हमारी अंतरंग सहेली सुनीता के घर में प्रकाश जी ने किराए पे एक कमरा ले रखा था।उन्होंने हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर किया हुआ था।यों तो कविता,ग़ज़ल, कहानी उनकी जान थी, पढ़ते भी, लिखते भी! पर ज़िन्दगी जीने के लिए तो पैसे कमाने होते हैं,सो उन्होंने व्यवहारिक कदम उठाते हुए भिन्न भिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी शरीक होना जारी रखा था।मेरी कविताओं के लिए रूचि की जानकारी सुनीता ने उन्हें दे ही रखी थी।जब भी मैं उनसे मिलती,उनकी आँखों में एक सुरूर सा छा जाता.. कविताएँ सुनाते हुए वो कहीं गुम हो जाते.. मैं भी मदहोशी से उनकी कविताएँ सुनती..मैंने तब लिखना शुरू ही किया था, वो कहते, तुम भी मुझे अपनी कविता सुनाओ, पर उनकी कविताओं के सामने मुझे मेरी कविताएँ बे सिर पैर की लगती.. पर एक दिन उन्होंने मुझसे मेरी डायरी छीन कर सब पढ़ लिया.. बहुत प्रशंसा की.. कहीं सुधारात्मक सुझाव भी दिये.. मैं उनसे जुड़ती गई..सुनीता से कम उनसे अंतरंगता महसूस नहीं होती! एक दिन मैंने उनसे पूछा ” प्रकाश जी,आपकी कविताओं की पृष्ठभूमि में कोई चेहरा तो होगा?”
उन्होंने दो टूक कह दिया..” कोई मूर्त चेहरा नहीं ऋतु… बस मेरी कल्पना है..मेरी काल्पनिक लूसी”
तब से मैं और भी उनसे नज़दीकियाँ महसूस करने लगी.. मुझे अपनी उम्र का अहसास ही नहीं था…मेरी उनसे कोई तुलना नहीं थी.. मुझसे दस वर्ष वो बड़े थे! आँटी ( सुनीता की मम्मी)को मेरी उनसे नज़दीकियाँ का कुछ आभास था, एक दिन उन्होंने मुझे डाँटा, ” तुम्हें अपनी स्थिति की जानकारी है? तुमने अभी दसवीं भी पास नहीं किया है.. प्रकाश तुमसे बहुत बड़ा है..अभी से इसमें पडोगी तो ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी!” मैं डर गयी.. मैं तो उनकी कविताओं की वजह से उनसे जुड़ती गयी थी.. सोचा ही नहीं कि इसे लोग लड़के लड़की वाली रूमानी सम्बन्ध समझ बैठेंगे! मैंने उनसे मिलना बंद कर दिया.. पर वो कहाँ मानने वाले थे,सुनीता को भेज कर मुझे बुलवाया..मैं दौड़ी चली आई..उन्होंने मुझसे पूछा ” मैं अगर तुम्हारी दीदी ‘मिली’ से शादी करना चाहूँ तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?”
मैंने कहा ” बिलकुल नहीं ,पर मेरी दीदी को कविता कहानियों में कोई अभिरुचि नहीं है!”
“कोई बात नहीं, तुम्हें तो है न!” उन्होंने कहा।
उन्होंने आँटी के माध्यम से मेरे मम्मी पापा को संवाद भिजवाया।
तब वो उप समाहर्ता के पद पर चयनित हो चुके थे।मम्मी पापा को और क्या चाहिए था? सोने पे सुहागा! दोनों की शादी धूमधाम से करवा दी गई । अब वो प्रकाश जी से हमारे जीजू हो गये थे।कविताओं का सुनना सुनाना हमारे बीच क़ायम रहा.. मैंने उनसे पूछा ” अब कौन है आपकी कविताओं के पीछे?”.. उन्होंने कहा “वही कल्पना ऋतु , कुछ नहीं बदला!”
इन सब बातों के चालीस वर्ष हो गये…आज उनके निधन की खबर सुनकर दिल क्षत विक्षत हुआ जा रहा है..मैंने उनसे जो रिश्ते क़ायम किए थे वो रिश्तों से कहीं उपर… शायद यही इबादत है…क्षत विक्षत हुए दिल के टुकड़ों को मैंने आत्मा में बसे रेश्मी धागों से तुरपाई कर लिया!
वाट्सऐप पे उन्होंने मेरे लिए मैसेज छोड़ा था ” तुम पूछती थीं मेरी कविता के पीछे कौन है.. तो सुनो, मेरी कविताओं के पीछे हमेशा से तुम्हारी दीदी रही है!”
एक मिनट के लिए ह्रदय की स्पंदन रूक सी गई.. मैंने दीदी को मैसेज दिखाया…
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स्वरचित
रंजना बरियार