“टिंग, टोंग”, बातें करते करते विनया की ऑंख लगी ही थी कि मुख्य द्वार की घंटी किसी के आगमन की सूचना देने हेतु मुखर हो उठी।
विनया हड़बड़ा कर उठ बैठी, “ओह हो, चाय का समय हो गया और मेरी ऑंख लग गई। दरवाजे पर कौन है।” घंटी की आवाज पर संपदा को उठकर दौड़ते देख विनया अंजना से पूछती है।
“मनीष होगा, स्टेशन से पहुंचा कर आया होगा। चलो, अच्छा है सब साथ ही चाय पिएंगे। तुम बैठो, संपदा चाय बना लेगी।” अंजना आराम की मुद्रा में ही कहती है, दोनों ही संपदा के सरप्राइज़ को बिसर गई थी।
अभी दोनों कयास लगा ही लगा रही थी कि सरप्राइज़ बोलती हुई संपदा के साथ सुलोचना दरवाजे पर हाथ फैलाए खड़ी थी।
“सुलोचना बुआ”, विनया उन्हें देखते ही लिहाफ फेंक कर गले से लग गई।
“मनीष स्टेशन ही गया है, आपने खबर क्यों नहीं की।” अंजना भी खुश होकर सुलोचना के पास आकर कहती है।
“क्योंकि मैं उड़ कर आई हूं।” सुलोचना अंजना के गले से लगती हुई कहती है।
सुलोचना ने खुशी भरे चेहरे के साथ अंजना के बांहों को पकड़ते हुए कहा, “नॉट बैड भाभी, आप तो सचमुच चमक रही हैं। मेरी पहली वाली भाभी लग रही हैं।”
वह हंसते हुए और अंजना से गले मिलते हुए जब अपने भैया के होश उड़ाने की बात कर रही थी, तो उसका चेहरा और स्वर उसकी मुस्कान और खुशी से भरी थी। उनका यह आनन्द ननद–भाभी के के प्यार का एक खास पल बन रहा था।
“क्या आप भी सुलोचना, वो समय तो बिना आए ही बीत गया।” अंजना कुछ शर्माती कुछ दुःखी होती घुले मिले स्वर में कहती है, जो उसके व्यक्तिगत अनुभवों को साझा कर रही थी। अंजना व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त करने में एक संवेदनशीलता दृष्टिकोण जोड़ रही थी, उसकी बात में बीते जीवन के प्रति उदासी भरी गहराई और भावना थी।
सुलोचना ने अंजना की बातों को सुनते हुए उसकी दुःख भरी आँखों का सामना करते हुए विशेष संवेदना भरे स्वर में कहा, “हाँ, सुलोचना, यह सच है कि कभी-कभी समय इतनी जल्दी बीत जाता है कि हमे यह पता तक नहीं चलता और कभी कभी एक एक सेकंड पता चलता रहता है। लेकिन हम सभी को इसे सजीवता से भरने का तरीका ढूंढना चाहिए।”
उनके शब्दों में एक सहानुभूति और समर्थन की भावना थी, जो अंजना को उसके अनुभव को साझा करने के लिए प्रेरित कर रही थी।
“मैं भी क्या ले बैठी, अभी आप आईं और मैं। बैठिए”…
“सुलोचना आई है क्या?” अभी अंजना सुलोचना की बातें प्रारंभ हुई ही थी कि बाहर बैठक से मुकुंद की आवाज आती है।
“जी भैया”, कहती सुलोचना कमरे से बाहर बैठक में आकर कहती है।
“घर की रौनक बढ़ते ही महसूस हुआ कि तू ही आई होगी।” हॅंसते हुए मुकुंद कहते हैं।
मुकुंद के उद्गार से सुलोचना ने खुद को रोकने का प्रयास नहीं किया और भाई के गले लगकर रो पड़ी। उसकी आँसुओं में आनंद का एक अद्भुत मिश्रण था, क्योंकि आज भाई ने सहजता से उसे पुकारा था, कुछ सालों बाद की यह मिलनसार और बहुत खास पल था। उसकी आँसुओं में छुपी खुशी और एक दूसरे के प्रति भावना ने उस लम्हे को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। इस भावनात्मक पल में सुलोचना ने अपने भाई की बांहों में सुरक्षित महसूस किया जैसे कि उसके जीवन में बहुत लम्हे बीत गए हैं। उसकी खुशी और आनंद ने उसे महसूस कराया कि इस मीठे समय की प्रतीक्षा करने वाला हर पल उसकी आंखों का सपना था।
इस गले लगने के समय में उनकी आँखों में चमक और उनके चेहरे पर मुस्कान से उजागर होता है कि भाई-बहन का यह प्यार अद्भुत और अटूट होता है।
संपदा विनया के कंधे पर हाथ रखकर झुक कर खड़ी होती हुई कहती है, “लो भाभी, पहले आप और सौरभ भैया और अब ये दोनों दिल हल्का कर रहे हैं। आपके जन्मदिन को हल्का दिवस घोषित कर दें क्या?”
“हमारे घर के लिए इस दिन का प्यार दिवस नाम रख दो,” सुलोचना मुकुंद से अलग होती, अश्रु पोछती हँस कर कहती है। इस सुखद पल के दौरान, प्यार और हँसी का मिलन सभी को साथ लेकर लौटता है।
सुलोचना की प्रसन्नता से भरी हँसी उसके चेहरे पर छा गई और विनया के जन्मदिन को “प्यार दिवस” घोषित करने का विचार सभी को प्रिय था। यह नया नाम न सिर्फ एक उत्कृष्ट मौका को खास बना रहा था, बल्कि इसने सभी को मिलकर हँसी और प्रेम के रंगों में रंग दिया।
“यादगार लम्हों के साथ सुखद अहसास लिए दिन था ये। इस सुंदर दिन की गहराईयों में छोटी-छोटी मुस्कानों की खोज करते हुए सभी ने एक नये सागर की ओर बढ़ने का निर्णय किया। यह दिन एक दूसरे के साथ सिर्फ साझेदार बनाने का वादा नहीं था, बल्कि यह एक अनवरत और प्यार भरे सफर की शुरुआत थी जो हम सभी को नए और सुंदर सपनों की ऊंचाइयों तक ले जाएगा। इस प्रेम और समृद्धि भरे दिन के साथ सभी ने एक-दूसरे के साथ बिताए गए सुंदर पलों को सजीव किया है। यह नया अध्याय उनके जीवन में नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ने का वादा करता है, जब सभी मिलकर प्यार और समर्थन के साथ एक दूसरे के साथीत्व का समर्थन किया। इस मिठास भरे दिन ने उन्हें नए आनंद भरे जीवन की शुरुआत के लिए तैयार किया है।” रात के खाने के बाद विनया रसोई की सफाई कर वही खड़ी–खड़ी सोचने लगी थी।
“अरे भाभी, हो तो गया सब काम। जो बचा है वो मैं कर लूंगी। आप चलिए, बुआ सामान खोले कब से आपका बाट जोह रही हैं।” संपदा विनया की सोच पर विराम लगाती हुई कहती है।
“बुआ ये मेरे लिए है, आपको कैसे पता चला कि, बुआ द्वारा लाए गए हरे रंग की पैंट और गहरा आसमानी रंग की शर्ट देख कर उछल पड़ी।
संपदा की खुशी भरी आवाज़ ने सबको हैरान कर दिया। बुआ द्वारा उसकी पसंद को समझ कर और उसके लिए विशेष रूप से चुने गए कपड़ों को देखकर उसकी हर्षित मुस्कान ने सबका दिल जीत लिया।
“पर बुआ, आपने कैसे जाना कि”,
“संपदा ने, संपदा ने बताया, वो तुम्हारे घर गई थी तो एल्बम में तुमने अधिकांशत: ऐसे ही कपड़े डाले थे।” सुलोचना प्यार से कंधे पर हाथ डाल कर बैठी संपदा के हाथ पर प्यार से हाथ रखती संपदा को देखती विनया को संबोधित करती है।
“कल हम लड़कियां शहर भ्रमण के लिए चलेंगी और विनया तुम यही डालोगी।” सुलोचना बुआ कहती हैं।
“आप लोग हो आइएगा, मैं कहां।” अंजना थोड़ी झिझक और थोड़ी मुस्कुराहट के साथ कहती है।
“अब ये नहीं चलेगा मोहतरमा। आपके चेहरे की रौनक बता रही है कि अब आपकी अंतरात्मा जग चुकी है।” सुलोचना अंजना की ओर देखकर सबके लिए लाए गए उपहार को तह करके रखती कहती है। सुलोचना की बातों ने सारे माहौल को और भी उत्साही बना दिया। अंजना के अंदर छुपी खुशी ने उसके चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी थी। यह नया जुड़ाव ही नहीं बल्कि एक उत्कृष्ट दिन को साझा करने का मौका भी था। इस एक छोटी सी बात से गहरे विचारों तक सभी ने मिलकर एक-दूसरे के साथ हंसी, खुशी और बंधुत्व का आनंद लिया। इस खास मौके ने सभी को एक-दूसरे के साथ मिलकर जीने की खूबसूरती का अहसास कराया।
