आज मैं कुछ नही कहना चाहती , कुछ भी नहीं।
क्यों कहूँ …???
हाँ जिस प्यार को , जिस अपनेपन को तरसती रही उम्र भर आज वो बिन माँगे मिल रहा है।
बजाज साहब (पतिदेव ) अपनी गोद मे सर लेके बैठै है , बच्चे भी (बेटा-बहु ) सब के सब अपना काम-काज छोड़ कर मेरे पास है।
सब की आँखो से झर-झर आँसु बह रहे हैं , सब मुझे ज़बरदस्ती डाक्टर के पास ले जाने की ज़िद कर रहे है , लेकिन आज मुझे कही नही जाना।
क्यो जाऊँ?
पता उन्हें भी है कि अब मेरा आखिरी समय है , अब डाक्टर पास जा कर कुछ नही होगा, लेकिन फिर भी बार-बार ले जाने को कह रहे है।
आज सब चाहते है कि मै कुछ बोलूँ, कुछ कहूँ , जब -जब भी कुछ कहना चाहा तो मेरे होठों पर ताला जड़ दिया गया ।
फिर आज क्यों बोलुँ ?
.क्यों अपने जिगर के ज़ख़्मो को खोलूँ?
क्या कोई अब इन पर मरहम लगा पायेगा?
आज मै आखिरी साँस ले रही हूँ …सब मेरे पास है ……कोई कुछ कह रहा है…तो कोई कुछ।
बहु कहती है …मम्मी जी जो़र-ज़ोर से बोलिए, जय श्री राम,
ज़ोर से बोलिए ना मम्मी जी…. आप बोलते क्यों नही ज़ोर से।
अरे आज कैसे बोलूँ मैं ज़ोर से , आज तक तो हमेशा से यही सुनती आई हूँ , क्यों इतना चिल्ला कर बोल रहे हो , धीरे बात नही कर सकते क्या ,हर वक्त शोर मचा रख्खा है घर में ।
तो आज कैसे मैं ज़ोर से बोलूँ , मेरी तो आवाज़ ही बंद कर दी तुमने।
आज वही बहु कह रही है मम्मी जी भजन लगा देती हूँ , सुन लो। जब मैं भजन चलाती थी तो ….”.बस इन्हें तो घर-परिवार की कोई चिन्ता तो होती नहीं , सारा दिन यही शोर-शराबा चलता है”
और आज मैं पल -दो-पल की मेहमान हूँ शायद , कितने भजन सुन लूंगी?
कितना ज़ोर से बोल लूंगी?
पता नही अगली साँस भी आए या ना आए ।
बेटा भी तो साथ है , उसके भी मन में ना जाने क्या-क्या चल रहा है।
मम्मा कुछ बोलो ना , कुछ तो कहो .. ऐसे चुप से क्यों हो …कोई तकलीफ़ है तो बताओ, कुछ चाहिए तो कहो ना मम्मा।
फिर पत्नी को आवाज़ लगाता है, “अरे शिवानी …… मम्मा के लिए कुछ बना लाओ ना।
….तुम भी ना खुद नहीं पता चलता कि बहुत देर से मम्मा ने कुछ नहीं लिया…. कुछ काम भी कर लो ……अच्छा ऐसे करो ….थोड़ा सा सूप बना दो मम्मा के लिए।”
और वही बेटा हर समय यही कहता था ,बस आपको तो अपने से मतलब है ,आप तो समय पर खा पी लो बाकी कोई खाए या ना खाए।
शिवानी बेचारी ने सुबह से कुछ नही खाया है कोई आप को उसकी चिन्ता।
सारा दिन घर में खटते रहो….फिर भी यही सुनने को मिलता था ….कि करना तो कुछ है ही नहीं ना आपने, बस सिर्फ अपनी और पापा की चिन्ता रहती है आपको….और कोई खाए या भूखा रहे……आप को इससे कोई मतलब ही नहीं ।
और आज मेरी इतनी चिन्ता, और पतिदेव जी..वो भी तो बेटे सँग सब काम काज छोड़ कर घर पर है आज।
आशा….आशा…मेरे माथे पर प्यार से हाथ रख कर , बोलो ना आशा, कोई तकलीफ हो रही है तो बताओ ना , ऐसे चुप मत रहो, कुछ तो बोलो।
और जब मैं पहले बोलती थी तो तब सुनना ही नहीं…जैसे ही मैंने कोई बात शुरू करनी उठ कर कमरे से बाहर चले जाते थे ….और उस पर गर कभी कहना कि कोई तकलीफ है किसी डाक्टर के पास ले चलो तो हमेशा पहले तो हँस कर टाल देना..कि ये कोई इतनी बड़ी बात है.ठीक हो जाएगा और अगर ज्यादा कहो तो ….हाँ देखता हूँ किस दिन समय मिलता है , ले जाऊँगा।
और अगर बेटे से कहो तो.मम्मा मैं अकेला क्या-क्या करूं….पापा से कहो ना , अब क्या पापा इतना भी नही कर सकते?
