अपना हाथ जगन्नाथ – ऋतु गुप्ता : Moral stories in hindi

ये मेरी कहानी उन सभी महिलाओं को समर्पित है जिन्होंने उस कठिन समय में अपने परिवार को और ना ही केवल संभाला, बल्कि पाला भी और नए रोजगार के अवसर भी दिए। जिनकी हिम्मत और बुद्धिमता से उनका परिवार उस कठिन समय को काट सका।

चलो जी उठो खाना खा लो ,सुबह से कुछ नही खाया है,इस तरह खाना ना खाने से या परेशान होने से हमारी समस्या का समाधान नही होगा जी, और आपका तनाव बढ़ता ही जायेगा, और यदि परिवार में एक सदस्य भी तनाव या परेशानी से जूझ रहा हो तो पूरे परिवार की खुशियों पर असर पड़ता है।कहते हुए लक्ष्मी ने अपने पति नारायण का हाथ पकड़कर परोसें हुए दाल भात की तरफ इशारा किया। नारायण भी बेमन से भोजन करने बैठ गया।

कोरोना के चलते नारायण की नौकरी चली गई। नारायण एक छोटे से स्कूल मे बस ड्राइवर की नौकरी करता था। हालांकि शुरू के तीन महीने स्कूल की तरफ से आधी तनख्वाह भी दी गई, लेकिन तनख्वाह आधी हुई थी खर्चे तो पूरे ही थे।हाथ तंग रहने लगा,मानसिक तनाव बढ़ता गया….

उसकी पत्नी लक्ष्मी बहुत ही सुघड़,कर्मठ व मेहनती थी।वो अक्सर अपने पति से कहती क्यो‌ अफसोस करते हो जी, नौकरी का क्या  है आज है कल नही ,क्यो ना कोई छोटा मोटा ही सही अपना काम शुरू करते है।आत्मसम्मान व आत्मनिर्भर बनने का ये सही समय है।

वो बार बार अपने पति से कहती,  अपना हाथ जगन्नाथ होता है जी…

कहो तो मै दही भल्ले (दही बड़े) बनाऊं जी ?  आप ही तो कहते है तेरे हाथों के दही बड़ो का जबाव नही। वास्तव में लक्ष्मी के हाथ के दही भल्लों का जवाब नहीं था, आस-पड़ोस, घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार सभी बहुत प्रशंसा करते थे लक्ष्मी के बनाये दही भल्लों की।

नारायण ने कहा तू बात तो ठीक ही करती है, पर इस समय कोरोना में जब आदमी एक दूसरे को छूना नहीं चाहता, मिलना नहीं चाहता तो हमारे  हाथ के दही भल्ले भला कौन ही  लेगा।

इस पर लक्ष्मी ने कहा इस बात की आप चिंता ना करो जी, मैं पूरी साफ सफाई कोरोना के नियमों का पालन करते हुए दही भल्ले तैयार करूंगी और ईश्वर पर विश्वास रखकर हम एक नई शुरुआत तो कर ही सकते हैं। ईश्वर भी कहता है तू कर्मकर,फल मेरे ऊपर छोड़ दे,तो एक बार प्रयास करके तो देख ही सकते हैं।

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पहले तो नारायण तैयार नही था लेकिन परिस्थिति वश हां करदी। पहले पहल संकोच हुआ लेकिन पहले दिन से ही काम की शुरुआत उनकी सोच से काफी अच्छी हुई। दोनो का हौंसला बढ़ गया। दोनो सुबह सुबह उठते लक्ष्मी दाल पीसती तो नारायण लाल को फेंटता।

इस तरह दोनो कोरोना नियमों का पालन करते हुए मास्क लगाकर, पूरी सफाई के साथ ग्राहकों के हाथ भी सेनेटाइज कराते हुए काम करते रहे।

थोड़े ही दिनों मे खर्चे पूरे होने लगे, थोड़ी बहुत बचत भी होने लगी।छोटे मोटे ऑर्डर भी मिलने लगे। क्योंकि ईश्वर तो बहुत दयालु है और मेहनती इंसान कभी भी भूखा नही रह सकता।

दोनों की मेहनत रंग लाने लगी, उधर कोरोना का खौफ भी धीरे-धीरे कम होने लगा, लक्ष्मी नारायण दही भल्ले का स्टाल जोरों शोरों से चलने लगा। आसपास के लोग उनके काम करने के तरीके साफ सफाई से बहुत प्रभावित हुएतो  बड़े-बड़े ऑर्डर मिलने लगे। छोटी मोटी पार्टियों के भी काम मिलने लग गए। अब उन दोनों ने दही भल्लों की सर्विस के साथ-साथ बाहर पढ़ने वाले बच्चों और ऑफिस में काम करने वालों के लिए टिफिन सर्विस भी शुरू कर ली। बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए खिचड़ी दलिया की भी छोटी पैकिंग शुरू की।जो एकदम फ्रेश ही बनती और फ्रेश ही जरूरतमंद तक पहुंचाई जाती।

आज नारायण बहुत खुश था, क्योंकि आज वो कहीं नौकरी नही कर रहा था, बल्कि मालिक है अपने काम का,आत्म निर्भर है।

उसने लक्ष्मी का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,तू तो सही में लक्ष्मी है री, तूने तो मुझे नौकर से मालिक बना दिया,तूने सब  संभाल लिया।

तू सही कहती रही…

अपना हाथ जगन्नाथ..

और दोनों प्रसन्न मुद्रा में  एक दूसरे का हाथ अपने हाथ मे लिए  ‌        आकाश में बढ़ते हुए चांद को अपना आकार पूरा करते हुए देखने    लगे ……. 

उपरोक्त कहानी

सत्य घटना पर आधारित है

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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