रात गहराती जा रही थी। चारों की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी, जिसे रोकने के लिए ही शायद बाहर से गुजरते ट्रक का पहिया जोर की आवाज के साथ फटा था।
“किसी ट्रक का पहिया गया।” संपदा कहती है।
“ट्रक का पहिया ही नहीं रात भी बीती जा रही है। ऐसा ना हो कि कल भ्रमण के बदले हम घर में बिस्तर तोड़ रहे हों। चलो, चलो सब, सोया जाए अब।” सुलोचना उठती हुई कहती है।
“यहां नहीं, यहां मैं और मम्मी”, अंजना के पास सिकुड़ कर बैठती हुई संपदा विनया की ओर देखकर कहती है।
“मैं तो बुआ के साथ सोऊंगी”….
“ना ना, इतनी थकी हूं मैं। एकदम निश्चिंत होकर अकेले सोऊंगी। मायके के मजे लेने दो मुझे।” विनया की बात पूरी होने से पहले ही सुलोचना हाथ खड़े करते हुए कह देती है।
सबके इंकार के बाद विनया धड़कते हृदय और धीमे कदमों के साथ अपने कमरे की ओर बढ़ रही थी। मनीष की नींद खराब ना हो, सोचकर विनया धीरे से बिना आवाज किए दरवाजा खोलती है और कमरे में ट्यूबलाइट के प्रकाश में मनीष को डायरी हाथ में लिए बैठे देख अचंभित उसके पग दरवाजे पर ही थम गए।
मनीष विनया को देख मुस्कराता डायरी हवा में लहराता हुआ विनया के करीब आता हुआ कहता है, “अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने का यह एक अच्छा तरीका है। क्रोध को शांति में बदलना मुश्किल हो सकता है, परंतु तुमने यह साबित किया है कि अपनी संवेदनशीलता का समर्थन करना भी आवश्यक है।” कहता हुआ मनीष दरवाजे पर थमी हुई विनया का हाथ थाम कर सोफे पर अपने साथ बिठाता है।
मनीष के वचनों से अचंभित होकर, विनया की आंखों में चमक आ गई। उसने मुस्कराते हुए कहा, “यह डायरी मेरे अंतर विश्व का दरवाजा है, जिसमें मैं अपने भावनाओं, सपनों, और आत्मविकास के रास्ते दर्शाती हूँ। इसमें हर पन्ना मेरे संवेदनात्मक सफर का हिस्सा है और आपने उसे चोरी से पढ़ लिया।” अपने आत्मविश्लेषण के क्षणों को मनीष के साथ साझा करते हुए डायरी के पन्नों की ओर इंगित करते हुए विनया धीरे से कहती है।
“तुम्हें तुम्हें से चुराने के लिए ये मेरे लिए आवश्यक था। थैंक गॉड तुम्हारी इस प्यारी डायरी ने मुझे बचा लिया। कितने भाव विभोर करने वाली पंक्तियां रचती हो तुम और मैं शुष्क सा प्राणी।” ऑंखें झपकाता हुआ मनीष डायरी टेबल पर रखता हुआ विनया के दोनों हाथ थामते हुए कहता है।
