यह उन दिनों की बात है जब पहाड़ों में बहुत सादगी से विवाह होते थे। न बाहरी तड़क भड़क व दिखावा न दहेज का आडंबर।
कोई दूर या पास के रिश्तेदार ही विवाह हेतु पात्र लड़के लड़कियाँ बताते थे बिना कोई सुविधा शुल्क के। धोखे के चांस ना के बराबर थे।
देवेंद्र नाम के लड़के का विवाह मांगलिक होने के कारण कहीं तय नही हो पा रहा था। उस समय कुंडली मिलान सबसे ज्यादा जरूरी था।
बड़ी मुश्किल से मांगलिक लड़की मिली। विवाह की तैयारियां जोर शोर से होने लगी। लड़का सिचाई विभाग में क्लर्क था। लड़की देवा ज्यादा पढ़ी लिखी तो नही थी
पर गुणों की चर्चा दूर दूर तक थी। शादियां बहुत दूर ना होकर आसपास के गांवों में ही हो जाती थी। देवेंद्र के पिता नहीं थे। बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी।
वह अपने घर से काफी दूर नौकरी करता था। माँ साथ में रहती थी। शादी चूंकि उनके गॉव के पास के गॉव से हो रही थी। इसलिए अपने घर से ही विवाह की रस्में करने का निर्णय लिया गया।
लेकिन उनकी खुशियों को ग्रहण लगना था। विवाह से एक दिन पहले सुबह सबसे पहली रस्म गणेश पूजा की तैयारी चल रही थी उसके बाद अन्य वैवाहिक कार्यक्रम होने थे
तभी कन्या पक्ष की तरफ से कन्या का भाई आया और आते ही दोटूक इस शादी से इनकार कर दिया। सभी रिश्तेदार, अवाक् रह गए। कारण पूछा तो कहने लगा–
“हमें वर के बारे में कुछ आपत्ति जनक बातें पता चली हैं। लड़का नशा करता है और पक्की सरकारी नौकरी नही है”!
वर पक्ष के रिश्तेदारों ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए उनसे शादी न तोड़ने की अपील की पर वह टस से मस नही हुआ। देवेंद्र, की माँ दहाड़ें मारकर रोने लगी। रिश्तेदारों में कानफूसी होने लगी।
सारी तैयारियां हो गई थी। दूसरे दिन बारात जाने वाली थी। जहाँ कुछ देर पहले खुशियाँ और हँसी ठहाके थे वहाँ सन्नाटा पसर गया। पूरे गॉव में यह बात आग की तरह फैल गई। अब क्या हो इस बात पर मंथन होने लगा।
दो लोगों को उसी समय लड़की के घर भेजा गया। पहाड़ी रास्ता था आने जाने में चार घंटे लग गए पर परिणाम शून्य। लड़की वाले नही माने।देवा मूक सी देखती रह गई।
बड़ी मुश्किल से उसे मांगलिक वर मिला था। उसे इस शादी से कोई आपत्ति नहीं थी।दोनों लोग मायूसी के साथ लौट आये।थोड़ी देर में विवाह वाले घर में उसी गॉव के वयोवृद्ध लीलाम्बर ताऊजी पधारे।
सारा गाँव उनका सम्मान करता था।वह गॉव के सरपंच भी रह चुके थे। सारी बात सुनकर उन्होंने दो विश्वसनीय व्यक्तियों को बुलाकर उनके कान में कुछ कहा। वह तुरंत आशापुर गाँव जाने की तैयारी करने लगे।
लीलाम्बर ताऊ की बात को कोई नहीं टाल सकता था इसलिए लोग इंतज़ार करने लगे कि अब आगे क्या होने वाला है।किसी की कुछ समझ में नही आया।
लगभग शाम के 5 बजे दोनों ब्यक्ति वापस लौट आये और बारात की तैयारियों में लग गये। । दरअसल दोनों ब्यक्ति पास के गांव आशापुर में गए थे
लीलाम्बर ताऊजी का संदेश लेकर जहाँ उनकी एक रिश्तेदार की गरीब और पितृ विहीन कन्या सरोज थी जिसका विवाह अनपढ़ होने व गरीबी के कारण कहीं नही हो रहा था।
कन्या और उसकी माँ को उसी लग्न में शादी के लिए राज़ी किया । बिना दहेज के मात्र एक जोड़े में शादी होने का आश्वासन दिया। कन्या की माँ को बिना किसी खर्च के सरकारी नौकरी वाला दामाद मिल रहा था।
उस समय लड़की की राय कोई महत्व नही रखती थी। मांगलिक लड़के से बिना मंगली लड़की की शादी से भविष्य की अनहोनी से कुछ लोगों ने आगाह किया परंतु कुछ समझदार लोगों ने उसका भी तोड़ निकाल दिया।
पहले प्रतिमा विवाह होगा फिर असल विवाह होगा।दोनों की जन्म कुंडली मन्दिर में रख दी जायेगी।आशापुर गाव में भी ढिंडोरा पिट गया कि कल सरोज की शादी है। उस समय का सहकार व सहयोग देखिये।
गांव की बेटी की शादी की तैयारियों में पूरा गांव जुट गया। घर में रात में ही चूने की सफ़ेदी करवाई गई। दूसरे दिन गाँव की बहु बेटियों ने सुबह ही आंगन लीपकर रंगोली बनाकर फूलों से घर को सजाया।
सभी के घरों से यथायोग्य खाने पीने का सामान जुट गया। ढोल वाला बिना पैसा लिए राजी हो गया। दुल्हन के लिए नजदीकी बाजार से शादी के कपड़े आ गए। पहले शादियां सादगीपूर्ण रूप से होती थी।
उसी दिन शाम तक बारात भी आ गई। धूमधाम से देवेंद्र और सरोज की शादी हो गई लेकिन अभी भी वर पक्ष में आशंका बनी हुई थी। तब न तो फोन थे
न गाड़ियों की सुविधा थी पहाड़ी पैदल रास्तों पर आने जाने में घंटो समय बर्बाद हो जाता था। सबकी सांस यह समाचार सुनने के लिए अटकी थी कि शादी अच्छी तरह संपन्न हो गई।
विवाह के अगले दिन दोपहर में बारह बजे बारात नाचते गाते घर पहुंची दूल्हे की माँ व बहन की आँखों में खुशी के आंसू थे। हँसी खुशी सारे कार्य क्रम संपन्न हुए।
कुछ दिनों बाद देवेंद्र के घर वालों को पता चला कि एक जले भुने परिचित ने ही इर्ष्या और द्वेष के चलते वर के बारे में लड़की वालों को भड़काया था। उसकी बेटी के रिश्ते को देवेंद्र किन्हीं कारणों से ठुकरा चुका था।
देवा के घरवालों को भी सच्चाई का पता चल चुका था पर अब पछताने से क्या होता।आवागमन और फोन की सुविधा न होने से तत्काल सच्चाई का पता लगाना असम्भव था।
इसका असर देवा के विवाह पर पड़ा उसकी शादी विलंब से एक विधुर के साथ हुई।आज देवेंद्र और सरोज खुशहाल जीवन जी रहे हैं। सरोज ने अपने सभी दायित्व अच्छी तरह निभाए।
देवेंद्र मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद से रिटायर हुए हैं। दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है और अच्छी नौकरियों में स्थापित हैं।
यह कहानी भी बहुत कुछ वास्तविकता के करीब ही है आपको कैसी लगी कमेंट में जरूर बताएं
Champa kothari