आज सविता के हाथ जितनी तेजी से ताली बजाने के लिए उठ रहे थे उतनी ही तेजी से अविरल धारा उसके गालों को भी भिगोती जा रही थी । उसकी नन्ही कोमल सी बिटिया सृष्टि ,जिसे पाकर उसे पहली बार मां शब्द की अनुभूति हुई थी ,उस वक्त सविता अचानक से जिम्मेदार हो गई थी जब नर्स ने आकर बताया था उसे कि बेटी हुई है।
ताजा फूल सी मुलायम सविता की वही बच्ची आज आईएएस के एग्जाम में फोर्थ रैंक पर आई थी।
पर सविता और उसकी बेटी का यह संघर्ष यह सफर इतना आसान नहीं था। रूढ़ीवादी गांव के समाज में आज भी लड़कों के जन्म को ही प्राथमिकता दी जाती है । लड़कों की चाह में, बेटियों को जन्म देने को मांए मजबूर होती हैं ,गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि हमारा समाज ही पुरुष प्रधान है।
सविता की पहली औलाद वह भी लड़की, ये तानें हर वक्त उसके कान छीलते रहते। सविता दूसरी बार भी उम्मीद से हुई पर इस बार भी लड़की ही पैदा हुई। इन लोगों को सविता कैसे समझाए कि इसमें उसकी क्या गलती है।
ससुराल रिश्तेदार, सबकी पोता खिलाने की उम्मीद टूट गई।
सविता ने तो खुद को बेटियों में रमा लिया था। वो खुश भी थी, परिवार में भी सब प्यार से ही सहलाते सृष्टि और आकृष्टी को ,पर पोते की चाह नहीं छोड़ पाए थे। रिश्तेदार जो अधिक से अधिक कटाक्ष मारते कभी किसी के कुआं पूजन में सविता को आने से रोकते ,तो कभी अहोईअष्टमी की पूजा में यह कहकर उसे ना बुलाते कि
,”बेटा नहीं तो पूजा करके क्या करना है ,”
तो कभी उसकी सास के कानों को भर जाते।
इन्हीं सब बातों के चलते कालचक्र घूमा । जहां सविता इस अपमान की आदि हो चुकी थी । वही उसकी बेटी सृष्टि के हुनर धीरे-धीरे सबके सामने उजागर हो रहे थे। देखने में जितनी प्यारी, पढ़ने में उतनी ही मेधावी। एक बार जो देख ले ,सुन ले ,सब मुंह जुबानी याद कर लेती थी। आकृष्टी भी बहन से कम नहीं थी।
अब घर में देवरानी के बच्चे सब की आंखों के तारे थे । दो प्यारे से बेटे ,कृष्णा रूप लिए माधव और केशव । सृष्टि और आकृष्टी भाई -भाई कर खूब पुचकारती। सविता का भी मन होता पर देवरानी बहाने से बच्चों को पास बुला लेती ,और कहती,
” दीदी रहने दो।”नज़र लग जाएगी मेरे बाल गोपालों को,”
सृष्टि ,समझदार थी,सब देखती ,सुनती रहती, सविता अक्सर उसे देख कर जी भर लेती अपना खुशियों से ।
आगे संतान न होने के कारण व बेटा ना होने के कारण सविता को जो अपमान झेलना पड़ा।
सृष्टि उससे अनभिज्ञ नहीं थी, वह मासूम सब देखती व समझती थी। घर में जो कुछ भी होता सब माधव ,केशव की पसंद का होता, जन्मदिन का केक भी कटता ,खिलौने ,कपड़े ,किसी चीज़ की कमी नहीं थी उन दोनों के पास।
सृष्टि और आकृष्टी उपेक्षित सी खड़ी रह जाती । किसी को उनके वजूद से कोई फर्क नहीं पड़ता था। बेटा ना होने का रिकॉर्ड इतने सालों से बंद नहीं हुआ था, वह भी जब तब बजता रहता था और सृष्टि के मन में इस सब से कड़वाहट भरती चली गई।
12वीं के नतीजे आते ही घर भर में सृष्टि की वाहवाही हो रही थी ।वही दादी जो ताने मारे थकती न थी। उसके लिए रिश्ते ढूंढ रही थी,
” जहां तक पढ़ना था पढ़ ली बेटा, कम थोड़े ही है ,पराई है पराए घर जाना है बस इतना ही काफी है, पढ़ना लिखना”
सविता सबकुछ सुन रही थी, एक बार फिर सविता की आंखें तो भरी पर वक्त ने उसे थोड़ा मजबूत कर दिया था। अब उसने बेटियों के लिए लड़ना भी शुरू कर दिया था। बच्चियां भी अब बढ़ी हो गयीं थी और उसका सहारा थीं।
स्कॉलरशिप के सहारे दूसरे शहर जाकर परिवार वालों के ताने सुनते हुए आज उसने सबके मुंह पर अपने हुनर से ताले लगा दिए थे । मां के अपमानित वजूद को गर्व का एक ऐसा तमगा पहना दिया था जिसकी चमक अब कभी फीकी नहीं पड़़ने वाली थी । आईएएस अधिकारी की मां होने का गर्व ,उसका सीना चौड़ा कर रहा था। पूरे परिवार को सृष्टि की काबिलियत ने तमाचा सा मारा था। केशव और माधव लाड़प्यार में बिगड़ चुके थे वही सविता की दोनों बेटियां अपने अपने हुनर से उसका मान बढ़ा गयी थी परिवार में।सविता की आंखों मे आज जो आंसू थे वो अपमान के नहीं खुशी के आंसू थे।
#अपमान
~तृप्ति शर्मा