अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 16) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

विनया ने बीप की आवाज से मोबाइल उठा कर देखा और एक प्यार भरी इमोजी भेज कर मोबाइल रख आगे की रणनीति पर गौर करने लगी और रणनीति के बीच में कब उसके पलकों पर नींद ने अपना घर बना लिया, उसे पता भी नहीं चला और उधर अंजना की ऑंखों का नींद उड़ चुका था। वो डिनर टेबल पर घटी घटना को अभी भी पचा नहीं पा रही थी।

क्या करना चाह रही है ये लड़की। मैं कैसे इसके साथ खींची टेबल तक जा पहुॅंची और डिनर भी किया। कहाॅं तो मैं सोच रही थी कि ये भी मेरे बेटे और बेटी को अपनी तरफ मिलाना चाह रही है, छिनना चाह रही है और कहाॅं मैं ही इसके सम्मोहन में बॅंध गई। क्या मैं भी ये सब चाह रही थी। करवट पर करवट बदलती अंजना बाहर से छन कर आती स्ट्रीट लाइट की रौशनी को देखती आत्ममंथन कर रही थी। उसकी सोच जलती गीली लकड़ी के समान थी, जो ना सही से जल रही थी और ना ही सही से बुझ रही थी और ना ही उसका धुआं ज्यादा ऊपर उड़ पता है। उसी तरह इस समय उसकी सोच भी कभी विनया में एक भली लड़की देख रही थी और कभी एक मतलबी लड़की का तगमा दे दे रही थी। अंजना अपनी सोच में विभिन्न भावनाओं के साथ विलीन थी और सुबह के सूरज के दस्तक के साथ उसका मन नींद के आगोश में विलीन हो रही थी। अभी वो पूरी तरह से पलकें बंद भी नहीं कर पाई थी कि अचानक उसे महसूस हुआ जैसे जीवन बहुत ही बदल रहा है। वो नई ऊंचाइयों की तलाश में भटक रही है और विनया आलोक बनकर उसे पथ दिखा रही है। अंजना इस सपने के साथ ही झटके से उठ बैठी। क्या जादू टोना करती है ये लड़की, पूरी रात बीत गई उसे सोचते और सपने में भी, खुद पर खीझती अंजना का ध्यान खिड़की के बाहर चला गया।

और स्ट्रीट लाइट के ऊपर क्षितिज से मनमोहक दिनकर को निकलता देख सब कुछ भूल कर अंजना के आनन पर एक मीठी मुस्कुराहट का आवरण आ गया। अंजना शीघ्र ही खिड़की के पास खड़ी हो गई और उसकी दृष्टि ओस की एक दो गिरती छोटी छोटी बूंदों पर पड़ी। अंजना को वो बूँदें बिन आवाज की संगीत सी गिरती लग रही थी, जैसे कि वे आकाश से आती हुई सौंदर्य की चादर हों। इन छोटी-छोटी बूँदों ने सूर्योदय के समय को रत्नों की तरह चमकीला और रमणीय बना दिया। अंजना भावविभोर होकर आसमान में बिखरे रंगों का खेल देख रही थी, जो एक नए दिवस की शुरुआत का आभास भी दे रहा था। अंजना एक गहरी लंबी साॅंस लेती हुई खिड़की से हट कर अपने कमरे से बाहर आ गई तो उसकी दृष्टि बालकनी में खड़ी विनया पर पड़ी। 

