Moral Stories in Hindi : अचानक किसी ने जोर से दरवाज़ा खटखटाया…इस वक़्त कौन आया होगा सोचती हुई काव्या दरवाज़े की ओर बढ़ ही रही थी की देखा सासु माँ दरवाज़ा खोल चुकी थी और किसी से बात करने में व्यस्त थी..
“ कौन है माँ जी ….?” काव्या ने पूछा
“ वो मेरी एक सहेली है…. ।” कहकर रम्या जी बहू के थोड़ा पास आई और बोली,“बहू याद है तुम्हें कजरी … ये वही है… इसके नालायक बेटे बहू ने इसे घर से इतनी रात को निकाल दिया…. तुम तो जानती हो मेरी आदत है सबकी मदद करना तो ये बेचारी मेरे पास मदद माँगने आ गई… कह रही है कल सुबह किसी वृद्धा आश्रम चली जाऊँगी…तू बोल आज रात इसे हम पनाह दे दे?”
“ माँ कजरी चाची को सब अच्छी तरह जानते हैं इतना मिलनसार स्वभाव इनका फिर भी बच्चों ने परवाह तक ना की… खैर अभी इन्हें अंदर तो लेकर आइए ।” कह काव्या कजरी के लिए पानी लाने रसोई में गई और रम्या जी कजरी को बुला कर सोफे पर बिठा दी
“ क्या हुआ कजरी चाची बच्चों से कुछ कहा सुनी हो गई क्या?” काव्या पानी का गिलास थमाते हुए बोली
“ क्या कहूँ काव्या बेटा…. काश मेरी बहू भी तेरी जैसी होती तो मुझे आज ये दिन ना देखना पड़ता…. अरे बेटे के लिए क्या नहीं किया मैंने… जो दुकान उसके पिता ने खड़ी की उसे सँभालने को दे दी… जब भी मैं कभी उधर जाती तो मेरी बहू धमक पड़ती… बेटा पैसे जैसे तैसे निकाल कर रख लेता… मैं उसे समझाती सब हिसाब सही से लिख कर रखा कर… जब तू सौदा लाने जाता है तो तेरे पीछे से हम दुकान सँभाल सकते पर तू जब बाहर जाता दुकान का शटर गिरा देख ग्राहक आकर लौट जाते इससे अच्छा है हम सौदा दे दिया करेंगे…
दो चार पैसे आएँगे तो सही…मेरा बेटा मान गया था पर आज एक गरीब दुखियारी औरत गोद में बच्चा लेकर आई बेटा बाहर जाने की तैयारी कर रहा था और मैं गल्ले के पास बैठी थी… बहू भी उधर ही थी… उस ग़रीब औरत के पास रूपये ना थे मैं एक ब्रेड का पैकेट देते हुए बोली ले बेटे को खिला दें…जब पैसे होंगे दे देना….वो आश्चर्यचकित रह गई और बोली आज आप डाँट कर भगाएगी नहीं? मुझे बहुत आश्चर्य हुआ ये क्या बोल रही तब पता चला बेटा बहू ऐसे किसी को कुछ ना देते…
मैंने कहा अरे कभी कोई मजबूरी हो तो दे दिया करो…दोनों कहने लगे.. हाँ हाँ आपको तो दान धर्म का बहुत शौक़ चराया है… यहाँ बैठे बैठे खाने को मिलता रहता तो तकलीफ़ कैसे पता चलेगा…. हमें ये दीन पुण्य का काम नहीं करना… आप तो अब दुकान पर मत ही आना..मुझे वहाँ से उठा दुकान के पीछे घर की ओर धकेल दिया ।
देखो गिरने की वजह से सिर पर चोट भी आ गई..पर उन्हें मेरी तकलीफ़ ना दिखी… फिर क्या मैं अपने कमरे में पड़ी थी कोई पूछने तक ना आया..इतना ज़लील करता है क्या कोई अपनी माँ को?” थोड़ा साँस चढ़ने लगा तो कहते हुए कजरी रूक गई
“मैं खुद ही उठ कर बाहर आई थोड़ा पानी पीने तो सुना..बहू कह रही थी… अरे कब तक हम इनका बोझ उठाते रहेंगे… इनको यहाँ से चलता करो… मुझसे अब इनके साथ नहीं रहा जाता… बस अपनी मनमानी करती हैं.. बेटा भी उसकी हाँ मे में हाँ मिला रहा था… अब ये सब सुनने के बाद उनसे जलील होने से अच्छा मैं खुद ही घर छोड़ निकल गई…।” कजरी चाची सुबकते सुबकते बोली
“ अच्छा आप चिन्ता मत कीजिए हम कुछ सोचते हैं… चलिए पानी पी कर खाना खा लीजिए ।”कह काव्या कजरी चाची को खाना परोस दी
उस दिन कजरी चाची इनके घर पर ही रही … सुबह जब वो अपने साथ लाए थोड़े कपड़े के थैले के साथ निकलने को तैयार हुई तो काव्या ने कहा,“ अरे कजरी चाची अभी किधर चल दी… आराम से जाना… चाय नाश्ता तो कर लो… माँ आप कजरी चाची के साथ रहिए मैं ज़रा बाहर से एक काम करके आती हूँ… अच्छा कजरी चाची ये तो बताइए आपका घर है किसके नाम से…?”
