वह खिडकी के पर्दे को जरा सा हटाकर देखी तो “वह लड़का आज भी खडा था उसकी नज़र इस खिडकी की तरफ ही थी “दीदी यह गणित नही समझ आ रही” एक छोटे से बच्चे की अवाज पीछे से आई।हम्म कौन वाली दिखाओ पूजा फिर बच्चो को पढ़ाने मे व्यस्त हो गई।
दो घन्टे बाद सभी बच्चे चले गये और वह भी चला गया।
“क्या हुआ कोई परेशानी” पीछे से माँ ने जब पुछा तो पूजा सहज होते हुए बोली” कुछ दिनो से देख रही हुँ एक लड़का बाहर खड़ा रहता हैं जब तक बच्चे पढते हैं फिर चला जाता हैं”
अरे वह तो चिनू का मामा हैं कुछ दिन चिनू को छोडने आ रहा हैं यही पर दो घन्टे इन्तजार कर लेता हैं।
ओह करते हुए पूजा किसी सोच मे डुब गई “उसकी नज़र मे न जाने क्या बात थी पूजा को उसी का ख्याल बार बार आ रहा था।
पूजा उठ खड़ी हुई माँ ने सहारा देने की कोशिश की लेकिन पूजा अकेले ही बैशखी के सहारे ही खड़ी थी वह अपने किताबो को स्थगित करने मे लगी थी कल के सुबह स्कुल के लिए रेडी कर रही थी सब कुछ।
उस लड़के की निगाहे अब भी उसका पीछा नही छोड रही जैसे किसी मोह मे उसे बान्ध रहे हो।
पूजा खुद को जैसे सांत्वना देती हुई उन ख्यालो से दूर ले जाने की कोशिश मे लगी रही पूरी रात।
सुबह तैयार होकर जब स्कुल के लिए निकली फिर वही खडा था लेकिन अभी क्यूं ?अभी तो टूयशन भी नही हैं।
अचानक से सामने आकर बोल पड़ा “मैं आपसे शादी करना चाहता हुँ”
क्या पागल हो क्या तुम्हे दिखाई कम देता हैं , बैसाखी को उसकी तरफ करते हुए बोली यह असली हैं समझे न!
जी मैं सब कुछ जानता हुँ मैं आपको बहुत दिनो से पहचानता हुँ जब से चिनू आपके पास पढता हैं लेकिन येह दो तीन दिनो से बोलने की कोशिश कर रहा हुँ लेकिन आप तो खिडकी के पर्दे तक लगा देती हैं कैसे बात करू इसिलिए आज सुबह से खडा हुँ।
पूजा गुस्साते हुए बोली “रास्ता छोडिए आप एक अपाहिज लडकी का मजाक बना रहे हैं”तेज कदमो से बैसाखी को अपने कदमो के रफ्तार संग बढा रही थी दूर तक खट खट की अवाज आ रही थी।
आज रात फिर उसे नींद नही आ रही थी उसके आंखो से आंसू बह रहे थे बचपन याद आ रहा था जब से होश संभला बाबूजी को देखा हैं कैसे उसे देख चिढ्ते थे माँ से लड़ते झगड़ते हर समय माँ को ताना देते की एक अपाहिज को जन्म दिया हैं, पैर कटी कहकर उसे कोसते”
उस बार जब माँ संग नानी के घर आई थी तो बाबूजी दुबारा लेने नही आए।उन्होने एक चिट्ठी मे अपना फैसला लिख भेजा था की वह माँ और मुझे यानी(पैर कटी) को अपने घर मे दुबारा घुसने नही देंगे,माँ ने भी कोशिश नही की दुबारा जाने की शायद मा भी मुक्ति चाह्ती थी उस माहौल से।
नाना नानी ने बडे प्यार से माँ और पूजा को संभला। पूजा बैसाखी के सहारे चलने लगी थी गांव के स्कूल से शहर के कॉलेज तक चली गई अब धीरे धीरे कुछ करने की सोच उसमे थी पहले एक बच्चो के स्कुल मे पढ़ाने लगी फिर एक प्रतिष्ठित स्कूल के उंची क्लास के बच्चो को पढ़ाने लगी थी घर मे आज भी छोटे बच्चे पढते हैं।
आज सुबह बहुत देर से नींद खुली कुछ करने का मन नही कर रहा था आज रविवार हैं नाना नानी माँ सबके साथ बैठी थी तभी डोर बेल बजी।
चिनू अपनी माँ के साथ था झट से पूजा के पास जाकर बोल पड़ा “मेम आप मेरी मामी बन जाओ न मेरे मामा बहुत अच्छे हैं”
सब एक दुसरे को देख रहे थे यह बच्चा क्या बोल रहा हैं तभी चिनू की माँ ने सारी बात बताई की “मेरे भाई को पूजा बहुत पसंद हम उसे अपने घर की बहू बनना चाहते हैं”
“दीदी मैं बैसाखी पर चलने वाली मुझे मेरे पिता ने ठुकरा दिया था मेरे कारण मेरी माँ को भी सजा मिली और आप कह रही हैं मैं आपके भाई की पसंद हुँ उसे जाकर समझाये की जिन्दगी आसान नही एक अपाहिज के साथ काटनी”
“तुम खुद को अपाहिज क्यूं कहती हुँ तुम खुद को दूसरो से अलग क्यूं मानती हो तुम तो हर मामले मे सक्षम हो आज अपने बल पर अपने पैरो पे खड़ी हो तुम्हारे आत्मविश्वास और आत्मबल के सामने यह बैसाखी बहुत छोटी हैं”वह लड़का अचानक कमरे मे प्रवेश करते हुए कहने लगा।
नाना नानी और माँ उसे बडे प्यार से बिठाया उसके बारे मे सारी जानकारी ली एक आर्टिस हैं अपने रंगो से निर्जीव चीजो को सजीव कर देता हैं।
नाना नानी और माँ कहने लगी”यह तेरी जिन्दगी का फैसला हैं तुम्हारी बात ही मानी जायेगी,लेकिन न जाने क्यूं यह लड़का हमे बहुत सच्चा लग रहा हैं हर कोई तेरे पिता जैसा हो जरुरी नही।
पूजा से अकेले मे मिला न जाने क्या मोह था उनकी बातो मे की पूजा ने कुछ समय मांगा अपने फैसले के लिए।
आज लड़का फिर बाहर खडा था पूजा बच्चो को पढा रही थी कुछ दिनो बाद खिड़की से पर्दे को थोडा सरका दिया गया था।
पूजा उस लड़के को कभी कभी नुक्कड़ पर मिल जाती हैं फिर दोनो साथ चलते हैं।
आराधना सेन