माना हमारी हैल्प नही कर सकते , कम -से-कम आप को तो डाक्टर पास ले जा सकते है ।
हाँ *6* महीने ही पहले एक दिन अचानक मुझे चक्कर आया था..घर पर कोई नहीं था …पति दूकान पर थे , बेटा-बहू बच्चों की छुट्टियाँ थी तो सिंगापुर घूमने गये हुए थे , मुझे कुछ नही पता कितनी ही देर तक मैं बेहोश पड़ी रही, जब होश आया तो काफी समय बीत चुका था, घर पर तो कोई था नहीं।
सोचा दूकान पर इन्हें फोन कर के बुला लूँ, कि किसी डाक्टर के पास ले चलो , पहले भी कभी-कभी ऐसे चक्कर आ जाते थे , पर फिर खुद ही सम्भल जाती थी , कभी किसी से कहा ही नहीं ….और कहूँ तो किससे…..कौन है जो सुनेगा, फोन किया दूकान पर तो जैसे ही हैलो कहा, आगे से आवाज़ आई….क्या हुआ अब , कभी तो शान्त रहो काम है मुझे बाद मे बात करूँगा।
चुपचाप फोन रख दिया और बेमन से खुद ही उठी और डाक्टर के पास जाने को तैयार हुई….सोचा अपने लिए खुद ही सोचना पड़ेगा.. अगर बिस्तर पर पड़ गई तो कोई नहीं करने वाला।
इसलिए ठीक रहना है तो इलाज तो कराना होगा …
चल मना खुद ही चल डाक्टर को दिखा आऊँ ।
अस्पताल जाकर पर्ची बनवाई और सीधी अन्दर डाक्टर के पास चली गई…. बहुत अच्छे से जान-पहचान जो थी।
तो ज्यादा बाहर बैठ अर इन्तज़ार नहीं करना पड़ा।
“गुडमार्निंग डाक्टर”
“गुडमार्निंग आशा जी, आज आप कैसे ….सब ठीक है ना, बड़े समय बाद दर्शन दिए”और हँस पड़े डाक्टर साहब।
अरे डाक्टर साहब सब ठीक है , बस आज ऐसे ही चक्कर सा आ गया।
मैने डाक्टर को सारी बात बताई , और डाक्टर मेरी पीठ पर भी कोई गाँठ सी है , पहले तो छोटी सी थी ,पर अब कुछ समय से लगातार बढ़ रही है , ज़रा वो भी देखिए ।
” अरे………..दिखाईये ….गाँठ कैसी है , वो तो आपको दिखानी चाहिए थी , गाँठ देख कर, कब से है गाँठ?
ऐसी बातो मे लापरवाही ठीक नहीं, चलिए पहले तो आप ब्लड टेस्ट करा ले ,और फिर रिपोर्ट आने पर मै देखता हूँ”
“.ओ हो डाक्टर साहब , अब इतनी सी बात के लिए क्या टैस्ट-वैस्ट बस कोई दवाई लिख दो”
” ये इतनी सी बात नही है , आप बहुत लापरवाही करती है , कहाँ है बजाज साहब, ज़रा उन्हे बुलाओ , उनसे बात करते हैं”
“डाक्टर साहब ..वो तो आज टूर पर गए है ,शहर से बाहर हैं”
झूठ बोल दिया , इज़्ज़त जो रखनी है, झूठ तो बोलना ही पड़ेगा ना । इतनी देर मे टैस्ट की कुछ रिपोर्ट आ गई कुछ बाकी दो-तीन दिन के बाद आनी थी , जो रिपोर्ट आईं थी उन्हे देख कर लग रहा था कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है जो रिपोर्ट को देखकर डाक्टर की आँखे फैल गई थी।
साथी डाक्टर से कुछ अंग्रेजी में बात की और मुझे थोड़ी सी दवाई लिख दी थी , बाद में तीन दिन बाद आने को कहा ,और ज़ोर देकर कहा कि मैं बजाज साहब को ( पतिदेव ) को साथ लेकर जाऊँ ।
