Moral Stories in Hindi : शिकायत हमारी जिन्दगी का अहम हिस्सा है। ये शिकायते भी कैसी होती है। कभी अपने लिए, कभी अपनो के लिए, कभी अपनो से। कुछ कही, कुछ अनकही। शिकवे शिकायत प्रायः अपनो से होते है, गैरों से नहीं। कुछ भावुक व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो किसी से शिकायत होने पर भी, उससे कह नहीं पाते, उन्हें यह डर सताता है, कि कहीं सामने वाले का मन नहीं दु:ख जाए।
ये अनकही शिकायतें कई बार बहुत दु:ख देती है। समय रहते अपने गिले शिकवे अपनो के साथ साझा कर लेना चाहिए, ताकि कोई गलत फहमी हो तो वह भी दूर हो जाए और मन हल्का हो जाए। कभी कभी हम अपनी शिकायतें अपनो से कर ही नहीं पाते और जब करना चाहते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है।
अब शिकायत करें तो कैसे और किससे और सारी शिकायतों का रूख स्वयं की ओर हो जाता है जैसा इस कहानी में मानसी के साथ हुआ, वह अपने मन की बात, अपने गिले शिकवे किसी से कर ही नहीं पाई, और जब करना चाहा तो…….। सब उसके अपने किनारा कर चुके थे। ये अनकही बातें, शिकायतें फांस की तरह चुभती है उसे।
आज जीवन की सान्द्य बेला में अकेली बैठी है, तो मन अपने ही जीवन का अवलोकन कर रहा है। उसे याद आया अपना बचपन जब वह और उसका छोटा भाई, माता पिता की छत्रछाया में पल रहै थे। छोटा भाई अपनी हर छोटी बड़ी इच्छाओं को जिद करके पूरी करवा लेता, जैसे अपने जन्मदिन पर केक काटना, पार्टी करना। मानसी जानती थी, कि मम्मी – पापा को इस तरह जन्मदिन मनाना पसंद नहीं है,
वे सादगी से जन्मदिन मनाते थे। बच्चों को मंदिर दर्शन करने ले जाते, बगीचे में घुमाने ले जाते, उनकी पसन्द की मिठाई और भोजन बनाते, और पार्टी में खर्च होने वाला पैसा बच्चों के नाम बैंक में जमा करवा देते, ताकि आने वाले समय में वो उनके काम आ सके।
मानसी जब देखती की उसकी सब सहेलियों के जन्मदिन पर पार्टी होती है, तो उसकी भी इच्छा होती। उसको मम्मी-पापा से शिकायत रहती, कि वह उसका जन्मदिन इस तरह क्यों नहीं मनाते ? मगर उसने कभी मम्मी पापा से शिकायत की ही नहीं और उन्हें लगता की मानसी उनके तरीके से जन्मदिन मनाने में खुश है। ऐसे और भी कई मौके आए जब मानसी को मम्मी- पापा से शिकायत रही,
मगर उसने कभी खुलकर अपनी इच्छा बताई ही नहीं और वे उसके मौन को उसकी स्वीकृति समझते रहै। वह साइंस विषय लेकर डॉक्टर बनना चाहती थी, मगर उसके पापा ने उसको कामर्स विषय दिला दिया।वह चुपचाप कामर्स विषय पढ़ने लगी उसे शिकायत थी, कि उसके पिता ने उससे बिना पूछे यह विषय क्यों दिला दिया? उन्हें पूछना तो था। आज वह सोच रही है कि काश मैंने अपनी पसंद का विषय लिया होता और मैं डॉक्टर बन जाती। उस समय उसकी सारी शिकायतें अपने मम्मी -पापा से थी।
आज उसे लग रहा है कि गलती मेरी थी, जिस तरह भाई अपने मन की बात बता देता था, मुझे भी बता देना था। यही गलती मैंने उस समय भी की जब मेरा बैंक की नौकरी का आर्डर और विवाह का योग एक साथ बना, मम्मी-पापा इतना अच्छा रिश्ता छोड़ना नहीं चाहते थे,
ससुराल वाले नौकरी के खिलाफ थे, मैं नौकरी करना चाहती थी। बस मम्मी -पापा ने मेरी इच्छा पूछी नहीं, यह मेरी नाराजी का कारण था। शादी की तैयारी शुरू कर दी, मुझे यही शिकायत रही कि उन्होंने मुझसे पूछा क्यों नहीं। आज उसे लग रहा है क्या सब गलती उनकी थी?
मैं भी तो अपनी इच्छा बता सकती थी। आज न मम्मी है न पापा। क्या उनके प्रति मेरी शिकायतें सही है? ऐसे ही मुझे इतना अच्छा ससुराल मिला, सास-ससुर देवर दैव रानी और पति सभी का प्यार मुझे मिला।
पति की कंपनी में जिम्मेदारी की नौकरी थी, घर पर समय कम दे पाते थे। देवर दैवरानी कही घूमने जाते,तो उससे भी पूछते मगर उन दोनों के साथ जाना उसे ठीक नहीं लगता और वह नहीं जाती। उसे शिकायत रहती अपने पति से, कि वे इस तरह उसे घुमाने के लिए क्यों नहीं ले जाते।
उसके पति की भी अपनी मजबूरी थी । घर का बड़ा बेटा था,घर की जिम्मेदारी थी। कम्पनी अच्छा पैसा देती थी, इसलिए काम भी अधिक था। घर पर वह पूरे परिवार की खुशी का ध्यान रखता था, उसने कई बार मानसी से पूछा भी- ‘मानसी इतना गुमसुम क्यों रहती हो कुछ मन में हो तो बताओ ना यार।’ उसकी व्यस्तता को देखते हुए मानसी कभी अपने मन की बात कह ही नहीं पाई ,
और सारी शिकायते अनकही रह गई। समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। सास -ससुर का देहांत हो गया। देवर दैवरानी अलग मकान मे रहने चले गए। बेटे की नौकरी भी दूसरे शहर में थी। अभी पिछले वर्ष पति का हृदयगति रूकने से असामयिक निधन हो गया। मानसी अकेली रह गई आज अपने मन की बात करे तो किससे? किससे शिकायत करे? आज तो उसे बस अपने आप से शिकायत हो रही है कि उसने समय रहते अपनी बात अपनों के साथ साझा क्यों नहीं की।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#शिकायत