..और मोबाइल बज उठा…….लपक के अंजली ने उठाया .. हां हां बेटा आलोक …अच्छा… हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्रिया …अच्छा बेटा मैं तो तैयार ही बैठी हूं .. तू आ जा साथ में चलेंगे….!
थोड़ी ही देर में बाहर से जोर जोर से हॉर्न की आवाज़ सुन कर अंजली लगभग दौड़ते हुए आई और बाहर शानदार नई कार देख कर दरवाज़े पर ही मुग्ध सी खड़ी रह गई ….”मां मां देख क्या रही हो आपकी ही गाड़ी है एकदम न्यू आओ जल्दी नहीं तो मंदिर बंद हो जायेगा ….
आज तो ढेर सारी आपकी पसंद की शॉपिंग करनी है हम दोनों को ….”आलोक ने फुर्ती से कार का दरवाजा पूरा खोल कर मां को आतुरता से बुलाया…तो अंजली मानो आकाश में तैरकर पर वापिस ज़मी पर लौट आई और आत्मविमुग्ध सी उस चमचमाती कार में बैठ कर अपने संजोए स्वप्न साकार होने का एहसास करने का प्रयास करने लगी….
….जैसे कल की ही बात हो ….पूरे पच्चीस साल एक एक दिन इसी लम्हे के इंतजार में बिताया …..
………शादी के बाद पहले हफ्ते में ही नई बहू अंजली कोअपने पति विशाल की बेरोजगारी और घर में अपनी हैसियत की असलियत धारदार तलवार की तरह दिल में चुभ गई थी।किसी ने कभी उसको अपमान जनक शब्द नहीं कहे परंतु निशब्द मिलने वाली सबकी अतिरिक्त सहानुभूति उसे अपमानित ही होने का एहसास कराती रहती थी…….
….देवर की शादी में उसकी सासू मां ही उसके लिए उसके पति और बच्चों के लिए भी ढेर सारे साड़ी कपड़े सूट ले आई थीं…..और बहुत सहानुभूति से कहा था….ठीक से तैयारी कर लेना बेटा ये सब सामान के अलावा भी कोई जरूरत हो तो बता देना मांग लेना ..”
…देवर की शादी की किसी भी खरीदी में या महत्वपूर्ण निर्णयों में उसकी राय या सहमति लेने की आवश्कता ही नहीं समझी गई थी….वो भी अपनी कचोटती आत्मा की टीस छुपाए उत्साह से घरेलू जिम्मेदारियां,सबकी आवभगत,खाने पीने की व्यवस्था में जुटी रही…!
…उसके पति विशाल को कोई फर्क नहीं पड़ता घर में क्या हो रहा है अंजली की मनोदशा कैसी है !!सुख सुविधाओं से भरपूर घर में कोई कमाई नहीं करने या अपनी पत्नी बच्चों को उनकी मनवांछित वस्तु खुद उपलब्ध कराने की किंचित अभिलाषा उसके दिल दिमाग में कभी नहीं आ पाती!बल्कि!नौकरी नहीं करने की अपनी असमर्थता या कमजोरी को वो अंजली के ऊपर रौब गांठने में तिरोहित करता रहता …!
….एकाध बार शुरू शुरू में अंजली ने नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ खुद का कोई बिसनेस या धंधा करने की बात क्या कह दी कयामत ही आ गई थी…तब तो सहृदय सी दिखने वाली सासू मां भी बिफर गई थी..बहु मेरे बेटे को नौकरी या कोई भी काम करने की कोई आवश्यकता नहीं है भरा पूरा घर है हमारा तुमको खाने पीने की कोई कमी नहीं होने देगा……!आज के बाद मेरे बेटे को कोई ताना नहीं देना।
……लेकिन मां जी कब तक ऐसे चलेगा …आखिर अपने पैरो पर भी खड़े होने की कोशिश तो करनी ही चाहिए……अंजली ने फिर भी हिम्मत करके समझाना चाहा था परंतु मां जी की आक्रामक प्रतिक्रिया ने उसे निःशब्द्द कर दिया था।
अब तो अपने अपमान में भी मान ढूंढ लिया था उसने ….इस अपमान का भी सम्मान सहित प्रतिकार करूंगी मैं…..यही निश्चय ठान लिया था..!
सब कुछ था फिर भी अंजली को किसी भी चीज पर अपना अधिकार ही नहीं महसूस होता था…!उसने किसी तरह परिस्थितियों से समझौता तो कर लिया था पर अब उसका बेटा आलोक भी बडा हो रहा था सब समझने लगा था..!
………एक दिन आलोक ने स्कूल से आकर खाना खाने से पहले आइसक्रीम खाने की जिद की …अंजली ने फ्रिज खोला ही था कि मां जी ने आलोक को डांट दिया पहले खाना खाओ अभी खाने का समय है …
पर थोड़ी ही देर में घर के दूसरे बच्चे की उसी ज़िद को खुद उत्साह से पूरा करने में लग गई…आलोक तो बच्चा था बोल बैठा ….दादी मेरेको भी दीजिए …..सुनकर भी अनसुना कर गई थीं…..
आलोक ने उस दिन गुस्से के मारे खाना ही नहीं खाया था….एक आइसक्रीम भी अपने बच्चे को अपनी मर्जी से ना दे पाने की विवशता अंजली को शिद्दत से खल गई थी…!
……हर बार कार में आलोक सामने की सीट पर बैठने की जिद करता था पर हर बार उसका भैया(जेठानी का बेटा) अपनी कार का रौब जमाते हुए खुद सामने बैठता था आलोक पूरे रास्ते रोता और गुस्सा होता था और सुधा उसके एक एक आंसू को अपनी आखों से पीती रहती थी…!आलोक ने उस दिन पूछा था मां हमारी कार कहां है ….पापा क्यों नहीं खरीदते कार…..मैं भी अपनी कार में किसी को सामने की सीट पर नहीं बैठने दूंगा देख लेना…..!
….ऐसे न मालूम कितने ही वाकए घटित होते रहे जब वो अपमान का घूंट पीकर रह गई थी….!अपनी इच्छा से अरमान से अपने लिए या अपने बच्चों के लिए कोई शॉपिंग कभी भी नहीं कर पाई…..जैसा खरीदा गया बिना ना नुकुर के स्वीकार करती रही…..
नाते रिश्तेदारी में भी अपने और बाकी घर वालो के लिए मिलने वाली गिफ्ट्स में भेद भाव सहती रही…..!सब कुछ था घर में उसके पास भी पर ऐसा लगता था उसका खुद का कुछ नहीं है।…इसीलिए उसने अपनी जरूरतों और ख्वाहिशें को कभी जागने ही नहीं दिया था…!
…परंतु आलोक जो अब किशोर हो चुका था इस भेदभाव को,पिता की अकर्मण्यता को,मां के अघोषित अपमान और सहनशीलता को नहीं झेल पाता था विद्रोह कर देता था,अक्रोशित हो उठता था……एक दिन तो वो अपने पिता के ऊपर ही फट पड़ा जब उसके पिता ने उसे नालायक कहते हुए जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाने का ताना दे दिया था…..आलोक अपनी मां को साथ लेकर घर छोड़कर जाने की बात करने लगा था…..
………उस दिन अंजली बहुत डर गई थी और आलोक को जबरदस्ती खींचकर वहां से ले आई थी और बहुत धैर्य और दृढ़ता से समझाती रही थी …”देखो बेटा छोटी छोटी बातों को दिल से लगाने अपमानित महसूस करने से तुम्हारी ऊर्जा और क्षमता दोनों बर्बाद होती है…..
अपना आक्रोश और विद्रोह अपने कैरियर को बनाने में लगा दो….जिंदगी में कुछ बन कर दिखाओ….तुम्हे जो बात बुरी लगती है कोशिश करो की तुम वैसा ना करो…..मेरा असली सम्मान और अपमान का प्रतिकार तभी होगा जिस दिन मेरा बेटा अपना करियर बना लेगा कमाई करने लगेगा …..
तुझे अपनी काबिलियत सिद्ध करनी होगी….और मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं जिस दिन तू अपनी कमाई से कार खरीदेगा ……!मैं चलूंगी …
…….उत्साह दिलाया था उसने अपने अक्रोषित बेटे को….. सही राह दिखाने की पुरजोर कोशिश की थी उसके दिग्भ्रमित होते हुए किशोर मन को ..अपने मन का छिपा डर की कहीं मेरा बेटा भी पिता की राह पर ना चलने लग जाए उसके पहले उसे सम्मान से अपने पैरो पर खड़े होकर जीने का नया सबक दिया था..और …..अपने सपने को उसकी आंखों में बो दिया था…!
अपमान का भी सम्मान से प्रतिकार कैसे किया जा सकता है आलोक को उस दिन बखूबी समझ आ गया था..बस तभी से उसने अपना पूरा ध्यान मां को सम्मान जनक जिंदगी देने के लिए अपनी पढ़ाई और करियर में लगा दिया ….
उसकी निःशब्द निरंतर मेहनत अटूट धैर्य और लगन ने रंग दिखाया …..एक मल्टीनेशनल कम्पनी में शानदार नौकरी के साथ आज वो नई कार लेकर आया था और उसकी मां उसके साथ सामने वाली सीट में बैठी खुल कर हंस रही थी…..।
#अपमान
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव