“चाय कैसी बनी थी माॅं।” अंजना चाय का खाली प्याला ट्रे में रख रही थी तो विनया अंजना की ओर देखती हुई पूछती है।
“अच्छी बनी थी, वैसे कैसे कर लेती हो ये सब।” अंजना के आवाज में फिर से तल्खी उभर आई थी।
“क्या माॅं?” विनया के चेहरे पर असमंजस का भाव आ गया था।
“यही सब ऑंखों में भोलापन, जुबान में चाशनी। कैसे लपेट लेती हो।” अंजना अस्वाभाविक रूप से तल्ख होती हुई पूछती है।
विनया अंजना के सवाल पर हड़बड़ा गई थी, उसकी ऑंखों में ऑंसू घुमड़ने लगे थे और अपना गला उसे भर्राया हुआ सा महसूस हुआ। शायद अंजना के सवाल पर उसके अश्रु बह निकलते, लेकिन तत्काल ही उसे अपनी माॅं और पापा के अंजना के लिए कहे गए बर्फ और आग दोनों ही उनके अंदर बसते हैं, वाली बात याद हो आई और वो अपने ऑंसुओं को पी गई।
“ये सब आपका प्यार है माॅं, जो कि आपको मुझमें ये सारे गुण दिखते हैं।” ट्रे उठाती हुई विनया मुस्कुरा कर कहती है।
अंजना की तल्खी पूर्ण बातों से उसके दिल में बेहिसाब दर्द हुआ, लेकिन अंजना के अंदर के आग को भी वो समझ रही थी। वो समझ रही थी, अभी घर में एक वो ही है, जिसे अंजना बेवजह अपनी तल्खी, अपनी नाराजगी जता सकती है। अंजना की बातों ने उसके दिल को चुनौतीपूर्ण स्थितियों को समझने की क्षमता दी। अंजना की तल्खी ने उस घड़ी में विनया को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया, जिसमें वह नकारात्मक भावनाओं को समझने और सहानुभूति करने की क्षमता विकसित कर सकती थी। इस मुश्किल समय में भी उसने अंजना के साथ सजीव संबंध को महत्वपूर्ण बनाए रखने के महत्व को समझा।
“उसे समझ आया कि इंसानों के बीच संबंधों में कभी-कभी तकलीफें होती हैं, लेकिन यह समस्याएं अच्छे और बुरे समयों में अनुभव को बनाए रखने का मौका प्रदान करती हैं।” ट्रे उठाए रसोई की ओर बढ़ती अपने विचारों को आत्मसात कर रही थी।
“टिंग टोंग”…घंटी की आवाज पर विनया दूध का बर्तन लिए दरवाजे की ओर बढ़ी।
“मेरे हर काम में दखल देने की जरूरत नहीं है।” टिंग टोंग की आवाज पर बालकनी से आती अंजना विनया के हाथ से पतीला लेती हुई कहती है।
अंजना द्वार विनया के हाथ से पतीला लेना एक पल के लिए विनया को हतप्रभ कर गया। लेकिन फिर वो मुस्कुरा कर अंजना को देखकर अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
“अजीब लड़की है, कोई बात बुरी ही नहीं लगती क्या इसे। हमेशा मुस्कुरा देती है। क्या समझती है कि इसके मुस्कुराने से मैं इसके मोह में बॅंध जाऊॅंगी, नहीं बार बार एक ही भूल नहीं करना है मुझे।” मन में बड़बड़ाती अंजना दरवाजा खोल दूध लेने लगी।
“अब दादा भी आते होंगे, फटाफट सैंडविच बना लेती हूॅं। लेकिन रोज रोज सैंडविच खिलाना अच्छा भी नहीं लगता है”…
“तो आज उत्पम बना लीजिए माॅं, ढ़ेर सारे मूंगफली के साथ, यम्मी”….फ्रिज खोले खड़ी अंजना खुद से बोल ही रही थी कि विनया पीछे से कहती है।
“वो मैं मनीष के लिए चाय बनाने आई थी। उन्हें चाय की तलब लगी है।” अंजना की ऑंखों में “यहाॅं क्या कर रही हो” का सवाल देख कर विनया बताती है।
“थोड़ी देर में आकर ले जाना” कहकर अंजना चाय के लिए पानी डालने लगी।
“माॅं, आप उत्तपम की तैयारी कर लीजिए, मैं चाय बना लेती हूॅं।” विनया अंजना का उत्तर जानती थी इसलिए उसकी आवाज में पूछते हुए हिचक थी।
“नहीं, मैं खुद कर लूॅंगी। तुम्हारे आने से पहले भी मैं ही करती थी।” अंजना की बोली में अभी पसीजने के कोई आसार नहीं देख विनया अपने कमरे में चली गई।
“भाभी” संपदा विनया को जाते देख धीरे से आवाज देती है।
“क्या बात है भाभी, सुबह सुबह तो आप दोनों सास बहू चाय की चुस्की ले रही थी और अभी चेहरा बारह बजा रहा है।” संपदा हल्के से विनया को गुदगुदी लगाती हुई कहती है।
“अरे, अरे क्या कर रही हैं।” विनया खुद की बचाती हुई हॅंसने लगी थी।
“बस भाभी, आप ऐसे ही अच्छी लगती हैं, हॅंसती, खिलखिलाती। अब बताइए भाभी, भैया ने कुछ कहा क्या।” संपदा अपने दोनों हाथों से विनया का कंधा पकड़े हुए पूछती है।
“नहीं दीदी, कुछ नहीं, किसी ने कुछ नहीं कहा है। आज शायद सुबह जल्दी उठने के कारण चेहरे पर नींद नींद सी दिख रही होगी, इसलिए आपको ऐसा लगा होगा।” विनया संपदा को आश्वस्त करने की कोशिश करती है।
“भाभी, आप मुझ पर विश्वास कर सकती हैं और अपने दिल की बात मुझ से कर सकती हैं।” संपदा विनया से कहती है।
“हाॅं, हाॅं दीदी, आप निश्चिंत रहिए।” विनया थोड़ी अवाक सी संपदा से कहती है क्यूंकि बिल्कुल यही विनया के दिमाग में आया था कि यदि वो अपनी उदासी के कारण को संपदा को बताती है, तो कहीं वो ये ना समझ ले कि वो सास की बुराई कर रही है या ये ना समझ ले कि वो भी घर तोड़ने वालों में शामिल है। वो तो जी जान से सब कुछ ठीक करने का प्रयास कर रही है, इसलिए फूंक फूंक कर कदम रख रही है।
“भाभी मैं समझती सकती हूॅं। आप इस घर को घर बनाने के लिए इस लड़ाई में कल तक अकेली थी। लेकिन कल आपके साथ ने, आपके परिवार के साथ बिताए कुछ पलों में मुझे घर का और परिवार का अर्थ समझ आया। भाभी जिस तरह जीवन हर क्षण बदलता है, उसी तरह रिश्तों की रंगत भी तो बदलती है। इन कुछ महीनों में यहाॅं आपने जो अनुभव किया, वो एक सुलझे हुए परिवार में पली बढ़ी लड़की के लिए मुश्किल हालात से लगते हैं। लेकिन आप तो सोने की मिट्टी की बनी हैं भाभी, इसलिए आप हमें भी सोना बनाने में जुट गईं। भाभी कल मुझे समझ आया कि रिश्तों की कोई परिभाषा नहीं हो सकती है। आपके लिए जो अच्छा सोचते हैं वो आपके अपने हैं और जो अच्छा नहीं सोचते हैं, वो आपके होकर भी आपके नहीं हैं और भाभी मैं आपका साथ ताउम्र निभाना चाहती हूॅं, मैं आप पर कोई दबाव नहीं डालूंगी, जिस दिन मैं आपके विश्वास के लायक हो जाऊंगी, वो दिन मेरे लिए सबसे खुशनसीब दिन होगा।” विनया का दोनों हाथ पकड़े संपदा अपने दिल की भावना उड़ेल रही थी।
“नॉट बैड दीदी।” विनया संपदा के दोनों गाल खींचती प्यार से कहती है। “दीदी, कभी ऐसा हुआ तो जरूर बताऊंगी। अभी तो आपके भैया और उनकी बुआ को चाय का प्याला थमा आऊॅं।” विनया कहती हुई अपने कमरे में जाने के बजाय रसोई की ओर मुड़ गई।
“सब आपके साथ का असर है भाभी। नहीं तो इतने सालों में हॅंसने की इच्छा होते हुए खुद को दबानाकितना मुश्किल है।” विनया के कमरे से निकलते ही संपदा दर्पण के सामने खड़ी होकर खुद को देखती हुई कहती है।
“चाय बना रही थी कि बीरबल की खिचड़ी।” चाय का ट्रे लिए बुआ के कमरे में प्रवेश करती विनया को देख मनीष कटाक्ष करता है।
“बात बनाने से फुर्सत मिले तब ना चाय बनाती। संपदा को सुबह सुबह ही कौन सी पट्टी पढ़ा रही थी बहू।” बड़ी बुआ मनीष के चुप होते ही मनीष को बताने के इरादे से कहती हैं।
