अंतिम विदाई – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

आज कैलाश जी  पत्नी सुनंदा पर बहुत बरसे थे। वजह क्या थी सुनंदा भी समझ नहीं पाई थी। पतियों का क्या दुनिया की भड़ास उस पर ही तो निकाली जाती है जो चुपचाप सुन ले और खासकर उन पत्नियों पर जो कुछ ज्यादा ही सहन करतीं हैं।

सुनंदा उदास तो हुई पर सोचने लगी जरूर बहुत परेशान होंगे कैलाश, आखिर सब मन में दबाएं रहते हैं इसलिए बेवजह ही नाराज़ हो गए होंगे।

चाय बनाकर मेज पर रख दिया। चुपचाप चाय पी कर कमरे में चले गए थे ।शायद उनको भी एहसास हो गया था कि दूसरे का ग़ुस्सा सुनंदा पर नहीं निकालना चाहिए था।

कितनी भी नाराजगी हो पर सुनंदा अपने कर्तव्य से कभी भी पीछे नहीं हटती। दिनचर्या वैसे ही चलती बस मौन रहकर।

तभी बड़े बेटे ने आवाज लगाई पापा बाहर आईए मम्मी की अंतिम यात्रा शुरू होने वाली है और कैलाश जी की तंद्रा एकदम से भंग हो गई।वो कमरे में सुनंदा की तस्वीर को चुपचाप निहार रहे थे। तस्वीर में भी सुनंदा के चेहरे पर मुस्कान नहीं थी।

बड़े ही बोझिल मन से बाहर आ कर सुनंदा की मांग में सिंदूर भरा और माला पहनाकर रो पड़े,” बिना कुछ कहे ही जा रही हो सुनंदा। जिंदगी भर तो मेरी ही सुनती रही…आज भी सुन लो….मत जाओ।”

राजीव यानी बड़े बेटे ने कैलाश जी उठाकर गले से लगा लिया।उसको समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो पापा को क्या समझाए। जिस पापा का काम मम्मी के बिना एक पल भी नहीं चलता था आज वो कितने अकेले पड़ गए हैं, पता नहीं कैसे संभालेंगे खुद को।

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जाने वाली ने अपने लिए अपनी दूसरी दुनिया चुन ली थी पर जो पीछे रह गया था वो कैसे जीएगा उसके बिना उसने कहां सोचा था।

थोड़े दिनों के बाद सभी लौट गए थे। बेटों ने बहुत जिद्द किया था पापा से पर अभी जाने से इंकार कर दिया था कि कुछ वक्त मैं यहीं रहना चाहता हूं।

सो कर उठे तो आवाज लगाई सुनंदा” मेरी चाय कहां है?

और हां चीनी कम डालना मेरा शुगर बढ़ा है।” एकदम से चौंके अरे…. सुनंदा।

तभी श्यामा जो घर में काम करती थी चाय की पहली लेकर आई।साहब जी!” बिल्कुल मेम साहब जैसी चाय बनाई है, सिखाया था उन्होंने। अगर मैं कहीं जाऊं तो तेरे साहब को ऐसी चाय बना कर देना वरना सुबह से उनका मूड खराब हो जाता है अगर मन पसंद चाय नहीं मिलती।।सच कहूं मुझे नहीं पता था कि अचानक ही चली जाएंगी मेम साहब और दुप्पटे से आंसू पोंछते हुए रसोई घर में चली गई।

कैलाश जी ने चाय की प्याली उठाई और बरामदे में बैठकर पीने लगे। कैसे जिंदगी कटेगी सुनंदा तुम्हारे बिना….एक तुम ही तो थी जो मेरे मौन को भी समझती थी। मैं जानता था कि मैं बहुत बार गलत था। मैंने बहुत बार तुम्हारे साथ होते गलत व्यवहार को नजर अंदाज भी किया था फिर भी बिना शिकायत के तुम पूरे परिवार को लेकर चली।इस उम्र में तो सबसे ज्यादा जरुरत थी तुम्हारी तो तुमने साथ ही नहीं निभाया। तुम बहुत अच्छी थी, इसलिए भगवान ने तुम्हें अपने पास बुला लिया क्योंकि अच्छे लोगों की जरूरत तो उनको भी पड़ती है।

नहाने के लिए गुसलखाने में गए तो कपड़े ले जाना ही भूल गए क्योंकि ये सब सुनंदा करती थी।एक – एक चीज सलीके से रखना कभी ढूंढना ही नहीं पड़ता था। कपड़े निकालने के लिए आलमारी खोली तो सुनंदा की साड़ी दिखी। ये रंग कितना फबता था सुनंदा पर। पिछली शादी की सालगिरह में तो लाया था मैं।

