hindi stories with moral : अरुण जी और सोनाली जी अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ सुखी थे। परेशानी थी तो एक की उनका अपना घर नहीं था किराये के मकान में दो कमरे किचन में नीचे रहते थे ।ऊपर वाले पोर्शन में मकान मालिक खुद रहते थे। वे छोटी -छोटी बातों पर उन्हें टोकते रहते थे। जैसे पानी इतना काम में मत लो। लाइट बन्द कर दो जवाकि उनका सबमीटर अलग था, वे पूरे पैसे विजली पानी के देते थे। खास तौर से सोनाली जी को बुरा तब लगता जब वे बच्चों को खेलने नहीं देते।
जरा सी आवाज आने पर वे फौरन बच्चों पर चिल्ला देते शोर मत करो, बन्द करो खेलना चुपचाप बैठ जाओ। बच्चों के उदास चेहरे देख उन्हें दुख होता। तब वे अरुण जी से कहती कैसे भी करके अपना घर ले लो जहाँ मेरे बच्चे स्वतंत्रता से साँस ले सकें, खेल सकें। वे आगे बोलती कि हम बनवा नहीं सकते तो छोटा-मोटा बना बनाया खरीद लें, अपना तो होगा ये रोज की किचकिच से छुटकारा तो मिलेगा। वे भी जानती थी कि सीमित आमदनी में यह मुश्किल है। तो उन्होंने सुझाव दिया क्यों न हम बैंक से लोन ले लें जितना किराया देते हैं उतनी ही किश्त दे दिया करेंगे मकान तो हमारा हो जाएगा।
अरुण जी को भी लगा बात तो सही है और उनहोंने बने बनाए मकान को खरीदने का मन बना लिया अब वे ऐसे मकान की तलाश में जुट गए जो बिकाऊ हो। अन्त में उन्हें दो कमरे किचन का सेट उनके बजट में मिल गया।
अब वे सब बहुत खुश थे। बच्चे आजादी से खेलते कूदते कोई कुछ कहने वाला नहीं था। सोनाली जी को भी बड़ी सन्तुष्टि होती अपना घर होने की।
समय का पहिया घूमता रहा और बच्चे किशोरावस्था को पार करने की उम्र के हो गए। अब घर छोटा पडने लगा। उन्हें पढ़ने के लिए अलग कमरे की जरूरत पड़ने लगी।
अबतक अरुणजी के प्रमोशन भी हो चुके थे आमदनी भी बढ गई थी। कुछ निवेश किया हुआ पैसा था, पूर्व लोन चुक गया था सो लोन भी और ले सकते थे। सब मिलाकर उन्होंने एक बंगला खरीदा चारों तरफ से खुला, बढिया बडा सा लॉन पाँच कमरे तीन नीचे दो ऊपर उनकी जरुरत के मुताबिक पर्याप्त।
समयान्तर के साथ बच्चे बड़े होगए, बड़ा बेटा इन्जिनियरिंग कर एक कम्पनी में अच्छे पैकेज पर लग गया। छोटा बेटा CA कर अपना काम करने लगा। बेटी भी इंजिनियर बन कम्पनी में अच्छे पद पर लग गई। उन्हें अपने बच्चों पर बड़ा गर्व होता। उनकी सफलता से दोनों पति-पत्नी फूले न समाते। तीनों बच्चों की शादी भी कर दी। बडी वहू भी कम्पनी में इंजीनियर थी। छोटी CA दामाद भी इंजीनियर कम्पनी में कार्यरत सब बहुत खुश थे। बच्चे त्योहार पर घर आते मम्मी पापा के साथ खुशियां बांटते।
अरुण जी भी सेवा निवृत हो चुके थे सो पति पत्नी दोनों का समय घर में ही बीतता।
समय ने पलटी खाई। दोनों बेटों ने फ्लैट खरीदने का मन बनाया किन्तु अभी उनके पास इतने पैसे नहीं थे सो उन्होने सोचा मम्मी पापा को छोटे वाले मकान में भेज देते हैं और बड़ा मकान बेचकर आधा आधा हिस्सा दोनों लेकर अपना-अपना फ्लैट खरीद लें। जब यह प्रस्ताव उन्होंने अपने मम्मी पापा के सामने रखा तो अरुणजी गुस्से से बोले तुमने ये सब सोच भी कैसे लिया।हम क्यों उस मकान में जायेंगे ।तुम्हारी मम्मी ने कितने मन से इसे सजाया है,अपने मन माफिक चीजें लगवाईं हैं , वे यहां आराम से हैं तो क्या जरूरत है हमें बदलने की।
पर पापा इतने बड़े मकान की अब आपको क्या आवश्यकता है।
