“माँ! मुझे आपसे कुछ कहना है।” अंकिता ने रसोई घर में काम कर रही सुरभि से कहा।
“हाँ,बोलो बेटा।”
“माँ! वो मैं……..” अंकिता चुप हो गई।
“बोलो, बेटा! इतना झिझक क्यों रही हो?” सुरभि ने अंकिता के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा।
“माँ, मुझसे एक गलती हो गई।”अंकिता ने एक अल्पविराम लिया।
सुरभि एकटक अंकिता को देखती रही।
“माँ, पिछले शनिवार को अपनी सहेलियों के जोर देने पर मैं उनके साथ पिक्चर देखने गई थी। मैंने उनसे बहुत कहा कि मैं पहले आप से परमिशन ले लूँ पर उन्होंने कहा कि तेरी माँ जाने नहीं देंगी इसलिए तू उन्हें बिना बताए चल। उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा। मैं उनके बार बार कहने पर आपको बिना बताए चली गई पर मम्मी, मैं सच कह रही हूँ , मैं आपसे छुपाना नहीं चाहती थी पर मुझसे गलती हो गई।” अंकिता फूट-फूट कर रोने लगी।
“मेरे बच्चे,मुझे सब पता है। तुम्हारी विभा चाची ने तुम्हें थिएटर में जाते देखा था और मुझे बताया था। तब मैंने उनसे यही कहा कि अंकिता मुझसे पूछ कर गई है।” सुरभि ने अंकिता के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।
“पर फिर आपने मुझसे कुछ कहा क्यों नहीं?” अंकिता ने मां का हाथ थाम कर कहा।
“क्योंकि मैं चाहती थी कि तुम मुझे खुद से सच बताओ। मुझे अपनी परवरिश पर पूरा यकीन है कि मेरे बच्चे कभी भी मुझसे कोई छिपाव नहीं रखेंगे। मैं जानती थी कि तुम से गलती जरूर हुई है पर तुम खुद ही अपनी गलती स्वीकार करोगी।”सुरभि ने अंकिता का हाथ सहलाते हुए कहा।
“माँ,मेरी प्यारी माँ! आपके इसी विश्वास के कारण मैं अपने अंतर्द्वंद से बाहर आ पाई हूँ ।आप की परवरिश ही मुझे मेरी गलतियों से सबक देती आई है।” अंकिता मुस्कुरा दी।
“हाँ, एक बात और! आज के बाद तुम किसी भी काम के लिए मुझसे पूछने में जरा भी झिझकोगी नहीं। मैं तुम्हारी माँ हूँ, तुम्हें सही गलत समझने में मदद ही करूँगी। तुम पर बेवजह बंदिश लगाने की मुझे कभी जरूरत नहीं पड़ेगी, इसका मुझे इसका पूरा विश्वास है।” सुरभि ने अंकिता को गले से लगा लिया
स्वरचित
ऋतु अग्रवाल
मेरठ