अपेक्षाओं की चादर – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

सूरज ढलने को आतुर था ऐसा लगता था की धीरे धीरे पृथ्वी 

की गोद में समा जायेगा।

पर ऐसा होता तो नही है सूरज कब ढलता है हमने तो सुना है।

पृथ्वी घूमती है।

सूरज तो यहां से ढला और अमेरिका में दिखने लगेगा।

सच में जो दिखता है वो सच थोड़े ना होता है।

फिर भी यही कहा जाता है सूरज ढल गया।

मनोरमा कुर्सी पर बैठी अपने एकांत जीवन में अपने आप से 

बतिया रही थी।

ऐसा नहीं है की वो अकेली है एक पुत्र,पुत्र वधु,एक पोता,पोती सब है।

ओर हां,बेटी भी है जिसकी शादी पिछले साल कर दी थी।

जब वो थी तब तक सब ठीक था।

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अकेलापन नही खलता था।

वो ऑफिस जा रही है ,अब आने का समय हो गया है अब उसके लिए ये बना दू,वो बना दू  वगेरह वगेरह…..।

तभी मोबाइल की रिंग से उनके चेहरे पर चमक आ गई” जरूर शिवि का ही फोन होंगा”

मोबाइल देखा तो सच में शिवि का ही फोन था ।

” कैसी हो?”

मनोरमा ने चहकते हुए पूछा?

शिवि ” उदास मन से बोली मम्मी एक बात तो है चाहे कितने भी प्रयास कर लू पर मैं इस घर की बेटी तो नही बन सकती।

ये लोग मानते ही नहीं?

ऐसा लगता है हर बात मुझसे छुपाते है।

दीदी और मम्मी जी तो घंटो घुसुर फुसुर करते रहते है मेरे पहुंचते ही चुप हो जाते है।

अब आप ही बताओ आप क्या समझोंगी?”

मनोरमा अतीत के गलियारों में खो सी गई।

जब इस घर में निकिता बहु बनकर आई थी तब शिवि ही कहा करती थी ज्यादा सिर चढ़ाने की जरूरत नही है वरना बाद में महंगा पड़ जाएंगा।

अतुल से भी कई बार कहा था ” में तो इसे बेटी की तरह मानती हु पर ये तो मुझे मां मानती ही नही सारे दिन मेरी मम्मी ये मेरी मम्मी वो …

अपनी मम्मी की तारीफो के पूल बांधती रहती है?

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तब अतुल ने तुरंत ही कहा था “क्या आप यहाँ आई थी तो

नानी को याद नहीं करती थी?”

तब मैंने चिढ़ कर कहा था ;” क्यों नही करू?

पूरे 23/24 वर्ष जिसकी गोद में खेली हु बढ़ी हुई हु उनको भूल जाती?

अतुल मुस्कुराया और बोला ” इतनी समझदार हो तो ये भी समझो की निक्की भी 27/28 वर्ष किसी की गोदी में खेली है एकदम आपको मां की पदवी कैसे देंगी।

तब उसे झिड़क कर बोल दिया था ” बीवी के आने के बाद बेटे बिलकुल बदल जाते है हु जोरदार आवाज में बोलकर बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई थी और खूब रोई थी।

अतुल ने फिर आकर समझाया” मम्मी में बदला नही हु अब आप ही बताओ आप ही तो शादी करके निक्की को यहां लाई हो?

फिर आपने ही कहा था की “अब ये तेरी जिम्मेदारी है ।”

तो जिम्मेदारी निभाने में बेटे का सहयोग नही करोंगी?

मनोरमा फिर तुनक कर बोली ” क्यों मैने क्या नही किया?

तू ऑफिस से आता है तो गरमा गर्म रोटी बना कर देती हु।

ओर चाहती हू की वो थोड़ा आराम करे।

अतुल मम्मी के करीब आया और फिर बोला ” पर वो ये आराम नही चाहती वो चाहती है की वो मेरी केयर करे।

ओर आपको लगता है को वो आपसे आपका बेटा छीनने का प्रयास कर रही है।

जबकि ऐसा नहीं होता मम्मा वक्त यही चाहता है की अब

आप अपनी  अपेक्षाएं सीमित कर ले।

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वर्ना मेरी हर बात आपको परेशान करेंगी जो मैं नही चाहता।

बुरा मत मानना मैं आपका बेटा हु और बेटा रहूंगा।”

मेरे प्यार में कोई कमी नहीं होंगी।

पता है मम्मी सासु मां और बहु में क्यों अनबन रहती है!

क्योंकि दोनो अपने अस्तित्व के लिए लड़ती रहती है।

मां अपना बेटा नही खोना चाहती और पत्नी अपना पति।दरअसल ये दोनो नही जानती की बेटा हो या पति इंसान एक ही है तो क्यों ना?

दोनो अपने अपने किरदारों से थोड़ा थोड़ा समझोता कर ले?

मनोरमा फिर थोड़ा खीझ गई।

समझोता?

कैसा समझोता?

तुम मेरे बेटे हो निक्की !

वो मेरी इस आंगन की लक्ष्मी सी बेटी है।

मैने आज तक उसे पराया नही समझा?

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अतुल सकपकाया सा मनोरमा के पास ही कुर्सी पर बैठ गया।

मैं जानता हु पर ये बात वो नही मानना चाहती?

वो चाहती है की मेरा संपूर्ण ध्यान सिर्फ और सिर्फ उसी के इर्द गिर्द रहे।

आपकी जगह आप बिलकुल सही हो पर उसे समझाना 

मुश्किल है।

अतुल की बातो ने मनोरमा को अंदर तक हिला दिया।

पर फिर खुद को संभाल कर बोली ” बता क्या चाहता है?

अतुल मम्मी अपनी आखों को जमी में गड़ाए बोला ” बस इतना ही की मैं निक्की और बच्चो को अपने साथ ले जा रहा हु।

हा,आपसे मिलने सप्ताह में एक बार तो आ ही जाऊंगा।धीरे धीरे वो सप्ताह महीना बना फिर वर्ष में तब्दील हो गया।

शायद मेरा वो सुरज भी अपनी जिम्मेदारियों में खो गया।

बिलकुल सूरज की तरह ही ढला नही है अब अमेरिका में दिख रहा होंगा।

ओर मैने अपनी अपेक्षाओं की चादर समेट कर अलमीरा में रख दी।

तभी डोर बेल बजी।

फोन हाथ में ही था फटाफट रख दिया।

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ओर गेट खोला।

अरे शिवि तुम?

अ अभी तो तो तुम वो फोन ( फोन की तरफ इशारा करते हुए बोली)

शिवि कूल डाउन मम्मी बैठो क्या हुआ ?

जब मोबाइल पर आपकी आवाज नहीं आई तो चिता हो गई

इसीलिए स्कूटी से तुरंत आ गई।

मनोरमा ने शिवि का हाथ पकड़ा और बोली ” मैने मेरी अपेक्षाओं की चादर समेट कर अलमारी में रख ली।

पर चाहती हू की तुम तुम्हारी सासु मां की बेटी बन पाओ या ना बन पाओ उनकी चादर का ख्याल जरूर करना।

शिवि समझ गई थी की आज मम्मी को भैया भाभी को कमी लग रही है।

नही मम्मी आपका दर्द समझती हु।

ऐसा कुछ नही होंगा।

मेरे घर के वृक्ष की जड़े नही हिलेंगी चाहे कितनी भी कोपल आए उस पर पंछी अपने पंख फैलायेगे।

ची ची चहचहचाएंगे ही।

पर आप मेरे साथ चलो आज से आपकी चादर को आपकी बेटी ही संभालेंगी।

लेखिका : दीपा माथुर 

#सिर्फ बहु से बेटी बनने की उम्मीद क्यों?

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