अपना घर का सपना मैंने – तुमने साथ देखा। मुझे याद जब तुम जाते थे कही कोई घर देखने फिर लौट के आते थे, तुम्हारे मायूस चेहरे को देख मैं जान जाती थी की, जो तुम देखने गए थे वो हमारी पहुँच के बाहर है। तुम कई दिनों तक उदास रहते, कभी कभी तो रोते भी थे। बुरा तो मुझे भी लगता था, दुख मुझे भी होता था, लेकिन खुद को मजबूत कर लेती थी।
फिर तुमको संभालती थी, समझाती थी। भरोसा देती थी।
चिन्ता मत करो एक ना एक दिन हमारा ये सपना जरुर पुरा होगा। तुम ऐसे उदास मत रहा करो, मुझे अच्छा नहीं लगता।
तुम एक बच्चे की तरह मेरे गोद मे सर छुपा लेते।
मैं तुम्हे समझती , एक उम्मीद देती।
” अभी नहीं लिखा है हमारा घर लेना, जब समय आयेगा देखना बहुत अच्छा घर हम ले पाएंगे।”
मैं हर हाल मे तुम्हारा साथ दूँगी, तुम क्यों सोचते हो? “
मुझे याद है एक बार एक जगह गए थे तुम घर देखने अपने कुछ मित्रो के साथ, वहाँ से तुमने कई बार मुझे फोन किया की बहुत अच्छा है ये घर। शायद हमारे बजट में भी आ जाए।
मैं सिर्फ सुन रही थी तुम्हारी बात, मैंने तुमसे कुछ कहा नहीं।
मैंने देखा तुमने कितनी उम्मीदे तुरंत से पाल ली।
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लेकिन मै जानती थी इतना सस्ता तो नहीं हो सकता वहाँ, जहाँ तुम बता रहे हो। लेकिन मैं कुछ बोल के तुम्हारा मन खराब नहीं करना चाहती थी।
तुम घर आये , फिर तुमने बताया की हमारे बजट से थोड़ा ज्यादा है। फिर तुम मायूस थे।
मैं उठी और मेरे सारे गहने तुम्हारे सामने लाके रख दिया, ये लो जाके बेच दो या फिर गिरवी रख दो। तुमने डाँटते हुए कहा था-” तुम पागल हो? ये तुम्हारे पिताजी ने तुम्हे दिया है इसे मै नहीं ले सकता। ये तुम्हारे है इसपे मेरा कोई हक नहीं है। आज तक तुम्हे कुछ दे नहीं पाया। जो तुम्हारे पास है वो कैसे ले लू? “
मैंने कहा था-” मेरे लिए तुमसे बढ़ कर कुछ नहीं है, तुम उदास रहो और मैं ये गहने पहनु?”
तुमने नहीं लिए गहने, कुछ समय बिता हमने घर ले लिया अपनी बजट से। मैं बहुत खुश थी।
अपना घर, अपना होता है। इसे सजाऊँगी, फूल- पत्ती लगाऊँगी।
पहली दीपावली आई मैंने रंगोली बनाना चाहा, तुमने मना कर दिया।
मुझे बुरा लगा।
फिर एक दिन तुमने कहा -” घर मे फालतू की चीज़े मत रखो, ये क्या सब लटका रखी हो ” और तुमने उतार के फेक दिया, जो मैंने लटकन सजाये थे।
मेरे आँसू बाहर निकलने लगे तो मैं हट गयी सामने से।
एक दिन मैंने विनती वाले स्वर मे कहा-” चिड़ियाँ को दाना देने के लिए बालकनी मे रखू छोटा सा है उपर टँगा रहेगा”
तुमने साफ साफ मना कर दिया कहा-“घर मैंने चिड़ियाँ को रखने के लिए नहीं लिया है, तुम्हे छोड़ दु तो पूरे घर में अपनी चित्रकारी कर दोगी। ” मैंने कुछ कहना चाहा तो तुमने कहा -“क्यों कलह करती हो? “
इसका क्या मतलब हुआ? घर सिर्फ तुम्हारा है, मेरा नहीं?
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मेरा कोई योगदान नहीं है, क्योंकि मैं कमाती नहीं हूँ?
सिर्फ पैसे का योगदान मायने रखता है?
तब तो सही मे ये घर मेरा नहीं हो सकता।
स्वरचित