लेकिन किसी को समय ही कहाँ हैं मेरे लिए।
…तीन दिन बाद भी मैं खुद अकेली ही गई डाक्टर के पास…….” कहिए डाक्टर साहब ….क्या आया रिपोर्ट में” …..मैंने हँस कर कहा।
कुछ नहीं कहा डाक्टर ने ,बस इतना कहा “बजाज साहब नहीं आए”
मैंने कहा ”आ रहे थे कोई ज़रूरी काम आ गया अचानक तो जाना पड़ा”
“तो बेटे को साथ लेआते”
“दरअसल बच्चे बाहर गए है घूमने ,छुट्टियाँ है ना , .क्या हुआ , आप मुझे बताऐं बीमार तो मैं हूँ ।
ऐसा क्या हो गया मुझे …मरने वाली तो नहीं ना” मैंने हँस के कहा।
“आशा जी दरअसल आप फिर कभी एक-दो दिन मे किसी को साथ ले आना फिर बात करेंगे”
“अरे डाक्टर साहब किसी को साथ क्या लाना , जो भी है आप मुझे बताईये ना , कुछ भी हो आप बता दो मैं घबराने वालों मे से नही हूँ , आई एम ए स्ट्रांग वुमन, मै नही घबराती छोटी-मोटी बीमारी से”
“दरअसल ये छोटी-मोटी बात नही है, और ना ही इसे ज्यादा देर टाला जा सकता है”
“अरे आप बताओ तो सही ऐसा क्या हो गया मुझे ” मैं फिर से हँस पड़ी ।
मेरे बहुत ज़ोर देने पर जब डाक्टर ने देखा कि ना तो ये किसी को साथ लाने वाली है और ना ही बिना जाने ये यहाँ से जाने वाली है…..तो कहने लगे ……”दरअसल जो आप की पीठ में गाँठ है , वो कैंसर का गम्भीर रूप ले चुकी है , और आप के दोनो गुर्दे भी लगभग खत्म है , आप को जल्दी ही कहीं किसी भी बड़ी अस्पताल मे जाकर ईलाज कराना चाहिए, मेरे विचार से तो आप को आज ही जाना चाहिए, आप पहले ही बहुत लापरवाही कर चुके हैं । अगर अब भी आप ने लापरवाही की तो इश्वर ही मालिक है”
“अधिक से अधिक कितना समय है मेरे पास” …मैंने हँस के कहा …….
“ज्यादा से ज्यादा 6 महीने……अगर ईलाज सही हो जाए तो कुछ समय और मिल सकता है ”
जी डाक्टर मैं आज ही घर में ये बात करती हूँ और हम जल्दी कहीं बड़े अस्पताल जाते हैं ।
वहाँ तो मैं ये कह कर घर आ गई , लेकिन रास्ते भर यही सोचती रही, क्या किसी के पास वक्त है मेरे लिए कि मेरी बात सुने या मुझे कहीं इलाज के लिए लेकर जाऐ, अरे आज 10 दिन से कह रही हूँ सब को कि मुझसे खाना नही खाया जा रहा, दाँतो मे बहुत तकलीफ हो रही है , बेटा-बहु बस बोल तो देते है कि डाक्टर को क्यों नही दिखा आते, पतिदेव तो मेरे पास समय कहाँ है , जब समय होगा चलेंगे , अगर खुद पास वाले कलिनिक पर जाने लगती हूँ तो,” अभी आप जा रहे हो, खाने का समय हो गया है , खाना कौन देखेगा , कभी बहु को कहीं जाना है तो घर पे बच्चो को कौन देखेगा।
बस यही हर वक्त, और फिर ,”आप जाते क्यों नहीं डाक्टर के पास ”
सोचा चलो आज बजाज साहब को रात को बात करती हूँ , कल तो बच्चे भी आ जाऐंगे घुम कर फिर उनसे भी बात करूंगी।
लेकिन मन नहीं है कि मैं अपना इलाज कराऊँ।
किस लिए और क्यों?