तुम्हारी इस डायरी ने मेरी जिंदगी को रंग से भर दिया है। तुम्हारे शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया है। तुम्हारी भावनाओं का संगीत मेरे दिल को छू गया है और मैं तुम्हारी कलम से रची गई पंक्तियों के माध्यम से अपने आप को पुनः पा सका हूँ। इस प्यार भरे संवेदनात्मक समय के लिए मैं आभारी हूँ, विनया।”
तुम मेरे जीवन की एक श्रेष्ठ श्रृंगारिक कला हो विनया, जो अब हमेशा मेरी मुस्कान में बनी रहेगी।” मनीष की ऑंखों में संसार भर का प्रेम सिमट आया था।
मनीष विनया के आनन को रक्तिम होते देख क्षण पर के लिए रुकता है और उसका चिबुक पकड़ कर उठाता चेहरे पर शरारत भर कर कहता है।
मनीष विनया के आंचल से खेलते हुए उसकी आंखों में बहते रक्तिम आभा को देखता है और वह इस दृश्य के क्षण में भावनाओं में समाहित हो जाता है।
चेहरे पर शरारत भरे स्मित के साथ वह विनया के चिबुक को उठाता है और कहता है, “मैं तुम्हारी कविता की मुस्कान हूं, जिसने तुम्हारे शब्दों को एक नए अर्थ में जीने की क्षमता प्रदान की है।”
और अचानक हुई मनीष के वचनों में बदलाव ने विनया को अचंभित कर गया। मनीष की शरारती स्मित विनया के चेहरे पर छा गई थी, उनके बीच होने वाली इस शरारत भरी बातचीत ने इस प्रेमी युगल के बीच मिठास और हंसी की बौछार बढ़ाई। विनया की आंखों में एक सजीवता दिखाई दी, जिसमें बातचीत का आनंद और उनके बीच के रिश्ते की गहराई बढ़ती दिख रही थी। उनकी बातचीत एक संवेदनशील गीत की भावना से भरी हुई थी, जो उनके बीच के रिश्ते को सुंदर और स्थायी बना रही थी।
विनया की मुस्कान से मनीष के चेहरे की चमक और भी बढ़ गई थी, जैसे कि सूर्योदय के साथ साथ खिलते फूलों की खुशबू से गहरी बातचीत हो रही हो। विनया की हंसी ने मनीष के चेहरे पर रंगीन मुस्कान फैला दी, जैसे कि सूर्यास्त के समय स्वर्ग से बरसती हुई सौंदर्य की किरणें। मनीष ने विनया के होने का हर लम्हा को सुंदर बना दिया, और उनका प्रेम एक आध्यात्मिक सांगीत की तरह था जो दोनों के दिल को एक साथ छू रहा था।
इस आत्मीय भावनाओं भरे क्षण के बाद, विनया ने आत्मसमर्पण भरे नजरों से मनीष की ओर देखा और उसके कंधे पर सिर रखती हुई कहती है, “तुम्हारी मुस्कान मेरे दिल को सुखद बना देती है और तुम्हारा साथ मेरी जिंदगी को सुंदर बना रहा है। हमारी बातचीत और मुस्कानें हमेशा एक-दूसरे के साथ बनी रहें, यही मेरी तमन्ना है।”
विनया ने आत्मसमर्पण से कहा, “इस डायरी के पन्ने में मैंने अपनी भावनाओं को समेट लिया है, मनीष। इसमें मेरी छवि, मेरा सच्चा स्वरूप है।”
मनीष ने अचेतन रूप से कहा, “मुझे खेद है, विनया। मैंने कभी तुम्हारी भावनाओं को समझा ही नहीं।”
विनया ने हंसते हुए उत्तर दिया, “कोई बात नहीं, मनीष। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मैंने इसका उपयोग अपनी आत्मा के साथ संवाद स्थापित करने के लिए किया है।”
विनया ने आगे कहा, “यह डायरी मेरी अंतरात्मा का एक सफर है, जिसमें मैंने अपनी आत्मा को समझने का प्रयास किया है।”
