“बेटा, विनया को अकेले खाने की आदत नहीं है। वो अकेली नाश्ता तो नहीं करेगी। क्यों ना हम डॉक्टर से मिल कर घर ही आ जाएं।” गाड़ी के आगे बढ़ते ही अंजना पीछे छूटते जा रहे पेड़ पौधों को देखती हुई कहती है।
“ओह हो माँ, कितना सोचती हो। भैया ने उसकी भी व्यवस्था कर रखी है। भैया को अब”…. पहले आगे की सीट से पीछे मुड़ कर देखती संपदा मनीष की ओर देखती रुक रुक कर कहती हुई मनीष को ऑंखें तररता देखकर मुस्कुरा कर चुप हो गई।
अंजना, संपदा की कही बातों के अर्थ को समझती हुई, गाड़ी से बाहर सिर निकाल कर जीवन को एक नई संभावना की दिशा में देखना शुरू किया। उसकी मुस्कान में एक नई सूरत खिली हुई थी, जो उसके चेहरे पर उम्मीद और संबल की बात कर रही थी। उसकी आँखों में चमक थी, जो उसकी नई शुरुआत की उत्साहपूर्ण भावनाओं को प्रतिबिंबित कर रही थी।
अंजना ने नई जीवन यात्रा में अपने आत्मविकास की ऊँचाइयों को छूने का संकल्प बनाया। उसकी मुस्कान ने उसके चेहरे पर नए आध्यात्मिक रंगों को प्रकट किया, जो उसकी सकारात्मक ऊर्जा को दर्शाता था। उसके घर में प्रेरणास्त्रोत का नया चमकीला सूरज खिला, जो उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रति संघर्षमयी बनाए रखता था। उसकी स्वतंत्रता और साहस से भरी आंधी ने उसे नए संभावनाओं की ओर अग्रसर किया और वह नए अनुभवों की ऊंचाइयों को छू रही थी।
“इतनी जल्दी तो वो लोग आने वाले नहीं थे। अभी कौन है?” दरवाजे की घंटी की आवाज सुनकर सभी को नाश्ता कराती विनया सोचती है।
“भाभी,” दरवाजे पर खड़ी दीपिका को देखते ही विनया का चेहरा हर्षित हो गया। उसकी आँखों में खुशी और आनंद की चमक थी, जो दीपिका के सामने उसके उत्साह को स्पष्टता से दिखा रही थी। विनया अपनी भावनाओं को रोक नहीं सकी और उछलकर दीपिकाके गले से यूं लिपट गई, मानो इन दो दिलों की पहली मुलाकात हो रही हो। विनया की हर्षित मुस्कान में और दीपिका के चेहरे की चमक में उनके बीच का संबंध एक मिठी खासियत से भरा हुआ था, जो उनके बीच के एक गहरे आत्मिक संबंध की भावना को दर्शा रहा था।
“कौन है विनया?” विनया को समय लगते देख कोयल कमरे से बाहर आकर पूछती है।
“अरे दीपिका जी आप, तभी हमारी विनया को समय लग गया।” कोयल दीपिका को देख प्रसन्न होती हुई कहती है।
दीपिका भी कोयल को देख खुश होती हुई कहती है, “वो संपदा जी से बात हुई तो उन्होंने बताया घर में सिर्फ गर्ल्स गैंग ही हैं तो बिन बुलाए मेहमान की तरह मैं भी ज्वाइन करने आ गई।”
“अच्छा किया आपने, आइए नाश्ता कीजिए।” बुआ के कमरे की ओर इशारा करती हुई दीपिका कहती है तभी दीपिका का ड्राइवर हाथ कई रंगों में ढला हुआ सुगंधित बुके लेकर हाजिर हो गया।
“इसे आंटी के कमरे में रख कर आती हूं।” दीपिका ड्राइवर के हाथ से मुस्कुरा कर बुके लेती हुई कहती है।
“भाभी ये किस लिए।” विनया भी दीपिका के साथ अंजना के कमरे की ओर चलती हुई कहती है।
“ये किसी ने अपने प्यार के लिए भेजा है और इस नाचीज़ को इस समय का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला है।” दीपिका की आदा से भरी मुस्कान ने इस उपहार को और भी रूपरेखित किया। उसकी आवाज़ में उत्साह और संतुलन का सम्मिश्रण था, जो इस क्षण को अनमोल और खास बना दिया। उसकी आवाज़ में वह भावना थी जो किसी विशेष पल के महत्व का इजहार कर रही थी।
“मैं कोई पहेली नहीं सुलझाने वाली। सीधी सरल भाषा में बताती हैं कि नहीं।” विनया कमर पर हाथ रखती तन कर खड़ी होती हुई कहती है।
