रोज सुबह नियमानुसार सूर्य उदय होता है और शाम में अस्त हो जाता है ।
इसी तरह निभा भी अपनी परिस्थितियों से समझौता कर जीवन में आगे बढ़ चुकी है ।
चार कमरे वाले अपने बड़े से घर में पलंग पर लेटी हुई वह अतीत में विचरण रही है…
आज की तरह ही उस दिन भी निभा और उसकी छोटी बहन माया दोनों पलंग पर लेट कर गप्पें लगा रही थीं ।
अमित एक हफ्ते के लिए औफिस के दौरे पर गये हुए थे ।
निःसन्तान निभा को छोटी बहन माया उसकी जिन्दगी के अकेलेपन को दूर करने में सहायक किसी बच्चे को गोद ले लेने के लिए प्रेरित कर रही थी ।
और निभा अनमने भाव से अपने विचारों में खोई रेडियो पर आते गीत सुन रही थी।
” उठो री सखी मोरी मांग संवारो…
दुल्हा मोसे रूठल
कौनो ठगवा नगर मोहे लूटल… “
तभी अचानक अमित के कार की दुर्घटना- ग्रस्त होने की मनहूस खबर फोन से मिली थी ।
बेसुध सी भागती हुई वह दुर्घटना स्थल पंहुची थी ।
जहां हत्भागी निभा के हाथ अमित और नमिता के अधजले शव के साथ बंटी के रूप में अनोखा उपहार मिला था ।
उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था उसके पति अमित ने जो उसके लिए सर्वस्व थे , इतनी बड़ी कड़वी सच्चाई , अपनी दूसरी पत्नी नमिता और बेटे बंटी के बारे में उससे छिपा रक्खा था ।
तो क्या अभी तक वह भूलभूलैया में जी रही थी ?
एक धिक्कार से चूर-चूर हो उसका हृदय अत्यंत दुख की उस घड़ी मेंभी कुतार्किक हो उठा था ।
लेकिन वह तर्क चाहे कितना भी करे । इधर-उधर , जरा- मरा करती हुयी भी बंटी के सच को झुठला नहीं पाई थी ।
कुछ ही दिनों के उपरांत पारिवारिक वकील द्वारा अमित के जीवनकाल में की गई नयी वसीयत का भी पता चला था ।
जिसमें दोनों पत्नियों को सम्पत्ति का बराबर हिस्सेदार बनाया गया था ।
निभा इतने दिनों के अपने विभाजित विवाहित जीवन के अनबूझ प्रश्नों को ढूढ़ने में लगी है ।
अन्त में सोच कर थक चुकी निभा ने निश्चय किया वह बंटी को हौस्टल में रख देगी ।
आखिर क्यों वह अमित की दूसरी पत्नी के बच्चे को अपना कह” सौतेली मां ” कहलाई जाए ?
पर हाए रे कोरोना काल और कोमल स्वभाव स्त्री हृदय ,
सब के बावजूद निभा अपने विभाजित वैवाहिक जीवन के लिए अमित पर आक्रोशित हो कर भी ,
बंटी के प्रति निर्दयी नहीं बन सकी ।
लिहाजा घर के नौकर रामदीन और उसकी पत्नी ही बंटी की देखभाल करते रहे हैं ।
यों बंटी बहुत प्यारा बच्चा है और निभा उसे बहुत प्यार भी करती है ।
लेकिन उसका सानिध्य पल – पल उसके आत्म सम्मान को चोट पंहुचाता है ।
फिर ना जाने कहां से सुनकर एक दिन बंटी ने पूछ लिया था ,
” आँटी आप मेरी सौतेली मां हो ना ? ” सौतेली मां बच्चे को प्यार नहीं करती और अब मुझे समझ में आया आप मुझे प्यार क्यों नहीं करती ” ?
पहले से ही चोटिल निभा बंटी के इस प्रश्न से हैरत हुई कुछ सोचने पर मजबूर हो गई थी ,
” जिस अमित के साथ मैं सालों से दो शरीर एक प्राण की तरह रह रही थी
उसी के इस दोहरे स्वरूप से नितांत अनभिज्ञ थी ,
मतलब मैं और अमित साथ रहते हुए भी अजनबी थे ” ।
मन के अन्तरद्वन्द ने बाहर के शोर को थाम लिया था ।
और अब बंटी के भोलेपन से पूछे गए इस सवाल पर निभा हैरान है क्या जवाब दे ?
उसने एक दूसरी ही राह निकालने की सोची।
बंटी को प्यार से देखते हुए पास बैठाया और बोली ,
” देखो बेटा ,
” मैं तुम्हारी सौतेली मां नहीं हूँ
मां भी नहीं हूँ , सच कहूं तो कुछ भी नहीं हूँ ,
तुम्हारे बाबा भी यही चाहते थे “
” लेकिन तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो ,
फिर तुम भी अकेले हो और मैं भी अकेली हूँ तो क्यों ना हम दोनों सच्चे वाले दोस्त बन जाएं ?
” मेरे दोस्त बनोगे ” ?
यह कहते हुए उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर बंटी को समेट लिया ।
सीमा वर्मा /पटना