अंजना के कदम अनायास ही विनया की ओर बढ़ चले लेकिन बढ़ते कदमों को रोकते हुए फिर से विपरीत दिशा में मुड़ गई थी अंजना और आहट की आवाज से विनया भी मुड़ी और मुड़ती हुई अंजना को देख मुस्कुरा बैठी और फिर बालकनी से बाहर देखने लगी। बालकनी के बाहर सड़क किनारे बड़े बड़े नीम, जामुन के लंबे पूर्ण विकसित पेड़ धूप के स्वागत में टकटकी लगाए आसमान की ओर तकते हुए झूम रहे थे और उनके साथ बहती भोर की पवन दिल दिमाग दोनों में स्फूर्ति का संचालन कर रही थी और उन पेड़ों के बीच से भागती इक्का दुग्गा गाड़ियाॅं जीवंतता की परिचायक भी बनी हुई थी और ऊपर नीले नभ में उड़ते बादलों के रुई के फाहों से नर्म, मुलायम, उज्ज्वल टुकड़े हृदय में उमंग भर रहे थे। विनया उन टुकड़ों को देखती किसी गीत के कुछ टुकड़े गुनगुनाती रसोई में जा खड़ी हुई।

हूं दूध तो है नहीं और दूध वाले भैया के आने का समय भी अभी नहीं हुआ है। लेकिन अभी हर हालत में माॅं के साथ चाय पीनी है। जितनी जल्दी ससुराल मिशन कामयाब होगा, उतनी जल्दी खुशियाॅं दस्तक देंगी। ऊं ऊं काली चाय बना लिया जाए या कॉफी बनाई जाए। विनया हाथ में बर्तन लिए कभी चायपत्ती, कभी कॉफी के डब्बे को देख रही थी, देख क्या रही थी, एक तरह से उनसे विचार विमर्श कर रही थी। काली चाय ही बनाई जाए…रसोई से बाहर झाॅंकती हुई खुद से कहती है।

जब तक अंजना फ्रेश होकर आई विनया बालकनी में दो कुर्सी, छोटा वाला टेबल लगा चुकी थी और टेबल के ऊपर डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ कृत्रिम फूलों का फूलदान लाकर रख चुकी थी, साथ ही दबे पाॅंव अपने कमरे में जाकर परफ्यूम की बोतल भी ले आई और गुलाब के उन कृत्रिम फूलों को सुगंधित कर चाय से सजी ट्रे ले जाकर टेबल पर रख देती है।

“माॅं, उधर नहीं इधर।” अंजना के रसोई की ओर बढ़ते कदमों को रोकती हुई विनया उसके पास जाकर फुसफुसा कर बालकनी की ओर इशारा करती हुई कहती है।

“क्या है उधर।” अंजना विनया से पूछती हुई विनया को अनदेखा कर रसोई के अंदर चली गई।

“उधर एक बहुत ही जबरदस्त और खूबसूरत समय हमारी प्रतीक्षा में है, आइए तो सही।” विनया अंजना का हाथ पकड़ बच्चों की तरह जबरदस्ती खींचती हुई बालकनी में ले आई।

बालकनी में आते ही अंजना ठिठक कर खड़ी हो गई थी। एक सुंदर खुशबू के साथ ट्रे में काली चाय एक खुशमिजाजी के साथ उसका इंतजार कर रही थी। ये सिर्फ एक काली चाय नहीं थी, सिर्फ खुशबू या फूलदान नहीं था, ये प्रयास था अंजना को विशेष अनुभव कराने का। किसी की नजरों में उसका भी कोई वजूद है, कोई उसका भी साथ चाहता है, किसी को उसके साथ की आवश्यकता है, कोई पलकें बिछाए उसका इंतजार कर रहा है। एक साथ कई विचारों को समेटती अंजना अपने अंदर विशेष होने की एक गुनगुनी गरमाहट महसूस कर रही थी।

अंजना की आँखों में भूले बिसरे सपनों की चमक थी, और वह बालकनी में खड़ी थी, अपनी नई शुरुआत का स्वागत करती हुई। चाय की सुगंध ने महकाते हुए वातावरण को और भी सुंदर बना दिया। उस ट्रे में रखी काली चाय ने उसके जीवन को एक नए पल की ओर मोड़ दिया। यह केवल एक चाय नहीं थी, बस, बल्कि एक संदेश भी था – समझने वाला साथी और समर्थन।