क्यूँ हमें यहाँ अच्छा लगता है हम इस जगह के आदि हो गये हैं ,हमें यहाँ सुकून मिलता है क्या ये पर्याप्त बजह नहीं हैं। आगे से इस बारे में भूल से नहीं सोचना दोंनों चुप हो गए।
इसे नियति का प्रहार कहें कि दो बर्ष बाद ही अरुण जी की मृत्यु ह्रदयघात से हो गई। बेचारी सोनाली जी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वे पागलों कि भाँति पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगातीं हर जगह अरुण जी की यादें बिखरी पड़ी थी, वो वैचेन हो जाती ।अभी वे दुःख से उबर भी नहीं पाई थीं कि बेटों ने फिर मकान बेचने का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा। वे बहुत दुखी हो गईं और बोली में इस घर को छोड़कर नहीं जाऊंगी।
अब आप इतने बडे घर में अकेली कैसे रहेंगीं। हमारे साथ चलो।
सोनाली जी नहीं’ में यहां से कहीं नहीं जाने वाली। इस घर में मेरे बच्चों की यादें हैं। तुम्हारे पापा की यादें हैं। इस घर को मैंने अपने अनुसार सजाया सँवांरा मेरे सुखद परिवार की यादें है मैं कहीं नहीं जाँऊगी। मेरे मरने के बाद तुम कुछ भी करना में जीते जी से यह घर नहीं छोड़ने वाली। मैंने तुम लोगों की खुशी और जरूरत के अनुसार यह घर लिया था क्या भूल गए तुम। अब मेरी खुशी और जरूरत है यह घर ।
दोनों बेटे चुपचाप चले गए। अव वे फोन पर थोडे थोडे समय बाद बजाए उनका हाल-चाल पूछने के घर को बेचने का दबाव बनाते इससे वे बहुत दुखी रहने लगीं।
बेटी जब तब उनसे मिलने आती उनका दुःख दर्द बाँटती, भाइयों को भी समझाती कि मम्मी को परेशान न करें। भाई उल्टा उसे ही खरी खोटी सुना कर चुप करा देते।
ऐसे ही कहा सुनी में दो वर्ष बीत गए। अब वे बेटों के व्यवहार से बहुत ही दुःखी हो गईं। घर का मोह उनसे छूट नहीं रहा था। एकाकी पन उन्हें खाने दौड़ता ऐसे में उनका मनोबल गिरने लगा और वे हताश रहने लगी। असमय ही उनकी मानसिक स्थिति खराब होने लगी और बे अवसाद में जाने लगीं।
तभी बेटों ने घर का सौदा कर लिया और उन्हें बताया कि वह उन्हें लेने आ रहा है अब उनके साथ ही रहेंगी. दोनों घर हमने बेच दिए हैं, यह सुनकर उन्हें अपने बेटों के व्यवहार से गहरा सदमा लगा।
दो दिन बाद बेटे का फोन आया कि वे तैयारी कर लें, मैं दो दिन बाद पहुँच जाऊँगा वे कुछ नहीं बोलीं फोन रख दिया।
अभी सुबह वे पूजा घर में बैठीं थीं कि बेटे का फोन आया मैं दो घंटे में पहुँच रहा हूँ आप तैयार रहना क्योंकि शाम की गाडी से वापस निकलना है और फोन कट गया। बहुत देर तक वे बैठीं फोन को देखती रहीं फिर उठीं पूरे घर को हसरत भरी निगाहों से रोते रोते देखा, पति की तस्वीर को देख बोली कहाँ कमी रह गई हमारी परवरिश में अब नहीं सहा जाता, थक गई हूँ आती हूँ आपके पास। घर के दरवाजे की कुन्डी खोल पूजा घर में वापस जाकर बैठ गई ।
बस एक टक राधाकृष्ण की मूर्ति को निहारे जा रही थी कब प्राण पखेरू उड़ गए पता ही नहीं चला। बेटे ने बेल बजाई कोई उत्तर नहीं मिला तो दरवाजे को धक्का दिया खुला गया अन्दर जाकर मॉ को पूजा घर में बैठा देखकर बोला आप अभी यहीं वैठीं हैं मैने कहा था न कि शाम को वापस निकलना है।कुछ उत्तर ना पाकर उनके पास गया हाथ लगाया वे उसके हाथ पर ही लुढ़क पडीं। यह देख वह घबरा गया। वे अपनी अनंत यात्रा पर निकल गईं,पिछे छोड़ गईं —-अपना घर।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित