अपना घर ही स्वर्ग है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

बहुत दिन हो गए अमृता से बात नहीं हुई नीलिमा ने अमृता को फोन लगाया हेलो अमृता कैसी है तू।सब सेट हो गया वहां पर और सब ठीक है । अरे नहीं नीलिमा अपने घर में हूं दीदी के यहां नहीं हूं , क्यों क्या हुआ । कुछ नहीं अब मिलती हूं तो बात करती हूं।चल रख फोन अभी मैं किसी स्कूल में इंटरव्यू के लिए जा रही हूं । कहकर अमृता ने फोन रख दिया ।

                  अमृता और नीलिमा काफी अच्छी सहेलियां थी।सब सुख दुख एक दूसरे से शेयर करती है। दोनों संग संग स्कूल में पढ़ाती है । पक्की दोस्ती है दोनों के बीच । दोनों के दो दो बच्चे हैं । अमृता के एक बेटा और एक बेटी है ।और नीलिमा के दो बेटे हैं । नीलिमा के पति का टूरिंग जाब है वो घर से बाहर ज्यादा और घर में कम रहते हैं ।

नीलिमा का एक बेटा इसी साल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया है और दूसरा बेटा हाई स्कूल पास किया है । नीलिमा अपना समय पास करने के लिए टीचिंग करती है । क्यों कि पति घर पर होते नहीं और बेटा अपनी पढ़ाई करता रहता है।और अमृता की बेटी इंटर कर ली थी

उसे आगे नीट की तैयारी करनी थी और बेटा अभी 8 क्लास में था। अमृता के पति भी टीचर थे । अमृता के घर में सांस ससुर और एक देवर थे ।देवर दिल्ली में रहता है और ससुर की अभी छै महीने पहले मृत्यु हुई है।

             अमृता और उसके पति दोनों साथ

साथ ही स्कूल जाते थे । ऐसे ही एक दिन स्कूल से लौटते वक्त स्कूटी से एक्सीडेंट हो गया अमृता और आनन्द (पति)

दोनों को चोटे आई । अमृता के हाथ में फैक्चर हुआ था तो कुछ दिन बाद ठीक हो गया लेकिन आनन्द को सिर में चोट आ गई थी।खून के थक्के जम गये थे जिसका आपरेशन भी हुआ लेकिन वो बच न पाएं और मृत्यु हो गई। अमृता परेशान हो गई कैसे अब दोनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई कैसे होगी क्योंकि एक की सैलरी से पूरा नहीं होता है।घर में सांस भी बहुत परेशान करती थी

हर चीज पर रोक टोक लगाती थी हालांकि उनके पास पैसा था लेकिन वो अमृता की कोई मदद नहीं करती थी। उल्टा अमृता पर दबाव बनाए रखती थी कि अपना खाना पीना तुम अलग कर लो हम नहीं करेंगे अपना करो । अमृता क्या करें इतनी कम सैलरी में सबकुछ संभव नहीं था । रोज़ रोज़ सांस के ताने सुन सुन कर परेशान हो गई थी ।

              बेटी का इस साल इंटर हो गया था और आगे की तैयारी के लिए कोचिंग लेने दिल्ली जाना था एक लाख रुपए का खर्चा था । अमृता ने किसी तरह पचास हजार रुपए फीस,फीस का केवल इंतजाम कर पाई रहने खाने का खर्चा फिर बेटी कालसेंटर में र्पाट टाइम जाब करके किसी तरह पूरा कर रही थी ।

                 अब अमृता को लगी थी कोई अच्छी नौकरी मिल जाए स्कूल में ही थोड़ा ठीक ठाक पैसा मिलने लगे। पच्चीस हजार तक मिल जाए आगे बेटे की पढ़ाई करानी है ।ये सब सारी बातें वो नीलिमा से शेयर करती रहती थी ।

                  अमृता की दो बड़ी बहनें थीं सुधा और कृष्णा दोनों ही बहनें जबलपुर में थीं। कृष्णा जी के दोनों बेटे विदेश में रहते थे तो कृष्णा और उनके पति रमन का वहां आना जाना होता रहता था ।और दूसरी सुधा और उनके पति अनिल उनके एक बेटा और एक बेटी थे बेटा मुम्बई में था और बेटी की शादी हो चुकी थी वो पूना में थी ।

अनिल बैंक मैनेजर थे और थोड़े नेती टाइप के इंसान थे । थोड़ी इधर उधर जान पहचान थी । दोनों बहनें अमृता से कहती रहती थी कि यही आ जाओ यही रहो हम लोगों के पास यही तुम्हारे जीजाजी की जान पहचान है नौकरी लगवा देंगे । वहां तुम्हारी सास परेशान करती रहती है छोड़ो सबकुछ वहां यहां आ जाओ।

                  इस बार स्कूल का सेशनं खत्म होने पर अमृता ने सोचां क्यों न दीदी के पास चले जाएं। उसने अनिल जीजा जी से कहकर अपनी नौकरी के लिए बोला । उसने मन बना लिया कि अब वो वहीं चली जाएगी बेटे का एडमिशन भी वही करा देगी ।और अमृता की नौकरी लग गई । इंटरव्यू के लिए बुलाया गया तो अमृता ने जाकर इंटरव्यू दिया

और सैलरी भी पच्चीस हजार थी । उसकी नियुक्ति हो गई ।वापस आकर नीलिमा से अमृता ने बताया तो नीलिमा उदास हो गई अपनी सबसे अच्छी सहेली से छूटने का ग़म साफ दिख रहा था।