“ अरे बेटा मेरे ही नाम से तो है पर अब बेटा बहू पसंद ना करते साथ रहना तो घर का क्या करूँगी..।” कजरी चाची को चेहरे पर बेटे बहू के प्रति ना तो प्रेम दिखा ना ग़ुस्सा मानों वो अब उनसे दूर जाने के लिए खुद को तैयार कर चुकी थी ।
काव्या इतना सुन बाहर निकल गई…..कुछ देर के बाद घर वापस आई और बोली,“ चाची चलिए आपके लिए यही पास के वृद्धाश्रम में रहने की सारी व्यवस्था कर आई हूँ…माँ आप भी चाची के साथ चलिए थोड़ी दूर है तो कार से जाना पड़ेगा विवेक ( पति)के साथ चलते हैं ।”
चारों कार से निकल कर एक जगह पर रूक गए… कजरी चाची भौचक्के से देखते हुए बोली,“ ये क्या काव्या बेटा ये तू कहाँ ले आई…।”
“ अरे चाची चलो तो सही…।” कह काव्या के साथ सब उस मकान में प्रवेश कर गए
सामने बेटा बहू सिर झुकाए खड़े थे….
“ माँ हमें माफ कर दो पर इस घर से मत निकालो…. तुम जैसे चाहोगी वैसे रहना…. हम दोनों अब कुछ ना बोलेंगे… इस घर से निकाल दोगी तो इस हाल में हम कहाँ जाएँगे…. तुम्हारी बहू गर्भ से है… ऐसे में ….।” बेटा हाथ जोड़ कर बोला
“ ये तो पहले सोचना चाहिए था तुम दोनों को…. ये घर ये दुकान सब कजरी चाची का है…. रात में माँ घर से निकल गई पर तुमने कोई खोज खबर ना ली तो अब कजरी चाची भी वही करेंगी…. क्यों चाची…आप अब अपने घर आराम से रहेंगी जाना होगा तो ये दोनों जाएँगे…. पूरी कॉलोनी के लोग इन्हें धमका कर गए हैं चाची का घर है वो क्यों वृद्धाश्रम जाएँगी जाना है तो ये दोनों जाएँगे ।” काव्या ने कहा
“ सच में बहू तू माँ बनने वाली है… अरे मैं क्यों तुम दोनों को कहीं भेजूँगी…. जो मेरा है वो सबकुछ तुम लोगों का ही तो है…बस बेटा तू अपनी माँ को रखना नहीं जान पाया…. इसमें भी मेरी ही गलती होगी जो तुम्हें सीखा ना सकी….।” कजरी चाची ने कहा
“ नहीं माँ ये सब हमारी गलती है जो दूसरे को दुखी ना देख सकती हम उस माँ को दुःख देने चले थे… अब से गलती नहीं होगी हमें माफ कर देना…. तू कहेंगीं तो हम कहीं और चले जाएँगे पर ये भी तो सोच मेरा तेरे सिवा है भी कौन।” बेटा माँ से माफ़ी माँगते हुए बोला
कजरी चाची थी तो एक माँ ही दादी बनने की ख़ुशी में सबकुछ भूल गई…. काव्या की चाल काम कर गई उसने ही आकर आस पड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर उनके बेटे बहू को अच्छी तरह धमका दिया था यहाँ तक कह दिया कि कजरी चाची कोर्ट कचहरी भी करके तुम्हें निकलवा सकती है फिर भटकते रहना…. दोनों इस बात से घबरा गए थे…. और काव्या कजरी भवन और कजरी किराने वाले को उसके असली मालिक से मिलवा दी।
आजकल बच्चों को माँ बाप ना जाने क्यों बोझ लगने लगे हैं… बहू अब अकेले रहने के लिए पति के कान भरती रहती और एक बेटा पता नहीं किस बहाव में आकर जन्म देने वाली माँ के सारे एहसान भूल पत्नी प्रेम में अंधा हो माँ बाप को घर से निकालने में गुरेज़ नहीं करता….उपर से बात बात पर जलील करने से बाज नहीं आते ऐसे में हर माता-पिता को चाहिए अपने बच्चों की परवरिश करने के साथ साथ अपना भविष्य भी अपने हाथ में सुरक्षित रखे ताकि अपने ही बच्चों से जलील होने से बच सके।
मेरी रचना थोड़ी सी काल्पनिक ज़रूर है पर मैं यही चाहती हूँ लोग अपने माँ बाप को पत्नी के कहने पर छोड़ने से पहले सौ बार सोचें क्या उनका वक़्त नहीं आएगा…. क्या उनके बच्चे उन्हें बर्दाश्त कर सकेंगे…अपने भविष्य का सोच कर देखिए फिर फ़ैसला खुद लीजिए ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश