रिदिमा ने जब मां को उसके साथ ही ऑफिस में कार्यरत संकेत का विवाह का प्रस्ताव बताया तो एक बार तो मां पशोपेश में पड़ गईं. किसी तरह अपने आप को संभाला. रिदिमा और उसके दोनों बहन भाई बहुत छोटे थे जब पति की एक सड़क दुर्घटना में मत्यु हो गई थी. कंपनी ने उनके ऑफिस में ही क्लर्क की जॉब दे दी थी. उस थोड़ी सी ही तनख्वाह में जैसे तैसे घर चलाकर बच्चों को पढ़ाया लिखाया. पिछले वर्ष ही रिदिमा की नौकरी लगी थी. घर में खुशियां लौटीं थीं और मां को भी सहारा मिला था.
मां की भी अब उम्र हो चली थी. अगले वर्ष रिटायरमेंट था. पैंशन भी नहीं होगी. यदि रिदिमा भी विवाह करके चली गई तो दोनों छोटे भाई बहनों की पढ़ाई कैसे चलेगी. सीमा मैडिकल का फार्म भर रही है. पढ़ाई में तेज है. सुमित भी इंजीनियरिंग में प्रवेश का सपना संजोए हैं. इस विवाह से दोनों की आकांक्षाएं चूर चूर हो जाएंगी.
इसी उधेड़ बुन में कई दिन निकल गए. बेटी की खुशियों पर कुठाराघात भी मां को पसंद नहीं था. लेकिन इस विवाह से परिवार की नाव डूबना तय ही था. रिदिमा ने भी दोबारा बात नहीं की थी. वह भी घर की परिस्थितियों से अनभिज्ञ न थी. वह संकेत को पसंद करती थी तथा उसके साथ ज़िंदगी बिताना चाहती थी, लेकिन ऐसे परिवार को मंझधार में छोड़कर नहीं. संकेत के परिवार के बारे में भी वह अधिक नहीं जानती थी. उसने कभी कुछ ज़िक्र भी नहीं किया.
अब संकेत से बात तो करनी होगी. यूं अधर में लटकाए रखना ठीक नहीं. वह बात करने के लिए कोई उचित अवसर ढूंढ ही रही थी कि संकेत ने खुद ही बात चलाई. वह घर आकर मां और दोनों भाई बहनों से मिलना चाहता था. मां को बताया तो उन्होंने अनमने मन से हां कर दी. रविवार को डिनर पर आना तय हुआ.
संकेत आकर्षक व्यक्तित्व का हंसमुख लड़का था. मां को पहली नज़र में ही भा गया. दोनों भाई बहनों से भी दोस्ती करने में उसे अधिक देर न लगी. उसे परिवार के बारे में पूरी जानकारी थी. उसके माता पिता काफी दिनों से उसके बड़े भाई के साथ कनाडा में बसे हुए थे. वह भारत में रहकर ही जीवन बिताना चाहता था. पिछले दस वर्षों से वह अकेला ही रह रहा था. रिदिमा के परिवार में उसे अपना परिवार दिखा. रिदिमा को तो जैसे मन चाही मुराद मिल गई. मां भी निश्चिंत हो गईं. एक प्यार का झोंका सभी के लिए नई बहार लेकर आया.
#स्वार्थ
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
मौलिक एवं स्वरचित