अपना घर तो अपना ही होता है – लक्ष्मी कानोडिया   : Moral Stories in Hindi

शिखा अपनी पांचो भाई बहनों में सबसे छोटी थी। पहले उसके दो बड़े भाई थे फिर वे तीन बहने थी।  शिखा अपने पांचो भाई बहनों में सबसे लाडली थी।

शिखा का अपने भाई बहनों से उम्र में काफी अंतर था। इसलिए उसके सभी भाई बहनों की शादी पहले हो गई थी।

शिखा के भाई बहन नौकरी पेशा एवं बड़े-बड़े शहरों में रहते थे।   एक बार  शिखा  अपने बड़े भाई के पास चंडीगढ़ रहने गई। एक बार अपनी बड़ी बहन के पास जयपुर रहने गई।

उसका अपने भाई बहनों के पास बहुत मन लगता था। उसके भाई बहन उसे  बड़े प्रेम से रखते थे पर फिर भी उसे अपने मां-बाप की याद बहुत सताती थी

और लगता था की मां-बाप का घर तो मां-बाप का घर ही होता है इस बार जब  वह बीकॉम के  द्वितीय वर्ष में आई तब उसकी मां ने कहा तुम अपनी बीच वाली बहन के पास चली जाओ।

उसकी मां का यह मानना था कि मेरी तो अब उम्र हो चुकी है तो यह अपने भाई बहनों के साथ खुश रहेगी। उसकी बीच वाली बहन मुंबई रहती थी।

जब उसने यह खबर सुनी की मां उसे उसकी बहन के पास मुंबई भेज रही है तो वह बहुत खुश हुई। अपनी मुंबई जाने की तैयारी करने लगी।

मुंबई जाकर उसे बहुत अच्छा लगा।उसकी बहन ने उसे मुंबई घुमाया। इसका एक छोटा भांजा भी था।

 उसका  अपनी बहन के साथ बहुत मन लग रहा था। 

  मुंबई की बरसात हुई तो वह बहुत रोमांचित हो गई। एक दिन सुबह उसकी बहन रश्मि ने उससे कहा  कि मेरे B.Ed  के पेपर शुरू होने वाले हैं

तो तुम मेरे घर का ध्यान रखना। मैं पेपर देने जाया करूंगी और जीजा जी ड्यूटी पर जाया करेंगे। शिखा ने   कहा  ठीक है दीदी। दीदी का घर छोटा ही था

इसलिए दीदी के घर में कोई काम वाली नहीं थी एवं दीदी और जीजा जी अकेले ही रहते थे। फिर वह दीदी के पीछे से पूरा घर संभालने लग गई। अपने भांजे को संभालना, 

कपड़े धोना, झाड़ू पोछा बर्तन इत्यादि सब करने लग गई। वह  थक जाती थी परंतु उसकी बहन के पेपर थोड़े ही दिन के थे तो निपट गए।  

फिर दीदी उसके साथ घर पर ही रहने लग गई। उसका  मन दुखी हुआ जब दीदी दही जमाती थी और केवल उसके भांजे को और जीजा जी को दे देती थी

उसको नहीं देती थी। उसका मानना यह था कि वह भी तो छोटी है उसे भी तो पूछना चाहिए था। दीदी सूप बनती थी

वह भी वह केवल भांजे और जीजा जी को दे देती थी। उसका बहुत मन करता था सूप पीने का।

मगर वह मन मार के रह जाती थी। फिर उसे लगने लगा कि अपना घर तो अपना ही होता है। 

अगर आज उसकी मां का घर होता तो वह मां से झट मांग लेती मगर शायद उसका अपनी बहन पर इतना हक नहीं बंनता।

फिर उसका वहां मन लगा बंद हो गया। फिर उसने अपनी बहन को कहा कि मेरी वापस टिकट करवा दो मैं वापस दिल्ली जाऊंगी।

तब उसकी दीदी ने कहा अभी तुम्हें एक महीने और रहना पड़ेगा तब तुम जा पाओगी। अभी हम तुम्हारी टिकट नहीं कर रहे हैं,

फिर उसकी दीदी ने लगभग उसे और एक महीने और रखा।  लेकिन वह फिर मन लगाकर रही और उसने अपने मन को दुखी नहीं किया।

लक्ष्मी कानोडिया

अनुपम एंक्लेव किशन घाट रोड

खुर्जा  203131(बुलंदशहर) 

उत्तर प्रदेश

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