अन्न का सम्मान ही संस्कृति का मान है – नूतन योगेश सक्सेना 

“अरे वाह ये तिकोनी – तिकोनी बर्फी कितनी अच्छी है, और ये लड्डू…… ये लड्डू कितना मीठा है……. मां – मां देख पूरी भी हैं नरम – नरम इस थाल में और और ये बीच में क्या रखा है, मां देख ना क्या कहते हैं इसे…… हां याद आया पन्द्रह नंबर फ्लैट वाली मेमसाब जबरदस्ती अपने बेटे को खिला रही थीं । क्या नाम ले रही थीं वो बा….. हां बादाम और कह रही थीं कि इसे खाने से दिमाग तेज होता है । मां…..देख आज मुझे ये सब मिल गया और अब मैं जी भर कर खाऊंगी । ले मां थोड़े से चावल तू भी खा ले……ले देख कितने खिले – खिले हैं…..ले खा तू तो कैसे गीले – गीले चावल बनाती है। “

            “सीमा…… सीमा ओ सीमा उठ – उठ क्या बडबडाये जा रही है इतनी देर से।” रधिया ने सीमा को जोर से झकझोरा । ” क्या मां कितना अच्छा सपना देख रही थी और तूने जगा दिया। अच्छे – अच्छे खाने से भरा थाल मेरे सामने रखा था।” सीमा झल्लाती हुई बोली, ” अरे असलियत में तो मिलता नहीं ये सब कुछ ‌तो सपने में तो खाने देती, वहां भी रोक दिया तूने मुझे।” मुंह बिगाड़ कर सीमा बोली ।

          “बेटा हमारे नसीब में कहां अच्छे खाने लिखे हैं। रुखी – सूखी रोटी भी रोज मिलती रहे तो ईश्वर की कृपा है, जबसे तेरे बाबा गुजरे हैं, दो जून की रोटी खानी भी भारी पड़ रही है हम तीनों को, कभी किसी मेमसाब के यहां पार्टी होती है तभी कुछ बचाखुचा अच्छा खाने को ला पाती हूं तेरे और संजू के लिए ।” रधिया आंखों में आंसू भरकर बोली।



          रोटी की कीमत तो कोई उस गरीब से पूछे जिसे दो – दो दिन तक कुछ खाने को नहीं मिलता और पानी पी – पीकर उसे पेट भरना पड़ता है। और कहीं – कहीं ये खाना लोग यूं ही प्लेटों में ले – लेकर छोड़ देते हैं जो नालियों में या कचरे के डब्बे में पड़ जाता‌ है ।

      “चल – चल जल्दी काम पर चल नहीं तो डांट ही खाने को मिलेगी ।”  रधिया हंसकर बोली। रधिया और सीमा काम पर चल दीं । वो दोनों पास की बिल्डिंग में ही कई घरों में बर्तन साफ़ करने और साफ – सफाई का काम करती थीं ।

          इस तरह से कुछ बर्षो के बाद सीमा बड़ी हो गई और उसकी शादी भी हो गई, पर वो उस भरी थाली का सपना आज तक नहीं भूली थी। उसने दिन – रात मेहनत करके सिलाई करना सीख लिया और घर में ही एक मशीन रखकर कपड़े सिलने लगी । धीरे – धीरे उसका काम अच्छा चल पड़ा और अब उसके घर में खाने – पीने की तंगी नहीं रही।

         क्योंकि उसे रोटी की और खाने की कीमत पता थी इसलिए वह कभी खाने की किसी भी चीज को बर्बाद  नहीं होने देती थी और यही सीख उसने अपने बच्चों को भी दी।

        हम सबको अन्न का सम्मान करना चाहिए हमारे बड़ों ने हमें सिखाया था कि भोजन आरंभ करने से पूर्व भी प्रणाम करना चाहिए और समाप्त करते समय भी । यही हमारी संस्कृति है और हमें इसका पालन करना चाहिए।

#सहारा 

नूतन योगेश सक्सेना 

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