क्या रखा है कि अब ज़िन्दगी में ,ऊब गई हूँ इस ज़िन्दगी से ।
रात को खाने के बाद आकर पास बैठी हूँ बात शुरु करने लगी तो, ” सोने दो यार थक गया हूँ, तुम्हे तो बोलने के सिवा कोई काम नही है , आराम करने दो मुझे”
चुपचाप उठ जाती हूँ वहाँ से , अगले दिन बच्चे आ गए , दिनभर कुछ नही कहा।
फिर कहेंगे अभी घर मे कदम ही रखा है , आते ही अपनी रामकहानियाँ शुरू हो गए । रात को मौका देखा तो बच्चो से बात करने लगी , “समक्ष बेटा , मुझे दो दिन पहले चक्कर आ रहे थे तो”
अभी इतना ही कह पाई कि बहु बोल उठी, “मम्मा आप भी ना , पापा के साथ डाक्टर पास चले जाते ना , आप देख रहे हो हम कितना थके हुए है सफर से , अब आप को कल डाक्टर के पास भी ले जाएं , कल से आफिस भी जाना है हमें ,कहाँ समय मिल पाऐगा”
” ठीक है बेटा दिखा दूँगी” इतना कह कर उठ गई थी वहाँ से ।
आज सुबह भी वही रूटीन है , बच्चे स्कूल चले गए , बजाज साहब को भी दूकान की जल्दी और बेटे-बहु को भी आफिस जाने की जल्दी है, लेकिन मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही , पर किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं है।
सबको अपनी जल्दी है, साहब आवाज़ लग रहे है “जल्दी नाशता दो”
बेटा आवाज़ लगा रह है “.मम्मा जल्दी से नाश्ता दो, .लँच पैक हो गया क्या , जल्दी करो ना मम्मा हम दोनों लेट हो रहे है”
अचानक मुझे कुछ नहीं पता चलता बहुत सँभलने की कोशिश की खुद को ,लेकिन नही सँभाल पाई और किचन मे ही बेहोश हो कर गिर गई ।
सब अपने कमरो में है ए. सी. चल रहा है गर्मी है बाहर कोई नहीं आता सब कुछ कमरे मे चाहिए सबको , जब लँच बोक्स नहीं पहुँचा कमरे मे बेटा झुँझलाता हुआ बाहर निकला “मम्मा क्या है यार हम लेट हो रहे है और आपने अभी तक लँच नही पैक किया” आवाज़ लगाता हुआ बाहर आता है तो देखता है मैं किचन मे बेहोश पड़ी हूँ ।
” पापा . पापा। मम्मा बेहोश हो गई , अरे शिवानी आना ज़रा मदद करो मम्मा को अन्दर लिटाते है, शायद गर्मी की वजह से बेहोश हो गई , और देखो ज़रा लँच पैक हुआ या नही”
साहब जी भी उठ कर आ गए । कमरे में मुझे लेजाकर बैड पर लिटाया , ” पापा आप थोड़ा लेट चले जाना दूकान पर हमें देर हो रही है आफिस के लिए हम निकलते है, शिवानी अगर लँच नही बना तो रहने दो बाज़ार से कुछ ले लेंगे , चलो अब चलें”
10 बज गए अभी तक मुझे होश नहीं आया तो साहब को थोड़ी चिन्ता होती है , समक्ष को फोन किया ” समक्ष बेटा तेरी मम्मी को अभी तक होश नही आया, कैसे करू मुझे दूकान पर भी लेट हो रहा है , क्या करें”
” अरे करना क्या है पापा डाक्टर अँकल को फोन कर लो ना ”
“ठीक है अभी करता हूँ ” डाक्टर को फोन किया तो डाक्टर से पता चला कि ये तो पिछले 6 महीने से बीमार है , और डाक्टर ने कहीं बाहर बड़े अस्पताल जा कर इलाज करवाने को कहा था ।
“लेकिन डाक्टर साहब हमें तो इस सिलसिले मे कुछ भी पता नहीं।
फिर भी डाक्टर घर आते है और सब कुछ बताते है कि 6 महीने पहले ही इन्हें बता दिय गया था कि इन्हे कहीं बड़े अस्पताल ( बड़े शहर ) इलाज के लिए जाना चाहिए।
डाक्टर घर आते है, तो मेरी कँडीशन देख कर कहते है कि अब कुछ नही हो सकता , यह सुनकर पापा भोचक्के रह जाते है , फोरन समक्ष को फोन लगाते है । जैसे ही समक्ष को पता चलता है कि माँ ना जाने कितने पल, कितने घँटे या दो-चार दिन की ही महमान है ,तो फौरन घर के लिए बहु-बेटा चलते हैं ।। “मम्म्म्म्म्मा ये,. ये क्या होगया आपको , एक हकलाहट थी बेटे के लफ्जो मे , इतनी बड़ी बात ,आपने कभी बताया क्यूँ नहीं, ओफ़्हो माँ ये क्या हो गया”
शिवानी भी मूक खड़ी देख रही है आँखो में आँसु है , कुछ कहा नहीं जा रहा ।
“मम्मा हमें माफ कर दो हमने आप की बिलकुल परवाह नहीं की आज तक, कभी आप का दुःख समझा ही नहीं”
” आशा ….. मेरी प्यारी , ये क्या हो गया , मैं कैसे इतना निष्ठुर हो गया , मैंने भी तुम्हे तुम्हारे हाल पे छोड़ दिया, मैंने तो हर दुःख-सुख में साथ निभाने का वादा किया था , कैसे हो गया ये सब , हे इश्वर , कुछ चमत्कार कर दो मेरी आशा को ठीक कर दो , चाहे तो इसकी बीमारी मुझे दे दो , लेकिन मेरी आशा को ठीक कर दो”
मेरी भी आँखो मे आँसु है, लेकिन आज ये दुःख के नही खुशी के आँसु है, जो प्यार, अपनापन, जीवन भर चाहती रही , माँगती रही , वो आज बिन माँगे मुझ पर उंडेला जा रहा है , जब कहती थी तो मुझे कोई नही समझता था , आज मेरे अनकहे शब्द भी समझे जा रहे है।
प्रेम बजाज