“अनमोल के संग अनमोल बंधन”   – भावना ठाकर ‘भावु’ 

इधर मेरा MBA खत्म होते ही माँ पापा ने मेरे लिए रिश्ता ढूँढना शुरु कर दिया मानों मैं बोझ हूँ, जितना जल्दी हो सके सर से बोझ उतार देना चाहते हो। क्यूँ आख़िर? मेरी मर्ज़ी भी पूछते मैं क्या चाहती हूँ, मेरे सपने क्या है, मेरी पसंद पूछते..!

मन में कहीं न कहीं लव मैरिज के सपनो को जीती थी की कोई ऐसा हो जो मुझे पूरी तरह जानता हो, मेरी हर आदत हर ख़्वाहिश को पहचानता हो। जिसके साथ अपनी सारी ज़िंदगी खुशी-खुशी अपने तरीके से बीता सकूँ जिसे मैं समझती हूँ, प्यार करती हूँ..!

अरेंज्ड मैरिज के बारे में सोचते ही एक भय और डर बैठ जाता है दिल में। पता नहीं कैसा होगा लड़का, परिवार के लोग कैसे होंगे, मुझे समझ पाएंगे की नहीं, लड़के के विचारों से मेरे विचार मिलेंगे या नहीं? मेरी बहुत सी सहेलियों ने लव मैरिज की थी तो दिल में एक आस और सपना पल रहा था..!

क्या जल्दी है माँ-पापा को मेरी शादी की कुछ तो समय देते मुझे, आज तक पढ़ाई में ही व्यस्त रही, आसपास देखने तक की फुर्सत नहीं थी। अब खुद के अस्तित्व के आसमान में उड़ना चाहती हूँ, क्या पता कोई ऐसा मिल जाए जिसके साथ अपनी सारी ज़िंदगी खुशी-खुशी बिता सकूँ। सोचने तक का मौका ना दिया ओर पापा ने एक दिन विस्फोट किया।

खुशी बेटे सुन तो तेरे लिए कितना अच्छा रिश्ता आया है, पापा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पापा को हंमेशा मेरे लिए एक इन्जीनियर लड़के की तलाश थी। अपनी बच्ची को सारे सुख देना चाहते थे। अनमोल मिश्रा जो मैकेनिकल इंजीनियर है, एक रविवार को पूरे परिवार के साथ आ धमका। दिखने में ही स्मार्ट और हेंडशम था, दूसरे रविवार सगाई भी हो गई और दो महीने में शादी भी पक्की। पता नही एक सपने सा लग रहा है आज खुद को शादीशुदा महसूस करना..! और शादी का दिन भी आ गया।

आसपास के शोर शराबों के बीच आवाज़ आई बारात आ गई दीदी। आज ऐसा महसूस हो रहा है, पल-पल जैसे कुछ छूट रहा है। एक फूलों से सजी गाड़ी रुकी, मेरी धड़कन को रफ्तार देती। 

एक अजनबी को देखा मैंने उतरते जो आज मुझे अपनी धरातल से उखाड़ कर एक नये बंधन में बाँधकर उसकी एक अन्जान दुनिया का हिस्सा बनाने ले जाएगा। उसके घर को अपना घर कहना होगा, उसके परिवार को अपना मानना पड़ेगा, अजनबी को अपना बनाना पड़ेगा।



मैं कुछ नया करने नहीं जा रही थी, पर फिर भी न जाने क्यूँ इस अरेंज्ड मैरिज के पीछे की गहराई मुझे महसूस करवा रही थी की क्या ढ़ाल पाऊँगी मैं खुद को नयी ज़मीन पर?

क्या थे सपने की पढ़ लिखकर जाॅब करूँगी, कुछ बनूँगी, अपनी डगर खुद तराशूँगी और आज मैं ये क्या करने जा रही थी। बस महज माँ पापा के प्यार और उनकी जिम्मेदारीयों को कम करने की कोशिश में एक अजनबी के साथ बँधने जा रही थी। जयमाला, फेरे, सात वचन, बिदाई अब मैं शादीशुदा थी, एक दहलीज़ छूट गई पल भर में कितना कुछ बदल गया। मैं लगातार रोए जा रही थी, की मेरी नज़र मेरे अजनबी दूल्हे पर पड़ी, उसके चेहरे की हर अकुलाहट में हर लकीर में मेरे प्रति परवाह साफ़ झलक रही थी। उसकी आँखों में नाराज़गी दिखी उन सबके प्रति जो मुझे लिपटकर रो रहे थे। उसे लग रहा था की वो सब मुझे रुला रहे है..! शादी की रस्म खत़्म होते ही फूलों से सजी गाड़ी में एक अन्जान हमसफ़र के साथ बँधे बंधन को निभाने निकल पड़ी एक नयी दुनिया बसाने, नये सफ़र पर। 

आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, मैंने खुद को इतना अकेला कभी महसूस नहीं किया था। 

मैं चुपचाप रोएं जा रही थी की अनमोल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और आँखों से कुछ यूँ इशारा किया की मुझे एसा महसूस हुआ मानों पापा का हाथ हो। स्पर्श अनजान था पर बहुत ही नज़दीक और अपनापन जताता हुआ,

मैं थोड़ी रिलेक्स हुई..! 

