बचपन से साथ खेलते रहे हरी और यशोदा पड़ोसी भी थे। गाँव का हरा भरा खुला वातावरण था, कभी तालाब कभी खेत मे बच्चो का खेलना सबको अच्छा लगता था। एक बार तालाब के किनारे दौड़ते हुए यशोदा फिसल गयी और तालाब में गिर पड़ी। उस समय बारिश का समय था, पानी बहुत था, किसी तरह तैरकर हरि ने यशोदा को बचाया।
कुछ दिनों बाद गाँव के ही स्कूल में हरिनारायण का एडमिशन कराया गया। यशोदा भी कन्या विद्यालय जाने लगी। स्कूल जाते हुए ही दोनों में मिलना जुलना, खेलना कुछ कम हो गया। पर जब मिलते पढ़ाई लिखाई की भी बाते होने लगी। यशोदा हर कठिन प्रश्न के उत्तर हरी से हल कराने लगी।
हरी ने हाई स्कूल बोर्ड की परीक्षा अच्छे नम्बरो से पास करी। गाँव मे कॉलेज नही था। जमींदार बाबूजी ने हरी को दिल्ली भेजकर स्नातक की डिग्री दिलाने के लिये भेज दिया। सबलोग बहुत खुश थे, पर यशोदा परेशान थी, क्योंकि छह महीने में एक हफ्ते के लिए ही हरी आता था, वह भी समय सबसे मिलने का होता था। दोनों की उत्कंठा अधूरी ही रह जाती। बात भी ढंग से नहीं हो पाती।
रिश्ते की एक शादी में दोनों छुपते छुपाते दो चार नाप तुले शब्दों में मोहब्बतों की बाते करते रहे। उस समय भी शादी के रतजगे में एक अंताक्षरी में दोनो ने कुछ रोमांटिक गाने गाए। फिर कई महीनों तक गाने अकेले में गुनगुनाये और मुस्कराते रहे। प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर सरकारी अफसर बन गए हरिनारायण… और जब बाबूजी से अपनी बात अम्मा के पांव पकड़कर पहुँचायी तो बाबूजी इनकार नही कर पाए।
दोनो ने प्रेम विवाह किया था, कब जानेंगे, 1977 वर्ष में।
दोनो प्रेमी पति, पत्नी बन चुके थे, जीवन मे कोई कमी नही रह गयी। हरि ने शादी के पहले ही नैनीताल में होटल बुक कराई थी। एक हफ्ते दोनों हनीमून मनाकर अपने बचपन से अभी तक के जीवन को याद करते रहे। यशोदा को भी बाद में वकालत की पढ़ाई करवाई। परिवार भी बढ़ चुका था। एक बेटा और एक प्यारी सी बेटी ने जीवन मे रंग भर दिया था।कई दशक बीत गए, समय अपनी गति से चलता रहा। सरकारी अफसर अब पति थे, और भूल चुके थे कि कभी इस यशोदा के लिए जीने मरने की कसम खायी थी।
नौकर चाकर के बावजूद उन्हें हर काम मे यशोदा की याद आती थी। थाली का स्वाद यशोदा के ही हाथों में था। बुढ़ापा दोनों के जीवन मे पदार्पण कर चुका था, फिर भी दोनों स्वस्थ थे। रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने आफिस जॉइन किया था।
एक दिन आफिस गए थे, फ़ोन डिस्चार्ज हो रहा था, उसको चार्ज करने लगाया। उसके बाद आफिस में कई क्लाइंट आ गए, जिनसे बातो में तीन घंटे बीत गए। फिर अपने काम पर लग गए।
तीन घंटे बाद लंच कटके जैसे ही फ्री हुए, फ़ोन की याद आयी, जाकर देखा, बड़े बेटे ने दस मिस्ड कॉल किया था। जल्दी से नंबर मिलाया पता चला, यशोदा को हार्ट अटैक आया था। हॉस्पिटल में एक घंटे की दूरी पर था, दिल हाथों पर लेकर हर क्षण डरते रहे। हॉस्पिटल पहुँचे, डॉक्टर ने जवाब दे दिया था, देर कर दी।
पता चला, तब उनके पास कोई नही था, थोड़ी देर बाद नौकर ने बेटे को फ़ोन करके बुलाया।
सब लोग रोते कलपते बॉडी घर लाये। अभीतक हरीनारायण कुछ समझ ही नही पा रहे थे, ये क्या हो गया, क्या ऐसा भी होता है। मेरे से बिना पूछे, तो तुम इतने वर्षों में बाजार भी नही गयी। विश्वास नही हो रहा, तुम इतनी दूर चली गयी।
घर मे अडोस, पड़ोस, रिश्तेदार भरे पडे थे, सब लिपट के रो रहे थे, अतीत के प्रकरण दोहरा रहे थे। दिल मे हरी भी रोते हुए चीख रहे थे, पर मर्द के रूप में जन्मे थे, एक पति थे। पर पत्नी से लिपट कर मन की व्यथा कहने की हिम्मत नही हो रही थी। पता नहीं समाज क्या कहेगा। एक बार तो मन हुआ, शर्म लाज छोड़कर यशोदा को बांहों में ले माफी मांग लूं, शायद मैं तुम्हारा दोषी हूँ। प्रेम विवाह करने की हिम्मत रखने वाला आज बेहाल हो गया।
तब ही एक छोटे चचेरे भाई ने कहा, “भैय्या, आगे बढ़िये, भाभी बहुत भाग्यवान हैं, उनकी मांग भरिये, ले जाने का समय है।”
“और हरिनारायण के दिल के साथ नैनो ने भी बांध तोड़ दिया, मांग भरकर उन्होंने समाज और लोगो के डर से परे हटकर बांहों में भर लिया।”
अंतिम यात्रा को यशोदा चल पड़ी।
स्वरचित
भगवती सक्सेना
बेंगलुरु
#बुढ़ापा