अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 34) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“समधन जी का स्वास्थ्य अब कैसा है बेटा।” विनया के मम्मी पापा घर में प्रवेश करते हुए पूछते हैं और उनके पीछे पीछे ड्राइवर के साथ उनका बेटा बहू कई पैकेट्स हाथ में लिए आते हैं।

“आंटी, ये सब क्या है?” संध्या का चरण स्पर्श करता हुआ मनीष पूछता है।

“लंच का समय हो रहा है बेटा और विनया ने बताया समधन जी की तबियत खराब है तो हम चले आए।” संध्या के बदले विनया के पापा श्याम जी उत्तर देते हैं।

“पर ये सब।” मनीष के माथे पर परेशानी की रेखा आ गई।

“ननदोई जी आप परेशान ना हो, हम दोनों ननद भाभी सब संभाल लेंगी।” दीपिका टेबल पर लंच के सारे पैकेट्स टेबल पर रखवाती हुई कहती है।

“भाभी का तो पता नहीं, ननद से तो कुछ होने वाला नहीं है।” मनीष दीपिका की बात सुनकर बड़बड़ाता है।

“आइए, आइए।” इतने में मनीष के पापा भी कमरे से बाहर आकर सबका स्वागत करते हुए कहते हैं।

“हमने आपको तकलीफ दी है, इतनी चीजों की क्या जरूरत थी।” मनीष के पापा शर्मिंदा होते हुए कहते हैं।

हम चाहते हैं कि हम और आप एक दूसरे के साथ खुले दिल से रहें और किसी भी समस्या का सामना करने में एक दूसरे की मदद लें। हमारा प्यार और समर्थन हमेशा एक दूसरे के साथ हो।” श्याम जी ने मनीष के पापा के कथन पर आपत्ति जताते हुए समझदारी के साथ कहते हैं।

“मम्मी, पापा, भैया, भाभी आप सब।” विनया आकर संध्या और दीपिका के गले लग गई।

विनया अपने परिवार को देखकर भावनाओं से भरी हुई थी। उनकी आँखें भौचक्की सी थी, जो उसकी खुशी और प्रेम को दर्शाती थी। वह प्यार से भरी हुई संध्या और दीपिका के गले में लिपटी हुई थी, जो उसके परिवार के सदस्यों के साथ संवाद की गहराईयों को दर्शा रहा था। इस अद्वितीय क्षण में एक परिवार की एकता और समर्थन की भावना उजागर हो रही थी।

विनया की मुस्कान उसके चेहरे पर चमक रही थी, जो उसके परिवार के साथ साझा किए गए इस अनमोल लम्हे को निरूपित कर रहा था। उसके मुख को देख कर आभास हो रहा था कि परिवार ही सुरक्षित समृद्धि का स्रोत है, जो सभी परिस्थितियों में साथी बना रहता है।

“चलो, पहले समधन जी से मिलें।” संध्या विनया से कहती है।

“ये मोबाइल किससे गिटपिट हो रही है ननद जी।” विनया कमरे की ओर बढ़ते बढ़ते मोबाइल निकाल कर बटन दबा रही थी, जिसे देख दीपिका उसके करीब आती हुई कहती है।

“संपदा दीदी को संदेश भेज रही थी कि आप सब आईं हैं। अगर कोई जरूरी क्लास वगैरह नहीं है तो आ घर जाएं।” विनया मोबाइल बंद करती हुई कहती है।

“वही तो मैं सोचूं, जब सब साथ तो मोबाइल का क्या काम।” दीपिका विनया के कंधे पर हाथ रखती हुई कहती है।

जिसे देख उनके पीछे आते हुए मनीष की आँखें उसी तरह विचारमय हो जाती हैं, जैसे संपदा को भी कभी इन दोनों का दोस्ताना रुख अनसुलझी पहेली सी लगी थी। इस समय में मनीष के अंदर रिश्तों को लेकर जिज्ञासा और आश्चर्य दोनों ही एक साथ सिर उठाने लगे। उसके लिए यह एक अभूतपूर्व दृश्य था, संपदा की तरह वह भी सोचने लगा, “क्या ननद और भाभी में वास्तव में ऐसा रिश्ता हो सकता है और सोचते हुए उसकी नजर बुआ के कमरे की ओर उठी, जिन्हें अब तक यह ज्ञात हो चुका था कि घर में अतिथि का आगमन हुआ है लेकिन व्यवहार वश भी वो दोनों कमरे से बाहर नहीं आईं।

