बहुत देर से कुमुद उमाकांत का इंतजार कर रही थी। सुबह का गये तीन बज गये, परेशान होना स्वाभाविक था। कहकर गये थे एक घंटे में आ जाऊँगा। मोबाइल भी घर पर ही छोड़ गये। विचारों का मंथन चल ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी।
” अरे, इतनी देर कहाँ लगा दिए?”
“मेरा एक पुराना दोस्त मिल गया। अपने घर लेकर चला गया। उसके बेटे की शादी ठीक हुई है बिक्रमपाली में।”
“बिक्रमपाली…??”
सुनते ही कुमुद के दिल में एक अजीब सा झटका लगा।
” तुम्हारा ननिहाल वहीं था न? “
“हाँ,लेकिन अब तो दूर-दूर तक वहाँ से कोई नाता नहीं है। ममेरा भाईयों ने चालीस साल पहले ही वहाँ का सबकुछ बेचकर जयपुर बस गये।”
“हाँ,वो तो मालूम है। ”
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उमाकांत जी तो अपने अध्ययन कक्ष में चले गये। उन्हे लिखने पढ़ने का शौक था।सेवानिवृत्ति के बाद वो अधिकतर समय अध्ययन कक्ष में व्यतीत करते थे। इधर कुमुद के दिल में बसी वो रूमानी यादें करवट बदलने लगी।———
काॅलेज की पढ़ाई करने के लिए कुमुद अपने ननिहाल जाकर रहने लगी थी। वैसे कुमुद के पिता जी एक छोटे से जगह में अध्यापन का कार्य करते थे, लेकिन वे संयुक्त परिवार में रहते थे। कुमुद के दादा जी लड़कियों को काॅलेज जाने के पक्ष में नहीं थे। तर्क- वितर्क से बचने के लिए कुमुद की माँ ने उसे ननिहाल भेज दिया। नाना-नानी की चहेती थी कुमूद। उस घर कोई बेटी नहीं थी।——–
वहीं कुमुद काॅलेज की पढ़ाई करने लगी। वह वहाँ इस तरह रम गयी कि छुट्टियों में भी कहीं नहीं जाती थी। माँ -पिता जी ही आकर मिल लेते थे। शायद कोई चुम्बकीय शक्ति हो। हाँ, प्यार एक ऐसा चुम्बक है जो सारी दुनिया से अलग कर देता है। पड़ोस में एक शर्मा जी रहते थे। नानी के घर से उनका अच्छा सम्बंध था। घरेलु रिश्ता बन गया था। उनका बड़ा बेटा इनटर करने के बाद आगे नहीं पढ़ पाया। छोटा-मोटा बिजनेस करता था। वर्तमान में कोई वोकेशनल ट्रेनिंग ले रहा था। भले ही काॅलेज की डिग्रियाँ न हो उसके पास, लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। बातें करने का अंदाज सबसे हटकर था। कुमुद को उससे बातें करना काफी अच्छा लगता था। वह किसी-न-किसी बहाने उसके घर जाकर उससे बातें किया करती थी। उसका नाम तो प्रेम था ही वह प्रेम पाने का अधिकारी भी था, ऐसा कुमुद को लगता था।
प्रेम भी नानी से मिलने के बहाने आया करता था। उसे देखते ही कुमुद की आँखों में चमक आ जाती थी। नाना-नानी के सिवा कोई तो था नहीं। मामा लोग दूसरे शहर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। ये प्रेम भी बड़ी उतावला होता है। आँखों में इसकी झलक मिल ही जाती है। आखिर नानी को एक दिन संदेह हो ही गया और अब नजरों का पहरुआ तैनात रहता था। लेकिन प्रेम को कैद करना आसान भी तो नहीं। अब कुमुद उससे अपने दोस्त के घर जाकर मिलने लगी। अजीब आर्कषण था। कभी दोनों ने एक दूसरे के सामने अपने हाल-ए-दिल का बयान नहीं किया था, लेकिन दोनों एक नजर देखने को हरदम बेचैन रहते थे। —————–
कुमुद के स्नातक की परीक्षा तीन महीने बाद होने वाली थी। एक दिन प्रेम ने उसके दोस्त से संदेशा भेजवाया कि कल मिलने आना।
कुमुद के लिए वो रात जीवन की सबसे लम्बी रात थी। ——
” तुम मुझे किस नजर से देखती हो?”
