अनकहा दर्द – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

कहने को तो सबिता शादी के मंडप में बैंठी थी, दुल्हन बन कर, पंडित जी शादी के मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे, लेकिन शादी कीखुशी के बजाय उसका दिल किसी समुद्र में उठती लहरों की तरह बेतहाशा धडक रहा था,जबरनअपने आंसुओं को रोकने की बेकार सी कोशिश कर रही थी।उसके अरमान इस तरह कुचल जांयेगे उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था

,कहां तो वह तपन के साथ अपने प्यार की पींगें बढ़ा रही थी और दोनों ही इस इन्तजार में थे कि कब सबिता की बड़ी बहन कविता कीशादी सम्पन्न हो तो वह अपनी शादी की बात मां के कानों में डालें कि वह शादी करेगी तो तपन के साथ।

तपन उसकी दूर की रिश्ते की भाभी कादेबर था। परिवार में सभी उससे परिचित थे किसी पारिवारिक शादी में दोनो का मिलना हुआ था तभी से दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे।

परंतु मोहब्बत के ख्वाब कहां पूरे होते हैं, जिंदगी न जाने किस किस रूप में आकर परीपरीक्षा लेती है और सपनों का महल धराशाई होने में मिनिटों का भी समय नहीं लगता।

सिबिल इंजीनियर रमाकांत की दो बेटियां थी,बड़ी कबिता व उससे एक साल छोटी सबिता,दोनों को ही रमाकांत ने उचित शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।बड़ी कबिता कुछ वाचाल प्रवर्ती थी। तो छोटी सबिता एकदम विपरीत शांत स्वभाव की थी।

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युवावस्था में प्रवेश करने पर हर मां-बाप की तरह रमाकांत को , उन दोनों की शादी के लिए उचित वर खोजने की चिंता हुई,अपने मित्रों से इस बाबत जिक्र किया तो उनके एक मित्र ने एक उचित वर बताया ।आपसी बातचीत के बाद कविता का रिश्ता तय कर दिया गया एक सुयोग्य व। नामी गिरामी खानदान के बेटे नरेन के साथ।

शादी की तारीख तीन महीने बाद की तय हुई। शादी से पहले कविता दो तीन बार नरेन से मिली।नरेन ने तो उसे अपनी पत्नी के रूप में दिल में बसा लिया था।लेकिन कविता के दिल में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी,वह अपने सहपाठी बिरेन से प्यार कर बैठी थी।इस सब की खबर उसने अपने परिवार बालों से झुपा कर रखी।

जब उसने अपना रिश्ता तय होने की बातबिरेन को बताई तो बिरेन ने पूछा,फिर तुमने क्या सोचा है, क्या हमारा प्यार परवान चढ़ने से पहले ही टूट जायगा, क्या तुम्हारे परिवार बारे तुम्हारी शादी मुझसे करने को राजी होंगे।

जानती हूं पापा बहुत रूढ़िवादी विचारों के हैं वह कभी भी इस विजातीय शादी को अपनी मंजूरी नहीं देंगे।

तो फिर,जिस दिन मेरी शादी तय हुई है उसी दिन मैं पार्लर जाने के बहाने घर से निकलूंगी और अमुक स्थान पर तुम मुझसे मिलनाफिर हम भाग कर किसी मंदिर में जाकर शादी करलेगे।आखिर तो मैं अब बालिग हो चुकी हूं और अपनी लाइफ के फैसले खुद करनेका मुझे पूरा अधिकार है।

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कविता ने अपने घर से भागने के प्लान की बावत अपनी एक सहेली को विश्वास में लिया कि इस प्लान में वह मेरी पूरी मदद करेगी।पहले तो उसकी सहेली ने कविता को समझाने की कोशिश की जो तुम करने जा रही हो यह गलत है।यह तो तुम अपने परिवार बालों को धोखा देरही हो।

प्यार में सही गलत कुछ नहीं होता, प्यार तो सिर्फ प्यार होता हैं।मैबिरेन के साथ अपनी जिंदगी बिताने की कसमें खा चुकी हूं और बिरेन भी मेरे प्यार में पागल है।

घर में शादी की तैयारियां होने लगीं, ऊपरी मन से कविता इन तैयारियों में शामिल होखुश होने का नाटक करती। आखिर शादी का दिन आपहुंचा।तय शुदा प्लान के मुताबिक कवित अपनी सहेली के साथ पार्लर गई

और वहां से अपने प्रेमी के साथ भाग गई।बरात दरवाजे पर आ चुकी थी,पंडित जी बराबर कह रहे थे कन्या को बुलाया जाए, शादी का मुहूर्त निकला जारहा है पूरे घर में हड़कंप मच गया कविता घर में कहीं नहीं मिली, क्योंकि वह पार्लर से लौटी ही नहीं थी।