“आइए माॅं, बैठिए। चाय पीते हैं, फिर मामा जी के साथ दूध वाली चाय पी जाएगी।” विनया शायद अंजना की मनोभावना का विश्लेषण कर पा रही थी इसलिए उसने कुछ देर अंजना को उसके विचारों के साथ उसके ख्वाबों के साथ छोड़ दिया था और जब उसे लगा अंजना खुद में वापस आ रही है तो उसे कंधों से पकड़ कुर्सी खिसकाती बैठने का आग्रह करती है।

अंजना अंदर से अपनी स्थिति पर झुंझलाती फिर से एक बार सम्मोहित सी कुर्सी पर बैठ गई थी।

“है तो ये काली चाय माॅं, फिर भी बताइए कैसी बनी है। सास–बहू स्पेशल मॉर्निंग डेट टी।” विनया चाय का प्याला अंजना की ओर बढ़ाती हुई मुस्कुरा कर कहती है।

अंजना चाय का प्याला थामती विनया की ओर देखती उसके कहे अनुसार चाय का एक घूंट लेती है। यूं तो अंजना को ब्लैक टी कभी पसंद नहीं आई थी। लेकिन अभी ये ब्लैक टी उसे अमृत के समान लग रही थी। कितने सालों बाद वो किसी और के हाथों की बनी चाय पी रही थी। सुबह की आवश्यकता थी या सुबह की हल्की गुलाबी ठंडी का असर कि ब्लैक टी की जली जली तीखी गर्म स्वाद उसके गले को तर कर उसकी चेतना को जगा गया था और उसने विनया से पूछा–

“मामा जी कौन।” गला तर होते ही विनया से अंजना का पहला सवाल यही था।

अपने अखबार वाले अंकल, आप उन्हें दादा कहती हैं और वो आपको माॅं तो हुए ना हमारे मामाजी और सबसे बड़ी बात उस दिन उन्होंने आपकी मदद ना की होती तो मुझे आप जैसी सरल सहज सासू माॅं नहीं मिलती।” विनया हॅंस कर अपनी बात स्पष्ट करती हुई कहती है।

“इसलिए तुम भी ये सब करके मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही हो।” कड़वी चाय की तरह अंजना की आवाज में भी तल्खी आ गई थी।

“ये किसने कह दिया आपसे कि मैं सास–बहू स्पेशल मॉर्निंग डेट टी का आयोजन मूर्ख बनाने के लिए करूॅंगी। नहीं माॅं ये तो आपके साथ कुछ देर समय बिताने के लिए किया गया आयोजन है और ये सोची हुई भी नहीं थी। ये तो मात्र एक संयोग है कि मैं आज आपसे पहले जगी और आपको देखकर तत्काल ही ये मेरे हृदय में आया। खुशियाॅं तो हमारी मुट्ठी में होती है माॅं, उस मुट्ठी को एक बार खोल कर तो दिखाई, खिलखिलाती खुशियाॅं हमारे सामने आ खड़ी होती है।” इतने दिनों में विनया पहली बार अंजना के साथ इतनी बातें कर रही थी इसलिए वो अपना दिल खोल कर रख देना चाहती है।

“उस दिन की घटना किसने बताया तुम्हें।” विनया की किसी भी बात का उत्तर देते अंजना से नहीं बना तो वो ऑंखें बड़ी करती हुई दूसरे सवाल पर आ गई।

“भूल गई आप, कल दीदी मेरे साथ थी तो उन्होंने ही बताया और अब उन्हें मैं तो मामाजी ही कहूॅंगी। विनया जानती थी कि अगर किसी के हृदय में जगह बनानी हो तो उससे ज्यादा उसकी इज्जत करनी आवश्यक है, जिससे उस इंसान का प्यार का, इज्जत का, ममता का रिश्ता हो और इस समय अंजना अगर सबसे ज्यादा किसी के करीब थी तो वो थे अखबार वाले दादा। इसलिए विनया ने भी उन्हें सबसे करीबी का रिश्ता मान लिया था।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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