पीयूष बेटा तेरे पिता तुझे बहुत याद कर रहे हैं अंतिम समय में तुझे देखना चाहते हैं एक बार आ जा बेटा….दमयंती जी करुणा विगलित स्वर में अपने इकलौते चिराग पियूष से प्रार्थना कर रहीं थीं।
मां कोशिश कर रहा हूं कंपनी में छुट्टी पहले से लेनी पड़ती है ऐसे अचानक नही ले सकता इतनी दूर विदेश में हूं आने जाने सबकी व्यवस्था में समय लगता है मां ….पापा को देश के बेस्ट हॉस्पिटल में एडमिट करवा तो दिया है बेस्ट डॉक्टर्स दिन रात लगे हैं मैं आकर क्या करूंगा….मुझे तो खुद अपने लिए समय नही मिल पाता है..आप लोगों की यही तो ख्वाहिश थी कि उनका बेटा विदेश जाए समाज में इज्जत बढ़ाए …. इन्हीं ख्वाहिशों को पूरा करने में मैने अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट दिया …और कोई भी बेस्ट सुविधा चाहिए तो बता दीजिएगा…. पीयूष ने कहा और फोन कट गया था ।
..और दमयंती जी के जेहन में वो अबोध नन्हा पियूष कौंध रहा था जो फूट फूट कर रो रहा था …मां मैं हॉस्टल नहीं जाऊंगा मुझे नहीं पढ़ना बाहर जाकर वहां मुझे खाना कौन खिलाएगा अभी तो मुझे अपने जूते की लेस बांधनी भी नहीं आती मां.मुझे आपके पास रहना है..नन्हा पीयूष बिलख रहा था ।
दमयंती जी , प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं ….
पियूष अभी सिक्स्थ स्टैंडर्ड में गया था …लेकिन दमयंती जी के लिए वो बहुत बड़ा हो गया था सिक्स्थ क्लास फ्यूचर डिसाइडिंग क्लास होती है …उनकी सोसायटी में सभी के बच्चे बाहर हॉस्टल चले गए हैं…उन्हें भी इतने काम रहते हैं आए दिन पीयूष के स्कूल में होने वाली मीटिंग्स और दुनिया भर की गतिविधियों में बेटे के साथ जुड़ने के लिए उनके पास बिलकुल वक्त नहीं रहता जब देखो तब उनके और सोमेश के बीच इन्हीं मुद्दों को लेकर तनातनी होती रहती थी।
सोमेश को अपना ऑफिस और अपना काम अपना पैसा सबसे महत्वपूर्ण लगता था और दमयंती के समाज सुधार के कार्य बेकार और समय बर्बाद करने वाले लगते थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बचपन की गोटियों का खेल – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi
आप कुछ कहते क्यों नहीं पीयूष को समझाइए अब बड़ा हो गया है घर से बाहर जाकर ही उसका व्यक्तित्व निर्माण संभव है माधुरी जी का बेटा सुयश चार सालों से आर्मी स्कूल में हॉस्टल में पढ़ रहा है अलग ही दिखता है माधुरी जी बड़ा दंभ करती है उसे लेकर
अब मैं क्या बोलूं तुम्हें जब मेरी कोई बात सुननी ही नही है तो ये तो अभी बहुत छोटा है ये क्या समझेगा तुम क्यों नही समझ जाती हो कि अभी से इसे बाहर नहीं भेजना चाहिए थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो समझ आ जायेगी तब भेज देंगे …सोमेश के कहते ही दमयंती का स्वर तेज हो गया
बहुत छोटा है बहुत छोटा है कह कह के आपने ही इसका दिमाग चढ़ा दिया है अरे जब एक दिन बाहर जाना ही है तो अभी से आदत डाल लेने हर्ज ही क्या है… यहां घर पर ही रहता है तो भी आपके पास तो समय नहीं रहता उसके लिए मुझे ही उसके साथ लगे रहना पड़ता है…वहां हॉस्टल में उसकी ट्यूशन कोचिंग स्कूल बस टिफिन तैयार करने बीमारी में देखभाल इन सबकी चिंता से मैं दूर हो जाऊंगी….
हां दूर होकर क्या करोगी वही समाज सुधार के चोचले..! दिखावटी सुधार है सब तुम्हारा बाहर घूमने फिरने और घर की जिम्मेदारियों से बचे रहने का ढोंग है अभी ही तुम्हारे करने से क्या कर पा रहा है इतनी छोटी पांचवी कक्षा में क्या मार्क्स आएं हैं इसके
मुझे तो शर्म आती है इसे अपना बेटा कहते हुए बेस्ट स्कूल बेस्ट कोचिंग बेस्ट सुविधाएं…सब कुछ तो कर रहा हूं बेस्ट पापा हूं मैं नौकरी क्या होती है कैसे मिलती है पैसे का महत्व समझ में नहीं आ रहा है इसे !!मेरे साथ के सभी सहकर्मियों के बच्चे विदेशों में सेटल्ड हैं….मेरे बेटे को देख लो ….दब्बू कहीं का मां के अंचल से बाहर ही नहीं निकलना चाहता मेरी इज्जत डुबोएगा ये…एक ही तो है और किससे क्या उम्मीद रखूं….सोमेश जी उत्तेजित ऊंची होती आवाज के बीच ही …
“….मां मैं हॉस्टल जा रहा हूं सारा सामान मैंने बांध लिया है और हां पिताजी अब आप लोगों को मेरी वजह से समाज परिवार में किसी भी बेइज्जती का सामना नहीं करना पड़ेगा…. कहता नन्हा पियूष अचानक बड़ा हो गया था। उस दिन वो घर छोड़कर जो हॉस्टल गया तो फिर पलट के नही देखा जैसे निर्मोही सा हो गया था घर आना ही नही चाहता था मां पिताजी भी उसे हॉस्टल में रक्कर कोचिंग करते देखना चाहते थे ….पियूष भी पढ़ता ही गया बढ़ता ही गया और अनजाने ही मां पिता से दूर होता गया और पिता की इच्छा अनुरूप न्यूयॉर्क चला गया वहीं सेटल हो गया …..!
सच है कल जब उसे मां की ममता और पिता के स्नेह की छांव की जरूरत थी तब हमने उसे अपने से दूर कर दिया था..आज हमें पुत्र के स्नेहिल सान्निध्य की जरूरत है तो वो हमसे दूर हो गया है!!
इस कहानी को भी पढ़ें:
जीवन का सच – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi
हमने तो खुद अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारी है…..पुत्र को याद करती हुई व्यथित सी दमयंती जी सोमेश जी के पास बैठ गई थीं।
अरे वाह बेटा हो तो आपके पियूष जैसा हो देखो कितना ख्याल रखता है मां पिता का बिचारा खुद नहीं आ पाया तो क्या हुआ देश का बेस्ट डॉक्टर नर्सिंग होम और बेस्ट सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं उसने ….सोसायटी के अशोक जी और सुमेधा ने सोमेश के बेड के पास बैठते हुए जोर से दमयंती जी से कहा तो दमयंती और सोमेश एक दूसरे की ओर नजर उठा कर देखने का साहस नहीं संजो पाए।
लतिका श्रीवास्तव
#अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना
V M