“ननदोई जी आप क्यों खड़े हैं, आंटी के पास ही बैठ जाइए। तब तक मैं आंटी के लिए दलिया निकाल लाती हूॅं। लाडो रानी जरा रसोई दिखा दीजिए।” दीपिका के कथन पर अपने विचारों में निमग्न मनीष यथार्थ में वापस आता है तो देखता है सबके साथ वो कमरे में आ तो गया, लेकिन वो कमरे में प्रवेश कर गया, उसे खुद ही पता नहीं चला था, उसके चेहरे पर स्वयं के लिए एक आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति आ गई थी। आज के आधे दिन में ही वो खुद को विक्षिप्त अनुभव कर रहा था। 

“भाभी पहले सबके लिए अच्छी सी चाय बना दीजिए। माॅं का स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण आज किसी को ढंग की चाय नहीं मिली है।” कमरे से निकलते हुए विनया दीपिका से कहती है।

“अभी लीजिए”… दीपिका की हॅंसी पूरे घर को आलोकित कर गई और मनीष अंतर्द्वंद्व में फॅंसा कमरे से निकल कर बुआ को अतिथि आगमन की सूचना देने और बुलाने के लिए बुआ के कमरे की ओर बढ़ चला।

“देख संभव अभी तो मैं ना निकलने वाली, जिसे मिलना हो यहाॅं आकर मिल ले। मेरा स्वास्थ्य भी कोई ठीक थोड़े ना है, जो मैं लोगों के आगे जाकर बिछ जाऊॅं। वैसे भी कोयल आवभगत में लगी तो है।” मनीष कमरे में प्रवेश करता, उससे पहले ही बुआ की आवाज कमरे से बाहर आकर मनीष को भेदती है।

कैसी बात करती हो मम्मी तुम भी, मनीष तुम्हें इतना मान देता है और तुम….

संभव की बात काट कर बुआ हाथ चमकाती हुई कहती है, “मान क्या देता है, अपनी माॅं से नहीं बनती तो मेरे पल्लू में घुसा रहता है और क्या। सबका अपना अपना स्वार्थ है।”

ये सुनकर मनीष का मुॅंह आश्चर्य से खुला रह गया। क्या स्वार्थवश वो बुआ के करीब आया था, वो तो अपनी माॅं के करीब था, संपदा से भी ज्यादा। उसका तो सुबह सांझ उसकी माॅं ही थी। मनीष और कुछ सोच नहीं सका और जाने किस भावना से प्रेरित होकर सीधा अंजना के कमरे में जाकर अपनी रुलाई रोकता हुआ उसके सिरहाने के एक ओर बैठ गया क्योंकि दूसरी ओर बैठी विनया अंजना को दलिया खिला रही थी।

“चाय गरम, चाय गरम।” सौरभ चाय की ट्रे लिए कमरे में आया।

“भैया, हमारे यहाॅं यह सब बुरा माना जाता है।” विनया ऑंखें तरेरती हुई कहती है।

“क्या बुरा माना जाता है बेटा।” बहुत ही कमजोर स्वर में अंजना पूछती है।

“वो माॅं भैया को अभिनय का शौक है तो ये हर कार्य को अभिनय और डायलॉग की तर्ज पर करते हैं। हमारे लिए तो ये सब सामान्य है। लेकिन यहाॅं”… विनया नजर नीची करके कहती है।

“नहीं बेटा, किसी के शौक से जब किसी को हानि नहीं हो रही हो और संसार गुलजार हो जाए तो वो शौक बुरा कैसे हो सकता है। देखो इन सब के आने से घर की रंगत ही बदल गई है। घर की दीवारें भी खिलखिला उठी हैं और सब तो छोड़ो मुझे ही देखो कैसे उठ कर बैठी हूॅं।” अंजना अटक अटक कर अपनी बात मुस्कुरा कर पूरी करती है।

मनीष के लिए ये सब ऐसा वातावरण नया नहीं था, लेकिन भूली बिसरी यादें थी। उसे याद हो आया अंजना के घुंघरू जो मनीष की जिद्द पर ही वो बक्से से निकालती थी और उसे नृत्य कर दिखाती थी और जब मनीष कहता था, “यू आर बेस्ट डांसर” तो निहाल हो जाती थी। उस समय भी दीवारें यूं ही खिलखिलाया करती थी। घर की रंगत ही अलग हुआ करती थी। फिर धीरे धीरे उसकी ऑंखों पर बुआ के नाम का परदा डलने लगा और माॅं नेपथ्य में चली गई।

“ओके आंटी तो ये दलिया छोड़िए और मेरे हाथों की चाय गरम पीजिए, यूं यूं स्वस्थ हो जाएंगी।” चुटकी बजाता हुआ सौरभ कहता है।