“पट्टी नहीं पढ़ा रही थी बुआ, वो मेरे कॉलेज में नाटक खेला जा रहा है और मुझे शकुंतला का किरदार दिया गया है, वो भी बिना किसी ऑडिशन के बुआ। वही भाभी मुझे समझा रही थी कि ये हमारे घर का संस्कार नहीं है, मुझे नाटक में सहभागिता नहीं करनी चाहिए।” संपदा कमरे में आकर बुआ के गले से झूलती हुई प्लेट से एक बिस्कुट उठाकर खाती मुॅंह में डालती हुई विनया की ओर देखकर कहती है।
“संस्कार की क्या बात है। ये कौन होती है फैसला लेने वाली। तुम जरूर करोगी और हम सब देखने भी आएंगे।” बड़ी बुआ हाथ पीछे कर संपदा के बालों को सहलाती हुई कहती है।
“पर बुआ, ये क्या कह रही हैं आप। आप तो हमेशा इन सबके खिलाफ रही हैं। याद है एक स्कूल में भी एक बार नाटक हुआ था और माॅं ने इसे तैयार किया था तो आप कितनी नाराज हो गई थी। जब तक इसने उस नाटक से नाम वापस नहीं ले लिया तब तक आपने अन्न का एक दाना भी नहीं देखा था।” मनीष जिसके लिए बुआ की हर बात पत्थर की लकीर रही थी, वो पूरी तरह से भ्रमित सा हो रहा था। अभी उसकी स्थिति चौराहे पर खड़े उस इंसान की तरह थी, जो मार्ग जानते हुए भी मार्ग खोज रहा था और भटक रहा था। बुआ का पूर्व व्यवहार और तत्काल के व्यवहार में एक नया परिचय देख मनीष विचलित हो उठा था और यह परिचय उसकी अब तक बन रही धाराओं को चुनौती देने लगी थी। इस क्षण ने मनीष को अपने विचारों की समीक्षा करने और समझने का मौका दिया था, जिसे बुआ भी समझ रही थी लेकिन उनके हाथ से विनया की बात काटने के चक्कर में तीर कमान से निकल चुका था और बड़ी बुआ का विचार सुन मंझली बुआ भी आश्चर्य से बड़ी बहन को देख रही थी।
“तो इसमें क्या बड़ी बात हो गई, जो तुम लोग इतने असमंजस में आ गए। समय के साथ बदलने में क्या बुराई है। अब लड़कियाॅं आसमान छू रही हैं। मंझली हमें भी बदलना चाहिए ना” ऑंखों को नचाती हुई बड़ी बुआ कहती हैं।
“हाॅं, हाॅं दीदी, आप बिल्कुल सही कह रही हैं।” मंझली बुआ बात को समझती हुई कहती हैं।
“टिंग टोंग, लो आ गए दादा जी” मंझली बुआ घंटी की आवाज पर मुॅंह बनाकर कहती हैं।
“ये अंजना बहू भी न, मजाल है किसी की बात पर कान दे दे। एक अनजान को घर में आने देना, चाय नाश्ता कराना कौन सी अक्लमंदी है।” अब दोनों बुआ का ध्यान विनया से हटकर अंजना पर केंद्रित हो गया था।
“वाह भाभी, आपका दिमाग तो चीता से भी तेज चलता है। क्या उपाय बताया था आपने, बुआ तो झटके में ही परमिशन दे बैठी।” अंजना के रसोई से निकलते संपदा रसोई में प्रवेश करती हुई विनया से कहती है।
“मारो तो शेर, लूटो तो लाखो बहना”…. विनया संपदा को चिकोटी काटती हॅंस कर कहती है।
“इस पर हम चर्चा जरूर करेंगे दीदी, लेकिन बाद में। अभी तो आप ये जाइए।” उत्तपम और चाय का प्याला ट्रे में रख कर विनया संपदा से कहती है।
“लेकिन माॅं” संपदा ट्रे तो ले लेती है लेकिन झिझकती भी है।
“माॅं खुश हो जाएंगी दीदी। आप बेटी हैं दीदी, अगर आप मामा जी के साथ इज्जत से पेश आएंगी तो माॅं को गर्व ही होगा दीदी।” विनया संपदा को प्रोत्साहित करती हुई कहती है।
“भाभी ये मामाजी का क्या चक्कर है।” दरवाजे तक पहुॅंच कर रुक कर संपदा पूछती है।
“माॅं के भाई मामा जी ही कहलाते हैं ना दीदी, बस यही चक्कर है और आप भी यही कहिएगा और अब चाय ठंडी हो जाए या माॅं आ जाएं, उससे पहले जाइए।” विनया संपदा के करीब आ कर बाहर देखती हुई कहती है।
आरती झा आद्या
दिल्ली
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Awesome story… Speechless
After a long time story which binds and every morning waiting for your next part
Bakwaas