              अच्छा सुन अमृता जा तो रही है लेकिन अपने रहने का इंतजाम अलग करना एकाध हफ्ता तो ठीक है उसके बाद नहीं।ऐ रिश्ते दार बस दूर दूर से ही अच्छे होते हैं जब पास चले जाओ तो अलग ही रंग दिखाने लगते हैं। अरे नहीं रे बड़ी बहन है दोनों। तूझे सचेत करें दे रही हूं भुक्तभोगी हूं मैं। पहले तो बुलाते रहते हैं बाद में चले जाओ तो व्यवहार ही बदल जाता है।

                अमृता जाने की खुशी में कुछ अन्यथा सोच ही नहीं रही थी। नया सत्र चालू हो रहा था तो मंडे से स्कूल ज्वाइनं करना था।आज शनिवार की टे्न में अपना और बेटे का टिकिट करवा कर अमृता पहुंच गई जबलपुर। इंटर तक का स्कूल था तो वहीं पर बेटे का भी एडमिशन करा दिया ‌‌‌नई  जगह थी नया स्कूल था तीन चार दिन में सब सेट हो गया।बेटे की स्कूल ड्रेस बन गई और वो भी स्कूल जाने लगा।

               किसी के घर आप जाओ तो एक दिन को जाओ ,एक हफ्ते को जाओ और हमेशा रहने को जाओ व्यवहार में परिवर्तन दिखाई पड़ने लगता है।एक हफ्ता तो ठीक रहा लेकिन फिर धीरे-धीरे बदलने लगा। अमृता के जीजा जी अमृता से बहुत हंसी मज़ाक़ करते थे अब बात ही नहीं करते ।सब चुप चुप से रहने लगे।

सुबह सुबह जब अमृता को स्कूल जाना होता तो चाय बनाने को दूध ही नहीं होता कभी टिफिन में रखने को सब्जी नहीं होती वो पराठें और अचार अपने और बेटे के टिफिन में रख लेती बिना चाय पीए ही चली जाती। कुछ कुछ फर्क दिखने लगा था अमृता को ,पता है दीदी को कि सुबह चाय चाहिए तब भी दूध का इंतजाम नहीं है। एक दिन अमृता ने पूछा तो वो बोली वो देर से आता है दूध वाला। लेकिन मैं रोज का होने लगा।

             एक दिन जब अमृता स्कूल से घर आई , बेटा जल्दी आ जाता था वो थोड़ा देर से आती थी।तो घर पर पीछे के कमरे में बेटा अकेले गुमशुम सा बैठा था।आते ही अमृता ने पूछा क्या बात है तो वो अमृता को पकड़कर रोने लगा मम्मी घर चलों यहां नहीं रहना। क्या बात है बेटा थोड़ा टीवी देख लो वो मौसा जी ने कमरे से भगा दिया

कि जाओ अंदर सारा दिन टीवी चलाते रहते हो ।और मम्मी मेरा पेट भी नहीं भरता खाना बहुत थोड़ा सा रहता है बिल्कुल जरा सी सब्जी हमने थोड़ा और मांगा तो मौसी बोली अब खत्म हो गया। मुझे यहां नहीं रहना चलो वापस। अमृता घर का बदला हुआ माहौल महसूस कर रही थी। पहले जैसा कुछ नहीं था।

            रात में अमृता बाथरूम जाने को उठीं तो दीदी जीजाजी आपस में धीरे धीरे बात कर रहे थे ये क्या बबाल पाल लिया यार तुमने।न तुम कोई बहाना बनाओ कहो अमृता से कि घर छोटा पड़ रहा है कहीं किराए से कमरा ले ले। अमृता की खुशियों पर पानी फिर गया। क्या सोच कर आए थे और कैसी निकली ये बहन । वैसे तो अमृता सोच ही रही थी अलग रहने को लेकिन अभी हुए ही कितने दिन है।नई जगह है तो थोडा समझने में समय तो लगेगा। अभी से सबके रंग दिखाई पड़ने लगें।

            इंसान खुद तो कष्ट में रह सकता है लेकिन बच्चे को कष्ट में नहीं देख सकता।बेटे का उदास और उतरा हुआ चेहरा देखकर अमृता मायूस हो गई। राखी का त्योहार था तो स्कूल की छुट्टी थी दूसरे दिन संडे दो दिन की छुट्टी लेकर अमृता घर आई और फिर न जाने का फैसला ले लिया ।

यहां स्कूल में फिर से कोशिश की और पुरानी नौकरी पर फिर से बुला लिया और जबलपुर अपना इस्तीफा भेज दिया ।जब बहन ने पूछा तो कह दिया बेटे का मन नहीं लग रहा है । दूसरी बहन अमेरिका में थी एक ऐसी निकली तो दूसरे से क्या उम्मीद रखें ।

          नीलिमा बोली देख अमृता मैंने तुझसे पहले ही कहा था कहीं और जाकर रहना बहुत मुश्किल होता है। यहां तेरी सास है तो क्या हुआ तेरा अपना घर है तेरा अधिकार है यहां।अपना घर ही स्वर्ग है जैसे चाहे वैसे रह। हां नीलिमा तू सही कह रही थी।यार बहुत बड़ी ग़लती हो गई थोड़े से पैसे के लालच में अपना स्वाभिमान गिरवी नहीं रखना है ।अब मैं घर पर ही थोड़े ट्यूशन करूंगी कुछ पैसे मिल जाएंगे हो जाएगा जैसे तैसे।अब नहीं जाना और दोनों सहेलियां गले मिल गई ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

23 जुलाई

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