अनकहे अरमान – शुभ्रा बैनर्जी: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : वैसे तो राखी के त्पयोहार से पति का कोई संबंध नहीं होता,पर आज धैर्या को समीर की बहुत याद आ रही थी।जब से उसे छोड़कर गएं हैं,हर त्योहार मानो फीका सा पड़ गया है।त्योहार मनाने की उत्सुकता जितनी समीर में देखी थी उसने,उतनी किसी में नहीं।हर त्योहार के पहले ही मिठाइयों की सूची बन जाती थी।

काजू कतली बेटे की पसंद,मैसूर पाक बेटी की पसंद की,खुरचन धैर्या की पसंद का और गुलाब जामुन घर के बने हुए।उनकी इस आदत से कभी-कभी चिढ़कर कहती धैर्या “आपके जैसा पैसा उड़ानें वाला इंसान मैंने आज तक नहीं देखा।जरूरत नहीं फिर भी क्यों खरीदते हैं इतनी मिठाइयां?”

समीर हंसकर कहते”धैर्या,जीवन में सब कुछ गणित की तरह हर करके नहीं करना चाहिए।मेरे बच्चों को उनकी पसंद‌ की मिठाई ना खिला पाया,तुम्हारे खुरचन का अरमान पूरा नहीं कर पाया ,तो किस काम की मेरी नौकरी।अरे तुम लोगों के लिए ही तो कमाता हूं।मैं जब तक‌ जिंदा हूं, किसी के अरमान मरने नहीं दूंगा।”

एक बार इमरती खाने की इच्छा हुई थी धैर्या की,गलती से बोल क्या दिया उन्हें,चार किलो‌ एक साथ लाना हो गया।आखिर में मोहल्ले में बांटनी पड़ी।तब से धैर्या ने अपने अरमान ख़ुद तक ही छिपा कर रखना शुरू कर दिया था।इस आदमी के कान में एक बार बात पहुंच बस जाएं,फिर तो खैर नहीं।राखी में भाइयों के आने से पहले ही मिठाइयां वो भी उनकी पसंद की आ जातीं थीं घर पर। धैर्या के स्कूल में संतोष चाय नाश्ता लाता था।

धैर्या ने ही प्रिंसिपल से सिफारिश कर लगवाया था।उसकी दुकान पर जाकर थोड़े से भजिए या दो समोसे के बदले सौ -पाच सौ का नोट जबरदस्ती पकड़ा कर आते थे।वह जब मना करता, तो कहते”क्यों रे दीदी बोलता है ना मेरी बीवी को।साला हुआ ना मेरा और छोटा तो संकोच मत किया कर।

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“कोविड के दौरान जब धैर्या की तनख्वाह भी कम हो गई थी और समीर की भी,संतोष के एकाउंट में बिना नागा हर महीने हजार -दओ हजार डाल दिया करते थे यह कहकर कि”हमारे यहां तो फिर भी कुछ पैसे आ रहें हैं, ऑनलाइन पढ़ाई की वजह से बच्चे नहीं आते तो बिचारे की कमाई बंद हो गई।”

खिलाने के इकलौते शौकीन को खुद आखिरी दिनों में प्रोटीन पाउडर के सहारे रहना पड़ा। धैर्या को सबसे ज्यादा दुख इसी बात का हुआ था कि घर पर आए किसी भी मेहमान को, रिश्तेदारों को खुशी-खुशी खिलाने में जिसे इतना सुख मिलता था ,उसे ही खाना नसीब नहीं हो पाया आखिर में।अभी हाल भर नहीं हुआ था समीर को गए।

राखी में दोनों भाई नहीं आ पा रहे थे। धैर्या समझ सकती थी छुट्टियों की दिक्कत।नहाकर पूजा घर में मोहन और संकटमोचन को एक -एक राखी चढ़ाई उसने।प्रसाद के नाम पर खीर बस बन पाई थी उससे।भगवान के सामने बैठकर कह रही थी वह”जो तुम्हारे प्रसाद के लिए छप्पन मिठाइयां लाता‌ था ,चला गया।मेरा तो मिठाई खरीदने का मन ही नहीं करता।