दो घंटे में अनमोल का घर, मेरा ससुराल आ गया। गाड़ी रुकी पहले अनमोल नीचे उतरे, और जैसे ही मैंने गाड़ी के नीचे कदम रखा अनमोल ने अपना हाथ आगे किया, तो एक पराये घर की दहलीज़ पर गर्म और उर्जा सभर सहारे का हाथ थामें मैंने सारी रस्म निभाते गृह प्रवेश किया। फ़र्श पर फूलों की चद्दर बिछी थी और उपर से पंखुड़ियां बरस रही थी, यहाँ कुछ भी मेरा ना होते हुए भी एक सुकून लग रहा था। और एक रस्म निभाते तो अनमोल ने मुझे अपने ओर नज़दीक कर दिया। 

दूध और पानी से भरी थाली में कुमकुम और फूल की पंखुड़ियां सजा कर एक अंगूठी उसमें डाल दी थी, जो मुझे और अनमोल को ढूँढनी थी अनमोल की बहनें चिल्ला कर अनमोल को चीयर कर रही थी, कम ऑन भैया आपको ही जितना है। मुझे कुछ यूँ महसूस हुआ मैं मानों किसी युद्ध के मैदान में अकेली निहत्थे खड़ी थी। पर पीछे से स्नेह सभर हाथ मेरे सर पर रखकर अनमोल की मम्मी, मेरी सासु माँ ने मेरे कानों में गुदगुदाया, जितेगी तो मेरी बेटी ही।

 मेरे डरे हुए असमंजस भरे मन में जैसे ताकत और हौसला भर गया। मैं सासु माँ से लिपट गई। खेल में अंगूठी ढूँढते वक्त मेरी ऊँगलियों ने महसूस किया की अनमोल ने हाथ आई अंगूठी जानबूझकर मेरी ओर सरका कर मुझे जीताया। मन में पड़ी अरेंज्ड मैरिज के प्रति जो एक आशंका थी वो कुछ-कुछ छंट रही थी।

सारी रस्म खत़्म होते ही मेरी सासु माँ मुझे अनमोल के कमरे तक छोड़ने आई, जिस पर अब मेरा भी 50% हक था। फिर भी मेरा कहाँ था यहाँ कुछ भी तो मेरा नहीं था, बस इस पल से मेरी कोशिश शुरू हो गई अपना बनाने की। 



सासु माँ ने कहा मेरा बेटा शरारती है पूरी रात तुझे सताएगा, तो सुबह यह सोचकर उठने की कोई जल्दी नहीं की हाँ ये तो ससुराल है देर तक कैसे सो सकती हूँ। जैसे तुम मायके में आराम से उठती थी वैसे ही निश्चिंत हो कर उठना, मैंने सासु माँ के पैर छू लिए तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया। मुझे बहुत अच्छा लगा यहाँ भी मुझे माँ मिल गई थी।

कमरे में कदम रखते ही मेरा रोम-रोम खिल गया, मेरे प्यारे मोगरे के फूलों की खुशबू से साँसे महक गई। और ये क्या? दीवारें मेरा फेवरिट क्रिम और हल्के पिच कलर से रंगी थी, बेड पर मेरी पसंदीदा लाइट ब्लू कलर की बेडशीट बड़े सलीके से बिछाई गई थी, उपर गुलाब की पंखुड़ियो से बड़ा वाला दिल बना हुआ था।

दीवार पर मेरी ही पसंद के अजन्ता इलोरा और ताजमहल की पेन्टिंग लगी हुई थी, टेबल पर मेरी पसंद की चॉकलेट और मेरी ही पसंद के लीली के फूलों से सजा वाज़ रखा था। और मेरा बड़ा वाला टैडी बैर एक कोने में बैठा हँस रहा था, 

मैं सरप्राइज़ थी। अनमोल ने कितने कम समय में मेरी पसंद जानकर 14/16 के कमरे में मेरी पूरी दुनिया बसा दी थी। कहाँ कुछ छूटा था सबकुछ तो यहाँ मेरा अपना था। क्यूँ कुछ भी अजनबी, अनदेखा या अन्जान नहीं लग रहा?