परेशान व वेबस दिल से रमाकांत जी ने कविता के ससुर जी से बात की,वे लोग खानदानी लोग थे,उसके ससुर जी ने कहा, रमाकांत जी जो हुआ सोहो गया हमबारात बिना दुल्हन केबापस नही ले जायेंगे।आप अपनी छोटी बेटी सबिता को दुल्हन बना कर मंडप में बिठा दीजिए, शायद भगवान को यही मंजूर होगा।

रमाकांत जी ने अनुनय विनय करके सबिता को शादी के लिए तैयार किया। बेटी ये मेरी इज्जत का सवाल है और अब मेरी इज्जत सिंह तेरे ही हाथों में है।

बुझे मन व टूटे दिल के साथ सबिता शादी के मंडप में आगई,इस तरह उसकी शादी न चाहते हुए भी नरेन के साथ हो गई।सबिता के सपनों का महल तो बसने से पहले ही टूट गया।

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शादी के बाद शुरू हुई सबिता के अनकहे दर्द की कहानी।जब शादी होकर ससुराल पहुंची तो सास ने मुंह दिखाई में खानदानी कंगन पहनाते हुए कहा,बैसे तो ये कंगन कविता बहू के लिए कब से रखे थे ,लेकिन अब जब तुम ही इस घर में बहू बन कर आगई होते तुम्हीं पहन लो।इतना ही नहीं सुहागरात की सेज पर भी यही बात दोहराई गई,

उसके पास बैठ ते ही नरेन ने कहा मैं तो पत्नी के रूप में कविता को ही अपने दिल में बसा चुका था,परंतु होनी को कौन टाल सकता है,इस घर में तुम्हें किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी,

लेकिन कविता के लिए जो प्यार था,वह मैं तुमको शायद ही देपाऊं।पल पल पर सबिता को अनकहे दर्द का सामना करा पड़ रहा था,सोचतीआखिर इस सबमें मेरा क्या कसूर है , मुझे तो बस बलिदान देना पड़ रहा है।

कदम कदम पर सबिता को अनकहे दर्द का सामना करना पड़ रहा था।मन बेचैन था पता नहीं कब तक इस अनकहे दर्द को झेलना पड़ेगा।

समाज की नजरों में वे पति पत्नी थे साथ रह रहे थे लेकिन नरेन किसी न किसी बात पर कविता के साथ बिताए क्षणों को याद करके इसका जिक्र सबिता के सामने करही देते और सबिता मन ही मन तड़प कर रह जाती।सबिता अच्छी पत्नी होने का भरसक प्रयास करती लेकिन नरेन के दिल में वह स्थान नहीं बना पाई जो एक पत्नी को मिलना चाहिए।

समय अपनी गति से बीत रहा था,आज सबिता व बिरेन की शादी को पूरा एक साल हो चुका था। परिवार में उनकी शादी का पहली सालगिरह की तैयारियां जोर शोर से होरही थी।सबिता के मन में इसको लेकर न कोई उमंग थी न मन में किसी तरह की खुशी।

बस वह तो इस अनचाहे रिश्ते के बोझ को #अनकहे दर्द के साथ थी रही थी।

सबिता कीसास ने उसकोसारे खानदानी जेवर पहनने को दिए और पार्लर बाली कोघर बुला घर उसका श्रंगार करबाया,सबिता मंहगे आभूषण व साड़ी में सजी धजी सिर्फ एकवेजान गुड़िया सी लग रही थी।

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नरेन बड़े उत्साह से अपने मित्रों से सबिता सेपरिचय करवा रहे थे ,मीट माई वाइफ सबिता।सभी लोग सबिता के रूप रंग की तारीफ कर रहे थे।सबके बिदा होने केबाद जब बिरेन अपने बैडरूम में आए तो देखा सबिता उदास नज़रों से खिड़की से चांद कोदेख रही थी।बिरेन ने कमरे का दरवाजा बन्द करके सबिता को अपने आगोश में ले लिया,

और कहा सबिता मैं तुम्हारा गुनहगार हूं जो इतने दिनों तक तुम्हें दिल से स्वीकार नहीं कर पाया,अब से तुम्हीं मेरी पत्नी व जिन्दगी हो ,हो सके तो पिछले दिनों के मेरे व्यबहार को माफ कर देना,

सबिता ने भी अपने आपको बिरेन को समर्पित करदिया।आजउसे अनकहे दर्द से मुक्ति मिल चुकी थी।सबिता कीआंखों से खुशी केआंसू बह निकले,बिरेन ने उसके आंसुओं को पौछते हुए कहा ,पगली आजतो खुश हेनेका दिन है,मैं तुम्हारा हूं और तुम मेरी हो।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली७६

अनकहा दर्द पर आधारित कहानी

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