विद्या जी सूनी आंखों से सबको देख रही थी। आज उनके पति सीताराम जी की तेरहवीं थी। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए थे। अपने बनाए बड़े से आवास में रहते थे।
लंबे समय से सेवानिवृत्त ही थे।
यूं तो कहने को उसी घर में उनके बेटा बहू,पोता पोती भी रहते थे।
मगर ऐसे कि हर देखने वाला कह उठता ऐसे बेटा बहू से तो बेऔलाद रह जाना अच्छा।
विद्या जी और उनके पति को परेशान करने का कोई अवसर, मौका नहीं छोड़ते।
जब माता पिता ऐसे तो पोता पोती भी उसी राह पर चलते थे।
सीता राम जी कहीं बाज़ार जाते तो बहू सारा कूड़ा उठा कर सांस ससुर के कमरे में फेंक आती… उनके बाथरूम से साबुन सर्फ, शैंपू जैसी चीजें गायब कर देती
सास ससुर अलग खाना बनाते तो उनके किचन में चुपके से जाकर सब्जी की कढ़ाई में जाने क्या मिला आई
अरे … ये क्या पूछ रहे हो कि मुझे कैसे पता?
मैं सीमा, उनके पड़ोस में ही रहती हूं, अक्सर मंदिर जाते… बाजार जाते समय मुझे रास्ते में मिल जाती तो अपने बूढ़े कमजोर हाथों से मेरा हाथ पकड़ कर … छलछला आई आंखों से सब बताती रहती थीं।
कहने लगी…. मुझे तो समझ में नहीं आया पर जब मैंने कढ़ाई खोली सब्जी परोसने के लिए तो तुम्हारे चाचा जी को समझ में आ गया
कहने लगा तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है, इसमें कुछ मिला दिया गया है, जिससे हम लोग इसे खाकर मर जाएं…. और
और वो दोनों हाथों से कढ़ाई पकड़ कर चुपचाप सब्जी बाहर नाली में उलट आए
बहुत रात हो गई थी
दुबारा खाना बनाने की हिम्मत नहीं थी
तो उस रात… हम दोनों प्राणी भूखे ही सो गए
सीमा सारी बातें सुनकर हतप्रभ रह गई थी
पड़ोसी की भी अपनी सीमा होती है
फिर दोनों बेटा बहू जब अपने माता-पिता का लिहाज, सम्मान नहीं करते तो पड़ोसी की क्या बिसात जो कुछ बोल सके
और अब?
अब क्या होगा??
सीता राम जी तो महाप्रयाण कर गए
अब इन राक्षसों के बीच कैसे कटेगी विद्या जी की शेष जिंदगी?
बेटा क्या तुम्हारे पति इनकी पेंशन मेरे नाम ट्रांसफर करा देंगे, क्योंकि बेटा तो कह रहा है कि मम्मी आप एक फार्म पर साइन कर दीजियेगा, जिससे पेंशन मेरे एकाउंट में आ जाएगी…. फिर मैं आपको निकाल कर दे दिया करूंगा.. आप कहां बैंक में भागती फिरेंगी पेंशन निकलवाने…
विद्या जी सीमा का हाथ पकड़ कर असहाय सी कहने लगी
ये बात तो सीमा भी समझ रही थी कि वो दोनों पेंशन हड़पने के लिए ये सब कह रहे हैं
फिर विद्या जी के हाथों में उनके पति की पेंशन ही नहीं रहेगी तो वो क्या खाएंगी?.. कैसे रहेंगी?
सीमा के पति ने भागदौड़ करके उनके पति की पारिवारिक पेंशन उनके खाते में कराई…. उन्हें बैंक लेजाकर पैसे निकालना सिखाया….
विद्या जी उस माहौल में किस हिम्मत से रहती थीं ये सभी मोहल्ले वाले कहते थे
सीमा उनके साथ दवा दिलवाले, उनके जरुरी काम करने और इन सबसे ऊपर उनके उनकी ( दुख भरी) बातें सुनने/ समझने की साथी थी
किसी का दुख यदि किसी के सामने शब्दों में/ आंसुओं के रूप में निकल जाए तो ही अच्छा…
क्योंकि जो किसी से नहीं कह पाते, या जिनके दुख को समझने वाला ही कोई नहीं होता ….. ऐसे लोग कैसे घातक कदम उठा लेते हैं… सबको पता है
सीमा का कहना कि” मैं हूं ना, हर परिस्थिति में सदा आपके साथ”…. विद्या जी फिर से उठ खड़ी होती
ईश्वर प्रदत्त जीवन और उसके तमाम झंझावातों का सामना करने
वरना क्या आसान था कि कभी तबियत बिगड़ने पर और अपने पोता पोती को नाम ले लेकर, आवाज देकर पुकारने पर भी बगल के कमरे से वो नहीं आते थे
क्या सभी बहरे थे उस घर में?
फिर मैंने कहा, अपने आप से…. उठो विद्यावती…. अपनी जिंदगी की जंग तुम्हें खुद लड़नी होगी…. कोई नहीं सुनेगा इस घर में तुम्हारी पुकार… प्यास लगने पर पानी खुद उठ कर पीना होगा… खुद दवा लेकर खानी होगी…. भूख लगने पर अपने लिए दो रोटियां स्वयं बनानी होगी…. ऐसा वो सीमा को अक्सर बताती
तुम हो ना सीमा…. मेरा सबसे बड़ा सहारा…. हमेशा कहती हो मैं हूं सदा आपके साथ
आज विद्या जी इस दुनिया से महाप्रयाण कर गईं…. अपने हाथों की बनाई रोटी खाकर…. अपने हाथ से पानी पीकर
किससे कैसे कर्मों के बीज बोए उसका क्या पता..
परंतु सीमा इतना जरूर जानती है…. उसने कुछ नहीं किया…. विद्या जी और उनके पति ने अपनी जिंदगी की जंग स्वयं लड़ी
कितनी बार सीमा को भी अपशब्द कहे कि वो भी उनका साथ देना छोड़ दे…. सारे गरल को पीकर सीमा और उसके पति फिर से उनके साथ खड़े हो जाते…
अश्रुपूरित नेत्रों से दोनों करों को जोड़े सीमा अंतिम प्रणाम कर रो रही ……
उसका काम तो कुछ भी नहीं बस विद्या जी के लिए डूबते को तिनके का सहारा के ही समान था।
ईश्वर ने उसे चुना,यह अवसर दिया…. वरना विद्या जी के अपूर्व धैर्य, आत्मबल,और जिजीविषा के आगे शेष कुछ भी मायने नहीं रखता
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पूर्णिमा सोनी
# डूबते को तिनके का सहारा, मुहावरा प्रतियोगिता