गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं । राहुल बहुत दिनों के बाद अपने मम्मी-पापा के साथ गाँव आया था । गाँव आकर वह बहुत खुश था । दादा-दादी को तो राहुल के रूप में खज़ाना मिल गया था । दिन भर मस्ती में बीतता । सुबह उठते ही दादाजी के साथ खेतों में चला जाता और हरे-भरे खेत देखता फिर बगीचे में घूमने जाता । घूमते हुए वह दादाजी से ढेर सारे सवाल पूछता । खेतों में चावल, गेहूं और दालें कैसे उगाई जाती हैं, बैगन, लौकी, भिंडी जैसे सब्जियों के पौधे कैसे होते हैं, इसकी सिंचाई कैसे होती है, आम और लीची का मौसम कब आता है, वगैरह-वगैरह । दादाजी को भी पोते के सवालों का जवाब देने में बहुत आनन्द आता । रात को छत पर खुली आकाश के नीचे लेटे हुए दादी से रोज ढेर सारी कहानियाँ सुनता ।
एक दिन आकाश में जगमग करते तारों को देखकर उसने दादी से पूछा “दादी ! ये कुछ तारे इकट्ठे क्यों हैं ?”
“ये सप्तर्षि तारे हैं । और वह देखो सबसे चमकीला शुक्र तारा ।”
“अरे वाह ! यही सब तो मेरी किताबों में दिया हुआ है ।”
“और क्या है तुम्हारी किताबों में ?”
“यही चांद, तारे, सूरज और आठ ग्रह । पता है दादी ! हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है ।”
“अच्छा ! अच्छा हुआ तुमने बता दिया । लेकिन एक बात पूछूँ ?”
“पूछो दादी !”
“इस बार तुम्हें स्कूल से हॉलीडे होमवर्क नहीं मिला क्या ? हर बार की तरह इस बार तुम्हें होमवर्क की चिंता नहीं हो रही है ?”
“मिला है न दादी ! लेकिन बिल्कुल अलग ।”
तभी वहाँ दादाजी आ गए और वे भी जानने को उत्सुक हो गए ।
“अलग ! मतलब कैसा होमवर्क ?”
“दादाजी ! कुछ लिखना-पढ़ना नहीं है, न ही याद करना है न कोई क्राफ्ट बनाना है ।”
“फिर कैसा होमवर्क है ?”
“दादाजी ! हमारी टीचर ने कहा है कि छुट्टियों में कहीं घूमने जाओ और उस जगह के बारे में जानकारी हासिल करो । तो मैं रोज तो घूम ही रहा हूँ खेतों में, बगीचों में और जानकारी भी मिल रही है ।”
“अच्छा ! इसीलिए तुम हमेशा डायरी में कुछ नोट करते रहते हो । यह तो अनूठा होमवर्क है । तुम अपनी टीचर को इस अनूठे होमवर्क के लिए मेरी तरफ से धन्यवाद कहना ।”
“ठीक है दादाजी !”
“तो फिर कल चलें घूमने नदी किनारे ! जहाँ मेला लगा है ।”
“हाँ दादाजी ! तब तो वहाँ झूला भी होगा ।” उत्सुक होकर राहुल उछलने लगा ।
-पूनम वर्मा
राँची झारखण्ड ।