Short Moral Stories in Hindi : आज बिना कहे ही शालू तुरंत सबके लिए बढ़िया चाय बना कर ले आई थी हां हां पापा और क्या ये भी घर ही है आप लोगों का पर वहां गांव में भी तो देखना तो पड़ेगा ही जरूरी है वहां जाकर देखना …!
शालू की बात पर सुनंदा जी तो कुछ नहीं कह पाईं लेकिन वैभव जैसे सब समझ गया था।
मां इतनी जल्दी अपने अधिकार को त्याग दिया आपने मेरे इस घर पर नौकरी पर सुविधाओ पर पहला हक आपका ही है आपने जन्म ही नहीं दिया होता तो मेरा तो अस्तित्व ही नहीं होता…..
हां बेटा तू ठीक कह रहा है ईश्वर का बहुत आशीर्वाद है हम पर ….लेकिन अब कौन सा अधिकार बेटा ….संतान प्राप्ति का इतना बड़ा अधिकार हमें मिला फिर उसका पालन पोषण अपने तरीके से अपनी इच्छा मुताबिक करने का पूरा अधिकार हमें मिला और हमने पूरी स्वतंत्रता और अधिकार से इसका उपभोग किया… वो तेरे पैदा होने की खुशी घुटने चलने की खुशी पहली बार मां पापा बोलना खड़े होना दौड़ना अपनी बाते कहना पहली बार रोते हुए स्कूल जाना हर कक्षा में तेरे रिजल्ट की आतुर प्रतीक्षा कॉलेज में प्रवेश तेरी नौकरी तेरी शादी …..अनगिनत सुनहरे खुशी के यादगार पल हमे हमेशा अपने अधिकारों की ही स्मृति सजीव करवाते हैं।
अब तो कर्तव्य पालन का समय आया है हम लोगों के लिए जिन अधिकारों का पूर्ण उपयोग करते हुए तुझे काबिल बनाया अब तेरी आगे की जिंदगी इसी तरह खुशहाल और संपन्न बनी रहे इसका ख्याल रखना ही अब हम दोनों का परम कर्तव्य है …यहां आकर मन को पूरी तसल्ली हो गई अब हमें हमारा कर्तव्य करने दे जब अधिकारों का उपभोग किया है तो कर्तव्य भी निभाने है….राघव जी ने बहुत शांत और संयत लहजे में अपनी बात कह दी
वाह पापा आपने अपने अधिकारों का उपभोग तो अपनी मर्जी से कर लिया मुझे पढ़ाया लिखाया नौकरी लगवाई काबिल बनाया ये सब आपके अधिकार थे जो ईश्वर ने आपको दिए थे ठीक है तो फिर मेरे अधिकारों का पालन भी मुझे अपनी मर्जी से करने दीजिए..
पापा की प्रश्नवाचक निगाहों को देख कर वो फिर बोल उठा हां पापा जैसे ईश्वर ने संतान प्राप्ति और उसके लालन पालन का पूरा अधिकार आपको दिया है वैसे ही मुझे भी ईश्वर ने ईश्वर द्वारा प्राप्त अपने मां पापा का ख्याल करने प्यार करने का पूरा अधिकार प्रदान किया है ..अभी तक मैने हमेशा आप लोगो की हर बात बिना अनाकानी किए मानी है अपना कर्तव्य समझकर ….आज आप लोग मुझसे अपने इस अधिकार का अपनी इच्छा मुताबिक उपयोग करने की स्वतंत्रता क्यों छीन रहे हैं आप लोग भी अब मुझे अपने इस अधिकार का उपभोग और उपयोग करने दीजिए…पापा की तरह ही बहुत शांत और संयत लहजे में कहते हुए उसने फिर कहा
पापा मैंने ये कब कहा गांव का घर घर नहीं है उसकी देख भाल नहीं होनी चाहिए लेकिन अकेले आप लोगों का ही घर क्या वो मेरा भी तो है मैं भी साथ में चलूगा रख रखाव मैं भी करवाऊंगा साथ में अकेले आप लोग कैसे करेंगे ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूं दस दिनों की ….कल चलते हैं सब लोग शालू का मन नहीं हो तो यहीं रुक सकती है मैं मां पापा के साथ वहां की साफ सफाई करवा कर वापिस साथ में लेता आऊंगा वैभव ने दृढ़ता से कहा और बाहर चला गया।
लाजवाब हो गए थे मां पापा..!!अधिकार और कर्तव्य की जो परिभाषा वो अपने बेटे को समझा रहे थे उनके बेटे ने उसकी सरल व्याख्या उन्हीं को समझा दी थी।।
राघव और सुनंदा आज फिर से उसी गांव के मंदिर में मिठाई और कपड़े बांटते हुए ईश्वर का आभार और उन गरीबों की दुआ इसीलिए ले रहे थे कि ईश्वर ने जिस बेटे का अधिकार उन्हें दिया है उसकी जिंदगी खुशहाल और सुखी रहे।
अपना अपना अधिकार ( भाग 2)
अपना अपना अधिकार ( भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi
स्वरचित
लतिका श्रीवास्तव
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