अनमोल ज़िन्दगी – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

 होश आते ही रावी ने अपने चारो तरफ नजरों को गोल  गोल घुमाया। उसे पता नहीं चल पा रहा था कि वह इस वक्त कहां है और यहां कैसे आई। थोड़ा सा अपने 

यादाश्त पर जोर डाला। कुछ याद आते ही वह जोर से चीख पड़ी-”  मैं यहां क्यूँ हूँ?, 

“मैं यहां कैसे आई?”

“मुझे यहां कौन लाया?”

,उसकी चीख से पूरा नर्सिंग होम हिल उठा।

उसके चीखने की आवाज सुनकर आसपास खड़े डॉक्टर और नर्स दौड़ कर उसके बेड के पास आ गये। डॉक्टर ने नर्स को कुछ इशारा किया ।नर्स रावी के पास जाकर बोली-”  सुनो, तुम हॉस्पिटल में हो और पूरी तरह से खतरे से बाहर हो, उपर वाले की दया से तुम्हारी जान बच गईं। अब तुम्हारी जिंदगी सुरक्षित है!

“जिंदगी!” 

“किसने बचाई मेरी जिन्दगी?

“मुझे नहीं चाहिये ऐसी जिंदगी!”

रावी की कराहती दर्द से व्याकुल आवाज सुन अगल- बगल के कमरे से कुछ मरीज और उनके घर वाले भी आकर खड़े हो गए।

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रावी को दो नर्सों ने दोनों तरफ से पकड़ लिया। एक नर्स इंजेक्शन लगाती हुई बोली-” क्यों चिल्ला रही हो पेट में लगे टांके टूट जाएंगे ,सारा मेहनत बर्बाद हो जायेगा। बड़ी मुश्किल से आठ घंटे के मेहनत के बाद ऑपरेशन सफल हुआ है।”

मुझे नहीं जीना है  क्यूँ किया मेरा ऑपरेशन। मैंने तो मौत मांगी थी “मौत” …

मौत… मौत बोलते- बोलते रावी की आवाज लड़खड़ाते हुए रुक गई। शायद नर्स ने उसे बेहोशी की सुई लगाई थी।

जितने लोगों ने रावी की तड़पती आवाज सूनी थी वो भौचक्के हो एक दूसरे का मूंह देख रहे थे। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कौन है?

 और  इस हाल में यहां कैसे आई….ऐसे क्यूँ चिल्लाये जा रही थी।

थोड़ी देर रावी के पास खड़ी  नर्स ने लंबी सांस ली और बोली चलो अच्छा हुआ नींद आ गई है उसे । जुटे लोगों की कौतूहल भरी नजरें जब नर्स पर पड़ी तो वह बोली-”  किसी ने इसे बेरहमी से मारने की कोशिश की थी, लेकिन कहते हैं न कि जिसकी जिन्दगी बाकी हो उसका मौत भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। “

लोगों की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उनलोगों ने नर्स के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। 

“यह लड़की कौन है?”

“इसे क्या हुआ था?”

“इस के साथ कोई घर वाले क्यूँ नहीं है?”

  इतने सारे प्रश्नों को सुनकर नर्स झल्ला उठी। झिड़की देते हुए बोली-”  देखिए मैं अपनी ड्यूटी कर रही हूँ इसके अलावे मुझे कुछ नहीं पता। रात वाली ड्यूटी किसी और की थी उसे सब पता होगा।

 आज रात जब वह आयेगी तब आप लोग पूछ लीजियेगा। फिलहाल यहां शोर- शराबा मत कीजिए वर्ना इसे कहीं होश आया तो यह फिर डिस्टर्ब हो जायेगी।ज़ख्म बहुत गहरे हैं इसके “।

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लोग आपस में बातें करने लगे थे कि जिस तरह से यह चिल्ला रही थी उससे तो साफ जाहिर था कि किसी ने इसे तन और मन दोनों को ही जख्मी किया है। सच में गहरे हैं ज़ख्म!

 सब अपने-अपने जगह पर जाने लगे तभी रावी को होश आने लगा वह छटपटाने लगी….संयोग से एक डॉक्टर साहब विजिट पर घूम रहे थे उन्होंने नर्स को आवाज लगाई।

 लोगों के कान फिर खड़े हो गए। रावी फिर से वही बातें दुहरा रही थी जो लोगों ने पहले सुना था।

डॉक्टर साहब ने रावी का एक हाथ पकड़ा हुआ था और उसे समझाते हुए बोल रहे थे-” बेटा, मांगने से यदि किसी को मौत मिल जाती तो यहां तुमसे भी ज्यादा लोग लाईन में लगकर खड़े हुए हैं। तुम्हें जिंदगी ने एक और मौका दिया है। उसे जिंदादिली से जीकर दिखाओ। ऊपर वाले ने कुछ तो सोचा होगा जो तुम बच गईं वर्ना गोली लगने पर कितने लोग बच पाते हैं? “

सुई- दवा देकर जब डॉक्टर बाहर निकले तो लोगों को बताया कि कैसे किसी ने गोली मारकर इसे तड़पने के लिए रास्ते पर छोड़ दिया था ।अच्छे से होश आने पर ही सही से जानकारी मिल पायेगी।

अगले दिन पुलिस आई पूछ- ताछ में पता चला कि जिस लड़के के साथ इसकी शादी होने वाली थी उसने पार्टी के नाम पर घर से बाहर होटल में इसे बुलाया था और बेशर्मी की हद पार करते हुए अपने दोस्तों के हवाले कर दिया। इसके विरोध करने पर उसमें से एक ने इसे गोली मार दी और रास्ते पर फेंक सब भाग निकले।

जिस ने भी इस घटना के बारे में सुना उसके होश उड़ गये। सबके जुबान से एक ही बात निकल कर आ रही थी कि इस आधुनिकता ने कैसे एक जिन्दगी बर्बाद कर के रख दी। पता नहीं हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। आज के दौर में जिन्दगी की कोई कीमत नहीं है क्या? या फिर यह खिलौना बन कर रह गया है। जब जी चाहा मन बहलाया। ना भाया तो तोड़ दिया….

आज एक सप्ताह हो चुका है। रावी धीरे-धीरे ठीक हो रही है। पुलिस से लेकर प्रशासन तक यहां तक कि नर्सिंग होम के सारे डॉक्टर,नर्स  तथा आम लोग भी पूछ- पूछ कर थक चुके हैं लेकिन रावी ने अब तक किसी अपने रिश्तेदार का नाम नहीं बताया है। जब भी कोई जोर देकर पूछता है कि यहां से छुट्टी मिलने पर कहां जाओगी तो वह उपर की ओर इशारा करती है। आगे कोई हिम्मत ही नहीं जुटाता कुछ पूछने का …. ।

मीडिया वाले कैमरा लिए रोज एक चक्कर लगा जाते हैं कि कुछ तो सुराग मिले इसके कुल- खानदान का ताकि ये चटकारे ले- ले कर इज्जत उछाल सकें न्यूज चैनलों पर!

एक मीडिया वाला जिस समय वहां आया उस समय वही

डॉक्टर साहब वहां  मौजूद थे जिन्होंने रात- दिन एक कर रावी की जिन्दगी बचाई थी ।

उन्होंने बड़े प्यार से रावी को हाथों के सहारे उठाकर बैठाया और बोले-” आप लोग क्यूँ इसको परेशान कर रहे हैं बेकार के प्रश्न पूछकर। आपकी जानकारी के लिए मैं आपको यह बता दूँ कि यह आज से मेरी बेटी है और मैं इसका पिता हूं। आप बस इतना समझ लीजिये कि ऊपर वाले ने इसे जिंदगी दी है और मुझे एक प्यारी सी बेटी जो मेरी जिन्दगी का सहारा बनेगी और एक डॉक्टर भी…है न बेटा!!

रावी ने कसकर डॉक्टर साहब का हाथ पकड़ लिया और फफक कर रो पड़ी। मीडिया वाले ने डॉक्टर साहब के सामने हाथ जोड़ दिया और कहा-” सर , हमें  माफ कीजियेगा । हम मान लिया कि भगवान ऊपर नहीं यहां नीचे हैं आपके रूप में।

आपने साबित कर दिया कि-” जिंदगी जिंदादिली का नाम है।”

#ज़िंदगी

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर, बिहार

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