“पहले तानों की दुकान से मिल आया जाए।” दीपिका बाहर की ओर इशारा करती हुई कहती है।
“हूं, चलिए” फूलों के गुच्छे की ओर देखती हुई विनया कहती है।
“माॅं के लिए लाई हैं ना आप” चलते चलते विनया पूछती है।
“नहीं” विनया की बाल सुलभ उत्सुकता को देख दीपिका छोटा सा उत्तर देकर मुस्कुराने लगी थी। दीपिका की मुस्कान में एक प्रफुल्लित सुख था, जो उसकी आँखों में कमल के एक एक पुष्प के समान खिल रहा था।
“अच्छा”, बोलती विनया दीपिका को लिए बुआ के कमरे में पहुंच गई।
“स्वास्थ्य कैसा है अब आपका बुआ जी”, अभिवादन के साथ दीपिका पूछती है।
“उमर का तकाजा है और क्या। अब हमारा बेटा तो ले नहीं गया डॉक्टर से दिखाने तो ठीक ही होंगे।” बुआ जी संभव और कोयल को उलाहना देती हुई कहती हैं।
“इसमें क्या है मम्मी, पहले अपने घर तो चलो। वहां मेरी जान पहचान के डॉक्टर्स हैं, उनसे ही इलाज करा लेंगे।” जिस तरह शांत जल में कंकड़ फेंकने पर वो उस कंकड़ को खुद में समा कर फिर से यथास्थिति में आ जाता है, उसी तरह संभव भी हॅंस कर धैर्य रखते हुए अपनी माॅं की बेतुकी बात को आत्मसात कर अपनी माॅं से कहता है। जबकि कोयल का गुस्सा उफान पर था, जिसे संभव अच्छी तरह समझ रहा था। इस मौके पर संभव के चेहरे पर हंसी और धैर्य से भरी मुस्कान इस चुनौतीपूर्ण समय को बांधने की कोशिश कर रही थी। वह ऑंखों ही ऑंखों में इस दुविधा भरी परिस्थिति से उभरने के लिए सामंजस्यपूर्ण रूप से कोयल को उत्तर देता शांत रहने कह रहा था। इस मुश्किल समय में संभव का चेहरा कोयल के गुस्से के माध्यम से गुजरते हुए सहानुभूति और समझदारी का परिचायक बन गया था।
संभव ने आत्म-नियंत्रण और समर्थन के साथ इस चुनौतीपूर्ण पल का सामना किया और उसने अपने चेहरे पर हंसी और सकारात्मक दृष्टि से भरी मुस्कान को बनाए रखा। उसने दिखाया कि सही समर्थन और समझदारी से हर चुनौती को पार किया जा सकता है, कोयल और संभव के मध्य ऑंखों से होने वाले विचारों का आदान प्रदान को दीपिका बहुत ही गौर से देख रही थी और देखते देखते उसने विनया की ओर देखा तो विनया किसी और संसार में खोई खोई सी प्रतीत हो रही थी।
“मैं अभी आई।” दीपिका से नजर मिलते ही विनया कहती है और जल्दी से कमरे से बाहर निकल गई। उसकी उत्सुकता भरी संवेदना को देख दीपिका मुस्कुरा पड़ी और उसके पीछे जाने के लिए उठने का उपक्रम करती है और फिर कुछ सोच कर मुस्कुरा कर बैठ गई।
विनया दौड़ती सी अंजना के कमरे में जाकर बुके उठाकर उलट पलट कर देखने लगी। उसे याद हो आया था कि बुके के अंदर से एक कागज भी झांक रहा था और वह ये जानने के लिए उत्सुक थी कि यदि यह अंजना के लिए नहीं है तो फिर किसके लिए है।
प्रकृति प्रेमी उस प्यारी लड़की के लिए जिसने एक मकान में जीवन भरा, उसकी आत्मा के कैनवास पर फिर से रंगों के छींटें देकर खूबसूरत बना कर घर बना दिया, उसे साॅंस लेना सीखा दिया। खुद को भूलकर सभी को उनका स्वयं याद दिलाया। खुद को भूलकर जिसने सभी को अपने स्वयं के सौंदर्यिक और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ प्रेरित किया, एक नई ऊर्जा का संचार किया। उस प्यारी लड़की को उसके प्यार की तरफ से रंग बिरंगे सुगंधित पुष्पों का गुच्छा प्यार से भेंट किया जा रहा है। उस कागज पर उकेरे शब्दों से विनया स्तब्ध रह गई, इस दो दिन में कितना कुछ बदल गया। इस दो दिन में इस घर को बेटा ही नहीं मिला बल्कि उसे भी पत्नी होने और विशेष होने का अहसास पल पल हो रहा है। फूलों के गुच्छे को अपनी चिबुक से सटाए अविचल भाव से बैठी विनया की ऑंखों से अश्रु की निःशब्द अविरल धारा उसके कपोलों से होती नीचे गिरी जा रही थी।