हाउ स्वीट, मनोहारी दृश्य… बस खुद की एक्टिंग में ही लगे रहिए। एक पिक्चर क्लिक कर लें, ये नहीं हुआ। अंजना के एक ओर मनीष और एक ओर विनया को बैठे देख कमरे में आती दीपिका सौरभ से मोबाइल माॅंगती हुई कहती है।

“पर पर भाभी, ऐसे”…. मनीष असहज हो गया था।

“मेरे भाई, फोटो शोटो का कोई समय नहीं होता है। कल जब ये फोटो देखोगे ना तो मेरी पत्नी को थैंक्यू कहोगे।” सौरभ दीपिका के बगल में खड़ा होकर कहता है।

“एक मिनट एक मिनट दीपिका”…सौरभ उसे क्लिक करने से रोकता हुआ कहकर कमरे से बाहर निकल गया।

आइए भी ना अंकल, किसी और का घर थोड़े ना है, आपका अपना घर है। मनीष के पापा को जबरदस्ती कमरे में लाता हुआ सौरभ कहता है।

मनीष के पापा के इस कमरे में कदम रखते ही अंजना की ऑंखें डबडबा आई थी। एक ही घर में रहते हुए दोनों अजनबी से अलग अलग कमरे में रहते थे। दोनों ही घर की सारी जरूरतें पूरे मनोयोग से पूरी करते लेकिन जो अबोला दोनों के मध्य उभर आया था, वो  कोई भी जरूरत पाट नहीं सका था लेकिन दिलों में एक दूसरे के लिए जो अहसास था वो शायद मृत नहीं हुआ था तभी आज अंजना का स्वास्थ्य खराब हो जाने पर मनीष के पापा खुद को असहाय और व्यग्र महसूस कर रहे थे और अभी अंजना की ऑंखों में आ गया पानी इस बात का गवाह था कि इस क्षण के इंतजार उसका मन बरसों से कर रहा था।

“अब क्लिक करो डियर”…अंजना के पीछे मनीष के पापा को खड़ा करते हुए सौरभ दीपिका से कहता है।

“पिक्चर परफेक्ट”… दीपिका क्लिक करते ही उत्साहित होकर कहती है।

“फैमिली परफेक्ट कहो” अनायास ही सौरभ कह बैठता है और कमरे के बाहर कदम बढ़ाते मनीष के पापा के कदम ठिठक गए। अक्सर उनके परिवार का उद्धरण आस पड़ोस, रिश्तेदार, यहाॅं तक की बच्चों के विद्यालय में दिया जाता था। दोनों एक दूसरे के पूरक कहलाते थे। फिर समय ने करवट ली और गलतफहमी का एक पहाड़ दोनों के दरमियान बढ़ता चला गया और अपने अपने कमरे में कैद हो गए।

“चाय अच्छी बनी थी बेटा”, मनीष के पापा मुस्कुरा कर कहते हैं, उनके चेहरे पर संतोष की रेखा परिलक्षित हो रही थी। उन्हें देखकर प्रतीत हो रहा था जैसे वह वो तीर हैं, जो कमान से अभी निकला नहीं है, जिसे साधा जा सकता है। उनकी हँसी और चेहरे की प्रकृति में दिख रहा था कि वह पूर्णता की भावना से भरे हुए थे। उनकी हंसी में आत्मविश्वास और खुशियाँ छुपी सी दिखाई दे रही थीं, जैसे कि वह जानते थे कि उनका समर्थन परिवार को उच्चतम मानकों तक पहुँचने में मदद करेगा।

इसके साथ ही अंजना और विनया की नजरें मिली। मानो दोनों ही एक दूसरे को शुक्रिया कह रही थी।

इस साथ और समर्थन के रंगीन दृष्टिकोण से महकता हुआ वातावरण था, जो दिखने वाले हर एक सदस्य को एक अहम भूमिका में जोड़ रहा था। अंजना और विनया की नजरों में वह अनुभूति थी कि उनका साझा किया हुआ सुख-दुःख और समर्थन इस परिवार को और भी मजबूत बना रहा है।

इस विशेष क्षण में उनके चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा हुआ अंश था, जो दिखाता था कि ये संबंध निरंतर बढ़ते जा रहे हैं और प्रत्येक सदस्य को अपने आत्मविकास में समर्थन का एहसास हो रहा है। इस परिवार को एकजुटता और सद्भाव का वातावरण स्वीकार्य हो रहा था, जिसने सभी को अपने-अपने स्थान पर विकसित होने का साहस और समर्थन प्रदान किया।