अचानक ये सवाल सुनकर कुमुद सकपका गयी। प्रेम ने बात जारी रखी।
“कुमुद! यदि तुम चाहो तो एक बनने में समाज आड़े नहीं आयेगा, क्यों कि हमदोनों की जाति एक ही है।”
इस पर तपाक से कुमुद के मुँह से निकल पड़ा।
” मैं जानती हूँ, पर मेरे पापा किसी भी हालत में तुम से मेरी शादी नहीं कर सकते हैं। मेरे दादा जी और नाना जी एक बहुत बड़े जमींदार खन्दान से सम्बन्ध रखते हैं। दूसरी बात तुम इनटर पास हो अच्छी नौकरी भी नहीं है तुम्हारे पास।”
इतना कहने के बाद अचानक कुमुद चुप हो गयी और प्रेम खड़ा हो जाने लगा।
“प्रेम! तुम मेरे दिल के बहुत करीब हो, लेकिन कोई नाम नहीं दे सकती।”
” तब तो ये रिश्ता बदनामी के सिवा कुछ नहीं दे सकता है।” ये कहकर प्रेम वहाँ से चला गया और दूसरे दिन उसकी माँ से पता चला कि वह अपने दोस्त के साथ कोई बिजनेस के सिलसिले में नेपाल गया है। कुमुद कटे वृक्ष की भाँति गिर पड़ी। किसी तरह तीन महीने बीते। परीक्षाएँ समाप्त हुई, लेकिन प्रेम अभी तक लौट कर नहीं आया। अब कुमुद अपने घर वापस जा रही थी। जाने से पहले अपनी दोस्त से बोल कर आयी।
“प्रेम को मेरा ये संदेश दे देना कि मैं एक बार उसे मिलना चाहती हूँ। बिना देखे ये दुनिया छोड़ नहीं सकती।”
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आज तक प्रेम का कोई पता नहीं। पूछती भी तो किससे? दोस्त की भी शादी हो गयी और वह विदेश में रहने लगी। उससे भी अब सम्पर्क नहीं रहा। आज चालीस साल बाद बिक्रमपाली का नाम उस आख़िरी इच्छा को जागृत कर दिया।
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“अरे अभी तक तुम यहीं बैठी हो? मैं तो अध्ययन कक्ष में ही सो गया था।”
“अरे हाँ, चाय का समय भी बीत गया।”
“अच्छा छोड़ो, कल बहुत आग्रह कर बुलाया है शादी में। चलना होगा। लड़की बाले यहीं आ गये हैं।
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कुमुद अनमने से तैयार होकर शादी समारोह के लिए निकल गयी। रास्ते भर खामोश रही। कहती तो क्या कहती पति से। जो बात बिक्रमपाली में ही गुम हो गयी थी उसे आज पति के सामने कैसे और क्यों लाती।
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शादी का भव्य पंडाल काफी खूबसूरत और भव्य था। सबसे मिलकर हाथों में कोल्डड्रिंक का ग्लास ले बैठी ही थी कि उमाकांत जी का दोस्त अपने समधी से मिलाने लेकर आ गये। जैसे ही उनके समधी पर कुमुद की नजर पड़ी हाथ से कोल्डड्रिंक का ग्लास छूट गया। मुख से सिर्फ इतना ही निकला
“प्रे –र—-म—“
प्रेम उसे अजनवी की तरह देख रहा था और थोड़ी ही देर में वहाँ से निकल गया।
कुमुद बैचेन सी हो गयी।
“कुमुद ,क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है न?”
उमाकांत जी को कुमुद का व्यवहार कुछ अजीब लगा।
कुमुद उस पार्टी से जल्द निकलना भी चाहती थी और दूसरी तरफ अचानक गायब होने की शिकायत भी प्रेम से करना चाहती थी। एक अजीब बन्धन बंध चुका था, जिसे वह इतने दिनों तक दिल के एक कोने से बाँध रखी थी। यदि प्रेम अचानक गायब नहीं हो गया होता तो शायद कोई अनहोनी हो ही जाती। मेरी दिवानगी को देखते हुए प्रेम मुझसे दूर जाना ही उचित समझा, लेकिन इस प्रेम में इतनी ताकत थी कि मेरी आख़िरी इच्छा पूरी हो गयी? लेकिन क्या इसे पूर्ण मानेंगे? जिस जबाब के लिए उससे जीवन में एक बार मिलना चाहती थी वो पूछे बिना मुलाकात पूरी कैसे हो सकती थी? लेकिन आज बिना पूछे ही मुझे जबाब मिल गया।
तभी पति ने आकर कहा।
” चलो अब चलते हैं। तुम्हारी दवाई लेने का समय हो गया है।”
और कुमुद पति के पीछे लग गयी।
स्वरचित
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।