मनीष ने इस नए दृष्टिकोण को समझते हुए कहा, “तुम्हारी हर कविता वास्तविकता की खोज में बहुत सुंदर है, विनया।”
विनया ने आत्मविश्वासपूर्ण भाव से कहा, “धन्यवाद, मनीष। इससे मैंने अपने आत्मा को और अधिक समझा है, और यह मेरे जीवन को नई दिशा देने देने में मदद करेगा।”
इस प्यार भरे वाक्य में, उनकी संवेदनशीलता और सहजता एक दूसरे के साथ साझा किए गए सुंदर पलों को व्यक्त कर रही थी।
मनीष की आँखों में विनया की मुस्कान की चमक थी, जो उनके बीच की प्यार की कहानी को साकार कर रही थी। उनके हृदय में बसे प्रेम के संगीत ने उनके रिश्ते को और भी मधुर बना दिया था। इस सांवेदनिक पल में, विनया ने मनीष को एक सांगीतिक समर्पण के साथ देखा।
“तुम्हारा साथ मेरी जिंदगी को सुंदरता से भर देता है।” मनीष ने मुस्कराते हुए यह कहते हुए विनया के माथे पर चुम्बन दिया। यह पल न शिकायतें ना शब्दों के सिरे से भरा था, बस एक दूसरे के साथ होने का आनंद और समर्पण को महसूस करने का समय था।
विनया के हृदय से आती हर धड़कन को मनीष ने अपनी मधुरता से सुलझा दिया था और मनीष की मुस्कान ने विनया की ज़िंदगी को रंगीन बना दिया था।
इस प्यार और समर्पण के रंगीन पलों के साथ वे अपने आदर्श युगल की श्रृंगारिक यात्रा का आगाज कर रहे थे, जो हमेशा उनके दिलों में शहनाई के सुर के साथ बजता रहेगा।
“चंद्र कला सी चमकती मेरी भाभी, आज कुछ ज्यादा ही सुन्दर लग रही हैं।” संपदा रसोई में अंजना का साथ देती विनया के पास आकर उसके चमकते चेहरे को देखती हुई कहती है।
“क्या है, सब रसोई में घुसी हुई हो। फटाफट नाश्ता लगाओ टेबल पर, सब साथ ही नाश्ता करेंगे, फिर हमें अपनी तैयारी भी करनी है।” पीछे से आकर सुलोचना याद दिलाती है।
“किस चीज की बुआ।” रसाई के पास से गुजरता हुआ मनीष सुलोचना की बात सुनकर ठिठक कर पूछता है।
सुलोचना मनीष की ओर घूमती हुई कहती है, “हम चारों शहर भ्रमण के लिए जा रही हैं। शाम हो जाएगी। हमारा लंच बाहर ही होगा। तुम अपना और भैया का देख लेना।”
“क्या बात है भैया, आज किचन के चक्कर लग रहे हैं। तीन चार बार इधर से उधर आ जा चुके हैं।” संपदा मनीष के करीब जाकर ऑंखें मटकाती दरवाजे का सहारा ले कर खड़ी होती हुई कहती है।
“कुछ ज्यादा ही जासूसी करने लगी है।” उसके बाल खींचते हुए मनीष कहता है। “हाॅं, बुआ आप लोग जाएं, मैं पापा के लिए ऑफिस से ही उनकी पसंद का लंच भिजवा दूंगा।”
“सच्ची बात बोलने पर लोग ऐसे ही काटने दौड़ते हैं।” संपदा मनीष से अपने बाल छुड़ाती हुई कहती है।
“आह हा, ये होते हैं मिक्स वेज परांठा। विनया तुम भी मम्मी से सीख लेना इस स्वाद का परांठा बनाना।” मनीष परांठे का एक निवाला मुॅंह में डाल चबाते हुए कहता है।