खुद की सोच बदलने की क्षितिज पर खड़ी थी की अनमोल कमरे में आए और मुझे बाँहों में भरकर बोले कहो मेरी महारानी जी आपकी कोई पसंद छूटी तो नहीं, वैसे बंदे ने ट्राय तो की की आपका मायके वाला कमरा ही उठाकर यहाँ ले आऊँ, पर बहुत भारी था यार सो आपकी शान में आपकी पसंद की हर चीज़ पेश कर दी।

मेरी आँखें भर आई मैं अनमोल के गले लग गई।

अनमोल ने मुझे हौले से अपनी बाँहों में उठाया और बेड पर सुलाकर बोले थक गई होगी आराम से सो जाओ अब, मुझे कोई जल्दी नहीं कल से हमारी हर रात सुहाग रात होगी।

मैं कायल हो गई एक अजनबी की, अनमोल फ़्रेश होने गए और मेरी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला। पिछ्ले कई दिनों की थकान की वजह से दूसरे दिन सुबह 11 बजे मेरी नींद खुली किसीने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया, आज मन एकदम हल्का और ताज़ा महसूस हो रहा था।



मैं नहा धोकर कमरे से बाहर निकली कि सासु माँ ने मेरा हाथ पकड़कर डायनिंग टेबल पर बैठा दिया, और नाश्ता और काॅफ़ी दे कर बोली पहले कुछ खा लो भूख लगी होगी। अनमोल को भी आवाज़ लगाई बेटे अनमोल बहू को कंपनी दो, चलो दोनों नाश्ता कर लो। मैंने माँ को हाथ पकड़कर अपने पास बिठा लिया और उनके काँधे पर सर रख दिया। मेरी आँखें भर आई, कितनी गलत राय भरे बैठी थी ससुराल वालों के लिए।

जैसे ही मैं नास्ता करके उठी माँ ने मोबाइल मेरे हाथ में थमा दिया और बोले अपने कमरे में जाओ और तुम्हारे माँ-पापा से बात कर लो, वो लोग राह देख रहे होंगे और तुम्हें भी अच्छा लगेगा, फिर आराम करो। मैंने कहा माँ मैं बाद में बात कर लूँगी पहले आपको काम में कुछ हाथ बँटा दूँ। तो सासु माँ मुझे जबरदस्ती हाथ

पकड़कर कमरे में ले आए और बोले जब तक तुम्हारे हाथों की मेहंदी नहीं उतरेगी तब तक एक भी काम को हाथ नहीं लगाना समझी। अभी तुम्हारे खुशियों के दिन है, एन्जॉय करो काम तो पूरी ज़िंदगी करना ही है। मैं सासु माँ के प्यार के आगे नतमस्तक हो गई।

अनमोल ने दो टिकट मेरे हाथ में थमा दी और बोले तैयारी कर लो मैडम कल सुबह की फ्लाइट से हम जा रहे है मौरिशस, हनीमून के लिए। और दूसरा कवर थमाते हुए बोले ये रहा तुम्हारा गिफ्ट। मैंने आश्चर्य से कवर खोला तो एक अपोइन्टमेन्ट लेटर था, अगले महीने की 1तारीख से अनमोल की ही कंपनी में मुझे जाॅब ऑफ़र हुआ था। मुझे अपनी आँखों पर और किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था। बस सबसे पहले पापा की बेतहाशा याद आ गई, जल्दी से नंबर मिलाया, पापा ने काॅल उठाया तो गले से आवाज़ ही नहीं निकली। मैं बस रोए जा रही थी। पापा ने बड़े ही नर्म लहजे में पूछा, मेरी गुड़िया कैसी है ससुराल पसंद आया की नहीं? बोल मेरा बच्चा सिवाय मेरे और तुम्हारी माँ के यहाँ कुछ छूट तो नहीं गया मेरी लाडो का?

मैंने पापा से बोला, पापा मैं कितनी गलत थी, मेरी सोच कितनी गलत थी। आपने हंमेशा मुझे एक बेहतरीन जीवन देने की कोशिश की और आज अनमोल के रूप में मुझे मेरी ज़िंदगी की सारी खुशियाँ दे दी। पापा मैंने आपको गलत समझा सौरी। अरेंज्ड मैरिज को लेकर जो मेरी सोच थी वो अनमोल के अपनेपन ने बदल दी।

उसने तो अपना फ़र्ज़ निभा लिया अब मुझे माँ और आपके संस्कारों को स्थापित करना है, ससुराल को मायका बनाकर, आशीर्वाद दीजिए पापा, मैं इस प्यारे से बंधन को बखूबी निभाने में कामयाब रहूँ। कोई रिप्ले नहीं आया पर मैं समझ गई,  पापा की नम आँखें और मौन आशीर्वाद को मेरा दिल महसूस कर रहा था।।

#बंधन

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर 

2 thoughts on ““अनमोल के संग अनमोल बंधन”   – भावना ठाकर ‘भावु’ ”

  1. अब तक कि इस betiyan.in पर की सबसे प्यारी कहानियों में से एक है, 100% देना चाहूँगा इस कहानी को,
    दिल को छू गयी ।
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको भावना(भावु) जी ।

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