चम्पा की सूजी हुई आँखो और चेहरे पर छपी उंगलियों के निशान देखते ही वाणी समझ गयी की चम्पा की हमेशा वाली कहानी की पुनरावृत्ति हुई है।
२०साल की अपनी घरेलू सहायिका चम्पा के सर पर हाथ रखते हुए वाणी कहने लगी”मना किया था ना,मत ले जा अडवांस पैसे भी दिए आदमी को और मार भी खाई,पर तु कहाँ मानने वाली है?प्यार और परवाह उसकी करते है जो तुम्हारी करें,पर तेरी छोटी सी बुद्धि में ये बातआए तब ना।”
चल बोल क्या हुआ था कल?
कुछ नही भाभी बस समझ गए है गरीब का ना कोई त्योहार ना खुसी ना प्यार
अरे! इतनी ज्ञान की बातें वाणी ने हस्ते हुए कहा”अच्छा अब बता दे ना बताने पर पेट में दर्द होता रहेगा तेरे।”
चम्पा उतावलेपन से बताने लगी”भाभी कुछ प्यार वाले दिन चल रहे ना,भैया ने कल आपको गुलाब का गुलदस्ता दिया,नया ड्रेस लाए।घर जा करइत्ता ही बोला हमें भी एक नया साड़ी और गुलाब लेना है हमारे साथ बाज़ार चलो,पैसे लाए है भाभी से।”
सब पैसा ले गया और सराब में उड़ा कर वापिस आया।कुछ पूछा तो ये ईनाम।
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वाणी का मन कसैला सा हो गया।सपनो की उम्र तो सबकी एक जैसी होती है।अभी के लाए फूलों के गुलदस्ते से एक गुलाब निकाल कर प्यार से चम्पा को देते हुए कहने लगी”ले ये गुलाब ले ले।”
नही भाभी आपसे नही उससे चाहिए था।कहते हुए चम्पा मायूस हो कर काम में लग गयी।
कुछ देर बाद वाणी ने इरिटेट होते हुए चम्पा को आवाज़ लगायी “कितनी देर से तेरा फ़ोन बज रहा है उठाती क्यूँ नही।”
नही उठाएंगे भाभी उसी का है।फ़ोन का बजना उसके घावों की टीस को आराम दे रहा था शायद।
जैसे ही वाणी ने कहा” नही उठाना तो ला बंद कर दूँ फ़ोन।”
झट से फ़ोन ले कर बात करने लगी।काम निपटा कर जाते हुए डरते हुए चम्पा ने वाणी से कहा”भाभी कुछ पैसे ……”वाणी ने बीच में टोकते हुए कहा”आज फिर मार खानी है?”
नही भाभी माफ़ी मांग कर कह रहा थाशाम को दिलाएगा साड़ी गुलाब।आज वो वेलटाइन है ना ये कहते हुए उसके चेहरे पर दिखने वाले क्रूरता के निशान गुलाबी रंग में बदल गए थे।
वाणी ने उसके विश्वास का मान रखते हुए उसे कुछ पैसे दे दिए।चम्पा हिरणी की तरह कुलांचे भरती हुईचली गयी।
वाणी सोचने लगी औरत जब रूह से प्यार करती है तो कैसे एक पल में सारा दर्द अपमान भूल जाती है।तभी तो औरत को ईश्वर द्वारा बनायी गई सर्वश्रेष्ठ कृति कहते है।
इस कठोर दुनिया के रेगिस्तान में बारिश की ठंडी फुहारों जैसी।
पिंकी नारंग
मौलिक