“क्या हुआ ननद रानी”, दीपिका कमरे में प्रवेश करती विनया को इस तरह बैठे देख थोड़ी परेशान होती झकझोरती पूछती है।
“भाभी ये”, दीपिका के आगे कागज का टुकड़ा आगे करती विनया रूंधे गले से कहती है।
“पगली, इसमें रोने की क्या बात थी। ये तो प्रेम पत्र है, रास्ते में ही मनीष जी ने ये बुके दिया था मुझे।” दीपिका अति हर्ष में विनया को गले से लगा लेती है।
“ये तेरा प्रेम पत्र पढ़कर।” विनया को गुदगुदाते हुए दीपिका गाने लगती है और अपने ऑंसुओं को पोछती विनया की खिलखिलाहट के फूलों के गुच्छे जो विनया के हाथों में थमे विनया के रुदन के साक्षी बने हुए थे, वो भी प्रेमियों के मिलन के ख्वाब संजोए खिलखिला पड़े थे।
“आज तो मजा आ गया, कितने सालों बाद हम सब आउटिंग के लिए गए। थैंक्यू मम्मी बीमार होने के लिए।” संपदा घर में घुसती हुई चहक रही थी।
संपदा ने बहुत सालों के बाद सभी के साथ घर से बाहर जाने का मजा लिया और उसने खुशी से चहकते हुए कहती है, “आज तो मजा आ गया, कितने सालों बाद हम सब आउटिंग के लिए गए। थैंक्यू मम्मी बीमार होने के लिए।” उसका उत्साह और हर्ष साफ दिख रहे थे, जो उसके चेहरे पर मुस्कान के साथ छमक रहे थे। उसने बीमारी की चुनौती को भी जीवन के नए रंगों से भर दिया और उसने अपने मस्ती भरे लम्हों का आनंद लिया। संपदा की खुशी और उत्साह ने सभी को मनोरंजन की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया और उसने दिखाया कि हर पल को खुशी से भरा जा सकता है, चाहे जो भी स्थिति क्यों ना हो।
उसकी आवाज में भरपूर आनंद और उत्साह साफ़ था, जो उसके चेहरे पर मुस्कान के साथ दिखाई दे रहा था। संपदा आज के दिन को लेकर खुश थी और मनीष उसकी खुशी में खुश होता सबके लिए पानी लेकर आती विनया को चोर निगाहों से देख रहा था मानो उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो, अपने हृदय में उत्पन्न हुए प्यार के रंग को विनया के मुखड़े पर खोजने का प्रयास कर रहा था। इस समय का आनंद लेते हुए मनीष ने समझा कि प्यार और खुशी के रंग वास्तविकता में जीवन को कितना सुंदर बना देते हैं और वह विनया के साथ इस सुंदर मोमेंट को साझा करने के लिए खुद को व्यग्र महसूस कर रहा था। लेकिन अभी दीपिका और संपदा दोनों ही उसे घेरे बैठी थी और उसके मुखमंडल को उत्सुकता से देख रही थी। दीपिका और संपदा उसके दोनों ओर बैठी चांदनी रात की तरह चमक रही थीं और इस समय की सुखद गहराईयों में मनीष के उत्साह और प्यार से भरे चेहरे को देखने का आनंद ले रही थी, साथ ही मनीष की झुकी नजरों का पीछा करती विनया की ओर देख खिलखिला भी पड़ती थी।
अंजना विनया के साथ जाकर कमरे में लेट गई थी। अंजना को विनया कंबल ओढ़ाती निश्छल निर्मल गुड़िया सी लग रही थी। विनया के प्रत्येक कार्यकलाप को वो बहुत ध्यान से देख रही थी। उसने विनया को इतने दिनों में कभी इस कदर शांत नहीं देखा था, तब भी नहीं जब वो विनया को अपना प्रतिद्वंदी समझा करती थी।
अंजना से रहा नहीं गया, उसका हाथ पकड़ अपने बगल में बिठाती प्यार से पूछती है, “क्या बात है बेटा, तुम्हारे चेहरे पर ये शांति अच्छी नहीं लग रही है। तुम्हारे चेहरे का उत्साह तो इस घर की संजीवनी बूटी है, किसी ने कुछ कहा है क्या?”
