अरे सोनिया। मैं सोच रही हूं अब तो तू भी दो-चार दिन के लिए मायके आई हुई है तेरे भाई शिवम की शादी का भी एक ही महीना बचा है कल चलकर चांदनी चौक से बहू की और शादी में लेने देने की साड़ियां खरीद लेते हैं बहू का जेवर भी उसी की पसंद का दिलवा देंगे। सुनंदाजी अपनी बेटी सोनिया से कहती है जिसकी शादी को 2 साल ही हुए हैं। ठीक है माँ भाभी कोो भी वही बुला लेंगे अपनी पसंद से ले लेगी। आपका क्या ख्याल है सोनिया के पापा सुभद्रा जी ने अपने पति विनोद जी से पूछा हां हां बिल्कुल ठीक है जो काम समय से निपट जाए वही अच्छा है,
शादी में जितना भी लेने देने का कपड़ा लेना है वह भी कल ही ले लेना फिर बाकी काम भी तो देखना है। मैं गीता को भी फोन किये देता हूं वह भी वहीं पर आ जाएगी उसका घर तो वहां से थोड़ी दूर ही है। आखिर उसके भी इकलौते भतीजे की शादी है। हां हां आपको तो अपनी बहन के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता। कम नखरे नहीं दिखाए थे नंदोई जी ने सोनिया की शादी में और आपकी बहन तो नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती , बैठी बैठी प्रवचन देती रहेगी भाभी के साथ काम तो कराया नहीं जाता उनसे।
मेरे भाई भाभी को तो आपने झूठ में भी नहीं टोका।
अरे क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो सुनंदा गलतियां दोनों तरफ से होती हैं गलती हमारी भी थी और मैंने तो कभी तुम्हारे घर वालों का भी अपमान नहीं किया। विनोद जी कहते हुए बैंक से पैसे निकालने के लिए चले गए। देखा अपने पापा को अपनी बहन के कुछ भी खिलाफ सुनने से कितना चिढ़ जाते हैं। मां पापा सही तो कह रहे हैं मेरी शादी में कम काम नहीं कराया था बुआ ने अरे मामी तो आपके कितनी बार कहने पर भी नहीं आई थी क्योंकि उसी दिन उनकी बहन की लड़की की शादी थी, भात देने के समय भी अकेले मामा ही आए थे।
हां हां चुप हो जा तू ही कौन सा अपने बुआ फूफा के खिलाफ कुछ सुनती है, है तो इसी खानदान की ? नहीं मम्मी ऐसा नहीं है आप ही सोचो कल के दिन मैं भी तो बुआ की जगह ही खड़ी हूं शिवम की पत्नी अगर मेरे साथ इस तरह का व्यवहार करेगी तो आप को भी अच्छा नहीं लगेगा। सुनन्दा जी उसकी बात पर चुप हो गई।
अगले दिन सारी खरीदारी करते हुए रात ही हो गई थी तब थोड़ी दूर ही घर होने के कारण विनोद जी को उनकी बहन अपने घर ले गई और वहीं पर सब खाना खाकर ही घर आए थे। विनोद जी ने अपनी बेटी और बहन को भी शादी के लिए दो-दो साड़ी मनपसंद दिलवाई थी अपने बहनोई और दोनों बच्चों के कपड़े भी मनपसंद ही दिलवाये थे विनोद जी ने। आते ही इसी बात पर सुनंदा जी ने अपने पति को फिर सुनाना शुरू कर दिया। क्या जरूरत थी उन्हें इतनी महंगी साड़ियां दिलवाने की?
देखा हुआ है आपकी बहन कैसे-कैसे उपहार लेकर आती है यहां पर । उनके लिए तो आपका कोई बजट नहीं बिगड़ा। सोनिया की शादी में भी क्या कुछ नहीं लेकर गई थी । मेरे बच्चों को देने के नाम पर तो कुछ भी नहीं निकलता उनसे, “बंद करोो अपना ये नाटक” सुनंदा बहुत हो गया तुम्हारा ।
विनोद जी लगभग चिल्लाते हुए ही अपनी पत्नी से बोले, मैं बात को जितना दबाना चाहता हूं तुम उतना ही उखाड़ती हो। सोनिया की शादी में मेरे लाख मना करने पर भी उसने सोने की झुमकि दी थी, तो क्या बहन बेटियों को खाली हाथ ही विदा करना होता है? उनको देने से कोई कमी नहीं आती घर में बरकत ही होती है। हमेशा लेने लेने की बातें करती हो उसका दिया हुआ कुछ भी कभी नहीं देखती रिश्तो को इस लेनदेन के तराजू में मत तोलो।
अगर वह लालची होती तो मेरे कहने पर कम से कम मकान में हिस्सा तो ले ही सकती थी। लेकिन उसने मना कर दिया। सोचो कल को हमारी बेटी के साथ शिवम या उसकी पत्नी इस तरह का व्यवहार करेगी तो हम पर क्या बीतेगी? वह भी मेरी इकलौती बहन है सुनंदा।
पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं मां रिश्ते चाहे ससुराल के हो या मायके के, छोटी-छोटी बातों को तूल देना बेकार है। हर सुख दुख में फूफा जी हमारे साथ बराबर खड़े होते हैं। ये क्या कम है? थोड़ा बहुत रूठना मनाना तो हर शादी में चलता ही है।अपनों के बिना हर खुशी अधूरी है। सोनिया ने भी अपने पापा की हाँ में हां मिलाते हुए कहा।अपने पति और अपनी बेटी की बातों का सुनंदाजी के पास कोई जवाब नहीं था वे बिना कुछ कहे ही अपने कमरे की और बढ़ गई। पता नहीं उन्हें बात समझ में आई भी थी या नहीं।
यह तो वही जाने।
पूजा शर्मा
स्वरचित