खीर ही खाओ आप सब।पूजा ख़त्म करते ही जोर से दीदी-दीदी की आवाज आई बाहर।निकल कर देखा तो संतोष खड़ा था। अप्रत्याशित था उसका आना,इसलिए अचरज से देखकर पूछा धैर्या ने उसके आने की वजह।संतोष हाथ में एक बड़े से पैकेट में बहुत कुछ ठूंस-ठूंस कर भरकर लाया था।अंदर आकर बोला”दीदी,मैं आपको तो शुरू से ही दीदी माना हूं।कल रात जीजा मुझे सपने में दिखे।उन्होंने मठरी,सलोनी,जलेबी,समोसा और भाजी बड़ा बनाने को कहा।”

“क्या,उन्होंने तुमसे कहा?हमें तो कभी सपने में दिखाई नहीं दिए संतोष।और क्या -क्या कहा संतोष? धैर्या भावुक हो रही थी।”दीदी वो आपकी कितनी चिंता करते थे,यह तो मैं जानता था पर आज भी उन्हें आपके सुख की चिंता है।राखी पर आप रो रही होंगी ना,इसलिए‌बोले वो मुझे आने के लिए।मैं भी बिस्तर पर उठकर बैठ गया और सोचने लगा।जीजा के जाने के बाद पहला त्योहार है,आपको बुरा‌ लग रहा होगा।दीदी ,मुझ गरीब को राखी बांध दोगी तुम?”

धैर्या अपने आंसू पोंछती उठी और पूजा का सामान लाकर संतोष के हांथ में राखी बांधी।संयोग था या समीर की इच्छा ,एक जोड़ी शर्ट -पैंट का कपड़ा जो उनके लिए खरीदी थी धैर्या,वह सिल्वा नहीं पाए और ना पहन पाए थे। धैर्या ने संतोष के हांथों में उस पैकेट को लेकर कहा”तुम्हारे जीजा के लिए लिया था,अब तुम पहनना।”

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संतोष रो रहा था और कहता था रहा था”,दीदी ,जीजा हर बार मुझे इतना पैसा देकर आते थे,कभी आपको भी नहीं बताया।मेरे बच्चे की फीस,मां की दवाई वहीं खरीदते थे और आपसे कहने को मना किया‌था।आज मैं अपने दिल का बोझ हल्का कर लूं।दीदी,आपके भाई के रहते हुए आपका खाने का अरमान कभी नष्ट नहीं होगा।मैं पूरी ज़िंदगी भी अगर आपको खिलाऊं,उनका कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगा।मैं उपहार तो अभी कुछ नहीं दे सकता ,पर आपके हर मुसीबत में मैं आपकी बगल में खड़ा रहूंगा।”

धैर्या समीर की फोटो देखकर सोच रही थी कि दुनिया से चले जाने के बाद भी आज तक उसके अरमानों को पूरा करने का दायित्व निभा रहें हैं वो।मेरी आंखों से गिरने वाले आंसुओ की वज़ह और वक्त दोनों मालूम है।जिस इंसान को अपनी बेटी को शादी के अरमान दिल में लिए ही दुनिया से जाना पड़ा,

उस आदमी के लिए अपनी पत्नी का दायित्व आज भी जिंदा था।समीर फोटो में मुस्कुरा कर मानो कह रहे थे”तुम्हारी ज़िंदगी के हर अरमान पूरे करूंगा मैं ,क्योंकि शायद मरकर मेरी आत्मा भी शांति नहीं पाएगी।तुम अपने हर अरमान पूरे करना धैर्या,तो मेरे भी पूरे हो जाएंगे।”

शुभ्रा बैनर्जी

1 thought on “अनकहे अरमान – शुभ्रा बैनर्जी: Moral stories in hindi”

  1. * प्रकृति का एक नियम है,व्यक्ति द्वारा किया गया छोटे से छोटा पुण्य…संसार का भ्रमण करते हुए लौट अवश्य आता है!
    अतः विवश,लाचार व ज़रूरत मंद की अपनी क्षमता अनुसार मदद अवश्य करनी चाहिए!
    >बहुत ही प्रशंसनीय एवं उत्प्रेरक प्रसंग के साथ सरल भाषा में लिखे लेख के लिए हार्दिक आभार!

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