“हाॅं, तुम इसके पापा की तरह इसका हर लाड़ उठाना सीख लो। इसकी हर इच्छा उसी तरह पूरी करना सीख लो। तुम्हारा माॅं की तरह खाना बनाना विनया भी सीख जाएगी। रिश्तों को तुलनात्मक दृष्टि से देखना रिश्तों को हमेशा खराब ही करता है बेटा। इससे हमेशा बचना और सभी को अपने रिश्ते की अहमियत खुद ही समझने देना, दूरियां घटाता है।” ” अंजना परांठा का एक कोना तोड़ती हुई बहुत इत्मीनान से अपने पति की ओर देखकर बेटे से कहती है। मनीष और मुकुंद दोनों अंजना की ओर चौंक कर देखने लगे। जिसके उफ्फ शब्द को इस घर की दीवारों ने भी कभी नहीं सुना था, वो सधे शब्दों में खरी खरी बोल रही थी। इस नए संवाद के माध्यम से अंजना ने उन्हें नए विचार और अनुभवों के साथ मिलाया।
बुआ, मम्मी के अंतर्मन की लक्ष्मी कुछ ज्यादा ही नहीं जाग गई है। सोफे पर बैठ कर सुलोचना के साथ अपने प्लेट को गोद में लिए संपदा सुलोचना के कान में फुसफुसाती है।
“ज्यादा नहीं, सही मात्रा में जागी है। हिप हिप हुर्रे, विनया तुमने कर दिखाया।” सुलोचना ने गदगद स्वर में जोर से कहा, उसके शब्दों में एक मात्रिक आशीर्वाद और उत्साह भरा होता है।
विनया की मेहनत और कौशल ने न केवल उसकी सास को उसका स्थान दिला कर गर्वित किया, बल्कि समृद्धि और सफलता की ओर एक नया कदम बढ़ाया। सुलोचना की यह उत्साहपूर्ण संबद्ध ने उसे और भी प्रेरित किया और उसकी कड़ी मेहनत को और भी मनोबल मिला। इस समय की खुशी और उत्साह ने परिवार को एक सजीव और खुशहालता से भरा हुआ महसूस कराया। इस पल में सुलोचना बुआ ने न केवल विनया की मेहनत को मान्यता प्रदान की बल्कि पूरे परिवार को भी एक साथी के रूप में जोड़ने का भावनात्मक तोहफा दिया।
समाप्त
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग -44)
अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 43) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली
एक खूबसूरत संवेदनशील रचना के लिए बधाई
bahut hi adhbhut rachana hai aise hi stories dalte rahiye padh kar acchi lagi
कहानी अच्छी है इसमें कोई संदेह नहीं है नहीं तो ४५ भाग का इन्तजार करना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन मुझे यह थोड़ी लम्बी लगी। बहुत ज्यादा भावना व्यक्त करना कहानी को बहुत जगह बोझिल बना रहा था।
आलोचना को अन्यथा ना ले।
Kahani bhut bhut hi acchi thi 🙏🥰💖….
बहुत ही सुंदर रचना बड़े सालों बाद ऐसी कहानी पढ़ी
Kahani bahut hi badiya lgi suppar
बहुत ही सुंदर रचना
जिसे पढ़ते हुए मैं स्वयं की अश्रु धारा को नहीं रोक सकी
पर असलियत में ऐसा होना बहुत ही मुश्किल है
गलतफहमी को दूर किया जा सकता है व सुधार किया जा सकता है पर जो सुधरना ही नहीं चाहते उनका क्या किया जाए
बहुत ही सुन्दर,मन के उद्वेगों को सहजता से दशार्ती रचना।मन जैसे कहीं बंध सा गया था।