“नहीं माॅं, वो” विनया अंजना के इतना पूछते ही इस तरह रो पड़ी थी। जैसे की वो अंजना के पूछने का ही इंतजार कर रही थी।
विनया की आँखों से आंसू टपक पड़े थे और वह अंजना की ओर देखती रही जैसे कि उसके पूछने का ही इंतजार था। उसने अपनी माँ से कहा, “नहीं माॅं, वो…” और इसके साथ ही रुक गई, जैसे कि उसे अगले शब्दों की तैयारी के लिए समय चाहिए था। उसकी आवाज में बेताबी थी, जो उसकी आत्मा से आती प्रतीत हो रही थी। वह इस क्षण में आंसू बहाती हुई अपनी माँ से और भी कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी आँखों से निकले आंसू वो बोल रहे थे जो शब्दों से कहना मुश्किल हो रहा था।
विनया के थरथराते कुछ कहने को व्याकुल अधर और नैनों के अश्रु देख अंजना हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसने विनया को अपनी बाहों में लिए हुए कहा, “तुम्हें रोने की कोई आवश्यकता नहीं है, बेटा। हम एक-दूसरे के साथ हैं और हम समस्याओं का सामना साथ में करेंगे।” इस दिव्य समय में, माँ-बेटी के बीच का यह संबंध इक नई मजबूती के साथ समर्थन भरा था, जिसने विनया को अपनी बातें साझा करने के लिए स्थान दिया और उसे माँ के हृदय की साथीत्व भरी भावना ने पूर्ण रूप से समाहित कर लिया था।
“माॅं, वो” विनया ने उंगली के इशारे से मेज की ओर दिखाया।
“इतना सुंदर फूलों का गुच्छा। कहाॅं से आया?” अंजना इस गुच्छे से पूर्णतः अनभिज्ञ थी क्योंकि दीपिका और मनीष फूलों की दुकान पर मिले थे, जिसे सिर्फ संपदा जानती थी।
अंजना की अंभिज्ञता देखकर विनया आश्चर्य से उसका चेहरा देखने लगी क्योंकि मनीष ने दीपिका को बुके दिया तो अंजना ने देखा होगा, विनया अपने विचारों में सोच रही थी।
“माॅं, ये भी” विनया अभी भी स्थिर नहीं हो सकी थी और फूलों के अंदर रखे कागज को निकल कर अंजना के हाथ में देती है।
विनया ने कागज पर लिखे शब्दों को पढ़ते हुए अंजना के चेहरे पर एक आशीर्वाद भरी मुस्कान देखी। उसकी ऑंखों में चमक बढ़ गई जब वह विनया के ललाट को चूमती हुई कहती है, “मेरी फूल सी बच्ची।” इस पल में बड़ी सी दृढ़ता और प्रेम था, जिससे विनया को माँ की ममता और समर्थन का अभास हुआ।
“समझती हूं बेटा तुम्हारे मनोभाव को। ये प्यार तुम्हारा हक है, अधिकार है। मैं ये भी जानती हूं इस प्यार को पाने के लिए तुम्हें ये सब करने की जरूरत नहीं थी। हर औरत इसकी विवाह के बाद इसकी स्वमेव अधिकारी हो जाती है। पर बेटा तुम्हारे ये एक साल मैं वापस तो नहीं कर सकती लेकिन ये वचन जरूर दे सकती हूं कि जिस खुशी की, साथ की एक नारी को जरूरत होती है, उसमें अब कभी कोई कमी नहीं आएगी।” बोलते हुए अंजना की आवाज भर्राने लगी थी और वो विनया को गले से लगाए उसकी पीठ को सहलाती रही।
अचानक मुख्यद्वार के खुलने और बहुत तेज हर्षमिश्रित चीखने की आवाज अंजना और विनया तक आई।
“कौन है देखना बेटा”, प्यार से उसके दोनों गालों को थाम कर अंजना कहती है।
“हम हैं मामी”, दो लड़कियां अंजना के कमरे में आकर जोर से कहती हैं।
“मिन्नी, विन्नी तुम दोनों”, कभी अंजना दोनों लड़कियों को और कभी उनके साथ खड़े मनीष को देख रही थी और देख रही थी उनके पीछे खड़ी मंझली बुआ को अपनी साड़ी के कोर से ऑंसू पोछते।
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अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 38)
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 38) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 36)
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 36) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली