा हो…. बेटा तेरी दादी के साथ मैंने कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया इसलिए भगवान मुझे आज ये दिन दिखा रहे….  अगर मैं अपनी सास को माँ मानती…उनकी सेवा करती उनसे प्यार के दो बोल बोलती तो मेरी बहू भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करती….

कल मनन और रूहानी ने जो रूही का रूप देखा है मैं नहीं चाहती कि आगे भी उसका ऐसा रूप देखने को मिले….. गलती मैंने की है तो सुधार भी मैं ही करूँगी…. पहले बहू को बेटी बना लूँ फिर सब अपने आप ठीक हो जाएगा…इस टूटते रिश्ते को बचाने की पहल अब मुझे ही करनी होगी नहीं तो फिर कल को ये सब रूही  के साथ हुआ तो….

नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकती … तेरे पापा ठीक ही कहते थे मैं ही समझ नहीं पाई … जो गलती मैं कर चुकी हूँ उसे सुधार तो नहीं सकती पर आने वाले कल के लिए आज तैयारी तो कर ही सकती हूँ।”सुचि भरे गले से अपनी बात कह रही थी 

कमरे के बाहर खड़ी रूही को भी एहसास हो रहा था कल वो अपनी सासु माँ से बहुत ग़लत तरीक़े से बोल गई है…. इस बात का असर आज नहीं तो कल उसकी आने वाली ज़िन्दगी पर भी पड़ेगा ।

मयंक ने देखा रूही दरवाजे पर हाथ में माँ के लिए चाय नाश्ता लिए खड़ी थी….उसे अंदर आने का इशारा किया।

“ माँ मुझे माफ कर दीजिए…. मुझे लगा हल्का बुख़ार है एक गोली से आप ठीक हो जाएँगी … पर आप इतनी परेशान होंगी इसका अंदाज़ा नहीं था।”सहारा देकर सुचि को उठा कर वो नाश्ता करवाने लगी

मयंक सास बहू को देख कर सोच रहा था काश पापा भी दादी के लिए एक बार माँ के साथ सख़्त हो जाते तो शायद बात इतनी ना बढ़ती… चलो अच्छा है रूही को भी यह बात समझ आ जाएगी कि हमारे व्यवहार का असर हमारे आने वाले समय पर भी पड़ता है ।

घर का माहौल अब बदल गया था… मनन और रूहानी भी अब दादी के बहुत समीप आ गए थे… रूही के रिश्ते भी अब सुचि के साथ बदलने लगे थे ।

हमारे व्यवहार का असर बस उस समय ही नहीं पड़ता बल्कि उसका असर हमारे भविष्य को भी प्रभावित करता है…. बच्चे भी वही सीखते जो देखते हैं….माता पिता की इज़्ज़त अगर हम नहीं करेंगे तो हमारे बच्चे कैसे करेंगे? अधिकांशतः वो जो देखते हैं वही करते हैं ।

आपको मेरी रचना पसंद आये तो कृपया उसे लाइक करे और कमेंट्स करे ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#टूटते रिश्ते

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!