साहब!” खाना मेज पर लगा दूं?” श्यामा ने आवाज लगाई। मुझे देर हो रही है और घरों में भी जाना है।”

“खाना मेज पर ढक कर रख कर चली जा। थोड़ी देर से खाऊंगा।”

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पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई खाना परोसने वाली नहीं थी। कितनी बार इंतजार करते – करते सुनंदा मेज पर सिर रखकर ही झपकी ले लेती पर खाना सामने बैठ कर ही खिलाती थी।गरम – गरम फुल्के पसंद थे तो जब खानें बैठता तभी सेंकतीं थी।कई बार मना भी किया था कि सेंक कर कैसरोल में रख दिया करो लेकिन मजाल है कभी मेरी बात मानी थी।

मंदिर में दिआ जलाया तो देखा कि सुनंदा की माला रखीं थीं जिससे रोज जाप करती थी। इंसान भले ही इस दुनिया से रूखसत हो जाए पर उसकी यादें हर कोने में रहतीं हैं।माला उठा कर सिर से लगाया और वहीं रख दिया।हे!” प्रभु ये कैसी विडम्बना है। सुनंदा कितनी श्रृद्धा से आपकी पूजा अर्चना करतीं थीं, बिना दिया जलाए एक निवाला मुंह में नहीं डालती थी,क्यों इतनी जल्दी आपने मेरी जिंदगी से दूर कर दिया।”

खाना खाया नहीं जा रहा था फिर भी खाना तो था ही क्यों कि किसी इंसान के चले जाने का कितना भी शोक मना लो आपकी मृत्यु तो तभी आएगी जब ऊपर वाला चाहेगा।

अब कैलाश जी अपनी सारी यादें एक डायरी में लिखा करते थे।वही एक सहारा थी जिससे अपने मन की बातें किया करते थे वो।

एक बार झगड़ा हो गया था दोनों के बीच और सुनंदा देर तक सोती रही थी, शायद रात को नींद नहीं आई होगी। मैं जाकर चाय चढ़ाने ही वाला था कि आकर गुस्से से पतीला छीन लिया। मैंने कहा भी कि तुम तो नाराज़ हो ना….

बोल पड़ी नाराजगी अपनी जगह है पर मेरा हक आप मुझसे नहीं छीन सकते। मेरी जिम्मेदारी है आपका ख्याल रखना आपकी जरूरतें पूरी करना और लिपट कर रोने लगी थी। मुझे उसकी यही मासुमियत तो पसंद थी।

बिस्तर पर लेटे-लेटे उसकी तस्वीर को निहारता रहा था कि कितनी दूर चली गई हो की मेरी आवाज़ भी तुम तक नहीं पहुंचती। ऐसा लगा कि मुस्करा कर कह रही थी कि कहां दूर गई हूं।हर पल तो आपकी यादों में ही हूं,एक पल के लिए आप मुझे नहीं भूलें हैं।खुश रहा करिए जी वरना यहां भी चैन से नहीं रह पाऊंगी। मेरी आंखें झर – झर बह रही थी। तुम्हारी कीमत नहीं की मैंने… नहीं जानता था कि तुम्हें क्या पसंद है? तुम कहीं घूमना-फिरना चाहती होगी…पर मैं तो अपनी दुनिया में मस्त था,

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तुम्हें कभी वक्त ही नहीं दिया। तुम कैसी थी जो कभी शिकायत भी नहीं की मुझसे।आज सबकुछ समझ में आ रहा है कि मैं जब एकदम अकेला पड़ गया हूं। तुम्हारे बिना तो मेरा कोई वजूद ही नहीं है। जबकि मैं ग़लत रहा जीवन भर की मेरे बिना तुम्हारा कोई वजूद नहीं है।इस घर के कोने कोने में तुम हो। तुम्हारे बिना तो ये घर ही नहीं लग रहा है। अंतिम यात्रा में तुम तो निकल गई और मुझे छोड़ गई इस इंतजार में की कब तक इन सांसों की माला को मैं संभाल पाऊंगा।

कैलाश जी ने अपनी डायरी में हर लम्हें का जिक्र किया था जो उन्होंने मां के बैगर निकाला था। ज्यादा वक्त नहीं रह पाए थे मां के बिना। राजीव डायरी को संभाल कर आलमारी में रख दिया था। पति-पत्नी का रिश्ता भी अनोखा होता है। एक-दूसरे के बिना अधूरे होते हैं।

यादें हीं तो हैं जो हर लम्हें को जिंदा रखती हैं।

प्रतिमा श्रीवास्तव

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