अपना घर – अनिला द्विवेदी तिवारी  : hindi stories with moral

hindi stories with moral : स्वरा अपने मायके में  तीन भाइयों के बीच इकलौती बहन थी। उसके पिता किसी सरकारी ऑफिस में तृतीय श्रेणी कर्मचारी थे। परंतु स्वरा का लालन-पालन अपने हैसियत के मुताबिक उसके माता-पिता ने ए ग्रेड श्रेणी के अनुसार ही किया था।

चारों भाई बहनों के बीच कभी कोई फर्क नहीं किया था। स्वरा के पिता जी ने अपनी संपत्ति को भी चार बराबर हिस्सों में बांट दिया था।

इस बात की नाराजगी भाइयों के मन में तो थी लेकिन पिता की बातों का कोई प्रतिकार नहीं कर सके थे।

चूंकि भारतीय पद्धति अनुसार यह विचार कि बेटियों को चाहे कितना ही बराबर का हिस्सा दे दो परंतु घर का बंटवारा करते समय बेटियों को अवश्य नजरंदाज किया जाता है, वही कुछ स्वरा के साथ भी हुआ था।

विवाहोपराँत स्वरा को मायके में भी यही सुनने को मिलता कि अब तुम्हारा घर ससुराल है। ससुराल में सुनने मिलता यह तुम्हारा मायका नहीं है, ये हमारा घर है इसलिए यहाँ हमारे हिसाब से ही रहना पड़ेगा।

इस “हमारे घर” शब्द को सुन-सुन कर स्वरा आजिज आ चुकी थी।

एक बार उसने अपनी माँ से बातों-बातों में कह भी डाला था… “माँ मुझे गाड़ी, जेवर और अन्य सामग्री ना दी होती, उसी के बदले एक घर दे दिया होता तो आज हमारा भी अपना घर होता!”

हालांकि स्वरा की माँ स्वरा की बात नहीं समझ सकी थी।

फिर समय बीता, बातें भी बीतीं किंतु स्वरा के स्मृति पटल से वह बात नहीं हटी थी।

स्वरा पढ़ी-लिखी लड़की थी अतः कुछ ही दिनों बाद उसको एक अच्छी सी सरकारी नौकरी भी मिल गई थी।

इसलिए उसने तिनका-तिनका जोड़कर कुछ ही दिनों की बचत से सबसे पहले अपना घर बनाया था। 

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ये अलग बात थी कि स्वरा के पति आनंद ने कभी इस बात का  अहसास नहीं कराया था कि यह घर उसका नहीं है।

पर मायके में भाइयों ने और ससुराल में उसकी सास ने इस बात में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

स्वरा की सास का तो यह स्वभाव था कि कोई भी बात बिगड़ जाने पर वह घर का ताना जरूर देती थीं भले ही बात बनने पर वे तारीफ के एक भी शब्द ना बोलें।

स्वरा ने अपने नए घर के गृहप्रवेश पूजन में, अपने मायके ससुराल  वालों और अपने सहकर्मियों, सबको ही आमंत्रित किया था।

सभी लोग स्वरा के कार्यक्रम में सम्मिलित भी हुए थे। गृहप्रवेश की पूजा संपन्न होने के बाद सबने दावत का आनंद लिया।

कई लोगों ने स्वरा की बहुत तारीफ भी की… “स्वरा जी आपने बहुत बढ़िया घर बना लिया है! समय रहते आपने ये काम किया हमें बहुत खुशी हुई। कई लोग तो नौकरी के आखिरी पड़ाव तक आते-आते भी यह काम पूरा नहीं कर पाते!”

स्वरा ने उन सभी लोगों को बताया… कुछ लोगों के शब्दों की प्रेरणास्वरूप यह कदम जल्दी उठा लिया था ताकि पराए घरों में अधिक वक्त तक रहना ना पड़े।

खैर यह बात उन लोगों को समझ नहीं आती थी ना ही उन लोगों को समझ आती थी जिन्होंने उसे ऐसा कभी कुछ कहा था।

क्योंकि कई लोगों की फितरत होती है कटु वचन बोलकर भी भूल जाना भले ही सामने वाले के सीने में जीवन भर उनके शब्द नश्तर सा चुभोते रहें!

सब मेहमान अपने-अपने घर वापस चले गए थे। घर पर अब कुछ खाश करीबी रिश्तेदार ही बाकी बचे थे। आज स्वरा को पहली बार इतना सुकून मिल रहा था जैसे उसने कोई बहुत ही बड़ी जंग पर फतह कर ली हो!

कुछ दिनों बाद उसके सास-ससुर जाने लगे और सास ने स्वरा से कहा,,, “स्वरा तुम कब वापस आओगी पुराने घर पर?”

तब स्वरा ने जबाव दिया… “माँ हम वहाँ पर आते-जाते तो हमेशा रहेंगे लेकिन रहने के लिए अब वापस कभी नहीं आयेंगे।”

“ये क्या बात हुई स्वरा? तो क्या हम अब इस घर में अब नहीं रह सकते हैं?” स्वरा की सास ने कहा।

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बेशक आप रह सकती हैं माँ। क्योंकि यह घर जितना मेरा है उतना ही आपका भी है। लेकिन  वह घर शायद मेरा कभी नहीं हो सकता।

स्वरा की सास स्वरा की बात पर निशब्द हो गईं थी और शर्मिंदा भी।

स्वरा अपनी कमाई से मायके और ससुराल वालों का कर्ज उतार चुकी थी जितनी सम्पत्ति उसके पिता ने उसे हिस्से में दी थी उसका दोगुना हिस्सा उसने अपने मायके वालों के ऊपर खर्च कर दिया था। इसलिए अब स्वरा के ऊपर किसी बात का बोझ नहीं था कि किसी का अहसान उसके ऊपर है।

आज वह अत्यंत प्रसन्न थी कि छोटा सा ही सही लेकिन आज उसका अपना एक घर तो है!

स्वरचित

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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