“टिंग टोंग…मैं देखती हूॅं, संपदा दीदी होंगी।” घंटी की आवाज पर उठती हुई विनया कहती है।

“अरे नहीं, ननद रानी, आप बैठिए।” दीपिका विनया के पूरी तरह खड़े होने से पहले कमरे से निकल गई और दरवाजा खुलते ही उस घर में दोनों की जोरदार हॅंसी हवा में तैर गई।

“मनीष की पत्नी का पूरा घर ही खी खी करता रहता है क्या। दिमाग खराब है सबका ही, इस घर में भी वही छूत की बीमारी लग गई है।” बड़ी बुआ भुनभुना कर कहती है।

मंझली बुआ दही में सही मिलाती हुई बात आगे बढ़ाती हुई कहती हैं, “और तो और देखो, हम भी इस घर में हैं, ये क्या वो लोग नहीं जानती होगी। अभी तक दुआ सलाम करने भी नहीं आई है। उनकी बहू आका चाय दे गई तो क्या अहसान कर गई।”

“क्या बात कर रही हैं आप समधन जी। आप लोग को कैसे भूल सकती हैं हम सब और क्या करें बहू बेटियां हैं, यही तो इनकी हॅंसने खिलखिलाने की उम्र है, उम्र ढलने पर तो हम सब भी तो ये दर्द वो दर्द से ही परेशान हो जाती हैं। हॅंसने, बोलने दीजिए इन सबको, ना हो तो इनके साथ हम भी हॅंस, बोल लिया करें।” उनकी बातों का उत्तर देती हुई संध्या विनया के साथ कमरे में प्रवेश करती है।

उनकी यह बातें धूप में चलते हुए अचानक मिल गई छाॅंव सी थी। वो बातचीत को ऐसे माहौल में ढाल देती  हैं, जो व्यक्तिगत दुखों और संघर्षों को हंसी और समर्थन से आगे बढ़ाने का एक अच्छा माध्यम बना देती है। संध्या का सामजिक संबंध और संवाद कौशल उनके चरित्र की जादूगरी दिखाता है, जहां वह खुद को और दूसरों को खुश रखने का संकल्प लेती दिखती है।

संध्या की मुस्कान में एक विशेष प्रकाश है, जो देखने वालों को उसके सकारात्मक दृष्टिकोण को उजागर करता है। उनका सुझाव और एकजुटता का आदान-प्रदान नई ऊर्जा और उत्साह का स्रोत बन जाता है। संध्या की यह उत्तर कौशल से भरा हुआ था, जो दर्शाता है कि उन्होंने समधन जी की बातों को उचित रूप से स्वीकारा है और माहौल को सकारात्मक और हरित बनाए रखने के लिए उन्मुख हैं।

“मम्मी, खाना लग गया है।” दीपिका उनकी बातों पर विराम लगाती हुई कमरे में आकर संध्या के बगल में खड़ी होती हुई कहती है।

“आइए, सब साथ लंच करते हैं।” संध्या आदर भरे स्वर में दोनों बुआ से कहती है।

“आप लोग कीजिए, मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है।” मंझली बुआ फर्श पर पैर रख पादुका के अंदर पैर डाल ही रही थी कि बड़ी बुआ का आदेश सामने आया।

बड़ी बुआ का आदेश सुनकर दीपिका ने तत्परता भरे शब्दों को बिछाकर उनके मन को सहारा देते हुए कहा, “बुआ जी, आप चिंता न करें, हम सभी यहां हैं आपके साथ। आप बिल्कुल आराम करें और हम देखेंगे कि आपको कौन-कौन सी आवश्यकताएं हैं और बुआ जी आप तो चलिए।” मंझली बुआ के पैरों को थमते देखकर दीपिका उनके करीब आकर कहती है।

“ननद रानी रात का खाना फ्रिज में है। बस गर्म करके सर्व करना होगा। आंटी जी का ख़्याल रखिएगा और ननदोई जी कभी घर भी आइए। विवाह के बाद कभी भी नहीं आए आप, आपका ही घर है वो, आवभगत में कोई कमी नहीं होगी।” दीपिका सपरिवार अपने घर के लिए निकल रही थी तो दीपिका विनया और मनीष दोनों का हाथ थामकर कहती है और दोनों का हाथ एक दूसरे के हाथ में देकर अपना हाथ हटा लेती है, इस अनायास स्पर्श से विनया और मनीष के मन में एक मधुर सिहरन दौड़ गई और दीपिका मुस्कुराती हुई गाड़ी में बैठ गई।

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